जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)

जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)

1. एक कोशिकीय (Unicellular) - प्रोटोजोआ (Protozoa)
जातियों की संख्या 3000 (उदाहरण : अमीबा, पैरामीशियम, यूग्लीना, प्लाज्योडियम)

2. बहुकोशिकीय (Multi Cellular) - मेटाजोआ (Metazoa)
जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)
मेटाजोआ (Metazoa) के अंतर्गत
1. मेरूरज्जु विहीन (Non-Chordata) 
  • पोरीफेरा (Porifera) (जातियों की संख्या 4500) (उदा. स्पंज)
  • सीलेन्टरेटा (Coeleterata) (9000) (उदा. हाइड्रा)
  • प्लेटीहेल्मिन्थीज (Platyhelminthes) (6000) (उदा. फीताकृमि)
  • एस्केल्मिन्थीज (Aschelminthes) (300) (उदा. एस्केरिस)
  • एनीलीडा (Annelida) (7000) (उदा. केचुआ, जोंक) ।
  • आथ्रोपोडा (Orthropoda) (863000) (उदा. मच्छर, काकरोच)
  • मोलस्का (Mollusca) (80000) (उदा. घोंघा, ऑक्टोपस)
  • इकाइनोडर्मेटा (Echinodermata) (4000) (उदा. तारा मछली)

2. मेरूरज्जु युक्त (Chordata)
  • मत्स्यवर्ग (Pisces) (जातियों की संख्या 20000) - (मछली)
  • उभयचर (Amphibia) (6000) - (मेढ़क)
  • सरीसृप (Reptilia) (6000) - सर्प (Snake)
  • पक्षीवर्ग (Aves) (8590) - (कबूतर मोर)
  • स्तनधारी (Mammalia) (3200)

3. स्तनधारी (Mammalia) के अंतर्गत 
1.Prototheria   2.Metatheria   3.Eutheria

Prototheria
1. एकडीना (प्रथम अण्डे देने वाला स्तनधारी)    2.प्लेटीपस

Metatheria
कंगारू

Eutheria
मनुष्य 

नोट :
  1. अकशेरूक (Non-Chordata, प्रोटोजोआ सहित) जन्तुओं की संख्या 90% है, जबकि कशेरूक (Chordata) जन्तुओं की संख्या मात्र 10% है।
  2. जन्तुओं के वर्गीकरण का सर्वप्रथम प्रयास ग्रीक वैज्ञानिक अरस्तू ने किया था, अतः इन्हें जन्तु शास्त्र का पिता (Father of Zoology) कहा जाता है। किन्तु चूँकि जन्तुओं के आधुनिक वर्गीकरण तथा नामकरण (द्वि-नाम पद्धति) की आधारशिला स्वीडिस वैज्ञानिक 'कैरोलस लीनियस' ने रखी, इसलिए लीनियस को 'आधुनिक वर्गिकी का जन्मदाता (Father of Modern Taxonomy) कहा जाता है।

प्रोटोजोआ (Protozoa)

इस संघ के तहत एक कोशिकीय जीव (Unicellular organisms) आते हैं जिनके जीव द्रव्य में एक या अनेक केंद्रक पाये जाते हैं।
जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)
  • इस संघ के प्राणियों में चलन (locomotion) पादाभ (Pseudopoda) या कशाभिका (Flagella) या सिलिया (Cilia) के द्वारा होता है।
  • ये स्वतंत्र-जीवी या परजीवी होते हैं तथा इनकी समस्त जैविक क्रियाएँ एक कोशिका में ही संपन्न होती हैं।
  • प्रमुख उदाहरण- युग्लीना, पिनोसोमा, अमीबा, एंटाअमीबा, प्लाजमोडियम, लिश्मानिया डोनोवानी आदि |
  • तिल्ली एवं RBC को प्रभावित करने वाला मलेरिया रोग प्लाज्मोडियम के कारण होता है जिसका वाहक मादा एनोफिलिज मच्छर होता हैं।
  • पायरिया रोग एंटअमीबा जिंजिवेलिस के कारण होता है जो मसूढ़ों को प्रभावित करता हैं।
  • मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला निंद्रा रोग टिप्नोसोमा गोम्बियन्स के कारण होता है। इसका वाहक Tse-Tse मक्खी है।
  • ऑत को प्रभावित करने वाली अमीबीय पेचिस नामक बीमारी एंटअमीबा–हिस्टोलिटिका की वजह से होती है।
  • ‘बालू-मक्खी (Sand fly) द्वारा फैलाया जाने वाला कालाजार नामक रोग जो कि अस्थि मज्जा (BoneMarrow) को प्रभावित करता है- लिश्मानिया डोनोवानी के कारण होता हैं।
  • पारामीशियम को "Slipper animalcule" कहा जाता है।

