राष्ट्रपति (President)
राष्ट्रपति का निर्वाचन
- संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य,
- राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य, तथा
- केंद्रशासित प्रदेशों दिल्ली व पुडुचेरी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
- प्रत्येक विधानसभा के निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या, उस राज्य की जनसंख्या को, उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों तथा 1000 के गुणनफल से प्राप्त संख्या द्वारा भाग देने पर प्राप्त होती है।
- संसद के प्रत्येक सदन के निर्वाचित सदस्यों के मतों की संख्या, सभी राज्यों के विधायकों की मतों के मूल्य को संसद के कुल सदस्यों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होती है
- राष्ट्रपति का अप्रत्यक्ष चुनाव, संविधान में परिकल्पित सरकार की संसदीय व्यवस्था के साथ सद्भाव रखता है। इस व्यवस्था में राष्ट्रपति केवल नाममात्र का कार्यकारी होता है तथा मुख्य शक्तियां प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में निहित होती हैं। यह एक अव्यवस्था होती, यदि राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष चुनाव होता और उसे वास्तविक शक्तियां न दी जाती।
- एक विस्तृत निर्वाचक गुण को देखते हुए राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष चुनाव अत्यधिक खर्चीला तथा समय व ऊर्जा का अपव्यय होता। यह देखते हुए कि वह एक प्रतीकात्मक प्रमुख है ऐसा करना संभव नहीं था, संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने सुझाव दिया था कि राष्ट्रपति का चुनाव केवल संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा होना चाहिए। संविधान निर्माताओं ने इसे प्राथमिकता नहीं दी, क्योंकि संसद में एक दल का बहुमत होता है, जो निश्चित तौर पर उसी दल के उम्मीदवार को चुनेगा और ऐसा राष्ट्रपति भारत के सभी राज्यों को प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। वर्तमान व्यवस्था में राष्ट्रपति संघ तथा सभी राज्यों का समान प्रतिनिधित्व करता है।
क्रम. संख्या |
निर्वाचन वर्ष |
विजयी
उम्मीदवार |
प्राप्त मत (
प्रतिशत में) |
1. |
1952 |
डॉ.
राजेन्द्र प्रसाद |
507400 (83.81%) |
2. |
1957 |
डॉ.
राजेन्द्र प्रसाद |
459698 (99.35%) |
3. |
1962 |
डॉ.
एस. राधाकृष्णन |
553067 (98.24%) |
4. |
1967 |
डॉ.
जाकिर हुसैन |
471244 (56.23%) |
5. |
1969 |
वी.वी.
गिरि |
420044 (50.22%) |
6. |
1974 |
फखरुद्दीन
अली अहमद |
756587 (80.18%) |
7. |
1977 |
एन.
संजीवन रेड्डी |
-------------------- |
8. |
1982 |
ज्ञानी
जैल सिंह |
754113 (72.73%) |
9. |
1987 |
आर.
वेंकटरमण |
740148 (72.29%) |
10 |
1992 |
डॉ.
शंकर दयाल शर्मा |
675564 (65.86%) |
11. |
1997 |
के.आर.
नारायणन |
956290 (94.97%) |
12. |
2002 |
डॉ.
