कंकाल तंत्र क्या है (Skeletal System)
जीवों के शरीर की मजबूती, उनके शरीर का आकार उनके कंकाल तंत्र पर निर्भर करता है। सर्प के रेंग के चलने और मनुष्य के सीधे खड़े होकर चलने, मछलियों द्वारा पानी में सफलता पूर्वक तेजी से तैरने आदि अनेक कार्यों के लिए जीवों का कंकाल तंत्र सहयोगी होता है। कंकाल तंत्र पूरे शरीर में फैला तंत्र होता है जो अस्थियों से बना होता है। अनेक प्रकार की अस्थियाँ आपस में संयोजित होकर कंकाल तंत्र का निर्माण करती हैं। यह कंकाल तंत्र ही मॉसपेशियों को जुड़ने का स्थान प्रदान करता है जिसके कारण मॉसपेशियों में विभिन्न प्रकार की गतियाँ संभव होती हैं। पादपों में कंकाल तंत्र का अभाव होता है परंतु इनकी कोशिकाओं की कोशिकाभित्ती तथा कोशिकाओं में आवश्यकतानुसार विभिन्न रसायनों का संग्रह, विभिन्न प्रकार के ऊतक इनको सहारा आपने कभी सोचा कि मनुष्य सीधे खड़ा होकर चलता है, जबकि अधिकांश जीव अपने चारों पैरों का प्रयोग करके झुककर चलते हैं, और साँप जैसे कुछ जीवों को रेंगना पड़ता है। वे सीधे खड़े नहीं हो सकते। मनुष्य में यह क्षमता कैसे आई, यह हमारे कंकाल-तंत्र के कारण संभव हो पाया है। कंकाल तंत्र किसी के भी शरीर की आधार संरचना बनाती है। कल्पना कीजिए बिना हड्डियों के हमारा शरीर कैसे होता है, यह उसी प्रकार हो जाता, जैसे ऊतरे हुए कपड़ें को जमीन पर फेंकने पर यह दिखता है।हमारा कंकाल तंत्र मुख्यतः अस्थियों का बना होता है। ये अस्थियाँ आपस में जुड़कर कंकाल-तंत्र का निर्माण करती हैं। हमारे शरीर में बड़ी-छोटी अस्थियों को मिलाकर 206 अस्थियाँ होती हैं। इन अस्थियों का आकार भिन्न होता है, परंतु कुछ थोड़े बहुत अंतर के साथ इनकी संरचना एवं बनावट एक समान होती है।
अस्थियों की बनावट
अस्थियाँ भले ही बहुत सरल दिखाई देती हैं लेकिन इनकी बनावट बहुत ही जटिल होती है। मानव शरीर का बहुत बड़ा अंश जल का होता है लेकिन सजीव अस्थि में मात्र 20 प्रतिशत जल तथा शेष भाग में दो-तिहाई खनिज एवं एक-तिहाई कार्बनिक पदार्थ रहता है। इसमें कार्बनिक आधात्री (Organic Matrix) पाया जाता है। कोलेजन (Collagen) तन्तु, विभिन्न खनिजों की उपस्थिति के कारण यह काकीट जैसी मजबूत संरचना बनाती है।, अस्थियों की कड़ी एवं मजबूत संरचना के लिए ये ही जिम्मेदार होते हैं। अस्थि का लचीलापन कार्बनिक और उसकी कठोरता अकार्बनिक पदार्थों पर निर्भर करती है।- इसके भीतर अस्थिमज्जा (Bonemarrow) पाई जाती है, जो अस्थि का अविभाज्य अंग होती है, शरीर में रक्त कोशिकाओं का निर्माण इसी अस्थिमज्जा मे होता है। अस्थि का तल रेशेदार झिल्ली से आच्छादित रहता है, जिसे पर्यस्थिकला (Periosteum) कहा जाता है। पर्यस्थिकला की दो परतें होती हैं, तथा दोनों परतें संयोजी ऊतकों की बनी होती है। बाह्य परत सघन संयोजी ऊतक की तथा भीतरी परत विरल संयोजी ऊतक की बनी होती है। शरीर के अन्य अंगों की भाँति इसमें भी तंत्रिकाएँ तथा रक्त की लसिका वाहिकाएँ रहती हैं। तंत्रिका तंतु और रक्त वाहिकाएँ पर्यस्थिकला से अस्थि के भीतर रन्ध्रों से होकर प्रवेश करती है।