मेटाजोआ

'मेटाजोआ' के अन्तर्गत- बहु कोशीय जीव आते हैं। इसे कई संघों (Phylums) में विभक्त किया गया है जो इस प्रकार है - 
(1) पोरी–फेरा (Porifera) : ये द्वि-स्तरीय जन्तु होते हैं। इनमें नाल प्रणाली (Canal System) होती हैं जिससे ऑक्सीजन एवं भोज्य पदार्थ जन्तु के शरीर में प्रवेश करते हैं। इनमें मुख का अभाव होता है। जैसे- स्पंजिला, ल्यूकोसोलोनिया, यूस्पंजिया (Bath Spange) स्पंजिला (Spongilla) के अन्दर शैवाल (Algae) पाये जाते हैं जो कि सहजीवी जीवन (Symbiotic life) व्यतीत करते हैं।
जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)
  • इस संघ के तहत आने वाले सभी जंतु खारे पानी में मिलते हैं। जिन्हें स्पंज कहा जाता है।
  • बहुकोशिकीय जंतु होते हुए भी इनकी कोशिकाएँ नियमित उतकों का निर्माण नहीं करती हैं।
  • इनके शरीर पर असंख्य छिद्र (Ostia) पाये जाते हैं। इनके शरीर पर स्पंज गुहा नामक एक गुहा (Cavity) पाई जाती है।
  • साइकॉन एवं स्पंज इसके प्रमुख उदाहरण हैं। स्पंज का प्रयोग ध्वनि के अवशोषण में किया जाता है।

(2) सीलेंण्ट्रेटा (Coelenterata) : इस संघ के जीव की सबसे प्रमुख विशेषता पॉलिप (Polyp) तथा मेडुसा (Medusa) अवस्था का पाया जाता है। पालिव जन्तु स्थान बन्द्ध एवं अलिंगी होते हैं, जबकि मेडुसा गतिशील एवं लिंगी होते हैं। जैसे- हाइड्रा (Hydra)। पुनरूद्भवन (Regeneration) की प्रचुर क्षमता के कारण इस जन्तु को हाइड्रा (यूरोप का एक जल दैत्य जिस का सिर काटने पर प्रतिदिन एक नया सिर बन जाता था) की संज्ञा दी गई। इस संघ का एक अन्य उदाहरण 'समुद्री एनीमोन है। इसके अन्दर क्रेप्स (केकड़ा के समान जन्तु) भरे होते हैं जो कि सहजीवी हैं। पुर्तगाली युद्ध पोत भी इसी संघ का जन्तु है।
जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)
  • यह संघ निडेरिया के नाम से भी पुकारा जाता है। इसके तहत आने वाले अधिकांश जीव समुद्री जल में तथा कुछ स्वच्द जल में निवास करते हैं।
  • इस संघ के जीवों में उतक-स्तर संगठन पाया जाता है। इस संघ के कुछ जंतु प्रवाल भित्ति (Coral-Reet) का निर्माण करते हैं।
  • प्रवाल–भित्ती अपने चारों ओर रक्षात्मक–अस्थि का स्राव करते हैं जो बाद में मूंगा-रीफ बन जाते हैं।
  • संसार का सबसे बड़ा मुंगा–रीफ ग्रेट बैरियर रीफ (ऑस्ट्रेलिया) है।
  • इस संघ के अंतर्गत आने वाले जंतुओं के मुख के पास धागेनुमा संरचना पाई जाती है। इस संघ के अंतर्गत आने वाले प्रमुख जीव हैं-हाइड्रा, जेलीफिश, सी. एनीमोन तथा मूगा आदि।

(3) प्लेटीडेस्मिन्थीज (Platyhelminthes) : इस संघ के जन्तु फीते के समान चपटे होते हैं तथा अग्रभाग पर चूसक या कांटे लगे होते हैं। ये जन्तु उभयलिंगी तथा परजीवी होते हैं। जैसे–फीताक्रिमि (Tapewarm)। इसका प्रथम पोषद मनुष्य तथा द्वितीय पोषद सुअर है। फैसिओला हिपेटिका में मुख गुहा और गूदा नहीं होते। इनमें फीता किमी में ज्वाला कोशिकाएं (Flame Cells) पायी जाती हैं जो उत्सर्जी अंग का कार्य करती हैं। इस संघ के जन्तु खण्ड । युक्त (Septed) होते हैं।
जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)
  • इस संघ के तहत आने वाले जंतुओं का शरीर तीन-स्तरीय होता है, परंतु इनमें देहगुहा (Body Cavity) नहीं होती।
  • इन जंतुओं में पाचन तंत्र विकसित नहीं होते हैं, उत्सर्जन फ्लोएम कोशिकाओं द्वारा होता है।
  • यह एक उभयलिंगी (Bi-sexual) जंतुओं का संघ है। प्लेनिरिया, लीवर फ्लुक, टेप वार्म, आदि इस संघ के जीवों के प्रमुख उदाहरण है।

