मूलकण
खोजकर्ता
इलेक्ट्रान
(ऋणात्मक)
जे.जे.
थामसन
प्रोटान
(धानात्मक)
रदरफोर्ड
व गोल्डस्टीन
न्यूट्रान
(उदासीन)
चैडविक
पाजिट्रान
(धानात्मक)
एण्डरसन
न्यूट्रिनो
(उदासीन)
पउली
पाई
मैसोन दो धानात्मक व (ऋणात्मक)
युकावा
फोटान
(ये ऊर्जा वण्डल हैं)
आइन्स्टीन
नाभिक : परमाणु का समस्त द्रव्यमान इसके नाभिक में केन्द्रित रहता हैं इसका संघटन प्रोटान एवं न्यूट्रान से होता है। नाभिक काफी सघन एवं दृढ़ होता है। नाभिक के बीच प्रोटानों एवं न्यूट्रानों के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है जो इन कणों को आपस में बांधे रहता है। इन्हीं बलों का नाभिकीय बल कहते है। नाभिकीय बल का कारण नये प्रकार के कणों मैसोन की उत्पत्ति है। जो नाभिक के भीतर प्रोटान न्यूट्रान के बीच परस्पर विनिमय से उत्पन्न होते है।
समस्थानिक (Isotopes) : एक ही तत्त्व के परमाणु जिनके द्रव्यमान भिन्न भिन्न तथा परमाणु क्रमांक समान हों समस्थानिक कहलाते है। इनमें इलेक्ट्रान व प्रोट्रान की संख्या समान परन्तु न्यूट्रान की संख्या भिन्न भिन्न होती है। समस्थानिक के रासायनिक गुण एक समान होते हैं।
समभारी (Isobars) : वे तत्त्व जिनके परमाणु भार समान हो परन्तु परमाणु क्रमांक अर्थात् इलेक्ट्रान व प्रोटान की संख्या भिन्न भिन्न हो समभरी कहलाते हैं। इनके रासायनिक गुण भिन्न भिन्न होते है।
रेडियो एक्टिवता (Radioactivity) : कुछ तत्वों से अदश्श्य विकिरण स्वतः उत्सर्जित होते रहते है। ये विकिरण अपादर्शी पदार्थो कागज आदि को बेधने तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करने की क्षमता रखते है। इन अदश्श्य विकिरणों को रेडियोएक्टिव किरणें तथा पदार्थ के इस गुण को रेडियोएक्टिवता कहते हैं और ऐसे पदार्थों को रेडियो एक्टिव पदार्थ कहते है। इसमें यूरेनियम, रेडियम, थोरियम, पोलोनियम आदि आते है।रदरफोर्ड ने इन किरणों को विद्युत क्षेत्र से गुजार कर तीन प्रकार की किरणों अल्फा (धनात्मक), बीटा (ऋणात्मक) तथा गामा (3 उदासीन) के रुप में पहचान की।
आयु (Half Life) : जितने समयान्तराल में किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की मात्रा विघटित होकर अपने प्रारम्भिक मात्रा की आधी रह जाती है उस समयान्तराल को अर्द्ध आयु कहते है।
रेडियो समस्थानिक : कुछ तत्वों पर न्यूट्रानों या उच्च ऊर्जा वाले कणों की बमवारी करके इनको बनाया जाता है। इस प्रकार निर्मित रेडियों एक्टिव समस्थानिक प्राकृतिक रेडियों एक्टिव पदार्थों की भॉति कार्य करते हैं। इनका उपयोग औषधियों में, रोगोंपचार में एवं कृषि में होता है।
रेडियो एक्टिवता के उपयोग
रेडियों एक्टिव क्षय (Radioactive Decay) : रेडियों एक्टिव पदार्थ से कण के उत्सर्जन से उनके परमाणु भार व क्रमांक बदलते जाते है। व नये तत्वों का जन्म होता है इस घटना को रेडियों ऐक्टिव क्षय कहते है। समस्त रेडियों एक्टिव पदार्थ क्षय होकर सीसे में परिवर्तित होते है। रेडियोंएक्टिव किरणें परमाणु के नाभिक से उत्सर्जित होती हैं अतः इन पर ताप, दाब आदि बाह्य कारक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्षय प्रारम्भ में तेजी से होता है फिर इसकी दर लगातार घटती जाती है।