- अस्थि कोरक (Osteoblast )
- अस्थि पोषक (Osteoclast)
- अस्थ्यणु (Osteocyte)
अस्थिमज्जा दो प्रकार की होती हैं
- पीत अस्थिमज्जा (Yellow bonemarrow)
- लाल अस्थिमज्जा (Red Bonemarrow)
कंकाल (Skeleton)-
यह छोटी-बड़ी 206 हड्डियों के संयोग से बना एक ढाँचा है। कंकाल मुख्य रूप से निम्न कार्यों को संपन्न करता है- शरीर को आकृति प्रदान करना।
- शरीर के अंगों को गति प्रदान करना
- शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों को सुरक्षा प्रदान करना है।
- यह शरीर का आधार है, जो सारे अंगों को सँभाले रखता है।
- यह मॉसपेशियों को जड़ने का स्थान प्रदान करता है। आदि
- खोपड़ी की हड्डियाँ (Bones of skull)
- धड़ की हड्डियाँ (Bones of abdomen)
- स्कंध-मेखला (Pectoral girdle)
- हाथ की हड्डियाँ (bones of hand)
- श्रोणि मेखला (Pelvic girdle)
- पैर की अस्थियाँ (Bones of leg)
खोपड़ी (Skull) (total 22 bones)-
सिर को अस्थि भाग को कपाल या खोपड़ी (Cranium of skull) कहा जाता है। मस्तिष्क इसी की गुहा में स्थित है। कपाल की अस्थियों से मुख-गुहा (oral cavity) नासा गुहा (Nasal Cavity) नेत्र-गुहा (Orbital cavity) तथा कर्ण गुहा बनती हैं। खोपड़ी में अनेक छिद्र होती हैं जिनसे होकर शिराएँ और रक्तवाहिकाएँ निकलती हैं।- खोपड़ी सामान्यतः दो भागों में बँटा होता है
- कपालीय (Cranial) (total bones-8)
- आनन (facial) (total bones-14)
- कपालीय भाग में पुनः दो भाग होते हैं
- मूल
- गुम्बददार
- कपाल में दो प्रकार की युग्मित अस्थियाँ पायी जाती हैं
- भित्तिकास्थि (Parietal)
- शंखास्थि (temporal bones)
- शेष चार प्रकार की अस्थियाँ इसमें अयुग्मित होती हैं
- ललाटिका (Frontal) ,
- झर्झरिका (Ethmoid)
- अनुकपाल (Occipital)
- जतुक (Sphenoid)
- आनन भाग में निम्न प्रकार की युग्मित अस्थियाँ पायी जातीं हैं
- जभिका (Maxilla)
- गंडास्थि (Zygoma)
- नासा-अश्रु अस्थि (Nasal Incrimal bone)
- ताल (Palate)
- निम्न नासा शखिका (Inferior Nasal concha)
- आनन में दो अयुग्मित अस्थियाँ भी पायी जाती हैं
- सीरिका (Vomer)
- चिबुकास्थि (Mandible)
हाथों की अस्थियाँ (Bones of forearms) (total number of bones 54)-
प्रगंडिका (Humerus)- कंधे (Shoulder) से कोहनी (elbow) तक की लम्बी, नलिकाकार अस्थि को प्रगडिका (Humerus) कहा जाता है।- यह दो भागों में बांटा जाता है
- अस्थिकांड (Diaphysis)
- अधिप्रवर्ध (Epiphyses)
कोहनी (Elbow) से कलाई (Wrist) तक का भाग प्रबाहु कहलाता है। इसमें दो लम्बी तथा नलिकाकार अस्थियाँ रहती हैं, एक अंगूठे की ओर और दूसरी कनिष्ठा अंगुली की ओर। अंगूठे की तरफ की हड्डी को बहिःप्रकोष्ठिका (Radius) और कनिष्ठा (Littel finger) की तरफ की हड्डी को अन्तःप्रकोष्ठिका (Ulna) कहा जाता है।
