आर्थिक शब्दाबली भाग 2 |


रेपो दर : अल्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु (ओवर-नाइट हेतु भी) जिस व्याज दर पर कॉमर्शियल बैंक रिजर्व बैंक से नकदी ऋण प्राप्त करते हैं, 'रेपो दर कहलाती हैं। वर्तमान (16 सितम्बर, 2010 से) में रेपो दर 6.00 प्रतिशत है।
रिवर्स रेपो दर : अल्पकालिक अवधि के लिए रिजर्व बैंक द्वारा कॉमर्शियल बैंकों से जिस ब्याज दर पर नगदी प्रापत की जाती है 'रिवर्स रेपो दर' कहलाती है। सामान्य बाजार में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाने पर उसमें कमी लाने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक द्वारा बढ़ी व्याज दरों पर कॉमर्शियल बैंकों को अल्प अवधि के लिए नकदी रिजर्व बैंक में जमा करने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है। वर्तमान (16 सितम्बर, 2010 से) में रिवर्स रेपो दर 5.00 प्रतिशत है।
नकद आरक्षित अनुपात (CRR) : किसी वाणिज्यिक बैंक में कुल जमा राशि का वह (प्रतिशत) भाग जिसे रिजर्व बैंक के पास अनिवार्य रूप से जमा करना पड़ता है, 'नगद आरमित अनुपात' कहा जाता है। इसकी दर जितनी ऊँची होती है, बैंकों की साख सृजन क्षमता उतनी ही कम होती है। वर्तमान (16 सितम्बर, 2010 से) में सी.आर.आर. 6.0 प्रतिशत है।
वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) : किसी भी वाणिज्यिक बैंक में कुल जमा राशि का वह (प्रतिशत) भाग जो नगद स्वर्ण व विदेशी मुद्रा के रूप में उसे अपने पास अनिवार्य रूप से रखना पड़ता है। बैंकों को वित्तीय संकट का सामना करने हेतु रिजर्व बैंक द्वारा ऐसी व्यवस्था निर्धारित की गई है। वर्तमान (16 सितम्बर, 2010 से) में यह दर 25 प्रतिशत है।
पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CRAR) : वह न्यूनतम पूँजी जिसे एक बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था को अपने पास रखना चाहिए, खासकर तब जब वह किसी व्यापारिक सम्पत्ति का सृजन करती हो, पूँजी पर्याप्तता कहलाती है, जबकि पूँजी पर्याप्तता अनुपात जोखिम भारित सम्पत्तियों के साथ पूँजी का अनुपात प्रदर्शित करता है। वर्तमान में यह दर 9 प्रतिशत है।
ECS प्रणाली : इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम योजना के माध्यम से बैंक द्वारा अपने ग्राहकों को उसके द्वारा आदेशित किसी भी संस्था/व्यक्ति के खाते में नियमित रूप से अन्तरित की जाने वाली धनराशि को बिना पेपर चैक काटे हुए स्वतः अन्तरण की सुविधा प्रदान की जाती है।
वाई-फाई (WiFi) तकनीक : आज के दौर में इंटरनेट का चलन और उपयोग एक अनिवार्य अंग बन गया है। इंटरनेट के प्रयोग करने वालों के लिए इंटरनेट की वाई-फाई तकनीक वरदान साबित हो रही है। वाई-फाई वायरलेस इडलिटी का संक्षिप्त नाम है। इंटरनेट की सुविधाएं सामान्यतः टेलीफोन, केबिल और ब्राडबैंड के जरिए लोगों को उपलब्ध कराई जाती हैं। आजकल बहुत-सी प्राइवेट कम्पनियाँ एक छोट-से मोडम के जरिए भी इंटरनेट की सुविधा लोगों को उपलब्ध करारही हैं। इंटरनेट के उपयोग के लिए डेस्कटॉप या लैपटॉप कम्प्यूटर उपयोग में लाए जाते हैं। इंटरनेट की सुविधा लेने के लिए इन कम्प्यूटरों को उपर्युक्त