ए.पी.जे. अब्दुल कलाम |
922844 (89.58%) |
13. |
2007 |
श्रीमति
प्रतिभा पाटिल |
638116 (65.82%) |
14. |
2012 |
प्रणब
मुखर्जी |
713763 (68.12%) |
15. |
2017 |
श्री
राम नाथ कोविन्द |
367314 (34.35%) |
अर्हताएं, शपथ एवं शर्ते
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
- वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।
- वह संघ सरकार में अथवा किसी राज्य सरकार में अथवा किसी स्थानीय प्राधिकरण में अथवा किसी सार्वजनिक प्राधिकरण में लाभ के पद पर न हो। एक वर्तमान राष्ट्रपति अथवा उप-राष्ट्रपति किसी राज्य का राज्यपाल और संघ अथवा राज्य का मंत्री किसी लाभ के पद पर नहीं माना जाता। इस प्रकार वह राष्ट्रपति पद के लिए अर्हक उम्मीदवार होता है।
राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
- श्रद्धापूर्वक राष्ट्रपति पद का कार्यपालन करूंगा;
- संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा, और;
- भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा।
राष्ट्रपति के पद के लिए शर्तें
- वह संसद के किसी भी सदन अथवा राज्य विधायिका का सदस्य नहीं होना चाहिए। यदि कोई ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होता है तो उसे पद ग्रहण करने से पूर्व उस सदन से त्यागपत्र देना होगा।
- वह कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
- उसे बिना कोई किराया चुकाए आधिकारिक निवास (राष्ट्रपति भवन) आवंटित होगा।
- उसे संसद द्वारा निर्धारित उप-लब्धियों, भत्ते व विशेषाधिकार प्राप्त होंगे।
- उसकी उप-लब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे।
पदावधि, महाभियोग व पदरिक्तता
राष्ट्रपति पर महाभियोग
- संसद के दोनों सदनों के नामांकित सदस्य जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लिया था, इस महाभियोग में भाग ले सकते हैं।
- राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा दिल्ली व पुदुचेरी केंद्रशासित राज्य विधानसभाओं के सदस्य इस महाभियोग प्रस्ताव में भाग नहीं लेते हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लिया था।
राष्ट्रपति के पद की रिक्तता
- पांच वर्षीय कार्यकाल समाप्त होने पर,
- उसके त्यागपत्र देने पर,
- महाभियोग प्रक्रिया द्वारा उसे पद से हटाने पर,
- उसकी मृत्यु पर',
- अन्यथा, जैसे यदि वह पद ग्रहण करने के लिए अर्हक न हो अथवा निर्वाचन अवैध घोषित हो।
राष्ट्रपति की शक्तियां व कर्तव्य
- कार्यकारी शक्तियां
- विधायी शक्तियां
- वित्तीय शक्तियां
- न्यायिक शक्तियां
- कूटनीतिक शक्तियां
- सैन्य शक्तियां
- आपातकालीन शक्तियां
कार्यकारी शक्तियां
- भारत सरकार के सभी शासन संबंधी कार्य उसके नाम पर किए जाते हैं।
- वह नियम बना सकता है ताकि उसके नाम पर दिए जाने वाले आदेश और अन्य अनुदेश वैध हों।
- वह ऐसे नियम बना सकता है जिससे केंद्र सरकार सहज रूप से कार्य कर सके तथा मंत्रियों को उक्त कार्य सहजता से वितरत हो सकें।
- वह प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है, तथा वे उसकी प्रसादपर्यंत कार्य करते हैं।
- वह महान्यायवादी की नियुक्ति करता है तथा उसके वेतन आदि निर्धारित करता है। महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर कार्य करता है।
- वह भारत के महानियंत्रक व महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों, राज्य के राज्यपालों, वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों आदि की नियुक्ति करता है।
- वह केंद्र के प्रशासनिक कार्यों और विधायिका के प्रस्तावों से संबंधित जानकारी की मांग प्रधानमंत्री से कर सकता है।
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से किसी ऐसे निर्णय का प्रतिवेदन भेजने के लिये कह सकता है, जो किसी मंत्री द्वारा लिया गया हो, किंतु पूरी मंत्रिपरिषद ने इसका अनुमोदन नहीं किया हो।
- वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए एक आयोग की नियुक्ति कर सकता है।
- वह केंद्र-राज्य तथा विभिन्न राज्यों के मध्य सहयोग के लिए एक अंतर्राज्यीय परिषद की नियुक्ति कर सकता है।
- वह स्वयं द्वारा नियुक्त प्रशासकों के द्वारा केंद्रशासित राज्यों का प्रशासन सीधे संभालता है।
- वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकता है। उसे अनुसूचित क्षेत्रों तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन की शक्तियां प्राप्त हैं।
विधायी शक्तियां