अन्तः प्रकोष्ठिका (UIna)-
इसके ऊपरी सिरे पर चंचुभ (Coronoid) और कफोणि प्रवर्ध (Olecranon process) अर्ध चन्द्राकार खाँच (Semilunar notch) और अस्थिप्रोत्थ (Tuberosity) तथा निचले सिरे पर शीर्ष और शर प्रवर्घ (Styloid process) रहते हैं।बहिःप्रकाष्ठिका (Radius)-
इसके ऊपरी सिरे पर खाँचदार शीर्ष, ग्रीवा और अस्थिप्रोत्थ (Tuberosity) तथा निचले सिरे पर मणिबन्ध (कलाई) की अस्थियों से जुड़ने के लिए संधितल तथा एक शर प्रवर्ध (Styloid process) रहता है।पैरों की हड्डियाँ-
ऊरू अस्थि (Femur)-
यह शरीर की सबसे बड़ी नलिकाकार अस्थि है। जो जाँघ में पायी जाती है। इसमें ऊपरी सिरे पर शीर्ष और ग्रीवा भाग तथा दो उभरे स्थल (Eminence) रहते हैं, जिन्हें वृहत् (Greater) और लघु ट्रोकेन्टर (Lesser tronchanters) कहा जाता है। इसके निचले सिरे पर दो उभरे स्थल मध्यवर्ती और पार्श्व अस्थि स्कंद (Lateral condyles) है। इन दोनों के बीच अन्त:अस्थिस्कंद खात (Intercondylar Fossa) स्थित हैं। इसका ऊपरी सिरा कूल्हे से तथा निचला सिरा घुटने से मिला रहता है।अन्तर्जधिका (Tibia)-
घुटने (Knee) और टखने (Ankle) को दो अस्थियाँ जोड़ती हैं। इनमें एक अस्थि पैर के अंगूठे की ओर तथा दूसरी पैर की कनिष्ठा की ओर रहती है। अंगूठे की ओर वाली अस्थि अन्तर्जधिका कहलाती है। इसके ऊपरी सिरे पर मध्यवर्ती और पार्श्व अस्थि स्कंद (Lateral Condyles) अन्त:अस्थि स्कंदीय उभार (Intercondylar eminence) ऊरू-अस्थि (femur) के साथ जुड़ने से निमित्त दो संधितल और पेशी बंधन के लिए एक अस्थिप्रोत्थ (tuberosity) रहते हैं। निचले सिरे पर उभरा स्थल, जिसे मेलियोलस कहा जाता है, तथा घुटिकास्थि (Talus) से जुड़ने के लिए एक संधितल रहता है।बहिर्जघिका (Fibula)-
घुटने एवं टखने को मिलाने वाली जो अस्थि पैर की कनिष्ठा अंगुली की ओर स्थित है, उसे बहिर्जाघिया कहा जाता है। इसका ऊपरी सिरा अन्तर्जधिका (tibia) से तथा निम्न सिरा घुटिकास्थि (talus) से जुड़ा रहता है।कशेरूक दंड (Vertebral Column)-
यह अस्थियों के 33 टुकड़ों के संयोग से बना एक लोचदार स्तम्भ है, जो धड़ को अवलंब प्रदान करता है। इसके अलग-अलग टुकड़े को कशेरूक (Vertebrae) एवं इनसे बने दंड को कशेरूक दंड या रीढ़ कहा जाता है। इसे ग्रीवा, वक्ष, कटि; त्रिक और अनुत्रिक पाँच खण्डों में विभाजित किया गया है। ग्रीवा भाग में सात, वक्ष में बारह, कटि में पाँच, त्रिक में पाँच और अनुत्रिक में चार कशेरूक रहते हैं। वयस्क व्यक्ति के त्रिक एवं अनुत्रिक भागों में कशेरूक अलग-अलग मिलकर दो कशेरूक के रूप धारण कर लेते हैं। इस प्रकार कशेरूक दंड में अस्थियों के 24 टुकड़े हैं। एक कशेरूक दूसरे कशेरूक पर इस प्रकार स्थित होता है कि इसके भीतर एक नली बन जाती है, जिसे कशेरूक नली कहा जाता है। मेरूरज्जु (Spinal cord) इसी नली में स्थित रहता है।
गर्दन (Cervical region)