माध्यमों में से किसी एक से जुड़ा होना चाहिए, लेकिन इंटरनेट की वाई-फाई तकनीक में डेस्कटॉप या लैपटॉप कम्प्यूटर को टेलीफोन, केबिल और ब्राडबैंड आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती। वाई-फाई तकनीक से जुड़े क्षेत्र में कम्प्यूटर स्वतः इंटरनेट से जुड़ जाते हैं जिससे कम्प्यूटर को अलग से | किसी कनेक्टिविटी की जरूरत नहीं होती दूरदराज के क्षेत्रों के लिए जहाँ भौतिक कनेक्टिविटी सम्भव न हो। उन क्षेत्रों के लिए यह तकनीक किसी वरदान से कम नहीं।
नैनो तकनीक : आनेवाले समय में नैनो तकनीक आधुनिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अलादीन का चिराग साबित होगी। इस तकनीक के जरिए कृषि, पशुपालन एवं खाद्य प्रसंस्करण में चमत्कारिक परिवर्तन आएगा। इस तरह से ग्रामीण विकास में नैनों तकनीक अहम् भूमिका निभाएगी। इस तकनीक के जरिए पराजीनी फसलें या ट्रांसजेनिक क्रॉप्स तैयार की जा सकेगी। अभी तक एक प्रजाति की दो अच्छी किस्मों से बेहतरीन जीन निकाल कर उम्दा किस्म तैयार की जाती है, लेकिन नैनो तकनीक ने इन सभी को चमत्कारिक रूप से कर दिखाया है। इस तकनीक के जरिए वनस्पति जगत् में जन्तु जगत् की घुसपैठ को सम्भव कर दिखाया है। इसके द्वारा मनचाहे स्वाद, रंग, सुगंध एवं पौष्टिकता से भरपूर फसलों की प्रजातियों को तैयार किया जा सकेगा। यही नहीं, पौधों में पोषक तत्व, खाद-पानी की कमी एवं रोग–बीमारियों को खुद बया करेंगे। फसलों को खरपतवारों के आक्रमण से बचाना हो या फिर मिट्टी की उर्वरा शक्ति की जॉच-पड़ताल करनी हो, सब कुछ इस तकनीक से सम्भव हो चला है। नैनों तकनीक से पशुओं में मन चाही विशेष नसल एवं उम्दा गुणों के पशुओं को तैयारा करना सम्भव हुआ है। प्रकृति जो करिश्मा हजारों लाखों साल में करती थी, वह जेनेटिक इंजीनियरी के जरिए पलक झपकते ही सम्भव हो चला है। पराजीनी फसलों के उत्पादन में चीन नम्बर एक पर है। अभी पराजीनी फसलों में सोयाबीन, मक्का, कपास ओर केनोल का प्रमुख स्थान है।
टेली-मेडिसिन : यह संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी, चिकित्सा विज्ञान, इंजीनियरिंग एवं आयुर्विज्ञान का समन्वय है। टेलीमेडिसिन प्रणाली के अन्तर्गत विशेष रूप से तैयार किए गए हार्डवेयर ओर सॉफ्टवेयर, रोगी तथा डॉक्टर दोनों छोरों पर प्रदान किए जाते हैं। इनके जरिए रोग निवारण के उपकरण, एक्स-रे, ई. सी.जी., जाँच रिपोर्ट आदि रोगी तक पहुँचाए जाते हैं। यह जानकारी इनसैट उपग्रह के माध्यम से प्राप्त की जाती हैं। अमूमन रोगी की बीमारी से सम्बन्धित समस्त जानकारी विशेषज्ञ डॉक्टर को भेजी जाती हैं। इसके बाद डॉक्टर जाँच-पड़ताल के बाद रोगी से सीधे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वाराबातचीत करके रोग का निदान और उपचार करते हैं। इस कार्य के लिए। सरकारी अस्पताल, कुछ गैर-सरकारी संगठन या ट्रस्टी अस्पताल चुने जाते हैं। ताकि इस प्रणाली को सुचारु रूप से चलाने में पर्यापत प्रशिक्षण प्राप्त हो सके और आगे चलकर टेलीमेडिसिन को राष्ट्रीय स्तर पर चलाया जा सके। अभी हाल ही में कर्नाटक राज्य के सभी जिला चिकित्सालयों में टेलीमेडिसिन सुविधा स्थापित करने का कार्य आरम्भ कर दिया है। 