(4) ऐस्चेलमिन्थीज (Aschelminthes) : इस संघ के जन्तु धागानुमा (Threadlike) होते हैं। ये भी परजीवी (paracite) होते हैं तथा गुहा युवत कृमि होते हैं।
जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)
जैसे
ऐस्केरिस, बूचेरिया (Wuchereria- पीलपाँव (Elepheantasis) का जन्म देने वाला क्रिमि), पिनवर्म (Pinworm)- पेट में मिलने वाले छोटे कीड़े) इसके उदाहरण हैं।
  • इस संघ के तहत लंबे, बेलनाकार अखंडित कृमि (Worm) आते हैं।
  • इन जीवों में आहार नाल (Alimentary Canal) स्पष्ट होता है।
  • इस संघ के अंतर्गत आने वाले जीवों में श्वसन अंग (respiratory organ) नहीं होते परंतु तंत्रिका तंत्र (Nervous System) विकसित होते हैं।
  • इस संघ के तहत आने वाले जीव एकलिंगी (Unisexual) होते हैं तथा इनमें प्रोटोनेफ्रीडिया द्वारा उत्सर्जन होता है।
  • एस्केरिस, शेडवर्म एवं वुचेरिया बैंक्रोपटी इस समूह के जंतुओं के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • फाइलेरिया रोग का कारण गोलकृमि वुचेरिया बैंक्रोफ्टी होता है।

(5) एनीलिडा (Annelida) : इस संघ के जन्तु गोल एवं खण्ड युक्त होते हैं। ये द्वि-लिंगी (Bisexual or Hermaphrodite) होते हैं। इस संघ के जन्तु में रक्त परिसंचरण बन्द प्रकार (Closed Blood Vascular System) का होता है अर्थात् इन जन्तुओं का रक्त शुद्ध एवं अशुद्ध दोनों का मिश्रण होता है। केंचुआ, जोंक, नेरिस आदि इसी श्रेणी के जन्तु हैं। जोंक (Leech) में रक्त का थक्का न बनने देने के लिए उत्तरदायी 'हीरूडीन (Hirudine) नामक प्रोटीन एन्जाइम पायी जाती है। केचुए में उत्सर्जन 'नेफ्रीडिया द्वारा होता है। इसे किसानों का मित्र कहते हैं।
जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)
  • इस संघ के तहत आने वाले जंतुओं का शरीर लंबा, पतला, द्वि–पार्श्व सममित तथा खंडों में बंटा हुआ होता है 
  • इस संघ के जंतुओं में ‘प्रचलन (locomotion) काइटिन निर्मित सीटी (Setae) द्वारा होता हैं।
  • इस संघ के जीवों में आहार नाल पूर्णतः विकसित होता है तथा श्वसन त्वचा (skin) के द्वारा होता है। इनमें रूधिर लाल तथा तंत्रिका तंत्र साधारण होता है।
  • इनमें उत्सर्जन वृक्क (Kidney) द्वारा होता है तथा ये एकलिंगी एवं उभयलिंगी दोनों प्रकारों के होते हैं।
  • केंचुआ, जोंक एवं नेरीस जैसे जीव इस संघ के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • केंचुआ में चार जोड़ी (8) हृदय होता है।

