खाद्य शृंखला (Food Chain) | khadya shrinkhala kise kahate hain

खाद्य शृंखला (Food Chain)

पारितंत्र के भीतर विभिन्न जीवों में पोषण स्तर के माध्यम से संबंध होता है अर्थात् प्रत्येक जीव किसी अन्य जीव का भोजन बन जाता है। एक-दूसरे को खाने वाले जीवों का अनुक्रमण एक खाद्य श्रृंखला (Food Chain) बनाता है।
कुछ प्राणी केवल एक ही प्रकार का आहार करते हैं और इसलिये वे एक ही खाद्य श्रृंखला के सदस्य होते हैं। अन्य प्राणी अलग-अलग प्रकार के आहार करते हैं इसलिये वे न केवल विभिन्न खाद्य-शृंखलाओं के सदस्य होते हैं वरन् अलग-अलग खाद्य श्रृंखलाओं में उनके स्थान यानी पोषण स्तर भी अलग-अलग हो सकते हैं।
परितंत्र में निम्न पोषण स्तर से उच्चपोषण स्तर के जीवों के बीच जो भोजन श्रृंखला होती है, वह खाद्य श्रृंखला कहलाती है। खाद्य श्रृंखला निम्न पोषण स्तर से उच्च पोषण स्तरों के बीच ऊर्जा के स्थानान्तरण के क्रम में श्रृंखलाबद्ध होती है। जैसे एक पौधे का भक्षण कीड़े (Beetle) द्वारा किया जाता है, कीड़े को मेंढ़क खा जाता है, मेंढ़क साँप का भोजन है और साँप एक बाज द्वारा खा लिया जाता है। इस खाद्य के क्रम और एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा के प्रवाह को ही खाद्य श्रृंखला कहा जाता है।

या हम इसे ऐसे भी समझ सकते हैं की -
किसी पारिस्थितिकी तंत्र में खाद्य श्रृंखला विविध प्रकार के जीव जन्तुओं का वह क्रम है जिसमें जीवधारी भोज्य और भक्षक के रूप में सम्बद्ध होते हैं। आहार श्रृंखला प्रथम पोषण स्तर से प्रारम्भ होकर चतुर्थ स्तर तक को आबद्ध करती है। इसमें ऊर्जा एवं रासायनिक पदार्थ उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटनकर्ता द्वारा निर्जीव पर्यावरण में प्रवेश करते हैं और पुनः चक्रीकरण द्वारा जैविक घटकों में प्रवेश कर जाते हैं।

खाद्य श्रृंखला के प्रकार (Types of Food Chain)

सामान्यतः खाद्य श्रृंखला के 2 प्रकार होते है।

1. चारण खाद्य श्रृंखला (Grazing Food Chain)

चराई खाद्य श्रृंखला उत्पादकों से होकर शाकभक्षियों, माँसभक्षियों एवं सर्वाहारियों तक जाती है। हर स्तर पर श्वसन, उत्सर्जन एवं विघटन द्वारा ऊर्जा का ह्वास होता जाता है। यह खाद्य श्रृंखला हरे पौधों से आरम्भ होती है तथा प्राथमिक उपभोक्ता शाकभक्षी होता है। उपभोक्ता जो भोजन के रूप में पौधों अथवा पौधों के भागों का उपयोग करके श्रृंखला आरम्भ करते हैं, चारण खाद्य श्रृंखला का निर्माण करते हैं।
  • उदाहरणः  घास → टिड्डा → पक्षीगण → बाज

2. अपरद खाद्य श्रृंखला (Detritus Food Chain)

अपरद खाद्य श्रृंखला, चराई खाद्य श्रृंखला के जीवों के मरने के बाद शुरू होती है। चराई श्रृंखला के जीव जब मरते हैं तो अपघटक उन पर एंजाइम छोड़कर क्रिया करते हैं।
अपघटक वे होते हैं, जो मृत जीवों पर निर्भर होते हैं जैसे-बैक्ट्रिया, कवक आदि सूक्ष्मजीव। ये प्राणी मृतकों को अपघटित करके उन्हें सरल पदार्थो में परिवर्तित कर देते हैं। अपघटकों की इस प्रक्रिया को अपघटन कहा जाता है। यह खाद्य श्रृंखला क्षय होते प्राणियों एवं पादप शरीर के मृत जैविक पदार्थों से आरम्भ होकर सूक्ष्मजीवों में तथा सूक्ष्मजीवों से अपरद खाने वाले जीवों एवं अन्य परभक्षियों में पहुँचती है।
  • उदाहरण:  कचरा → स्प्रिंगटेल (कीट) → छोटी मकड़ियाँ (मांसभक्षी)
अतः किसी पारिस्थितिकी तन्त्र में खाद्य श्रृंखला विभिन्न प्रकार के जीवधारियों का वह क्रम है जिससे जीवधारी भोज्य एवम् भक्षक के रूप में सम्बन्धित रहते है और इनमें होकर खाद्य ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा (Uniderectional) में होता रहता है। प्राथमिक उत्पाद (हरे पौधे), प्रथम, द्वितीय, तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता एवं अपघटनकर्ता (कवक एवं जीवाणु) आपस में मिलकर खाद्य श्रृंखला (Food Chain) का निर्माण करते है क्योंकि वे आपस में एक-दूसरे का भक्षण करते है और भक्षक या भोज्य के रूप में सम्बन्धित रहते है। खाद्य-श्रृंखला में ऊर्जा व रासायनिक पदार्थ-उत्पादक, उपभोक्ता, अपघटनकर्ता व निर्जीव प्रकृति में क्रम से प्रवेश करते रहते है और इनमें होते हुए चक्र में घूमते रहते है। किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र की खाद्य श्रृंखला को निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है।