रेडियों समस्थानिकों का उपयोग नाभिकीय विघटन, प्रकाश संश्लेषण आदि के अध्ययन में किया जाता है। रेडियों एक्टिव समस्थानिक (सोडियम) का परिसंचरण तंत्र, पाचन तंत्र के अध्ययन, शरीर में खून की मात्रा ज्ञात करने के लिए किया जाता है। रेडियों समस्थानिकों को अनुरेखकों की तरह करके पौधों द्वारा विभिन्न उर्वरकों के ग्रहण करने की क्षमता का अध्ययन करने में किया जाता है। गइगेर मुलर गणक (Geige Muller Counter) के द्वारा पौधों द्वारा ली गई उर्वरक की मात्रा ज्ञात की जाती है। गामा किरणों का उपयोग कृषि में हानिकारक जीवों एवं जीवाणुओं के मारने में भी किया जाता है।
रेडियों एक्टिव कोबाल्ट का उपयोग कैंसर रोग में, आयोडीन का अवटु ग्रंथि के उपचार तथा आसैनिक का उपयोग रक्त सम्बंधी रोगों के उपचार में किया जाता है।
रेडियों एक्टिव समस्थानिकों का उपयोग जमीनी पाइपों द्वारा तेल भेजने, टंगस्टन व कोबाल्ट का समस्थानिकों का प्रयोग मशीनों की खराबी ज्ञात करने में किया जाता है।
रेडियों एक्टिव तत्व कार्बन (C12 O C14) का प्रयोग जीवाश्मों, मश्त जीवों व पेड़ पौधों की आयु ज्ञात करने तथा यूरेनियम का प्रयोग चट्टानों एवं पृथ्वी की आयु ज्ञात करने में किया जाता है।
नाभिकीय विखडन (Nuclear Fission) : वह प्रक्रिया जिसमें कोई भारी नाभिक दो लगभग समान आकार के नाभिकों में विखण्डित हो जाता है नाभिकीय विखण्डन कहलाता है। यह कार्य सर्वप्रथम दो जर्मन वैज्ञानिकों हॉन तथा स्ट्रासमैन ने यूरेनियम पर न्यूट्रानों की बमबारी करके किया था।
नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) : दो हल्के नाभिक आपस में मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते है और अपार ऊर्जा मुक्त होती है।
नाभिकीय संलयन धनावेशित नाभिकों के बीच होता है जब ऐसे दो नाभिक समीप आते है तो उनमें तीव्र प्रतिकर्षण बल लगता है इन नाभिकों के संलयन के लिए अत्यंत उच्च दाब एवं उच्च ताप (108 डिग्री केल्विन) की आवश्यकता होती है जो परमाणु बम के विस्फोट से ही सम्भव हो पाता है।
परमाणु बम (Atom Bomb) : यह नाभिकीय विखण्डन के सिद्धान्त पर आधारित है जिसमें अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया होती हैं और अपार ऊर्जा मुक्त होती है। बम में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ में यह आवश्यक है कि उसका द्रव्यमान एक निश्चित मात्रा से अधिक हो, इस मात्रा को क्रान्तिक द्रव्यमान कहते है। परमाणु बम के विस्फोट से लगभग 1070 ताप व अत्याधिक उच्च दाब एवं आंखों को अंधा कर देने वाली चमक व बहुत से रेडियोधर्मी प्रदूषण उत्पन्न होते है।
हाइड्रोजन बम (Hydrogen bomb) : यह नाभिकीय संलयन प्रक्रिया पर आधारित है। परमाणु बम की अपेक्षा 1000 गुना अधिक शक्तिशाली होता है। हाइड्रोजन बम के विस्फोट से पहले परमाणु बम विस्फोट कराना आवश्यक होता है। अतः हाइड्रोजन बम को बनाने के लिए परमाणु बम बनाना आवश्यक है। अभी तक नाभिकीय संलयन ऊर्जा को नियन्त्रित करके रचनात्मक कार्य नहीं हो पा रहा है। क्योंकि जिस ताप पर यह प्रक्रिया सम्पन्न होती है उस पर परमाणुओं | से सभी मिश्रण को प्लाज्मा कहते है। वर्तमान में वैज्ञानिकों के सामने प्लाज्मा संरक्षण एक कठिन समस्या है।
नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) : नाभिकीय विखण्डन से प्राप्त ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते है। | यूरेनियम के एक नाभिक के विखण्डन से लगभग 200 डम (मिलियन इलेक्ट्रान वोल्ट) ऊर्जा प्राप्त होती है। एक ग्राम यूरेनियम के विखण्डन से इतनी ऊर्जा प्राप्त होती है जितनी 20 टन टी.एन.टी. (Tri-Nitro - Tolone) के विस्फोट से प्राप्त की जा सकती है। नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग नाभिकीय रिएक्टरों में करके विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है।
परमाणु भट्टी (Atomic Pill) : परमाणु भट्टी में नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पन्न किया जाता है। पहली परमाणु भट्टी शिकागों विश्वविद्यालय (U.S.A) में प्रो. फर्मी के निर्देशन में बनाया गया था। भट्टी में न्यूट्रानों की गति को धीमी करने के लिए भारी जल व ग्रेफाइट का प्रयोग किया जाता है। विस्फोट से प्राप्त ऊष्मा से जल को भाप में परिवर्तित करके टर्बाइन मशीन की सहायता से विद्युत उत्पन्न की जाती है। हानिकारक विकिरण के उम्सर्जन को रोकने के लिए रिएक्टर के चारों ओर कंक्रीट की मोटी दीवार बनाई जाती है। अभिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए कैडमियम की छड़ों का उपयोग नियंत्रक छड़' के रुप में किया जाता है। सूर्य तथा ब्रह्माण्ड के अन्य तारों की ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन है। सूर्य के भीतरी भाग का तापमान 1017 कैल्विन है जो हाइड्रोजन नाभिक के संलयन से उत्पन्न होता है।
प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photo Electro Effect) : कुछ धातुओं पर उच्च आवृत्ति का प्रकाश डालने पर इनकी सतह से इलेक्ट्रान उत्सर्जित होते है। इलेक्ट्रानों के इस प्रकार उत्सर्जन की घटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते है। इसका प्रयोग कर प्रकाश विद्युत सेल का निर्माण किया जाता है। ये कई प्रकार के होते हैं जैसे प्रकाश उत्सर्जक सेल (Photo Emissive Cell) प्रकाश वोल्टीय सेल (Photo Voltaic Celi) प्रकाश चालकीय सेल (Photo Conductive Cell) आदि। इन | सेलों का प्रयोग सिनेमाघरों में ध्वनि पुनरुत्पादन में, टेलीविजन में, सड़कों पर चालित लाइटों, स्वचालित दरवाजों, तथा बैंको के तिजोरियों में चोरी रोकने, अंतरिक्षयानों की बैटरियों की चार्जिंग में किया जाता है। इनका सौर बैटरी (Solar Battery) भी कहते है।