(6) अर्थोपोडा (Arthropoda) : इस संघ (Phylum) के जन्तु के शरीर एवं पैर खण्ड युवत होते हैं। इनमें रक्त परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार के होते हैं। इनमें हृदय पृष्ठ भाग में (पीछे) पाये जाते हैं।
इस संघ के जन्तुओं की संख्या सर्वाधिक है जो जल, थल एवं वायु तीनों में पाये जाते हैं। जैसे- टिड्डियाँ, काकरोच, बिच्छू, मकड़ी, मच्छर मक्खी, तितली, केकड़ा इत्यादि। इस संघ के जन्तुओं में संयुक्त आँख (Compound eyes) पायी जाती हैं। इनमें प्रत्येक आँख की लगभग 2000 नेत्रांशकों (Ommatidia- आँख की इकाई) के बने होते हैं और प्रत्येक नेत्रांशक एक स्वतन्त्र आँख के समान कार्य करता है। इसलिए इनकी आँखों में हजारों चित्र बनते हैं।
इस तरह इनकी, आँख में बिना प्रतिबिम्ब 'सुपर पोजीशन प्रतिबिम्ब' कहलाता है और देखने की विधि मोजेक दृष्टि (Mokaic Vision) कहलाती है। बिच्छू (Scorpian) में श्वसन बुकलंग्स (Booklungs) द्वारा होता है। इस संघ वो जन्तुओं में उत्सर्जन (Excretion) 'मलपीगी नलिकाओं द्वारा होते हैं।
जन्तु जगत का वर्गीकरण (Taxonomy of Animal Kingdom)
  • इस संघ के जन्तुओं का शरीर सिर वक्ष एवं उदर जैसे तीन भागों में बंटा हुआ होता है।
  • इनके पाद संधि युक्त होते हैं तथा रूधिर परिसंचरण तंत्र (Blood circulation System) खुले प्रकार (open type) के होते हैं।
  • इस संघ के जंतुओं में पायी जाने वाली देहगुहा (body cavity) को हीमोसील कहते हैं।
  • इनमें श्वसन ट्रैकिया, बुक लंग्स एवं सामान्य सतह द्वारा संपन्न होता हैं।
  • इस संघ के जंतु प्रायः एकलिंगी होते हैं तथा इनमें निषेचन आंतरिक होता है।
  • तिलचट्टा (Cockroach), झींगा मछली, केकड़ा, खटमल, मक्खी, मच्छर मधुमक्खी एवं टिड्डी आदि इस संघ के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • कीटों (insects) में 8 पाद एवं 4 पंख पाये जाते हैं।
  • तिलचट्टे (Cockroach) का हृदय 13 कक्षों का बना होता है।
  • ‘चींटी एक सामाजिक तंतु है एवं इनमें श्रम-विभाजन (Division of labour) की प्रवृत्ति होती है।
  • 'दीमक' भी एक सामाजिक प्राणी है तथा कालोनी में रहता है।

(7) मोलस्का (Mollusca) : इस संघ के जन्तुओं के मांशल शरीर खोल (Shell) से ढके होते हैं। इनके जीवन में ट्रोकोफोर एवं वेलीजर लार्वा अवस्थाएं पायी जाती हैं। घोंघा (Snail), सीपी (Unio) ऑक्टोपस, इत्यादि इस संघ के जन्तु हैं। सीपी से मोती प्राप्त होते हैं। सीपी के अन्दर कैल्सियम कार्बोनेट पहुँचते रहते हैं, जो सीपी से सावित एन्जाइम द्वारा मोती में परिवर्तित कर दिये जाते हैं।
  • ऑक्टोपस में 8 भुजाएं पायी जाती हैं जिसे शैतान मछली कहा जाता है।
  • इस संघ का नामकरण 1850 ई. में जोस्टन नामक वैज्ञानिक द्वारा किया गया।
  • इनका शरीर सिर अंतरांग तथा पाद जैसे तीन भागों में विभक्त होता है।
  • इस संघ के अधिकांश सदस्य सागरीय-जल में एवं कुछ स्वच्छ जल में पाये जाते हैं।
  • इनके चारों ओर एक कड़ा खोल पाया जाता है जिसे कवच कहते हैं।
  • इस संघ के जीवों में आहारनाल पूर्णतः विकसित होते हैं। मोलस्का संघ के प्राणियों में श्वसन गिल्स या टिनीडिया द्वारा होता है।
  • इनमें उत्सर्जन वृक्क द्वारा होता है तथा रक्त रंगहीन होता है।
  • इस संघ के कुछ जीव मोती (Pearl) का निर्माण करते हैं।
  • दुनिया का सबसे बड़ा अकशेरूक जंतु जायंट स्क्वीड है।

(8) इकाइनोडर्मेटा (Echinodermata) : ये केवल समुद्री जीव होते हैं। इनकी सर्वप्रमुख विशेषता ‘जल संवहन तन्त्र (Water Vasular System) अथवा वीथि संस्थान (Ambulacral System) का पाया जाना है। इनकी सहायता से जन्तु प्रचलन एवं श्वसन करते हैं। तारा मछली (Star Fish), ब्रिटल स्टार (Brittle Star), समुद्री अर्चिन, समुद्री लिली, समुद्री खीरा (Sea Cucumber) आदि इस संघ के प्रमुख जन्तु हैं। तारा मछली में 5 भुजाएं होती हैं।
  • इस संघ के सभी जंतु समुद्री होते हैं तथा इनमें जल संवहन तंत्र उपस्थिति रहता है।
  • इनके तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क विकसित नहीं रहता।
सितारा मछली (Starfish), समुद्री अर्चिन, समुद्री खीरा, पंख तारा, ब्रिटल स्टार आदि इस संघ में आने वाले प्राणियों के प्रमुख उदाहरण हैं।
नोट :
उपर्युक्त सभी संघों के जन्तुओं में कॉउँटा (Chordata- रीढ़ की हड्डी –पृष्ठ रज्जु) नहीं पाये जाते हैं।