नेट बैंकिंग : इंटरनेट एवं कम्प्यूटर की सहायात से घर बैठे बैंकिंग के कार्यों का संचालन किया जाता है। इस प्रक्रिया को नेट बैंकिंग कहते हैं। नेट बैंकिंग के माध्यम से ग्राहक अपने कम्प्यूटर का उपयोग कर अपने बैंक नेटवर्क और वेबसाइट को एक्सेस कर सकता है। नेट बैंकिंग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि कोई भी घर बैठे या ऑफिस से बैंक सर्विस का लाभ उठा सकता है। तकनीकी दुरुपयोग के कारण नेट का जालसाज एकाउंट को हैक कर बैंक के ग्राहक को हानि पहुँचा सकते हैं। ऐसी स्थिति में यह जरूरी है कि नेट बैंकिंग के उपयोग में सतर्कता बरती जाए। नेट बैंकिंग की 50 प्रतिशत वेबसाइट असुरक्षित होती है। अतः ग्राहक साइट खोलने से पहले यू आर.एल. और डोमेन को चेक करें और देखें कि यह उसी बैंक के यू.आर.एल, और डोमेन की तरह हों। इससे आप आश्वस्त हो जाएगें कि आप सुरक्षित वेबसाइट का उपयोग कर रहे हैं। यदि आप नेट बैंकिंग के लिए इंटरनेट कैफे का उपयोग कर रहे हों, तो अपने पासवर्ड को बदल लें। इससे आप सुरक्षित हो जाएंगे। पासवर्ड को किसी पेपर पर न निरखें। इसे आसानी से हैक किया जा सकता है। अपनी सिस्टम पर स्क्रीन सेवर पासवर्ड डाल दें। जिससे आपके सिस्टम का उपयोग कोई अन्य नहीं कर सके।

प्रतिकारी शुल्क : निर्यातक देश द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर सब्सिडी प्रदान करके उनहें नीची कीमत पर निर्यात करने या राशिपत्तन करने की सिीति में आयातक देश द्वारा ऐसी वस्तुओं पर ऊँची दर से आयात शुल्क लगाने या विशेष अतिरिक्त आयात शुल्क लगाए जाने को प्रतिकारी शुल्क कहा जाता है।

टपकन सिद्धान्त (Trickle Down Theory) : किसी देश में राष्ट्रीय आय की उच्च विकास दर का लाभ समाज के सबसे निचले पायदान पर बैठे लोगों तक पहुँचने का सिद्धान्त टपकन सिद्धान्त कहलाता है। इसमें प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ-साथ समाज में आय एवं धन के वितरण की असमानताओं में भी कमी करने का प्रयास किया जाता है।

सी. सी. आई. एल. (CCIL) : सी. सी. आई. एल. (क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लि.) भारतीय विदेशी विनिमय बाजार का एक निकाय है, जो विदेशी लेन-देन के समाशोधन का कार्य करता है।

जोखिम पूँजी (Venture Capital) : बाजार में निवेशकर्ताओं एवं कम्पनियों द्वारा व्यापारिक अविवा अन्य प्रकार की निवेशक गतिविधियों में प्रयुक्त की जाने वाली पूँजी 'जोखिम पूँजी' कहलाती है।
चालू खाते पर बकाया (Balance on Current Ac) : किसी देश के भुगतान सन्तुलन के चालू खाते (आयात-निर्यात का पण्य व्यापार, जहाजरानी, बैंकिंग, पर्यटन, बीमा, अनिवासियों द्वारा विदेशी निधियों के अन्तरण) के लेन-देन का चालू खाते के बकाया पर नामे एवं जमा में दर्शाया जाता है।
अति इष्ट राष्ट्र ( Most Favoured Nation) : किसी देश द्वारा जब किसी अन्य देश के आयात–निर्यातों, प्रशुल्कों आदि से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट सुविधाएं या रियायतें दी जाती हैं तो एसी सुविधाएं प्राप्त करने वाला राष्ट्र ‘अति इष्ट राष्ट्र' कहलाता है।