- वह संसद की बैठक बुला सकता है अथवा कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है और लोकसभा को विघटित कर सकता है। वह संसद के संयुक्त अधिवेशन का आह्वान कर सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।
- वह प्रत्येक नए चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित कर सकता है।
- वह संसद में लंबित किसी विधेयक या अन्यथा किसी संबंध में संसद को संदेश भेज सकता है।
- यदि लोकसभा के अध्यक्ष व उप-ध्यक्ष दोनों के पह पद रिक्त हों तो वह लोकसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है। इसी प्रकार यदि राज्यसभा के सभापति व उप-सभापति दोनों पद रिक्त हों तो वह राज्यसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है।
- वह साहित्य, विज्ञान, कला व समाज सेवा से जुड़े अथवा जानकार व्यक्तियों में से 12 सदस्यों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करता है।
- वह लोकसभा में दो आंग्ल-भारतीय समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है।
- वह चुनाव आयोग से परामर्श कर संसद सदस्यों की निरर्हता के प्रश्न पर निर्णय करता है।
- संसद में कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश अथवा आज्ञा आवश्यक है। उदाहरणार्थ, भारत की संचित निधि से खर्च संबंधी विधेयक अथवा राज्यों की सीमा परिवर्तन या नए राज्य के निर्माण या संबंधी विधेयक।
- जब एक विधेयक संसद द्वारा पारित होकर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो वह:
- (अ) विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है; अथवा
- (ब) विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है; अथवा
- (स) विधेयक को (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो) संसद के पुनर्विचार के लिए लौटा देता है।
- हालांकि यदि संसद विधेयक को संशोधन या बिना किसी संशोधन के पुन:पारित करती है तो राष्ट्रपति की अपनी सहमति देनी ही होती है।
- राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है तब राष्ट्रपति:
- (अ) विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है; अथवा
- (ब) विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है, अथवा;
- (स) राज्यपाल को निर्देश देता है कि विधेयक (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो) को राज्य विधायिका को पुनर्विचार हेतु लौटा दे। यह ध्यान देने की बात है कि यदि राज्य विधायिका विधेयक को पुनः राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है।
- वह संसद के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी कर सकता है। यह अध्यादेश संसद की पुन:बैठक के छह हफ्तों के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित करना आवश्यक है। वह किसी अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है।
- वह महानियंत्रक व लेखा परीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग व अन्य की रिपोर्ट संसद के समक्ष रखता है।
- वह अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादर एवं नागर हवेली एवं दमन व दीव में शांति, विकास व सुशासन के लिए विनियम बना सकता है। पुडुचेरी के भी वह नियम बना सकता है परंतु केवल तब जब वहाँ की विधानसभा निलंबित हो अथवा विघटित अवस्था में हो।
वित्तीय शक्तियां
- धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- वह वार्षिक वित्तीय विवरण (केंद्रीय बजट) को संसद के समक्ष रखता है।
- अनुदान की कोई भी मांग उसकी सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है।
- वह भारत की आकस्मिक निधि से, किसी अदृश्य व्यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था कर सकता है।
- वह राज्य व केंद्र के मध्य राजस्व के बंटवारे के लिए प्रत्येक पांच वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है।
न्यायिक शक्तियां
- वह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
- वह उच्चतम न्यायालय से किसी विधि या तथ्य पर सलाह ले सकता है परंतु उच्चतम न्यायालय की यह सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है।
- वह किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किसी व्यक्ति के लिए दण्डदेश को निलंबित, माफ या परिवर्तित कर सकता है, या दण्ड में क्षमादान, प्राणदण्ड स्थगित, राहत और माफी प्रदान कर सकता है।
- (अ) उन सभी मामलों में, जिनमें सजा सैन्य न्यायालय में दी गई हो,