एक अन्य मत के अनुसार खाद्यशृंखलाएँ तीन प्रकार की होती हैं-
  1. परभक्षी खाद्य श्रृंखला (Predator Food Chain): पौधों से छोटे जीव और बड़े जन्तुओं की ओर अग्रसर होती है।
  2. परजीवी खाद्य श्रृंखला (Parasitic Food Chain): पौधों से बड़े जन्तुओं और छोटे जीवों की ओर अग्रसर होती है।
  3. मृतोपजीवी खाद्य श्रृंखला (Saprophytic Food Chain): मृत प्राणियों से सूक्ष्म जीवों की ओर अग्रसर होती है। प्रत्येक भोजन श्रृंखला में उत्पादक एवं उपभोक्ता विद्यमान होते हैं।
khady-shrinkhala

(A) एक तालाब में पारिस्थितिकीय तन्त्र में खाद्य श्रृंखला के जीवधारियों का क्रम
  • उत्पादक → प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता → द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता → तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता → उच्च मांसाहारी उपभोक्ता.
  1. शैवाल → जलीय पिस्सू → छोटी मछली → बड़ी मछली → बगुला, बतख, सारस
  2. हरे पौधे → कीड़े मकोड़े → मेढ़क → साँप → बगुला, सारस

(B) घास स्थलीय पारिस्थितिकीय तन्त्र में खाद्य श्रृंखला के जीवधारियों का क्रम
  • घास → कीड़े मकोड़े, टिड्डे → चिड़िया, मेढ़क → बाज, पक्षी, साँप → गिद्ध

(C) वन पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य श्रृंखला के जीवधारियों का क्रम
  • उत्पादक → प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता → द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता → तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता → अंतिम उपभोक्ता या उच्च मांसाहारी
  • शाकीय पौधे → चूहे, गिलहरी → बिल्ली → जंगली कुत्ता
  • झाड़ियाँ → खरगोश → भेड़िया, लकड़बग्घा → शेर, चीता
  • वृक्ष → बन्दर, लंगूर → तेन्दुआ

एक उथले समुद्र के जीवों के समुदाय में सम्पूर्ण ऊर्जा का लगभग 80% भाग अपरद शृंखलाओं में प्रवाहित होता है।

पोषण स्तर

चारागाह बायोम

तालाब बायोम

सागर बायोम

प्राथमिक उत्पादक

घास

शैवाल

पादप प्लवक

प्राथमिक उपभोक्ता

टिड्डा

मच्छर लार्वा

प्राणीमन्दप्लवक

द्वितीयक  उपभोक्ता

चूहा

ड्रैगनफ्लाई लार्वा

मछली

तृतीयक उपभोक्ता

साँप

मछली

सील

चतुर्थक उपभोक्ता

बाज

रेकून

सफेद शाक


आहार शृंखला

प्रकृति में खाद्य श्रृंखलाएँ पृथक न होकर एक दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं अर्थात् आहार श्रृंखलाएँ सरल एवं रैखिक न होकर अत्यधिक जटिल हो जाती हैं जैसे एक अन्न पर निर्भर चूहा अनेक द्वितीयक उपभोक्ताओं का आहार है। अनेक द्वितीयक स्तर के माँसाहारी अनेक तृतीय स्तर वालों के भोजन हैं। इस प्रकार कई प्रकार के माँसाहारी जीव कई प्रकार के शिकार पर निर्भर होते हैं परिणामस्वरूप खाद्य श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं। प्रजातियों के इस परस्पर जुड़ाव को ही खाद्य जाल (Food Web) कहा जाता है।

आहार श्रृंखला, आहार जाल एवं जैवविविधता के बीच सम्बन्ध

आहार श्रृंखला तथा आहार जाल की प्रकृति किसी स्थान के परितंत्र की जैवविविधता (Biodiversity) की समृद्धि या निर्धनता पर निर्भर करती है अर्थात् किसी स्थान की जैव विविधता जितनी अधिक समृद्ध होगी वहाँ की आहार श्रृंखला एवं आहार जाल उतना ही अधिक लम्बे एवं जटिल होंगे। अगर किसी स्थान की आहार श्रृंखला सरल है तो वह परितंत्र अस्थिर तथा उसकी जैवविविधता निर्धनता का प्रतीक होगी।

खाद्य-श्रृंखला एवं खाद्य-जाल में अंतर

खाद्य-श्रृंखला (Food Chain)

खाद्य-जाल (Food Web)

पारिस्थितिकी तंत्र में एक जीव से दूसरे जीव में भोज्य पदार्थों का स्थानान्तरण खाद्य श्रृंखला कहलाता है।

विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों की खाद्य श्रृंखलाएँ परस्पर मिलकर खाद्य-जाल बनाती हैं।

इसमें ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होता है।

इसमें ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होते हुए भी कई पथों (Routes) से होकर गुजरता है।

इसमें उत्पादक, विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ता (Consumers) तथा अपघटक (Decomposers) होते हैं।

इसमें अनेक जीव समुदाय के उपभोक्ता तथा अपघटक हाते हैं।


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