स्विच ऑपरेशन (Switch Operation) : खुले बाजार की क्रिया (Open Market Operation) का प्रयोग केवल साख नियन्त्रण या मौद्रिक नीति में न होकर, बल्कि सरकारी प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय द्वारा राजकोषीय नीति के रूप में किया जाता है। रिजर्व बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को क्रय करना (सामान्यतया अल्प अवधि की) तथा दूसरी प्रतिभूतियों का उसके स्थान पर विक्रय (सामान्यतया दीर्घ अवधि की) करने की क्रिया, जिससे प्रतिभूतियों की परिपक्वता अवधि (Maturity Period) लम्बी हो सके, को ही हम स्विच ऑपरेशन' कहते हैं।
संदर्भित दर या प्रमुख उधारी दर (Prime Landing Rate-PLR) : संदर्भित दर, पूँजी बाजार का निर्धारण करती है। यह दर न्यमनतम दर होती है, जिस पर पूँजी बाजार में उधार लिया या दिया जाता है। बाजार में प्रचलित ब्याज दर, जिस पर सामान्यतया समझौता होता है, संदर्भित दर से ऊँची होती हैं इसके द्वारा ब्याज दर में होने वाला परिवर्तन निर्देशित होता है। विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न नामों से संदर्भित दरों को जाना जाता है। अमरीका में Feds Funds Rate, जर्मनी में फेंकफर्ट इन्टर बैंक ऑफर्ड रेट (FIBOR), जापान में टोकियो इन्टर बैंक ऑफर्ड रेट (TIBOR), लन्दन में लन्दन इण्ट्र बैंक ऑफर्ड रेट (LIBOR), इत्यादि।
प्रमुख उधारी दर (Prime Lending Rate-PLR) : वह ब्याज दर होती है, जिस पर बैंक अपने सर्वप्रिय (विश्वसनीय) ग्राहक को ऋण देता है। (विश्वनीयता से तात्पर्य है जिसमें जोखिम शून्य हो।) PLR एक प्रकार से आधार ब्याज दर की भूमिका अदा करता है। इसी PLR आधार पर अन्य उद्यमियों को ऋण प्रदान किया जाता है। यह दर एक प्रकार से आधारिक ब्याज दर के रूप में कार्य करती है।
वेबरीज वक्र (Webriz Curve) : किसी अर्थव्यवस्थाम बेराजगारी के स्तर तथा रोजगार उपलब्धता के स्तर के बीच आरेखीय सम्बन्ध प्रदर्शित करने वाले वक्त को ‘वेबरीज वक्र कहते हैं। वस्तुतः दोनों में विलोम सम्बन्ध पाया जाता है।
ई-गवर्नेन्स (E-Governance) : शासन के विभिन्न घटकों-विभागों एवं मन्त्रालयों के सभी स्तरों को कम्प्यूटर आधारित नेटवर्क से जोड़कर नीति निर्धारण, संसाधन आबंटन, कार्यक्रम कार्यान्वयन तथा मूल्यांकन की प्रणाली ई-गवर्नेन्स कहलाती है। ई-प्रशासन अभी व्यावहारिक रूप से भले ही दूर की कौड़ी लगे, लेकिन जिस रफ्तार से देश में सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है। भविष्य में देशवासियों विशेष रूप से ग्रामीणों तथा दूरदराज के ध्यक्तियों को सबसे अधिक फायदा ई-प्रशासन से होगा। इंटरनेट का दायरा दूरदराज के क्षेत्रों तक फै लेगा। तब ई-प्रशासन से सरकार और ग्रामीणों के बीच सीधा सम्पर्क कायम होगा। प्रायोगिक तौर पर ई-प्रशासन को भू-अभिलेख, सड़क परिवहन, वाणिज्य कर, रोजगार केन्द्र, कोषागार, भू-पंजीयन, पुलिस प्रशासन एवं शिक्षा आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों से प्रारम्भ किया जा रहा है।