रमन प्रभाव (Raman Effect): प्रकाश जब किसी ठोस, द्रव या गैस के पारदर्शी माध्यम से गुजरता है तो इसका कुछ भाग प्रकीर्णित हो जाता है इस प्रकीर्णित प्रकाश को स्पेक्ट्रम द्वारा देखने पर कई लाइनें प्राप्त होती हैं जिनमें कुछ का तरंग दैर्ध्य प्रारम्भिक प्रकाश के बराबर तथा कुछ का कम व कुछ का अधिक होता है। इस प्रकार प्रकाश के प्रकीर्णित होकर विभिन्न तरंग दैर्ध्व वाली लाइनों में विभक्त होने की घटना को ईमन प्रभाव कहते है। इसकी खोज भारतीय वैज्ञानिक सर सी. वी. रमन ने 1928 ई. में किया था।
प्रतिदीप्ति (Eluorescence) : बहुत से ऐसे पदार्थ हैं जिन पर ऊँची आवृत्ति या निम्न तरंग दैर्ध्य का प्रकाश डालने पर वे अवशोषित कर निम्न आवृत्ति व उच्च तरंग दैर्ध्य का प्रकाश उत्सर्जित करते है। उनसे यह उत्सर्जन तभी तक होता है जब तक उन पर प्रकाश पड़ता रहता है। यह घटना प्रतिदीप्ति और ऐसे पदार्थ प्रतिदीप्ति कहलाते है। इसके उदाहरण फ्लोर, स्पार, पेट्रोल, कुनीन सल्फेट, यूरेनियम आक्साइड, बेरियम सायनाइड आदि है।इसका उपयोग पराबैगनी किरणों व एक्स किरणों का पता लगाने में किया जाता है। इसके द्वारा ट्यूब लाइट से विभिन्न रंगों का प्रकाश प्राप्त किया जा सकता है।
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खोजकर्ता
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इलेक्ट्रान
(ऋणात्मक)
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प्रोटान
(धानात्मक)
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रदरफोर्ड
व गोल्डस्टीन
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न्यूट्रान
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पाजिट्रान
(धानात्मक)
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न्यूट्रिनो
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मैसोन दो धानात्मक व (ऋणात्मक)
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(ये ऊर्जा वण्डल हैं)
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समस्थानिक (Isotopes) : एक ही तत्त्व के परमाणु जिनके द्रव्यमान भिन्न भिन्न तथा परमाणु क्रमांक समान हों समस्थानिक कहलाते है। इनमें इलेक्ट्रान व प्रोट्रान की संख्या समान परन्तु न्यूट्रान की संख्या भिन्न भिन्न होती है। समस्थानिक के रासायनिक गुण एक समान होते हैं।
समभारी (Isobars) : वे तत्त्व जिनके परमाणु भार समान हो परन्तु परमाणु क्रमांक अर्थात् इलेक्ट्रान व प्रोटान की संख्या भिन्न भिन्न हो समभरी कहलाते हैं। इनके रासायनिक गुण भिन्न भिन्न होते है।
रेडियो एक्टिवता (Radioactivity) : कुछ तत्वों से अदश्श्य विकिरण स्वतः उत्सर्जित होते रहते है। ये विकिरण अपादर्शी पदार्थो कागज आदि को बेधने तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करने की क्षमता रखते है। इन अदश्श्य विकिरणों को रेडियोएक्टिव किरणें तथा पदार्थ के इस गुण को रेडियोएक्टिवता कहते हैं और ऐसे पदार्थों को रेडियो एक्टिव पदार्थ कहते है। इसमें यूरेनियम, रेडियम, थोरियम, पोलोनियम आदि आते है।रदरफोर्ड ने इन किरणों को विद्युत क्षेत्र से गुजार कर तीन प्रकार की किरणों अल्फा (धनात्मक), बीटा (ऋणात्मक) तथा गामा (3 उदासीन) के रुप में पहचान की।
