मानव डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक, 2015 (Human DNA Profiling Bill, 2015)।

मानव डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक, 2015 (Human DNA Profiling Bill, 2015)

डीएनए प्रोफाइलिंग से तात्पर्य है व्यक्ति में अंतर स्थापित करने के लिये डीएनए अनुक्रमों का प्रयोग करना। लगभग 99.9 प्रतिशत डीएनए अनुक्रम सभी मनुष्यों में समान होता है, फिर भी 0.1 प्रतिशत का अंतर जो डीएनए अनुक्रमों में पाया जाता है, वह मोनोजायगोटिक जुड़वों (Monozygotic Twins) को छोड़कर अन्य व्यक्तियों में अंतर स्थापित करने के लिये पर्याप्त होता है।

लंबे समय से भारत में डीएनए प्रोफाइलिंग कानून की आवश्यकता महसूस की जा रही है। व्यक्ति की अद्वितीय पहचान स्थापित करने में डीएनए प्रोफाइलिंग का महत्त्व निर्विवादित है। दुनिया भर में 60 से अधिक राष्ट्रों द्वारा डीएनए प्रोफाइलिंग संबंधी कानून बनाए गए हैं। भारत में डीएनए प्रोफाइलिंग कानून की आवश्यकता को हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं:

वर्ष 2015 में भारत सरकार के द्वारा डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक का स्वरूप सार्वजनिक रूप से तैयार किया गया। इस विधेयक के तहत राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर डीएनए डाटा बैंक स्थापित किया जाएगा। डीएनए जानकारी को इन्हीं डाटा बैंकों में सुरक्षित रखा जाएगा। साथ ही डीएनए प्रोफाइलिंग परिषद की स्थापना की जाएगी, जो परिषद नियामक के रूप में कार्य करेगी और नमूनों के परीक्षण, भंडारण एवं मिलान करने से संबंधित सभी गतिविधियों की निगरानी करेगी। उल्लेखनीय है कि सभी मौजूदा और नई डीएनए प्रयोगशालाओं को परिषद से मान्यता लेनी पड़ेगी।

हाल ही में भारतीय विधि आयोग द्वारा इस विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया, जिसे कुछ परिवर्तनों के पश्चात् अब डीएनए आधारित तकनीक (उपयोग एवं विनियमन) विधेयक (DNA Based Technology Use and Regulation Bill) के रूप में जाना जाएगा। इस प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत डीएनए परीक्षण से संबंधित मानकों एवं विनियमों की स्थापना के साथ-साथ डीएनए परीक्षण से प्राप्त साक्ष्यों को संगृहीत एवं सुरक्षित रखने तथा इससे संबद्ध प्रयोगशालाओं में होने वाली सभी कार्यवाहियों का निरीक्षण करने संबंधी कार्यों को शामिल किया गया है।

डीएनए परीक्षण की उपयोगिता-
  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि किसी व्यक्ति की वास्तविक जैविक पहचान प्राप्त करने के लिये डीएनए विश्लेषण एक अत्यंत उपयोगी एवं सटीक तकनीक है। इसके अंतर्गत अपराध के स्थान से प्राप्त बाल के नमूने, खून के धब्बे की सहायता से उस अपराध से संबंधित व्यक्ति की पहचान की जा सकती है।
  • इतना ही नहीं, डीएनए परीक्षण के माध्यम से किसी व्यक्ति की शारीरिक बनावट, उसकी आँखों के साथ-साथ त्वचा के रंग का भी पता लगाया जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति की बीमारी आदि के संबंध में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
  • वस्तुतः ऐसा इसलिये है, क्योंकि डीएनए के अंदर बहुत अधिक मात्रा में सूचनाएँ संगृहीत करने की क्षमता विद्यमान होती है।
  • यही कारण है कि डीएनए विश्लेषण से प्राप्त सूचनाओं के गलत रूप में इस्तेमाल की संभावना बहुत अधिक होती है। संभवतः यही पक्ष इस विधेयक के पारित होने के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर रहा है।

