जंतु जगत (Animal Kingdom)
जंतु जगत का वर्गीकरण
- संगठन के स्तर (Levels of Organization)
- सममिति (Symmetry)
- द्विकोरिकी तथा त्रिकोरिकी संगठन (Diploblastic and Triploblastic Organization)
- शरीर की गुहा या प्रगुहा (Coelom)
- खंडीकरण (Segmentation)
- पृष्ठरज्जु (Notochord)
अरज्जुकी/नॉन-कॉर्डेटा (Non-Chordata) |
रज्जुकी/कॉर्डेटा (Chordata) |
इन जंतुओं के शरीर
में नोटोकार्ड नहीं पाया जाता। |
इन जंतुओं के जीवन
चक्र की किसी-न-किसी अवस्था में नोटोकार्ड ज़रूर पाया जाता है। |
इनमें केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) ठोस
एवं दोहरा होता है जो अधरतल (Ventral)
में पाया जाता है। |
इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र खोखला एवं एकल होता है जो
पृष्ठीय (Dorsal) रूप
में पाया जाता है। |
हृदय पृष्ठ भाग (Dorsal
Side) में होता है (अगर
उपस्थित हो तो)। |
हृदय अधर भाग (Ventral
Side) में होता है। सभी कॉर्डेट्स
द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक एवं देहगुहायुक्त होते हैं। |
नॉन कॉर्डेटा (Non Chordata)
- इस संघ के सदस्य सामान्यतः स्पंज (Sponges) के नाम से जाने जाते हैं।
- ये मुख्यतः समुद्री होते हैं एवं ज़्यादातर असममित होते हैं। ये प्रारंभिक बहुकोशिकीय जंतु हैं एवं इनका शारीरिक संगठन कोशिकीय स्तर का होता है।
- इनका शरीर एक कठोर आवरण अथवा बाह्य कंकाल द्वारा आधार प्राप्त करता है जो सूई जैसे नुकीले काँटों (Spicules) या स्पॉन्जिन फाइबर (Spongin Fibres) से बना होता है।
- इनके पूरे शरीर में अनेक छिद्र पाए जाते हैं।
- इनके शरीर में जल तंत्र या कैनाल सिस्टम पाया जाता है। जल महीन छिद्रों (ऑस्टिया) के द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश करता है एवं बड़े छिद्र (ऑस्कुलम) द्वारा बाहर निकल जाता है।
- जल परिवहन के रास्ते से आहार ग्रहण, श्वसन गैसों का आदान-प्रदान तथा अपशिष्टों का निष्कासन आदि कार्य संपन्न होते हैं।
- इस संघ के सदस्य जलीय, अधिकांशतः समुद्री, स्थानबद्ध (Sessile) या मुक्त रूप से तैरने वाले होते हैं, जिनमें सममिति पाई जाती है।
- इनमें स्पर्शक (Tentacles) एवं निडोब्लास्ट (Cnidoblasts) पाए जाते हैं जो स्थिर रहने, रक्षा करने तथा शिकार पकड़ने में सहायक होते हैं।
- इनमें ऊतक स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है एवं ये द्विकोरिक होते हैं। शरीर दो आकार रूपों, यथा- पॉलिप (Polyp) एवं मेडुसा (Medusa) में पाया जाता है। पॉलिप एक स्थानबद्ध एवं बेलनाकार रूप है जिसके अंतर्गत हाइड्रा (Hydra) एवं एडेमसिया (Adamsia) आते हैं, जबकि मेडुसा छतरीनुमा आकार के मुक्त रूप से तैरने वाले होते हैं जिसके अंतर्गत ऑरेलिया या जेली फिश (Jelly Fish) आते हैं।
- कोरल आदि जातियाँ, समूह में रहती हैं जबकि हाइड्रा एकाकी रूप से रहते हैं।
- एडेमसिया सी-एनीमोन की एक प्रजाति है जो केकड़े के साथ सहजीवी संबंध दर्शाता है।
- हाइडा में श्वसन अंग एवं रक्त अनुपस्थित होते हैं तथा श्वसन विसरण के माध्यम से होता है।
- सामान्यतः इन्हें समुद्री अखरोट (Sea Walnuts) या कॉम्ब जैली (Comb Jelly) कहते हैं।
- ये सभी समुद्रवासी अरीय सममिति वाले द्विकोरिक जीव होते हैं तथा इनमें ऊतक श्रेणी का शारीरिक संगठन पाया जाता है।
- शरीर में आठ बाह्य पक्ष्माभी (Ciliated) कॉम्ब प्लेट्स पाए जाते हैं जो चलने में सहायक होते हैं। जीवदीप्ति (Bioluminescence) के द्वारा प्रकाश उत्सर्जन करना टीनोफोर की मुख्य विशेषता है।
- इस संघ के प्राणी पृष्ठाधार रूप से चपटे होते हैं, अतः इन्हें चपटे कृमि (Flat Worm) भी कहा जाता है।