आयु (Half Life) : जितने समयान्तराल में किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की मात्रा विघटित होकर अपने प्रारम्भिक मात्रा की आधी रह जाती है उस समयान्तराल को अर्द्ध आयु कहते है।
रेडियो समस्थानिक : कुछ तत्वों पर न्यूट्रानों या उच्च ऊर्जा वाले कणों की बमवारी करके इनको बनाया जाता है। इस प्रकार निर्मित रेडियों एक्टिव समस्थानिक प्राकृतिक रेडियों एक्टिव पदार्थों की भॉति कार्य करते हैं। इनका उपयोग औषधियों में, रोगोंपचार में एवं कृषि में होता है।
रेडियो एक्टिवता के उपयोग
रेडियों एक्टिव क्षय (Radioactive Decay) : रेडियों एक्टिव पदार्थ से कण के उत्सर्जन से उनके परमाणु भार व क्रमांक बदलते जाते है। व नये तत्वों का जन्म होता है इस घटना को रेडियों ऐक्टिव क्षय कहते है। समस्त रेडियों एक्टिव पदार्थ क्षय होकर सीसे में परिवर्तित होते है। रेडियोंएक्टिव किरणें परमाणु के नाभिक से उत्सर्जित होती हैं अतः इन पर ताप, दाब आदि बाह्य कारक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्षय प्रारम्भ में तेजी से होता है फिर इसकी दर लगातार घटती जाती है।
रेडियों समस्थानिकों का उपयोग नाभिकीय विघटन, प्रकाश संश्लेषण आदि के अध्ययन में किया जाता है। रेडियों एक्टिव समस्थानिक (सोडियम) का परिसंचरण तंत्र, पाचन तंत्र के अध्ययन, शरीर में खून की मात्रा ज्ञात करने के लिए किया जाता है। रेडियों समस्थानिकों को अनुरेखकों की तरह करके पौधों द्वारा विभिन्न उर्वरकों के ग्रहण करने की क्षमता का अध्ययन करने में किया जाता है। गइगेर मुलर गणक (Geige Muller Counter) के द्वारा पौधों द्वारा ली गई उर्वरक की मात्रा ज्ञात की जाती है। गामा किरणों का उपयोग कृषि में हानिकारक जीवों एवं जीवाणुओं के मारने में भी किया जाता है।
रेडियों एक्टिव कोबाल्ट का उपयोग कैंसर रोग में, आयोडीन का अवटु ग्रंथि के उपचार तथा आसैनिक का उपयोग रक्त सम्बंधी रोगों के उपचार में किया जाता है।
रेडियों एक्टिव समस्थानिकों का उपयोग जमीनी पाइपों द्वारा तेल भेजने, टंगस्टन व कोबाल्ट का समस्थानिकों का प्रयोग मशीनों की खराबी ज्ञात करने में किया जाता है।
रेडियों एक्टिव तत्व कार्बन (C12 O C14) का प्रयोग जीवाश्मों, मश्त जीवों व पेड़ पौधों की आयु ज्ञात करने तथा यूरेनियम का प्रयोग चट्टानों एवं पृथ्वी की आयु ज्ञात करने में किया जाता है।
नाभिकीय विखडन (Nuclear Fission) : वह प्रक्रिया जिसमें कोई भारी नाभिक दो लगभग समान आकार के नाभिकों में विखण्डित हो जाता है नाभिकीय विखण्डन कहलाता है। यह कार्य सर्वप्रथम दो जर्मन वैज्ञानिकों हॉन तथा स्ट्रासमैन ने यूरेनियम पर न्यूट्रानों की बमबारी करके किया था।
नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) : दो हल्के नाभिक आपस में मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते है और अपार ऊर्जा मुक्त होती है।
नाभिकीय संलयन धनावेशित नाभिकों के बीच होता है जब ऐसे दो नाभिक समीप आते है तो उनमें तीव्र प्रतिकर्षण बल लगता है इन नाभिकों के संलयन के लिए अत्यंत उच्च दाब एवं उच्च ताप (108 डिग्री केल्विन) की आवश्यकता होती है जो परमाणु बम के विस्फोट से ही सम्भव हो पाता है।
