सांची स्तूप

सांची स्तूप

महत्वपूर्ण तथ्य



  • बुद्ध जब वृद्ध हो चुके थे तो उनके प्रिय शिष्य आनन्द, जो कि हमेशा बुद्ध के पास ही रहते थे उन्होंने बुद्ध से एक प्रश्न पूछा," "उन्होंने कहा हे तथागत आपकी मृत्यु के बाद आपके अवशेषों का हम क्या करेंगे?
  • बुद्ध पहले तो शान्त रहे और फिर मुस्कुराये अपने शरीर का त्याग कर दिया। और महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया।
  • बुद्ध के शरीर को पहले तो दहन किया गया और फिर जो अवशेष बचे उनको लेकर कई राजाओं में विवाद शुरू हो गया।
  • क्योकि हर राजा अवशेषों को अपने राज्य में ले जाना चाहता था और कोई भी समझौते के लिये तैयार नही था इसलिये हालात युद्ध जैसे बन गये। 
  • बुद्ध की मृत्यु कुशीनगर में ही हुई थी जो कि मल्लाओं की राजधानी थी। 
  • इस विवाद का निपटारा एक द्रोण नामक ब्राह्यण ने किया और उसने सझाया कि बुद्ध के अवशेषों को आपास में बाँट लिया जाये। और फिर कुशीनगर में ही बुद्ध के अवशेषों को मल्ल और सात अन्य राजाओं के साथ बाँट लिया जाये।   
  • इन अवशेषों को भारत के अलग-2 स्थानों में ले जाकर धरती में गाड़ दिया गया और उनके ऊपर एक विशेष प्रकार की आकृति का निर्माण करवाया गया जिसे स्तूप नाम दिया गया।
  • स्तूप संस्कृत भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ होता है। "ढेर"
  • बौद्ध धर्म में आज अगर किसी प्रतीक चिन्ह का सबसे ज्यादा महत्व है तो वह स्तूप है। 
  • स्तूप बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिये आस्था का वह प्रतीक है जिसे वह सीधे तौर पर बुद्ध के बाद स्थान देते। 
  • उनका मानना है कि आज भी बुद्ध स्तूप में निवास करते हैं और उन्हे मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।
  • इन स्तूपों में सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध साँची, सारनाथ, अमरावती और मस्त के स्तूप है।
  • कुछ समय बाद बुद्ध ने यह उत्तर दिया कि मेरे शरीर के अवशेषों पर एक संरचना का निर्माण करवाना जिसे मेरी मृत्यु के बाद एक प्रतीक के रूप में देखा जाए। 
  • लगभग 80 वर्ष की आयु में बुद्ध ने अपने शरीर का त्याग कर दिया। 
  • अशोक ने बुद्ध धर्म का प्रचार प्रसार सबसे ज्यादा कराया, उन्होंने गौतम बुद्ध के अवशेषों को सुदूर क्षेत्रं में भी पहुँचाया, जहाँ कुछ और बौद्ध स्तूप बनाये गये। 
  • ये स्तूप आज सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी पाये जाते हैं। फिर चाहे वह तक्षशिला का धर्मराजिका स्तूप हो या या श्रीलंका का जेतवानारम्या स्तूप या फिर इंडोनेशिया में स्थित बोरूबदर इन सभी स्तूपों का अपना अपना महत्व है। 
  • बौद्ध भिक्षु इन स्तूपों को बुद्ध का प्रतीक मानकर न सिर्फ इनकी परिक्रमा करते हैं बल्कि यहाँ बैठकर ध्यान भी केन्द्रित करते हैं।
  • यह स्तूप दूर से देखने पर एक अण्डाकार आकृति या अर्धगोलाकार आकति में दिखते हैं और इन्हें कई चरणों में बाँटा जाता है जिनके अलग-2 नाम होते हैं।
  • अगर मध्य प्रदेश में स्थित साँची के स्तूप की बात की जाए तो इसे भी कई भागों में बाँटा गया है।
  • मुख्य भाग जिसके नीचे अवशेषों को दबाया गया है उसे अण्ड कहते हैं यह अण्डे की आकृति का एक Solid Structure होता है।
  • अण्ड के ठीक ऊपर एक चौकोर संरचना बनाई जाती है जिसे हर्मिका कहा जाता है।
  • हर्मिका के ऊपर यष्ठी का निर्माण किया जाता है और यह मान्यता है कि यष्ठी में भगवान बुद्ध विराजमान होते हैं जिनके ऊपर छत्र का निर्माण किया जाता है। 
  • बाह्य दुनिया से अलग करने के लिये स्तूप को एक boundary wall के द्वारा बंद कर दिया जाता है जिसे
  • वेदिका कहा जाता है। जिसमें प्रवेश के लिये कुछ दरवाजे भी बनाये जाते हैं। इन दरवाजों को तोरण कहा जाता है।
  • अगर सांची के स्तूप को देखें तो इसके तोरण द्वारों में सुन्दर नक्काशी का प्रयोग भी किया गया है। सांची को UNESO ने 1989 में World Heritage Site में भी शामिल किया है। 
  • वैसे तो सांची में कई सारे स्तूप है पर उनमें सबसे प्रमुख है ग्रेट स्तूप जो कि सबसे प्राचीन माना जाता है। 
  • साँची का स्तूप जो कि पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था उसको अंग्रेजी शासनकाल में Archaeological Survey of India की मदद से फिर से सुधारा गया, और आज यह पर्यटन का एक प्रमुख केन्द्र है। 
  • बौद्ध धर्म आज दनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले धर्मों में से एक है ऐसे में इन स्तुपों की महत्वता अपने आप बढ़ जाती है। 

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