(9) काऊँटा (Chordata) : इस संघ के जन्तुओं की प्रमुख विशेषता ‘पृष्ठ रज्जु (Dorsal Notochord) या रीढ़ की हड्डी (Vertebral Column) का पाया जाना है। इस संघ के जन्तुओं को 2 उपसंघ- प्रोटो काटा एवं वर्टीबेटा में विभाजित किया जाता है।
  • इस संघ के जीवों में नोटोकॉर्ड (Notochord) पाया जाता है।
  • इस संघ के जीवों में नालदार तंत्रिक रज्जू की उपस्थिति अनिवार्य है।

प्रोटोकाडैटा (Protochordata)

‘प्रोटोकाडैटा (Protochordata) के जन्तुओं में पृष्ठ रज्जु अविकसित होते हैं। जैसे- वैलेनो ग्लासस, एम्फिक्सिस, आदि। वर्टीब्रेटा (Vertibrata) उपसंघ के जन्तुओं में पूर्ण विकसित रीढ़ रज्जु पायी जाती है। 'वर्टीबेटा उपसंघ को 5 वर्गों (Phylum) में विभक्त किया गया है।

(i) मत्स्य वर्ग (Pisces) :
इस वर्ग के जन्तुओं में श्वसन क्लोम दरार (Gill Slit) द्वारा होता है। इस संघ के जनतु जलीय तथा असमतापी (Cold Blooded) होते हैं। इस संघ के । जन्तुओं के हृदय 2 कोष्ठीय (एक आलिंद और एक निलय) होते हैं। उदाहरण- सार्क मछली, वेल मछली, तार पीडो (इसके अन्दर विद्युत पैदा होती हैं), ईल (Eel) मछली (इसमें 7000 बैटरी पायी जाती है और प्रत्येक बैटरी में 1 बोल्ट, कुल 700 वोल्ट विद्युत पैदा होती हैं), समुद्री घोड़ा (Sea Horse lippocampus- नर समुद्री घोड़े के उदर पर एक भ्रूण कोष्ठ (Brood Pouch) होता है जिसमें अण्डे (Eggs) तब तक बने रहते हैं जब तक ये बच्चे बनकर बाहर न निकल आये, अर्थात् अण्डे का पालन-पोषण नर समुद्री घोड़ा करता है ।) आदि।
  • इस वर्ग में आने वाले जंतु असमतापी होते हैं। इनके हृदय द्वारा सिर्फ अशुद्ध रक्त ही पम्प किये जाते हैं।
  • इस वर्ग के जंतुओं में श्वसन गिल्स (Gills) द्वारा होता है।
  • ये शीत–रुधिर (cold blooded) एवं जलीय जंतु होते हैं।
  • रोहू, शार्क मछली, स्कोलियोडन्, दरियाई घोड़ा तथा टारपीडो इस वर्ग के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • टारपीडो को विद्युत मछली (Electric Fish) भी कहते हैं।

(ii) उभयचर (Amphibia) :
इस संघ के जन्तु भी असमतापी होते हैं। ये जल तथा स्थल दोनों स्थानों के लिए। अनुकूलित होते हैं। इनके हृदय 3 कोष्ठीय होते हैं। जैसेमेंढ़क, टोड, इत्यादि। मेढक अत्यधिक गर्मी तथा सर्दी से बचने के लिए जमीन के अन्दर चले जाते हैं। इसे मेढ़क की सुषुप्तावस्या कहते हैं। गर्मी की सुषुप्तावस्था को एस्टीनेशन (Aestination) तथा जाड़े की सुषुप्तावस्था को हाइबरनेशन (Hibernation) कहते हैं। नर मेंढ़क में 'वाक् कोष (Vocal Sacs) होते हैं, जो टर्र-टर्र की आवाज करते हैं, जो कि मादा मेंढक को आकर्षित करने के लिए होती है।
  • इस वर्ग के सभी प्राणी उभयचर जल एवं स्थल दोनों जगह निवास करने वाले होते हैं।
  • इस वर्ग के जंतु असमतापी होते हैं तथा क्लोमों, त्वचा एवं फेफड़े को सहायता से श्वसन क्रिया करते हैं।
  • इस वर्ग के जंतुओं में त्वचा नम व चिकनी तथा भुजाओं में प्रायः 5 अंगुलियाँ पायी जाती हैं।
  • इस वर्ग के जंतुओं का हृदय 3-प्रकोष्ठीय होता है।
  • मेढ़क, टोड, रेकोफोरस (Flying frog), हाइला, न्यूट एवं प्रोटियस इस वर्ग के प्राणियों के प्रमुख उदाहरण है।