परमाणु बम (Atom Bomb) : यह नाभिकीय विखण्डन के सिद्धान्त पर आधारित है जिसमें अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया होती हैं और अपार ऊर्जा मुक्त होती है। बम में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ में यह आवश्यक है कि उसका द्रव्यमान एक निश्चित मात्रा से अधिक हो, इस मात्रा को क्रान्तिक द्रव्यमान कहते है। परमाणु बम के विस्फोट से लगभग 1070 ताप व अत्याधिक उच्च दाब एवं आंखों को अंधा कर देने वाली चमक व बहुत से रेडियोधर्मी प्रदूषण उत्पन्न होते है।
हाइड्रोजन बम (Hydrogen bomb) : यह नाभिकीय संलयन प्रक्रिया पर आधारित है। परमाणु बम की अपेक्षा 1000 गुना अधिक शक्तिशाली होता है। हाइड्रोजन बम के विस्फोट से पहले परमाणु बम विस्फोट कराना आवश्यक होता है। अतः हाइड्रोजन बम को बनाने के लिए परमाणु बम बनाना आवश्यक है। अभी तक नाभिकीय संलयन ऊर्जा को नियन्त्रित करके रचनात्मक कार्य नहीं हो पा रहा है। क्योंकि जिस ताप पर यह प्रक्रिया सम्पन्न होती है उस पर परमाणुओं | से सभी मिश्रण को प्लाज्मा कहते है। वर्तमान में वैज्ञानिकों के सामने प्लाज्मा संरक्षण एक कठिन समस्या है।
नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) : नाभिकीय विखण्डन से प्राप्त ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते है। | यूरेनियम के एक नाभिक के विखण्डन से लगभग 200 डम (मिलियन इलेक्ट्रान वोल्ट) ऊर्जा प्राप्त होती है। एक ग्राम यूरेनियम के विखण्डन से इतनी ऊर्जा प्राप्त होती है जितनी 20 टन टी.एन.टी. (Tri-Nitro - Tolone) के विस्फोट से प्राप्त की जा सकती है। नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग नाभिकीय रिएक्टरों में करके विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है।
परमाणु भट्टी (Atomic Pill) : परमाणु भट्टी में नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पन्न किया जाता है। पहली परमाणु भट्टी शिकागों विश्वविद्यालय (U.S.A) में प्रो. फर्मी के निर्देशन में बनाया गया था। भट्टी में न्यूट्रानों की गति को धीमी करने के लिए भारी जल व ग्रेफाइट का प्रयोग किया जाता है। विस्फोट से प्राप्त ऊष्मा से जल को भाप में परिवर्तित करके टर्बाइन मशीन की सहायता से विद्युत उत्पन्न की जाती है। हानिकारक विकिरण के उम्सर्जन को रोकने के लिए रिएक्टर के चारों ओर कंक्रीट की मोटी दीवार बनाई जाती है। अभिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए कैडमियम की छड़ों का उपयोग नियंत्रक छड़' के रुप में किया जाता है। सूर्य तथा ब्रह्माण्ड के अन्य तारों की ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन है। सूर्य के भीतरी भाग का तापमान 1017 कैल्विन है जो हाइड्रोजन नाभिक के संलयन से उत्पन्न होता है।