- इनका शरीर त्रिकोरिक एवं द्विपार्श्वसममित होता है एवं अंग स्तर (Organ Level) का शारीरिक संगठन पाया जाता है, परंतु इनमें वास्तविक देहगुहा (True Body Coelom) नहीं पाई जाती।
- इस समूह के अधिकांश प्राणी मनुष्य तथा अन्य प्राणियों में अंतःपरजीवी (Endoparasites) के रूप में पाए जाते हैं। इनमें अंकुश (Hooks) एवं चूषक (Suckers) पाए जाते हैं।
- विशिष्ट कोशिकाएँ फ्लेम सेल्स (Flame Cells) परासरण (Osmoregulation) एवं उत्सर्जन में सहायता करती हैं।
- प्लैनेरिया (Planaria) में पुनरुद्भवन (Regeneration) की उच्च क्षमता पाई जाती है।
- इन प्राणियों का शरीर अनुप्रस्थ काट में गोलाकार होता है, अतः इन्हें गोलकृमि (Round Worm) कहते हैं।
- ये मक्तजीवी, जलीय तथा स्थलीय अथवा पौधों तथा प्राणियों में परजीवी रूप में भी पाए जाते हैं।
- ये द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक तथा वास्तविक देहगुहा वाले जीव हैं। इनका शरीर संगठन अंगतंत्र स्तर का है (ऊतक पाए जाते हैं परंतु असली अंग नहीं होते)।
- आहार नाल पूर्ण होती है एवं उत्सर्जन नाल शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को उत्सर्जन रंध्र द्वारा बाहर निकालती है।
- सामान्यतः इन्हें बीमारी फैलाने वाले परजीवी कृमि (Parasitic Worms) के रूप में जाना जाता है, जैसे- हाथीपाँव (Elephantiasis) के वाहक फाइलेरिया कृमि एवं आँत में पाए जाने वाले गोलकृमि तथा पिनकृमि (Round Worm and Pin Worms)। अक्सर मादा, नर से लंबी होती है।
एनिलिडा (Annelida)
- इस संघ के प्राणी जलीय (समुद्री एवं ताज़े जल) अथवा स्थलीय, स्वतंत्रजीवी एवं कभी-कभी परजीवी होते हैं।
- वास्तविक देहगुहा वाले ये द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक तथा अंगतंत्र स्तर के संगठन को प्रदर्शित करने वाले होते हैं।
- इनके शरीर की सतह स्पष्टत: खंड अथवा विखंडों में बँटी होती है, इसलिये इस संघ को एनिलिडा कहते हैं।
- नेरिस में नर तथा मादा अलग होते हैं, परंतु केंचुए तथा जोंक में नर तथा मादा पृथक् नहीं होते।
आर्थोपोडा (Arthropoda)
- यह प्राणि-जगत का सबसे बड़ा संघ है। पृथ्वी पर लगभग दो-तिहाई जाति आर्थोपोडा की ही हैं।
- ये द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक एवं प्रगुही हैं तथा इनमें अंगतंत्र स्तर (Organ-System Level) का संगठन पाया जाता है।
- इनमें खुला परिसंचरण तंत्र (रक्त वाहिकाएँ अनुपस्थित) पाया जाता है, अतः रुधिर, वाहिकाओं में नहीं बहता बल्कि देहगुहा ही रक्त से भरी रहती है। रक्त रंगहीन होता है। रक्त में हीमोग्लोबिन की अनुपस्थिति के कारण यह हीमोलिम्फ कहलाता है।
- इनका शरीर बाह्य कंकाल (काइटिन से निर्मित) से ढका रहता है।
- शरीर सिर, वक्ष तथा उदर में विभाजित होता है। इनमें संधियुक्त पाद (Jointed Legs) पाया जाता है। [झींगा (Prawn)→ 19 जोड़े पाद]
- संवेदी अंग, जैसे- ऐंटिना (Antennae), नेत्र (सामान्य तथा संयुक्त), स्टैटोसिस्ट या संतुलन अंग आदि पाए जाते हैं।
- नर एवं मादा पृथक् होते हैं तथा ये अधिकांशतः अंडे देने वाले होते हैं।
- मकड़ी: 'स्पिनरेट्स' (सिल्क बुनने वाला अंग) की मदद से जाला बुनती है।
- तिलचट्टाः हृदय 13 चैंबरों का बना होता है एवं यह Sensory Hairs द्वारा अल्ट्रासोनिक साउंड प्राप्त करता है।
- सिल्वर फिश या रजत मीनाभ एक पंखहीन कीट है।
- जोंक, मच्छर तथा खटमल में प्रतिस्कंदक (Anticoagulants) पाए जाते हैं, परंतु यह बर्र में नहीं पाया जाता।
- केवल मादा मच्छर ही गरम रुधिर वाले कशेरुकियों- पक्षियों एवं स्तनियों का रक्त चूसती हैं। नर मच्छर अपना पोषण फल-फूलों के रस से करते हैं। मादा मच्छर सामान्यत: नर मच्छर से बड़ी होती हैं।
