पर्यावरणीय अध्ययन में जन-जागरूकता का महत्त्व (Importance of Mass-Awareness in Environmental Studies)।

पर्यावरणीय अध्ययन में जन-जागरूकता का महत्त्व (Importance of Mass-Awareness in Environmental Studies)।

पर्यावरण अध्ययन की प्रकृति बहुविषयक होती है, जिसके लिये कौशल की आवश्यकता होती है एवं वह कौशल अपने अन्तर्गत कई विषयों यथा- रसायन, जीवविज्ञान, पृथ्वी विज्ञान, गणित, भूगोल, कला, भौतिकी, इतिहास आदि को अंतर्गृहीत किये रहता है। पर्यावरण अध्ययन द्वारा विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर प्रकाश पड़ता है। इसके द्वारा समाज में पर्यावरण क्षेत्र से संबंधित कई आयाम विकसित होते हैं जिनका समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है एवं पर्यावरणीय रूप से वे काफी महत्त्वपूर्ण भी होते हैं।
पर्यावरण अध्ययन एवं पर्यावरण की समझ के विकास हेतु आम जन को जागरूक होने की आवश्यकता है ताकि उन्हें यह ज्ञात हो कि हमारे वातावरण में जो परिवर्तन हो रहे हैं उनके द्वारा मानव जीवन कैसे प्रभावित हो रहा है। इस हेतु उनमें पर्यावरण की समझ विकसित करना आवश्यक है ताकि वे अलग-अलग समस्याओं से रू-ब-रू हो सके। पर्यावरणीय सुरक्षा सिर्फ किसी अकेले व्यक्ति, संस्था एवं सरकार की क्षमता के बाहर है। कई पर्यावरणीय समस्याओं का स्वरूप वैश्विक है।
अतः विश्व के हर नागरिक के लिये ज़रूरी है कि वो वैश्विक वातावरण को सुरक्षा प्रदान करने हेतु योगदान करे। इस सक्रिय योगदान हेतु जन-जागरूकता आवश्यक है एवं बिना पर्यावरण के अध्ययन के इस जन-जागरूकता का प्रसार करना अधूरा प्रयास होगा। पर्यावरण के विषय में आमलोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिये 5 जून को प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
पर्यावरणीय शिक्षा (विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में), मास मीडिया (न्यूज़पेपर, मैगजीन, रेडियो, टी.वी. आदि), सेमीनार एवं कॉन्फ्रेंस, मनोरंजन (लोकगीतों, नुक्कड़ नाटकों, डॉक्यूमेंटरीज आदि), विज्ञान केंद्रों की स्थापना एवं प्रसिद्ध व्यक्तियों तथा युवाओं को शामिल कर जन-जागरूकता को फैलाया जा सकता है।

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