प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photo Electro Effect) : कुछ धातुओं पर उच्च आवृत्ति का प्रकाश डालने पर इनकी सतह से इलेक्ट्रान उत्सर्जित होते है। इलेक्ट्रानों के इस प्रकार उत्सर्जन की घटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते है। इसका प्रयोग कर प्रकाश विद्युत सेल का निर्माण किया जाता है। ये कई प्रकार के होते हैं जैसे प्रकाश उत्सर्जक सेल (Photo Emissive Cell) प्रकाश वोल्टीय सेल (Photo Voltaic Celi) प्रकाश चालकीय सेल (Photo Conductive Cell) आदि। इन | सेलों का प्रयोग सिनेमाघरों में ध्वनि पुनरुत्पादन में, टेलीविजन में, सड़कों पर चालित लाइटों, स्वचालित दरवाजों, तथा बैंको के तिजोरियों में चोरी रोकने, अंतरिक्षयानों की बैटरियों की चार्जिंग में किया जाता है। इनका सौर बैटरी (Solar Battery) भी कहते है।
रमन प्रभाव (Raman Effect): प्रकाश जब किसी ठोस, द्रव या गैस के पारदर्शी माध्यम से गुजरता है तो इसका कुछ भाग प्रकीर्णित हो जाता है इस प्रकीर्णित प्रकाश को स्पेक्ट्रम द्वारा देखने पर कई लाइनें प्राप्त होती हैं जिनमें कुछ का तरंग दैर्ध्य प्रारम्भिक प्रकाश के बराबर तथा कुछ का कम व कुछ का अधिक होता है। इस प्रकार प्रकाश के प्रकीर्णित होकर विभिन्न तरंग दैर्ध्व वाली लाइनों में विभक्त होने की घटना को ईमन प्रभाव कहते है। इसकी खोज भारतीय वैज्ञानिक सर सी. वी. रमन ने 1928 ई. में किया था।
प्रतिदीप्ति (Eluorescence) : बहुत से ऐसे पदार्थ हैं जिन पर ऊँची आवृत्ति या निम्न तरंग दैर्ध्य का प्रकाश डालने पर वे अवशोषित कर निम्न आवृत्ति व उच्च तरंग दैर्ध्य का प्रकाश उत्सर्जित करते है। उनसे यह उत्सर्जन तभी तक होता है जब तक उन पर प्रकाश पड़ता रहता है। यह घटना प्रतिदीप्ति और ऐसे पदार्थ प्रतिदीप्ति कहलाते है। इसके उदाहरण फ्लोर, स्पार, पेट्रोल, कुनीन सल्फेट, यूरेनियम आक्साइड, बेरियम सायनाइड आदि है।इसका उपयोग पराबैगनी किरणों व एक्स किरणों का पता लगाने में किया जाता है। इसके द्वारा ट्यूब लाइट से विभिन्न रंगों का प्रकाश प्राप्त किया जा सकता है।
ट्यूब लाइट में लेपित पदार्थ
प्राप्त रंगीन प्रकाश
कैडमियम बोरेट
Ftad सिलिकेट
मैग्नीशियम टंगस्टेट
Ftad बेरीलियम सिलिकेट
गुलाबी प्रकाश
हरे रंग का प्रकाश
हल्के नीले रंग का प्रकाश
पीले रंग का प्रकाश
स्फूरदीप्ति (Phosphorescence) : ऐसे पदार्थ जिन पर कुछ समय तक प्रकाश डाल कर बन्द कर देने पर भी उनसे उनकी अवशोषण क्षमता के अनुसार कुछ देर तक प्रकाश का उत्सर्जन होता रहता है ऐसी घटना 'स्फुरदीप्ति' तथा पदार्थों को 'स्फुरदीप्ति पदार्थ' कहते है। इसके उदाहरण जिंक सल्फाइड, कैल्शियम सल्फाइड, बेरियम सल्फाइड आदि है। प्रकाश डालना बन्द कर देने पर जितने समय तक प्रकाश का उत्सर्जन यह गुण नष्ट हो जाता है। घड़ी की सूइयों, साइन बोर्डी, बिजली बोर्डो पर इन पदार्थों का लेप चढ़ाया जा रहा है
अतिचालकता (Supercoductiseity) : इसकी खोज ‘केमरलिंघ ओन्स' ने की थी। सामान्यत: चालक धातुओं का प्रतिरोध ताप कम करने पर घटता जाता है ताप को और निम्न किया जाय तो प्रतिरोध तेजी से घटता हुआ शून्य हो जाता है। इस अवस्था में धातुएं अतिचालक कहलाती है। इस अवस्था में धातुओं का ताप शून्य डिग्री केल्विन के समीप या कुछ ऊपर रहता है। अतिचालकता की दशा में धातुओं में विद्युत धारा बगैर किसी वाह्य स्रोत के बहती रहती है। धातुओं की चालकता चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव द्वारा नष्ट हो जाती है।