ई-चौपाल : ई-चौपाल केन्द्र निजी कम्पनियों, विकास संस्थाओं एवं राज्य सरकारों का ऐसा नेटवर्क है, जो इंटरनेट के माध्यम से गाँवों में ही किसानों को कृषि की जानकारी, बाजार की माँग, विपणन एवं कृषि सम्बन्ध नई जानकारी उपलब्ध कराता है। ई-चौपाल केन्द्रों का संचालन पाँच-छह गाँवों को मिलाकर एक स्थानीय व्यक्ति करता है जिसको कम्प्यूटर की जानकारी होती है। यह व्यवित पाँच-छह गाँवों को मिलाकर ई-चौपाल केन्द्र का संचालन करता है। इन ई-चौपाल केन्द्रों पर किसानों को कृषि की नई प्रौद्योगिकी अपनाने की जानकारी, फसलों के उत्पादन बढ़ाने की जानकारी, नई उन्नतशील किस्म के बीज, उर्वरकों, दवाओं की जानकारी, फसलों के रोग–बीमारियों के निदान के उपाय की जानकारी, बाजार मूल्य, बाजार माँग आदि की जानकारी मुहैया कराता है।
के.पी.ओ. (Knowledge Processing Outsourcing KPO) : नॉलिज प्रोसेसिंग आउटसोर्सिग वह प्रक्रिया है। जिसमें ज्ञान आधारित सेवाएं जैसे कि वकालत आदि दूसरे देशों से कराई जाती हैं। आने वाले दिनों में विकसित देश अपनी अनेक ज्ञान आधारित सेवाएं भारत जैसे विकासशील देशों से कराना प्रारम्भ कर देंगे, क्योंकि ऐसा करना उनके लिए सस्ता होगा।
आई.पी.ओ. (Initial Public offcer) : इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग से किसी कम्पनी द्वारा जारी किया गया वह प्रारम्भिक निर्गम है जो जनता द्वारा अंशदान करने के लिए किया जाता है।
समावेशित विकास (Inclusive Growth) : ऐसा विकास समावेशित विकास कहलाता है जिसमें आर्थिक विकास की उच्च दर से जनित राष्ट्रीय आय के वितरण में समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लोगों को उचित हिस्सा मिले अति राष्ट्रीय आय का रिसाव प्रभाव नीचे की ओर अधिक हो।
लियोन्तीफ पैराडॉक्स (Leontief Paradox) : विकसित देशों पूँजी प्रधान वस्तुओं का आयात करना तथा श्रम प्रधान वस्तुओं का निर्यात करना एवं श्रम प्रधान देशों द्वारा श्रम प्रधान वस्तुओं को आयात करना व पूँजी प्रधान वस्तुओं का निर्यात करना लियोन्तीफ पैराडौंक्स कहलाता हैं।
पी.ए.एन. (Permanent Account Number-PAN) : परमानेन्ट एकाउण्ट नम्बर या स्थायी लेखा संख्या आयकर दाताओं को आबंटित एक ऐसी संख्या है जिससे उसके धारक द्वारा किसी वर्ष में प्राप्त की गई आय एवं अन्य लेन-देन, जिनमें पी.ए.एन, का उल्लेख करना अनिवार्य है, का लेखा-जोखा रखा जाता है ताकि कर अपवचन को रोका जा सके।
सूक्ष्म साख की अवधारणा (Concept of Micro Finance) : ग्रामीण निर्धनों, विशेष रूप से महिलाओं को बिना किसी सम्पाश्विक गारन्टी के आय सृजनकारी गतिविधियों के संचालनार्थ साख सुविधा उपलब्ध कराना सूक्ष्म साख कहलाता है। निर्धनता निवारण एवं विकास का लाभों से वंचित रहे। लोगों, विशेष रूप से महिलाओं के आर्थिक सशवितकरण में सूक्ष्म-साख एक उपयोगी यन्त्र के रूप में सामने आई है। इसकी कार्य प्रणाली प्रारम्परित बैंक साख से भिन्न है। इसके अन्तर्गत स्वयं सहायता समूह के रूप में संगठित निर्धन व्यक्तियों को साख सुविधा मुईया कराई जाती है। इसलिए यह प्रणाली उन लोगों को आर्थिक क्षेत्रक की मुख्य धारा से | जोड़ती है जो साधनहीन है तथा सैकड़ों वर्षों से | निर्धनता–कुपोषण अशिक्षा–बेरोजगारी के मकड़जाल में फंसे । है। इसके अन्तर्गत लाभार्थियों को छोटी-छोटी बचतें करने के लिए भी प्रेरित किया जाता है, ताकि वे अन्ततः स्वावलम्बी बन सकें।