(iii) सरीसृप (Reptilia) :
इस वर्ग के जन्तु भी असमतापी, जल, स्थलीय होते हैं। ये स्थल पर रेंग कर चलते हैं। इनके हृदय 3 कोष्ठीय 2 आलिन्द तथा 1 अविकसित निलय) होते हैं। किन्तु क्रोकोडाइल (Crocodile- घड़ियाल) तथा कछुआ में हृदय 4 कोष्ठीय होते हैं। छिपकली, सर्प, घड़ियाल, अजगर, कोबरा, गोह, यूरो मैस्टिक्स, इत्यादि इस वर्ग के जन्तु हैं। विषैले सर्यों में लार ग्रन्थियाँ रूपान्तरित होकर विष ग्रन्थियों में परिवर्तित हो जाती हैं। 'कोबरा सर्वाधिक विषैला भारतीय सॉप है। यह घोंसला बनाकर रहता है। 'गोह' के नखर (नाखून) अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं, इसलिए दर्गम दीवारों एवं पहाड़ों पर चढ़ने के कार्य में इनका प्रयोग किया जाता है। छिपकलियों के पैर में गदिदयाँ पायी जाती हैं, जिससे ये सरलता पूर्वक दीवारों पर रेंग लेती हैं। 'अजगर विषहीन तथा भारत का सबसे मोटा एवं विशाल सर्प है। सर्प में 'कर्णपटह' की अनुपस्थिति के कारण सुनने की क्षमता का श्राव होता है। फिर भी शरीर की वाह्य त्वचा में तरंग गति को पहचानने की क्षमता होती है जिससे ये ध्वनि के आने की दिशा जान लेते। हैं। साँपों (कोबरा) का विष मस्तिष्क को प्रभावित करता हैं। यूरोमैस्टिक (साण्डा) की आँत में जल का संग्रह होता है।
  • इस वर्ग के तहत रेंगकर चलने वाले उभयचर आते हैं।
  • इनमें प्रारंभिक अवस्था में गिल द्वारा एवं विकसित अवस्था में फेफड़े द्वारा श्वसन क्रिया संपन्न होती है।
  • इनमें प्रारंभिक अवस्था में गिल द्वारा एवं विकसित अवस्था में फेफड़े द्वारा श्वसन क्रिया संपन्न होती है।
  • इस वर्ग के तहत आने वाले प्राणियों को वास्तविक कशेरूक (Vertebrate) जंतु माना जाता है।
  • इनमें कंकाल पूर्णतः अस्थिल होता है।
  • इस वर्ग के तहत आने वाले जीवों के अंडे कैल्सियम कार्बोनेट की बनी कवच से ढंके रहते हैं।
  • छिपकली, घड़ियाल, कछुआ, सांप आदि इस वर्ग के उदाहरण हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि सरीसृप वर्ग उदय मेसोजोइक महाकल्प में हुआ था।
  • एक मात्र ऐसा सर्प नागराज जो घोसला बनाता है।
  • विश्व का सबसे लंबा एवं सबसे बड़ा सांप अजगर होता है।
  • विश्व में सबसे तेज भागने वाला सांप मम्बा (अफ्रीका) होता है, इसकी रफ्तार 30-40 किमी./घंटा हो सकती है 
  • हाइड्रोफिश नामक समुद्री–सर्प विश्व का सर्वाधिक विषैला सांप है।
  • भारतीय करैत जमीन पर रेंगने वाला सर्वाधिक विषैला सांप है।
  • विश्व की एकमात्र जहरीली छिपकिली हेलोडर्मा है।
  • स्किंक नाम से प्रचलित छिपकली मेबुईया बिल बनाती है।