रडार (Radar) Radio Detection and Ranging) : यह प्रतिवन के सिद्धान्त से मिलता जुलता है। इसमें एरियल से जुड़े दो यन्त्र रेडियों प्रेणी (Trasmitter) व अभिग्राही (Receiver) होते है। ट्रांसमीटर से विद्युत चुम्बकीय तरंगे अंतरिक्ष में भेजी जाती और वायुयान आदि से टकराकर आने पर रिसीवर द्वारा ग्रहण कर ली जाती है। इसका विश्लेषण करके वायुयान की स्थिति एवं दिशा का ज्ञान प्राप्त कर लिया जाता है । इसके द्वारा वायुयान के रास्ते में आने वाले बादल, पहाड़ तथा जलयान के समुद्रीमार्ग में हिमखण्ड, चट्टानों, पृथ्वी के गर्भ में छिपे खनिजों का पता लगाने के साथ-साथ मौसम की भविष्यवाणी भी की जाती है।
लेसर (Laser) - Light Amplification By Stimulated Emission of Radiation : इसका अर्थ है 'विकिरण के उद्दीपन उत्सर्जन द्वारा प्रकाश का प्रवर्धन'। इन किरणों में एकवर्णता दिशात्मकता, सम्बद्धता, उच्चतीव्रता के गुण होते है। | लेसर किरणें निआन, आर्गन, कार्बन डाइआक्साइड, गैलियम फास्फाइड, नियोडिमियम याग, आदि से उत्पन्न की जा सकती है। उत्तेजित करने हेतु जीवन फ्लैश लैंप क्रिप्टान लैंप का प्रयोग किया जाता है। चिकित्सा विज्ञान में इसका उपयोग आँखों के ऑपरेशन, कॉर्निया के घाव, दाँतों के रोगों, कैंसर, ट्यूमर, पेट के रोगों, त्वचा आदि की चिकित्सा में किया जाता है। रेटिना के उपचार हेतु रेटीनल फोटोकोगुलेटर यंत्र से किया जाता है।
उद्योगों में धातुओं को काटने, उनमें छेद करने जोड़ने, मुद्रण स्याही को सुखाने, चट्टानों को तोड़ने व सुरंगें बनाने में भी किया जाता है।
युद्ध क्षेत्र में मिसाइलों का पता लगाने, लेसर राइफल, पिस्टल, बम बनाने, नाभिकिस विस्फोटों हेतु आवश्यक ऊर्जा प्रदान करने में किया जाता है। अमेरिका नेवादा में एक्सरे लेसरों का विकास कर रहा है।
मेसर (Maser) Microwave Amplification By Stimulated Emission of Raoliation : अर्थ है विकिरण के उद्दीपन उत्सर्जन द्वारा माइक्रों तरंगों का प्रवन'। सर्वप्रथम मेसर का आविष्कार टाउन्स ने किया था लेसर में प्रकाश किरणें उत्पन्न होती है। जबकि मेसर में सूक्ष्म तरंगें उत्पन्न होती है। इसके आविष्कार ने अन्तरिक्ष में नये युग का पदार्पण हुआ है। रडार में उपयोग कर कृत्रिम उपग्रहों की सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
ट्यूब लाइट में लेपित पदार्थ
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प्राप्त रंगीन प्रकाश
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कैडमियम बोरेट
Ftad सिलिकेट
मैग्नीशियम टंगस्टेट
Ftad बेरीलियम सिलिकेट
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गुलाबी प्रकाश
हरे रंग का प्रकाश
हल्के नीले रंग का प्रकाश
पीले रंग का प्रकाश
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