ब्यावर्ती योजना (Rolling Plan) : प्रोफेसर मिर्डल प्रथम अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने अपनी पुस्तक 'Indian Economic Planning in its Broader Setting' में विकासशील देशों के लिए ब्यावर्ती योजना की सिफारिश की। ब्यावर्ती योजना में प्रत्येक वर्ष तीन योजनाएं इनाई जाती हैं और उन पर अमल किया जाता है। प्रथम, एक योजना चालू वर्ष के लिए होती है, जिसमें वार्षिक बजट तथा विदेशी मुद्रा बजट शामिल होते हैं। द्वितीय, एक योजना कुछ वर्षों के लिए अर्थात् तीन, चार या पाँच वर्षों के लिए होती है। इसे अर्थव्यवसायी आवश्यकताओं के अनुसार हर वर्ष बदल दिया जाता है। इसमें कीमत सम्बन्धों तथा कीमत नीतियों के साथ-साथ उन लक्ष्यों एवं तकनीकों का उल्लेख होता है जिनका अनुसरण योजना की अवधि के दौरान किया जाता है। तृतीय, प्रतिवर्ष 10 वर्ष, 15 वर्ष, 20 वर्ष या उससे भी अधिक की समयावधि के लिए एक दृष्ट योजना प्रस्तुत की जाती है जिसमें व्यापक उद्देश्यों का उल्लेख रहता है और आगामी विकास की रूपरेखा बनाई जाती है। वार्षिक एकवर्षीय योजना को उसी वर्ष की नई तीन, चार या पाँचवर्षीय योजना में फिट किया जाता और इन दोनों को दृष्ट योजना के प्रकाश में तैयार किया जाता है।

प्लास्टिक मनी (Plastic Money) : पलास्टिक मनी से तात्पर्य विभिन्न बैंकों, वित्तीय संस्थानों तथा अन्य कम्पनियों द्वारा जारी किए गए क्रेडिट कार्डों से हैं। भारत के लगभग सभी महानगरों में क्रेडिट काडाँ का चलन बढ़ रहा है। इनसे हवाई जहाज की टिकट, कपड़े, सामान आदि खरीदे जा सकते हैं। अब तो बाजार में पेट्रो कार्ड तक आ गए हैं जिनसे ग्राहक पेट्रोल पम्पों पर पेट्रोल/डीजल का भुगतान क्रेडिट कार्ड के जरिए कर सकते हैं।

ब्लू टूथ : ब्लू टूथ सूचना प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित तीसरी पीढ़ी का उपकरण है, जो संचार क्षेत्र के लिए एक क्रान्तिकारी तकनीक साबित हुआ हैं। कम्प्यूटर जगत् में ब्लू टूथ एक मानक टेक्नोलॉजी है जिसका मकसद हमारे कम्प्यूटरों को तारों के जाल से निजात दिलाना है। इस तकनीकी की मदद से सेलफोन और लैपटाप या ऐसे कोई भी दो अन्य उपकरण (जिनमें ब्लू टूथ तकनीकी का प्रयोग किया गया हो) बिना तार के एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं। इस तकनीकी की मदद से एक छोटी रेंज में रेडियो फ्रीक्वेंसी द्वारा आवाज सुनने तथा डाटा स्थानान्तरण का कार्य किया जाता है। इसका रेंज 10 सेमी. से 100 मी. तक किया जा सकता है। तकनीकी के प्रयोगकर्ता बिना कोई तार लगाए ही कम्प्यूटिंग तथा दूरसंचार उपकरणों तक अपनी पहुँच बना लेता है। इसमें विभिन्न उपकरणों को आपस में तारों से जोड़ने के झंझट में हमें छुटकारा मिल सकता है। 10वीं शताब्दी के महान् डैनिश सम्राट् हैराल्ड ब्लू टूथ के नाम पर विकसित की गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके आ जाने से सूचनाओं का प्रेषण न केवल आसान हो गया। है, बल्कि सूचना राजमार्ग पर बढ़ते ट्रैफिक से भी निजात मिल गई है।