विधेयक में निहित बातें-
  • इस विधेयक के अंतर्गत दो नए संस्थान स्थापित करने की पेशकश करने की संभावना है: पहला, डीएनए प्रोफाइलिंग बोर्ड (DNA Profiling Board) तथा दूसरा, डीएनए डाटा बैंक (DNA Data Bank)। इस विधेयक के अंतर्गत गठित किये जाने वाले 11 सदस्यीय बोर्ड के द्वारा संभवतः विनियमन संबंधी कार्य किया जाएगा।
  • यह केंद्र एवं राज्य सरकारों के लिये डीएनए प्रयोगशालाओं से संबंधित विषयों में सलाहकारी भूमिका का निर्वाह करेगा। इसके अतिरिक्त यह इस बात का भी ख्याल रखेगा कि डीएनए परीक्षणों के द्वारा किसी व्यक्ति के नैतिक एवं मानवीय अधिकारों के साथ-साथ व्यक्ति की निजता का उल्लंघन न होने पाए।
  • इसके अतिरिक्त विधेयक के अंतर्गत एक राष्ट्रीय डीएनए डाटा बैंक की स्थापना की बात भी निहित की गई है। राष्ट्रीय बैंक के साथ-साथ प्रत्येक राज्य में आवश्यकतानुसार क्षेत्रीय डाटा बैंक भी स्थापित किये जाएंगे।
  • वर्ष 2015 में प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत हैदराबाद में एक राष्ट्रीय डाटा बैंक स्थापित करने की बात की गई थी, इसका कारण यह था कि हैदराबाद में प्रमुख डीएनए प्रयोगशाला (Centre of DNA Fingerprinting and Diagnostics, The Premier DNA Laboratory) अवस्थित है। हालांकि नए विधेयक में ऐसी किसी विशेष स्थिति का वर्णन नहीं किया गया है।
  • सभी क्षेत्रीय बैंकों को उनसे संबद्ध सूचनाओं को राष्ट्रीय डाटा बैंक के साथ साझा करना होगा।
  • डीएनए प्रोफाइलिंग बोर्ड से मान्यता प्राप्त कुछ प्रयोगशालाओं को ही डीएनए परीक्षण एवं विश्लेषण करने की अनुमति प्राप्त होगी। ये कुछ ऐसे क्षेत्र होंगे, जहाँ किसी अपराध के स्थल से डीएनए साक्ष्यों को लाकर सुरक्षित रखा जाएगा तथा आवश्यकतानुसार विश्लेषण के लिये भेजा जाएगा।
  • तत्पश्चात् विश्लेषण से प्राप्त डाटा को नज़दीक के क्षेत्रीय डीएनए डाटा बैंक को भेज दिया जाएगा। क्षेत्रीय डाटा बैंक को इस डाटा की एक प्रति को अपने पास सुरक्षित रखकर उसे राष्ट्रीय डीएनए डाटा बैंक के पास भेजना होगा।
  • डीएनए डाटा बैंकों को निम्नलिखित प्रतियों जैसे अपराध स्थल से एकत्रित किये गए डीएनए साक्ष्यों, संदिग्ध अथवा कथित मामलों, अपराधियों एवं गुमशुदा लोगों तथा अज्ञात मृत शरीरों के संदर्भ में इस डाटा को संगृहीत करना होगा।

विधेयक से संबद्ध विवाद-
  • इस विधेयक के संदर्भ में बहुत से विवाद उभरकर सामने आ रहे हैं। वस्तुतः इसमें मुख्य मुद्दा यह है कि क्या डीएनए तकनीक की वैधता पर अंधविश्वास किया जा सकता है? क्या इस तकनीक के द्वारा किसी भी प्रकार के गलत विश्लेषण प्राप्त होने की संभावना को पूर्णरूप से नकार दिया जाना चाहिये अथवा नहीं?
  • हालाँकि इसमें संदेह नहीं है कि वर्तमान में मौजूद सभी तकनीकों की अपेक्षा डीएनए तकनीक कहीं अधिक सटीक एवं बेहतर परिणाम प्रदान करती है, तथापि अभी तक इसकी मूल प्रकृति में संभाव्यता बनी हुई है।
  • इनमें सबसे अधिक गंभीर मुद्दा निजता के अधिकार से संबंधित है। कुछ ऐसे प्रश्न, जैसे: किसका डीएनए एकत्रित किया जा सकता है तथा किन परिस्थितियों में डीएनए को एकत्रित किया जाना चाहिये और किनमें नहीं, इसका निर्णय कौन करेगा?
  • किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत सूचनाओं के अतिरिक्त डीएनए और किस प्रकार की सूचनाएँ प्रदान करने में सहायता कर सकता है? साथ ही किन परिस्थितियों में इस डाटाबेस को नष्ट किया जा सकता है?
  • इन सभी प्रश्नों के संदर्भ में इसलिये विचार किया जाना चाहिये, क्योंकि किसी भी व्यक्ति से जुड़ी निजी सूचनाओं, उसकी चिकित्सकीय सूचनाओं, शारीरिक खामियों अथवा खूबियों का किसी भी प्रकार से गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। स्पष्ट रूप से इन सभी समस्याओं के संदर्भ में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये।

इस विधेयक का औचित्य-

  • हालाँकि इस विधेयक के अंतर्गत उपरोक्त चिंताओं के संदर्भ में समाधान निकालने की कोशिश की गई है, तथापि इसमें डीएनए तकनीक की विश्वसनीयता पर पूर्ण विश्वास व्यक्त किया गया है।
  • इस विधेयक के मसौदे में एक नया प्रावधान शामिल किया गया है, जिसमें गिरफ्तार किये गए किसी व्यक्ति के शारीरिक पदार्थ के संग्रहण के विषय में उस व्यक्ति की अनुमति लेने के प्रावधान को अनिवार्य बनाया गया है।
  • हालाँकि यदि किसी व्यक्ति को किसी गंभीर अपराध के तहत गिरफ्तार किया गया है तो व्यक्ति की अनुमति के बिना भी उसके डीएनए की जाँच की जा सकती है, किंतु डीएनए जाँच को यदि बिना किसी कारण के मना किया जा रहा है और मामले से संबंधित मजिस्ट्रेट जाँच हेतु अपनी सहमति प्रदान कर देता है तो गिरफ्तार व्यक्ति को जाँच हेतु डीएनए साक्ष्य उपलब्ध कराने होंगे।
  • ध्यातव्य है कि डीएनए डाटा का गलत रूप से इस्तेमाल करने पर सज़ा का भी प्रावधान किया गया है। इसके अंतर्गत अधिकतम तीन साल के कारावास एवं एक लाख रुपए से अधिक आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है।

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