टुंड्रा पारितंत्र (Tundra Ecosystem) -
टुंड्रा शब्द का अर्थ है 'बंजर भूमि'। ये संसार के उन भागों में पाए जाते हैं जहाँ पर्यावरणीय दशाएँ अत्यधिक कठिन होती हैं।टुंड्रा के दो प्रकार हैं
- आर्कटिक टुंड्रा
- एल्पाइन टुंड्रा।
इस पारितंत्र में सूर्य-प्रकाश का अभाव रहता है। कम-से-कम आठ महीनों तक धरातल हिमाच्छादित रहता है। वनस्पति विकास का समय 50 दिन से भी कम रहता है। कम से कम दो वर्षों से हिमीकृत धरातल को 'परमाफ्रॉस्ट' कहते हैं।
वितरण
आर्कटिक टुंड्रा उत्तरी गोलार्द्ध में वृक्ष सीमा' (Tree Line) के ऊपर ध्रुवीय हिम आवरण के नीचे एक सतत् पट्टी के रूप में फैला हुआ है। यह उत्तरी कनाडा, अलास्का, यूरोपीय रूस, साइबेरिया व आर्कटिक महासागर के द्वीप समूहों में फैला हुआ है। दूसरी तरफ, दक्षिणी ध्रुव पर अंटार्कटिक टुंड्रा बहुत छोटा है क्योंकि इसका अधिकांश भाग समुद्र से ढका हुआ है।
पादप वर्ग
आर्कटिक टुंड्रा में शीत की कठोरता तथा सूर्य-प्रकाश की कमी के कारण समस्त विश्व की कुल पादप प्रजातियों की मात्र 3 प्रतिशत ही यहाँ विकसित हो पाई है। अधिकांश पादप गुच्छेदार होते हैं तथा इनकी ऊँचाई 5 से 8 सेमी. तक होती है। झाड़ियाँ प्रायः उन भागों में विकसित होती हैं जहाँ पर हिम का ढेर उन्हें तेज़ चलने वाली हवाओं से बचा सके।
जन्तु समुदाय (Fauna)
शीतकाल में अधिकांश जन्तु टुंड्रा से अन्य अनुकूल जगहों पर प्रवास कर जाते हैं। जन्तुओं में मात्र वे ही जन्तु शरद ऋतु में टिक पाते हैं जिनकी शारीरिक संरचना शीत से बचाव करने में समर्थ होती हैं। सर्दी से बचने के लिये इनके शरीर पर मोटी उपत्वचा (वसायुक्त) और एपीडर्मल रोम पाए जाते हैं। टुंडा के स्तनधारियों के शरीर का आकार बहुत बड़ा होता है लेकिन पूँछ तथा कान का आकार छोटा होता है ताकि उनके पृष्ठीय सतह से ऊष्मा की हानि को रोका जा सके। तापरोधन के लिये उनका शरीर फर से ढका रहता है। कीटों का जीवन चक्र अल्प होता है।
टुंड्रा प्रदेश के जन्तुओं में ध्रुवीय भाल, रेण्डियर, सील, वालरस, कारिबु, कस्तुरी बैल, आर्कटिक लोमड़ी, लेमिंग व गिलहरी आदि शामिल हैं।