गैर-निष्पादनीय परिसम्पत्तियाँ (Non-performing Assests) : गैर–निष्पादनीय परिसम्पत्तियाँ बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों द्वारा वितरित वे ऋण हैं जिनके मूलधन एवं उस पर देय ब्याज की वापसी समय से नहीं हो पाती या बिलकुल नहीं हो पाती। सामान्यतया बैंकों द्वारा वितरित ऐसे सभी ऋण और उस पर देय ब्याज गैर-निष्पादनीय परिसम्पत्ति के रूप में पहचाने जाते हैं, जिनमें किसी वित्तीय वर्ष में मूलधन का भुगतान 180 दिन तथा ब्याज का भुगतान 365 दिन से अधिक दिनों तक रोक लिया जाता है।

स्वीट शेयर (Sweat Shares) : स्वीट ईक्विटी शेयरों से तात्पर्य ऐसे शेयरों से है, जो कम्पनी के कर्मचारियों या किसी अन्य को रियायती मूलय पर आबंटित किए गए हों। या फिर कोई प्रौद्योगिकी अथवा बौद्धिक सम्पदा अधिकार कम्पनी को उपलब्ध कराने या कोई अन्य मूल्य संवर्द्धन (Value Addition) करने की एवज में निःशुल्क या रियायती मूल्य पर कम्पनी द्वारा उपलब्ध कराए गए हों। शेयर बाजारों पर निगरानी रखने वाली संस्था 'सेबी'! (SEBI) ने विशेष श्रेणी के स्वीट ईक्विटी' (Sweat Equity) शेयरों के लिए तीन वर्ष का लॉक इन पीरिएड निर्धारित किया है। इसका तात्पर्य यह है कि आबंटन की तिथि से तीन वर्ष तक इन्हें किसी अन्य को बेचा नहीं जा सकेगा। सामान्य ईक्विटी शेयरों की भाँति यह शेयर, शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होंगे।

हालमार्क (Hallmark) : स्वर्णाभूषणों की गुणवत्ता को सुनिश्चत करने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने एक नई हालमार्क (Hallmark) योजना 12 अप्रैल, 2000 से प्रारम्भ की है। बी.आई.एस. अधिनियम, 1988 के तहत् जारी किया जाने वाला इालमार्क उसी सोने से बने आभूषणों के लिए प्रदान किया जाएगा जो आई.एस. 1417 के मानकों के अनुरूप होगा।
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment) : भौतिक सम्पदा जैसे कारखाने, भूमि, पूँजीगत वस्तुएं तथा आधारित संरचना वाले क्षेत्रों में जब विदेशी निवेशक अपना धन लगाते हैं, तो इसे प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश कहा जाता है। अधिकांशतया इस प्रकार के निवेश बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किए जाते हैं।
संविभाग निवेश (Portfolio Investment) : वित्तीय विपत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय निवेश को संविभाग निवेश कहते हैं। जब एक देश के निवेशक दूसरे देश की कम्पनियों के अंशों. ऋणपत्रों, बॉण्डों तथा अन्य प्रतिभूतियों में धन लगाते हैं. तो ऐसे निवेश को संविभाग निवेश कहा जाता है।
बहुराष्ट्रीय निगम (Multinational Corporation) : एक ऐसी कम्पनी जिसके कार्य क्षेत्र का विस्तार एक से अधिक देशों में होता है और जिसका उत्पादन एवं सेवा सुविधाएं उस देश से बाहर भी सम्पन्न होती हैं जिसमें यह जन्म लेती है, को अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी या बहुराष्ट्रीय निगम कहा जाता है। ऐसी कम्पनियों की महत्वपूर्ण विशिष्टता यह है। कि इनके प्रमुख निर्णय पूरे विश्व के सन्दर्भ में एक साथ लिए जाते हैं, जिसके कारण इनके निर्णय बहुधा उस देश की नीतियों से बेमेल हो जाते हैं, जिनमें यह कम्पनी कार्य कर रही होती है।