(iv) पक्षिवर्ग (Aves) :
इस वर्ग के जन्तु समतापी (Warn | Blooded) होते हैं। इनमें हृदय 4 काष्ठीय होते हैं। किसी भी पक्षी में दाँत नहीं पाये जाते। इनके फेफड़े में वायु कोष्ठक (Air Sacs) पाये जाते हैं जो पक्षी को उड़ने में सहायता करते हैं। इनके अग्रपाद रूपान्तरित होकर पंख (Wings) का निर्माण करते हैं। इनमें निक्टिटेटिंग झिल्ली पायी जाती है जिसके कारण इनकी आँखें सोते समय भी बंद नहीं होती। वैक्टेल पक्षी भारत के बाहर घोंसला बनाती है। सभी पक्षी अण्डज (Oviparous) होत हैं। शुतुरमुर्ग, कौआ, कबूतर, एमू उड़ नहीं पाते हैं। शुतुमुर्ग का अण्डा सबसे बड़ा होता है।
  • इस वर्ग के प्राणियों में अगला पाद उड़ने के लिए पंखों के रूप में रूपांतरित होता है।
  • इस वर्ग के प्राणियों का हृदय चार–कोष्ठीय (fourChambered) होता है।
  • इनका श्वसन फेफड़े द्वारा संपन्न होता है।
  • इस वर्ग के प्राणी समतापी होते हैं तथा इनमें मूत्राशय अनुपस्थित रहता है।
  • विश्व का तीव्रतम पक्षी अवावील तथा सबसे बड़ा जीवित पक्षी शुतुर्मुक है।
  • किवी एवं एमू न उड़ सकने वाले पक्षी (Flightless Birds) तथा हमिंग बर्ड संसार का सबसे छोटा पक्षी है।
  • अलीपुर (कोलकाता) में भारत का सबसे बड़ा तथा क्रूजर नेशनल पार्क (दक्षिण अफ्रीका) में विश्व का सबसे बड़ा चिड़ियाघर स्थित है।
  • विलुप्त पक्षी डोडो है जो मॉरीशस में पाया जाता है।

(V) स्तन धारी वर्ग (Mammalia) :
इस संघ के जन्तु समस्त जन्तु वर्गों में सर्वाधिक बुद्धिमान होते हैं। ये समतापी होते हैं। शरीर पर सामान्यतया बाल पाये जाते हैं। त्वचा पर श्वेत ग्रन्थियाँ तथा तेल ग्रन्थियाँ शरीर के ताप को नियन्त्रित करती हैं, जबकि तेल ग्रन्थियाँ (Sebaceous Glands) बालों को चिकना बनाती हैं तथा जल रोधक का कार्य करती हैं। इस वर्ग के जन्तु विषम दन्ती भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। हृदय 4 कोष्ठीय होते हैं। भ्रूण का पोषण गर्भाशय में 'प्लेसेन्टा के द्वारा होता है। इस वर्ग के जन्तु की एक प्रमुख विशेषता स्तन ग्रन्थियों का पाया जाना है। इस वर्ग के जन्तुओं की लाल रक्त कणिकाएं गोल, उभयावतल तथा अकेन्द्रित होती हैं। किन्तु ऊँट एक ऐसा स्तनधारी जन्तु है, जिसकी लाल रक्त कणिकाओं में केन्द्रक पाया जाता है। सभी स्तनधारियों में वृषण (Testis) शरीर के बाहरी भाग में पाया जाता है, जबकि हाथी एक ऐसा स्तनधारी है, जिसमें यह आन्तरिक भाग में पाया जाता है।