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- आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण कीट (Insects) के उदाहरण- ऐपिस (मधुमक्खी), बांबिक्स (रेशम कीट) , लैसिफर (लाखकीट)
रोग वाहक कीट (Disease
Carrying Insects) |
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कीट |
बीमारी |
घरेलू मक्खी |
टायफाइड,
हैजा (कॉलरा), डायरिया |
रैट फ्ली |
ब्यूबोनिक प्लेग |
सैंड फ्लाई |
कालाजार |
सी-सी मक्खी |
अफ्रीकन स्लिपिंग सिकनेस |
मच्छर |
मलेरिया (एनाफिलीज मच्छर), डेंगू,
चिकनगुनिया, पीला
ज्वर (एडीज मच्छर), फाइलेरिएसिस, जापानी
इंसेफेलाइटिस (क्यूलेक्स मच्छर) |
बेड बग |
टाइफस बुखार |
- 'एडीस एल्बोपिक्टस' (Aedes Albopictus) जो कि 'टाइगर मच्छर' के नाम से भी जाना जाता है। यह पीत ज्वर, डेंगू, चिकनगुनिया तथा सेंट लुई एनसेफेलाइटिस जैसे रोगों के कारक विषाणु का वाहक होता है।
- जापानी इंसेफेलाइटिस के विषाणु के वाहक क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छर होते हैं।
मोलस्का (Mollusca)
- जंतु जगत का यह दूसरा सबसे बड़ा संघ है।
- ये प्राणी स्थलीय अथवा जलीय (लवणीय एवं अलवणीय) होते हैं।
- इनका शरीर द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक तथा प्रगुही होता है। इनकी देहगुहा बहुत कम होती है तथा शरीर में थोड़ा विखंडन होता है।
- शरीर कोमल होता है जो कठोर कैल्सियम के कवच द्वारा ढका रहता है।
- इनमें खुला संवहन तंत्र पाया जाता है एवं श्वसन तथा उत्सर्जन कार्य भी होते हैं।
- मुँह में भोजन हेतु रेतीजिह्वा (Radula) पाई जाती है जो रेती के समान घिसने का कार्य करती है। सिर पर संवेदी स्पर्शक (Sensory Tentacles) पाए जाते हैं।
- सामान्यत: नर एवं मादा पृथक होते हैं तथा मादा अंडे देने वाले होते हैं।
एकाइनोडर्मेटा (Echinodermata)
- इस संघ के प्राणियों में कैल्सियमयुक्त हड्डी से बना अंतःकंकाल (Endoskeleton) पाया जाता है, इसलिये इनका नाम एकाइनोडर्मेटा (काँटायुक्त शरीर) पड़ा।
- ये सभी समुद्री जीव हैं एवं इनमें अंगतंत्र स्तर का संगठन पाया जाता है।
- ये त्रिकोरिकी तथा देहगुहायुक्त प्राणी होते हैं। इनमें पाचन तंत्र पूर्ण होता है एवं स्पष्ट उत्सर्जन तंत्र का अभाव होता है।
- एम्बुलैक्रल तंत्र या जल संवहन तंत्र (Water Vascular System) इस संघ की विशेषता है, जो गमन, भोजन ग्रहण तथा श्वसन में सहायक होता है।
- नर एवं मादा पृथक् होते हैं।
हेमीकॉर्डेटा (Hemichordata):
- इसे पहले कॉर्डेटा संघ के अंतर्गत उप-संघ में रखा गया था, परंतु अब इसे एक अलग संघ के अंतर्गत नॉन-कॉर्डेटा में डाल दिया गया है।
- ये समुद्री जीव हैं जो कृमि के समान होते हैं।
- इनका संगठन अंगतंत्र स्तर का होता है। ये द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक तथा देहगुहा युक्त प्राणी हैं।
- इनका शरीर बेलनाकार होता है तथा परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है। नर एवं मादा अलग-अलग होते हैं।
कॉर्डेटा (Chordata)
यूरोकॉर्डेटा (Urochordata) |
सिर्फ लार्वा की पूँछ में नोटोकार्ड उपस्थित रहता है।
उदाहरणः एसिडिया, सैल्पा, डोलिओलम |
सिफैलोकॉर्डेटा (Cephalochordata) |
पूरे जीवन काल में सिर से पूँछ तक नोटोकार्ड उपस्थित रहता
है। उदाहरणः ब्रैकिओस्टोमा (एम्फीऑक्सस) |
कशेरुकी/वर्टीब्रेटा (Vertebrata) |
सिर्फ भ्रूण अवस्था (Embryonic Period) के समय
नोटोकार्ड उपस्थित रहता है। वयस्क होने पर यह नोटोकार्ड एक अस्थिल या उपास्थिल
मेरुदंड (Vertebral
Column) में परिवर्तित हो जाता है, जिसे बैकबोन कहते हैं। |
नोट: यूरोकॉर्डेटा एवं सिफैलोकॉर्डेटा को एक साथ
प्रोटोकॉर्डेटा (Protochordata)
कहते हैं। ये मुख्यतः समुद्री होते हैं। इस प्रकार सभी कशेरुकी रज्जुकी होते हैं परंतु सभी
रज्जुकी कशेरुकी नहीं होते। |