7 कशेरुक
वक्ष (Thoracic region)
12 कशेरुक
कटि (Lumber region)
5 कशेरुक
त्रिक (Sacral region)
5 कशेरुक
पुच्छ (Caudal region)
4 कशेरुक
योग
33
गर्दन (Cervical region)
7 कशेरुक
वक्ष (Thoracic region)
12 कशेरुक
कटि (Lumber region)
5 कशेरुक
त्रिक (Sacral region)
5 कशेरुक
पुच्छ (Caudal region)
4 कशेरुक
योग
33
कशेरुक दण्ड के कार्य
- यह गर्दन तथा धड़ को लचक प्रदान करते हैं जिससे मनुष्य किसी भी दिशा में अपनी गर्दन और धड़ को मोड़ने में सफल होता है।
- यह सिर को साधे रहता है।
- यह गर्दन तथा धड़ को आधार प्रदान करता है।
- यह मनुष्य को खड़े होकर चलने, खड़े होने आदि में मदद करता है।
- यह मेरुरज्जु को सुरक्षा प्रदान करता है।
वक्ष (Thorax)-
उरोस्थि (Sternum), बारह जोड़ी पसलियाँ (Ribs), वक्षीय कशेरूक (Thoracic Vertebrae) और इनकी संधियों से बने पंजर को वक्ष कहा जाता है। हृदय, फेफड़े, यकृत और श्वासनली, ग्रसनी (Oesophagus) वृहत रक्तवाहिकाएँ तथा शिराएँ इसी गुहा में संरक्षित रहती हैं। श्वास-प्रश्वास की क्रियाओं के दौरान, वक्ष की पसलियाँ ऊपर उठती है और नीचे गिरती हैं जिससे इसकी हवा धारण करने की क्षमता बढ़ती-घटती रहती है। वक्ष का आकार और रूप उम्र, लिंग (स्त्री-पुरूष) और व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। शिशु का वक्ष उम्र के अनुसार परिवर्तित होता है। महिलाओं का वक्ष पुरूष की अपेक्षा छोटा होता है।श्रोणि मेखला (Pelvic Girdle)-
दो श्रोणि अस्थियों, त्रिकास्थि (Sacrum) , अनुत्रिकास्थि (Coccyx) और इनकी संधियों से बनी गुहा को श्रोणि गुहा कहा जाता है । इसके दो भाग होते हैं- वृहत् या आभासी (Greater or false) और लघु या वास्तविक (Lesser or actual pelvis) श्रोणि। इलिओपेक्टिनियल रेखा (Iliopectinial Line) इन दोनों श्रोणि गुहाओं को पृथक करती है। पुरूषों की श्रोणि मेखला महिलाओं की श्रोणिक मेखला की तुलना में कम चौड़े होते हैं।- हमारे शरीर में बड़ी-छोटी अस्थियों को मिलाकर 206 अस्थियाँ होती हैं।
- सजीव अस्थि में मात्र 20 प्रतिशत जल तथा शेष भाग में दो-तिहाई खनिज एवं एक-तिहाई कार्बनिक पदार्थ रहता है।
- अस्थि का लचीलापन कार्बनिक और उसकी कठोरता अकार्बनिक पदार्थों पर निर्भर करती है।
- अस्थियों के भीतर स्पंजी पदार्थ की बनी अस्थि पट्टी और अस्थि नलिकाओं के बीच अस्थिमज्जा रहती है। अस्थिमज्जा दो प्रकार की होती हैं
- (1) पीत अस्थिमज्जा (Yellow bonemarrow)
- (2) लाल अस्थिमज्जा (Red Bonemarrow)
- पुरूषों की श्रोणि मेखला महिलाओं की श्रोणिक मेखला की तुलना में कम चौड़े होते हैं।
- जाँघों की अस्थि फीमर शरीर में पाई जाने वाली सबसे बड़ी अस्थि है।
- कान में पाई जाने वाली अस्थि स्टेपिस शरीर की सबसे छोटी अस्थि है।
- नवजात शिशु के शरीर में अधिक संख्या में अस्थियाँ पायी जाती हैं जो उसके बढ़ने के साथ-साथ आपस में जुड़कर 206 हो जाती हैं।