- (ब) उन सभी मामलों में, जिनमें केंद्रीय विधियों के विरुद्ध अपराध के लिए सजा दी गई हो, और
- (स) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड का स्वरूप प्राण दंड हो।
कूटनीतिक शक्तियां
सैन्य शक्तियां
आपातकालीन शक्तियां
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352);
- राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356 तथा 365), एवं;
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)।
राष्ट्रपति की वीटो शक्ति
- वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है; अथवा
- विधेयक पर अपनी स्वीकृति को सुरक्षित रख सकता है; अथवा
- वह विधेयक (यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है) को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है। हालांकि यदि संसद इस विधेयक को पुनः बिना किसी संशोधन के अथवा संशोधन करके, राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करे तो राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही होगी।
- (अ) संसद को जल्दबाजी और सही ढंग से विचारित न किए गए विधान बनाने से रोकना, और;
- (ब) किसी असंवैधानिक विधान को रोकने के लिए।
- अत्यांतिक वीटो, अर्थात् विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर अपनी राय सुरक्षित रखना।
- विशेषित वीटो, जो विधायिका द्वारा उच्च बहुमत द्वारा निरस्त की जा सके।
- निलंबनकारी वीटो, जो विधायिका द्वारा साधारण बहुमत द्वारा निरस्त की जा सके।
- पॉकेट वीटो, विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर कोई निर्णय नहीं करना।
अत्यांतिक वीटो
- गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयक संबंध में (अर्थात संसद का वह सदस्य जो मंत्री न हो, द्वारा प्रस्तुत विधेयक); और
- सरकारी विधेयक के संबंध में जब मंत्रिमंडल त्यागपत्र दे दे (जब विधेयक पारित हो गया हो तथा राष्ट्रपति की अनुमति मिलना शेष हो) और नया मंत्रिमंडल, राष्ट्रपति को ऐसे विधेयक पर अपनी सहमति न देने की सलाह दे।
निलंबनकारी वीटो
पॉकेट वीटो
राज्य विधायिका पर राष्ट्रपति का वीटो
- वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है, अथवा
- वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है; अथवा
- वह विधेयक (यदि धन विधेयक न हो) को राज्य विधायिका के पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।
- वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचाराधीन आरक्षित कर सकता है।
- वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है, अथवा;
- वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है, अथवा;
- (वह राज्यपाल को निर्देश दे सकता है कि वह विधेयक (यदि धन विधेयक नहीं है) को राज्य विधायिका के पास पुनर्विचार हेतु लौटा दे। यदि राज्य विधायिका किसी संशोधन के बिना अथवा संशोधन करके पुन: विधेयक को पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति इस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य नहीं है।
केंद्रीय विधायिका |
राज्य
विधायिका |
सामान्य विधेयकों के संबंध
में: |
|
1.
स्वीकृति दे सकता है। |
1.
स्वीकृति दे सकता है। |
2.
अस्वीकार कर सकता है। |
2.
अस्वीकार कर सकता है। |
3.
वापस कर सकता है। |
3.
वापस कर सकता है। |
धन विधेयकों को संबंध में: |
|
1.
स्वीकृति दे सकता है। |
1.
स्वीकृति दे सकता है। |
2.
अस्वीकार कर सकता है (परंतु वापस नहीं कर सकता) |
2.
अस्वीकार कर सकता है (परंतु वापस नहीं कर सकता) |
संविधान संशोधन विधेयकों के
संबंध में: |
|
केवल स्वीकृति दे सकता है, (न वापस कर सकता है न अस्वीकार कर सकता है)। |
संविधान संशोधन संबंधी विधेयकों को राज्य
विधायिका में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। |
राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति
- (अ) अध्यादेश केवल उन्हीं मुद्दों पर जारी किया जा सकता है जिन पर संसद कानून बना सकती है।
- (ब) अध्यादेश को वहीं संवैधानिक सीमाएं होती हैं, जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की होती हैं। अतः एक अध्यादेश किसी भी मौलिक अधिकार का लघुकरण अथवा उसको छीन नहीं सकता।
राष्ट्रपति की क्षमादान करने की शक्ति
- संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध में दिए गए दंड में;
- सैन्य न्यायालय द्वारा दिए गए दंड में, और;
- यदि दंड का स्वरूप मृत्युदंड हो।