इस वर्ग में पाये जाने वाले दाँत 4 प्रकार के होते हैं-
  1. कृन्तक (भोजन को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त करता है)
  2. रदनक (भोज्य पदार्थ को चीड़ने-फाड़ने का कार्य करते हैं। ये मांसाहारी जन्तुओं में अधिक विकसित होते हैं)
  3. अग्र चर्वणक (भोजन को चबाने का कार्य करता है)
  4. चर्वणक (ये भोजन को पीसने का कार्य करते हैं।) मनुष्य में दाँत 2 बार निकलते हैं अक्ल दाढ़ (Visdom Teeth) 20 वर्ष अवस्था के बाद निकलते हैं। मादा कंगारू के उदर भाग में शिशु धारी कोष्ठ (Marsupium Pouch) पाये जाते हैं, जिसमें ये अपने अपरिपक्व बच्चों को जन्म देते हैं।
उदाहरण : कंगारू, शाही (वृषण उदरीय), सल्लू सॉप, कुत्ता, बिल्ली, समुद्री शेर शील, वालरस वेल, समुद्री गाय, हाथी, भेड़, दरियाई घोड़ा (Hippopotamus), चींटी खोर बन्दर गुरिल्ला, गधा, घोड़ा, ऊँट, चमगादड़, मनुष्य आदि इसी वर्ग के जन्तु हैं।
  • वेल की त्वचा के नीचे चबी (वसा) की एक मोटी परत होती है, जिसे 'तिमिवसा (Blubber) कहते हैं। वेल के दाँत समरूपी होते हैं।
  • डाल्फिन (मनुष्य के बाद) सर्वाधिक बुद्धिमान स्तनधारी जन्तु है।
  • घोड़ा, गधा, जेब्रा तथा गैंडा में पित्ताशय अनुपस्थित होता है।
  • सुअर ऊँट, भेड़ हिरण के सिर पर गन्ध ग्रन्थियाँ होती हैं।
  • ऊँट कसी कूबड़ में वसा का संचय होता है।
  • हाथी के ऊपरी जबड़ी में कृन्तक दन्त (Incisor) गज दन्त (Tusk) के रूप में परिवर्तित होते हैं। हाथी में रदनक तथा अग्र चर्वणक दाँतों का अभाव होता हैं।
  • चमगादड़ में अत्यधिक तरंग आवृत्ति (Ultrasonic-20000 से अधिक आवृत्ति की तरंग) की आवाज को सुनने की क्षमता होती है। चमगादड़ को उड़ लोमड्त्री भी कहते हैं चमगादड़ बच्चे को जन्म देता है, अण्डे को नहीं।
  • ‘डोडो अभी कुछ समय पूर्व विलुप्त हुआ जन्तु है।
  • इस वर्ग के प्राणियों में स्वेद एवं तैल (Seat & Oil glands) पाये जाते हैं।
  • इस वर्ग के प्राणी नियततापी (warm blooded animal) होते हैं।
  • इस वर्ग के प्राणियों के मादाओं में बच्चों को दूध पिलाने के लिए स्तन–ग्रंथियाँ (Mammary glands) होती हैं। 
  • इस वर्ग के प्राणियों का शरीर बालों से ढंका रहता है। तथा करोटि (skull) की अस्थियाँ आपस में जुड़त्री रहती हैं तथा बाह्य कर्ण (Pinna) उपस्थित रहता है।
  • इनका हृदय चार–कोष्ठीय (four chambered) होता है।
  • इस वर्ग के प्राणियों के लाला रुधिराणुओं (R,B.Cs.) में नाभिक उपस्थित नहीं होते, सिवाय ऊँट के लाल रूधिराणुओं के।
इस वर्ग को निम्न तीन उपवर्गों में बाँटा गया है
  1. प्रोटोथीरिया : अंडा देने वाले प्राणी, उदाहरण-एकिडना
  2. मेटाथीरिया : अपरिपक्व बच्चों को जन्म देने वाले प्राणी, उदाहरण कंगारू ।
  3. यूथीरिया : परिपक्व बच्चों को जन्म देने वाले प्राणी, उदाहरण-मनुष्य। 
  • इस वर्ग के प्राणियों में बकरी कारक्त सबसे गर्म 39°C तापमान होता है। 
  • इस वर्ग में एक मात्र विषैला प्राणी डकविल्ड प्लैटीपस है।

मनुष्य का आधुनिक जीव वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) क्या है? 
होमोसेपियन सेपियन

‘प्रोटोजोआ जगत का कौन-सा ऐसा जन्तु है, जो मलेरिया पैदा करता है? 
प्लाज्मोडियम

‘पील पॉव' (हाथी पॉव-Elepheantasis) को जन्म देने वाला क्रिमि कौन है? 
वूचेरिया (Wuchereria)

जोंक में रक्त का थक्का न बनने देने के लिए उत्तरदायी प्रोटीन/एन्जाइम कौन-सी है? 
हीरूडीन (Hirudine)

विश्व में किस संघ (Phylum) के जन्तुओं की संख्या सर्वाधिक है? 
अर्थोपोडा (Arthropoda)

‘अर्थोपोडा संघ के जन्तुओं की आँखों में किसी जीव या वस्तु के हजारों चित्र बनने का कारण है?
आँखों में हजारों नेत्रांशकों का होना

'ब्रिटल स्टार (Brittle Star) किस संघ का जन्तु है? 
इकाइनोडर्मेटा (Echinodermata)

‘तारामछली' (Star Fish) में कितनी भुजाएं होती हैं? 
5

सर्वाधिक विषैला भारतीय सॉप 'कोबरा कहाँ रहता है? 
घोंसला में

सॉप के काटने पर व्यवित का सर्वप्रथम कौन-सा अंग प्रभावित होता है? 
मस्तिष्क

मनुष्य के बाद सर्वाधिक बुद्धिमान स्तनधारी जन्तु कौन है? 
डाल्फिन
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