वृद्धिमान पूँजी–निर्गत अनुपात (ICOR) : अर्थव्यवस्था में उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए पूँजी की जितनी अतिरिक्त इकाइयों की आवश्यकता होती है, उसे वृद्धिमान पूँजी–निर्गत अनुपात अथवा वृद्धिमान पूँजी उत्पादन अनुपात (ICOR) कहा जाता है। ICOR का अधिक होना यह बताता है कि उत्पादन की एक अतिरिकत इकाई की प्राप्ति के लिए ज्यादा पूँजी की आवश्यकता है।
एम्बार्गो (Embargo) : एम्बार्गों से तात्पर्य व्यापार प्रतिषेध से है. जिसके अन्तर्गत कोई राष्ट्र या कुछ राष्ट्र मिलकर किसी विशेष राष्ट्र के साथ अपना सम्पूर्ण व्यापार अथवा वस्तु विशेष का व्यापार बन्द कर देते हैं। एम्बार्गों को घाट बन्दी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है जिसके अन्तर्गत कोई एक राष्ट्र अथवा एक से अधिक राष्ट मिलकर किसी राष्ट्र के जहाजों के बढ़ने पर रोक लगा देते हैं। ऐसी स्थिति में उन जहाजों को किसी बन्दरगाह पर रोक दिया। जाता है या किसी विशेष बन्दरगाह पर पहुँचने नहीं दिया जाता है।
हवाला (Hawala) : हवाला, व्यापार अधिकृत विदेशी विनिमय चैनलों को बाईपास करने वाली एक प्रणाली है। इस व्यापार में लगे लोग भुगतान घरेलू मुद्रा (Domestic currency) में प्राप्त करते हैं तथा इसके बदले विदेशों में विदेशी मुद्रा (डॉलर) की आपूर्ति कर देते हैं। यह व्यापार एक प्रमुख संचालक के नियन्त्रण में कार्यरत् ऐजेन्टों के माध्ये से परिचालित होता रहता है। हवाला व्यापार की विनिमय दरें देश के विभिन्न केन्द्रों में प्रायः अलग-अलग होती हैं। कुछ आयातक एवं नियोतक भी इवाला व्यापार के माध्यम से लेन-देन में रुचि रखते हैं।
अनुषंगी हितलाभ (Fringe Benefits) : निर्धारित मौद्रिक वेतन के अतिरिक्त नियोक्ताओं द्वारा अपने कर्मचारियों को जो अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, उन्हें "अनुषंगी हितलाभ कहते हैं।
जीरो नेट-एड (Zero Net Aid) : जब किसी देश विशेष की आर्थिक व्यवस्था स्वनिर्भर हो जाती है तथा उसे किसी विदेशी आर्थिक सहायता की आवश्यकता नहीं होती, तो वह जीरो नेट एड कहलाती है।
मानव विकास निर्देशांक (Human Development Indes HDI) : एक देश में बुनियादी मानवीय योग्यता की औसत प्राप्ति को मानव विकास निर्देशांक द्वारा मापा गया है। इसका आकलन सम्बन्धित देश में जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy), शिक्षा के स्तर तथा वास्तविक आय के आधार पर किया जाता है।
प्राथमिक बाजार (Primary Market) : पूँजी बाजार दीर्घकालीन वित्त का बाजार होता है। पूँजी बाजार का वह भाग जहाँ इक्विटी शेयर तथा ऋणों के नए निर्गमन द्वारा वित्त के दीर्घकालीन स्रोत उपलब्ध होते हैं, उसे प्राथमिक बाजार कहते हैं।
गिल्ट एज बाजार (Gilt Edge Market) : इसके अन्तर्गत क्रय-विक्रय की जाने वाली प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय (RBI) के माध्यम से किया जाता है। इसे सरकारी प्रतिभूति बाजार भी कहते हैं, क्यांकि बाजार में क्रय-विक्रय की जाने वाली प्रतिभूतियाँ सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी दोनों होती हैं।

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