- (अ) विधि के प्रयोग में होने वाली न्यायिक गलती को सुधारने के लिए,
- (ब) यदि राष्ट्रपति दंड का स्वरूप अधिक कड़ा समझता है तो उसका बचाव प्रदान करने के लिए।
- राष्ट्रपति सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजा को क्षमा कर सकता है परंतु राज्यपाल नहीं।
- राष्ट्रपति मृत्युदंड को क्षमा कर सकता है परंतु राज्यपाल नहीं कर सकता। राज्य विधि द्वारा मृत्युदंड की सजा को क्षमा करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है न कि राज्यपाल में। हालांकि राज्यपाल मृत्युदंड को निलंबित, दंड का स्वरूप परिवर्तित अथवा दंडावधि को कम कर सकता है। दूसरे शब्दों में, मृत्युदंड के निलंबन, दंडावधि कम करने, दंड का स्वरूप बदलने के संबंध में राज्यपाल व राष्ट्रपति की शक्तियां समान हैं।
- दया की याचना करने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति से मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।
- राष्ट्रपति प्रमाणी (साक्ष्य) का पुन: अध्ययन कर सकता है और उसका विचार न्यायालय से भिन्न हो सकता है।
- राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग केंद्रीय मंत्रिमंडल के परामर्श पर करेगा।
- राष्ट्रपति अपने आदेश के कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है।
- राष्ट्रपति न केवल दंड पर राहत दे सकता बल्कि प्रमाणिक भूल के लिए भी राहत दे सकता है।
- राष्ट्रपति को अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए. उच्चतम न्यायालय द्वारा कोई भी दिशा-निर्देश निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है।
- राष्ट्रपति की इस शक्ति पर कोई भी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती सिवाए वहां जहां राष्ट्रपति का निर्णय स्वेच्छाचारी, विवेक रहित, दुर्भावना अथवा भेदभावपूर्ण हो।
- जब क्षमादान की पूर्व याचिका राष्ट्रपति ने रद्द कर दी हो, तो दूसरी याचिका नहीं दायर की जा सकती।
राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति
- संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा (अनुच्छेद 53)।
- राष्ट्रपति को सहायता तथा सलाह के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रीपरिषद होगी वह संविधान के अनुसार अपने कार्य व कर्त्तव्य का उनकी सलाह पर निर्वहन करेगा (अनुच्छेद 74)।
- मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी (अनुच्छेद 75)। यह उप-बंध संसदीय व्यवस्था की नींव है।
- लोकसभा में किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत न होने पर अथवा जब प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाए तथा उसका कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी न हो वह प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है।
- वह मंत्रिमंडल को विघटित कर सकता है, यदि वह सदन में विश्वास मत सिद्ध न कर सके।
- वह लोकसभा को विघटित कर सकता है यदि मंत्रिमंडल ने अपना बहुमत खो दिया हो।
अनुच्छेदः |
विषयवस्तु |
52 |
भारत के राष्ट्रपति |
53 |
संघ की
कार्यपालक शक्ति |
54 |
राष्ट्रपति का
चुनाव |
55 |
राष्ट्रपति के
चुनाव का तरीका |
56 |
राष्ट्रपति का
कार्यकाल |
57 |
पुनर्चुनाव के
लिए अर्हता |
58 |
राष्ट्रपति चुने
जाने के लिए योग्यता |
59 |
राष्ट्रपति
कार्यालय की दशाएँ |
60 |
राष्ट्रपति
द्वारा शपथ ग्रहण |
61 |
राष्ट्रपति पर
महाभियोग की प्रक्रिया |
62 |
राष्ट्रपति पद
की रिक्ति की पूर्ति के लिए चुनाव कराने का समय |
65 |
उप-राष्ट्रपति
का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना |
71 |
राष्ट्रपति के
चुनाव से संबंधित मामले |
72 |
राष्ट्रपति की
क्षमादान इत्यादि की शक्ति तथा कतिपय मामलों में दंड का स्थगन, माफी अथवा कम कर देना |
74 |
मंत्रिपरिषद का
राष्ट्रपति को परामर्श एवं सहयोग प्रदान करना। |
75 |
मंत्रियों से
संबंधित अन्य प्रावधान, जैसे-नियुक्ति, कार्यकाल, वेतन
इत्यादि |
76 |
भारत के
महान्यायवादी |
77 |
भारत सरकार
द्वारा कार्यवाही का संचालन |
78 |
राष्ट्रपति को
सूचना प्रदान करने से संबंधित प्रधानमंत्री के दायित्व इत्यादि |
85 |
संसद के सत्र, सत्रावसान तथा भंग करना |
111 |
संसद द्वारा
पारित विधेयकों पर सहमति प्रदान करना |
112 |
संघीय बजट
(वार्षिक वित्तीय विवरण) |
123 |
राष्ट्रपति की
अध्यादेश जारी करने की शक्ति |
143 |
राष्ट्रपति की
सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेने की शक्ति |