भूकंप क्या है? भूकंप की उत्पत्ति, कारण, प्रभाव, सुरक्षा | bhukamp kya hai

भूकंप क्या है?

पृथ्वी के धरातल का अचानक कंपन करना भू-कंप कहलाता है। अधिकांश भूकंप सूक्ष्म कंपन होते हैं। तीव्र भूकंप सूक्ष्म कंपन से प्रारंभ होकर उन कंपनों में बदल जाते हैं और विनाश कर देते हैं। भूकंप के झटके मात्र कुछ सेकण्ड के लिए आते हैं। भूकंप एक ऐसी अप्रत्याशित आकस्मिक घटना है जो अचानक ही उत्पन्न हो जाती है।
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भूकंप के झटके वर्ष के किसी भी महीने, महीने के किसी भी दिन और दिन के किसी भी समय में अचानक आ सकते हैं। भूकंप के झटके बिना चेतावनी के आते हैं। भूकंप की आशंकाओं को ज्ञात करने के लिए वैज्ञानिकों ने अथक प्रयत्न किया परंतु अभी तक इसका पूर्वाभास एवं भविष्यवाणी संभव नहीं हो पाया है।

भूकंप विज्ञान

भूकंप विज्ञान या सिस्मोलॉजी विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत जिसमें सिस्मोग्राफ द्वारा अंकित लहरों का अध्ययन किया जाता है।
भूकंप का प्रभाव भू सतह के ऊपर होता है किंतु भूकंप की घटना भूसतह के नीचे होती है। जिस स्थान पर भूकंप की घटना प्रारंभ होती है, उस स्थान को भूकंप का उत्पत्ति केन्द्र या भूकंप मूल कहते हैं। यह भूगर्भ में स्थित वह स्थान होता है जहाँ से भूकंप से उत्पन्न लहरें प्रसारित होती हैं। इस प्रकार की लहरों को भूकंपीय लहर कहते हैं। भूकम्प मूल के ठीक ऊपर धरातल पर भूकम्प का वह केन्द्र होता है, जहाँ पर भूकम्पीय लहरों का ज्ञान सर्वप्रथम होता है। इस स्थान को भूकम्प केन्द्र अथा 'अभिकेन्द्र' कहा जाता है।
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भूकंप अभिकेन्द्र सदैव भूकंप मूल के ठीक ऊपर समकोण पर स्थित होता है तथा भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में यह भाग भूकम्प मूल से सबसे नजदीक होता है। अभिकेन्द्र पर लगे यंत्र द्वारा भूकम्पीय लहरों का अंकन किया जाता है। इस यंत्र को भूकंप लेखन यंत्र या सिस्मोग्राफ कहते हैं। इसकी सहायता से भूकम्पीय लहरों की गति तथा उनके उत्पत्ति स्थान एवं प्रभावित क्षेत्रों के विषय में जानकारी प्राप्त हो जाती है। भारत में पूना, मुम्बई, देहरादून, दिल्ली, कोलकाता आदि में भूकम्प लेखन यंत्रों की स्थापना की गई है।
जब भूकंप मूल से भूकम्प प्रारंभ होता है, तो इस केन्द्र से भूकम्पीय लहरें उठने लगती हैं, तथा सर्वप्रथम ये भूकम्प अभिकेन्द्र पर पहुँचती हैं। यहाँ पर सीस्मोग्राफ द्वारा इनका अंकन कर लिया जाता है।

भूकंपीय लहरें

भूकंपीय लहरों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-
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  • प्राथमिक अथवा प्रधान - लहरें इन्हें अंग्रेजी के (P) से निरूपित किया जाता है। ये लहरें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं, तथा इनमें अणुओं की कंपन लहरों की दिशा में आगे या पीछे होती रहती है। चूंकि इन लहरों से दबाव पड़ता है, अतः इन्हें दबाववाली लहरें कहते हैं। इन लहरों का उद्भव चट्टानों के कणों के सम्पीड़न से होता है।
  • अनुप्रस्थ लहरें - इन्हें अंग्रेजी के (S) से निरूपित किया जाता है। ये लहरें प्रकाश तरंग के समान होती हैं। इनमें अणु की गति लहर क समकोण पर होती है। इन्हें द्वितीयक अथवा गौण लहरें भी कहते हैं, क्योंकि ये प्राथमिक सीधी लहर के बाद प्रकट होती हैं। इनकी गति प्राथमिक लहर की अपेक्षा कम होती है। इस लहर को विध्वंसक लहर भी कहते हैं।
  • धरातलीय लहरें - इन्हें अंग्रेजी के (L) से निरूपित किया जाता है। ये लहरें प्राथमिक तथा द्वितीयक लहरों की तुलना में कम वेगवान होती है तथा इनका भ्रमण पथ पृथ्वी का धरातलीय भाग ही होता है। इन्हें दोनों लहरों की तुलना में अधिक लंबा पथ तय करना पड़ता है। इस कारण ये तरंगे धरातल पर सबसे विलंब से पहुँचती है।। इन तरंगों को लंबी अवधि वाली तरंगें भी कहते हैं। ये लहरें जल से होकर गुजर सकती हैं इसलिए इनका प्रभाव जल तथा थल दोनों में होता है, और ये सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं।

भूकंप उन्मुख क्षेत्रों का वर्गीकरण

भारत के विभिन्न क्षेत्रों को उनके द्वारा महसूस की जाने वाली भूकंप की तीव्रता के आधार पर रेखांकित किया गया है। इस आधार पर भारत को चार जोन (Zone) में बाँटा गया है। इनमें से प्रत्येक जोन में भूकंप की आशंका, भूकंप के झटकों की तीव्रता एवं उनसे होने वाले नुकसान की आशंका निम्न है-
  1. जोन-2 (Zone-2) : यह भूकंप क्षेत्र के सभी लोगों द्वारा महसूस किया जाता है, कुछ लोग भूकंप के झटकों को महसूस कर के बाहर खुले सुरक्षित स्थान पर पहुँच पाने में सफल हो जाते हैं। इस भूकंप के अंतर्गत भारी फर्नीचर अपने स्थान से हट सकते हैं, दीवारों के प्लास्टर टूट -टूट कर गिर सकते हैं, और चिमनियों में दरार पड़ सकती है।
  2. जोन-3 (Zone-5) : इस भूकंप में सभी घर से बाहर आ जाते हैं, इस प्रकार के भूकंप में अच्छी तकनीक के प्रयोग द्वारा बनाए गए भवनों को भी नुकसान पहुंचता है। सामान्य घरों को अधिक नुकसान, एवं बिना किसी तकनीक के प्रयोग से बनाए गए घरों को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है।
  3. जोन-4 (Zone-5) : इस जोन में भूकंप के झटकों से अच्छी तकनीक से बनाए गए भवनों को कम मात्रा में नुकसान पहुँचता है। तथा अन्य प्रकार के घरों एवं भवनों को अत्यधिक नुकसान पहुँचता है। चिमनी, खंभे, पुल, दीवार आदि गिर जाते हैं।
  4. जोन-5 (Zone-5) : इस जोन में अच्छी तकनीकी वाले भवनों को भी अत्यधिक नुकसान पहुँचता है, भूमि में दरार पड़ जाती है। अच्छे से बने भवन गिर जाते हैं एवं कमजोर ईमारतें पूरी तरह मलवे में परिवर्तित हो जाते हैं।
दिल्ली तथा मुंबई हमारे देश के दो महानगर जोन-4 में आते हैं, जो कि सबसे अधिक तीव्रता वाला भूकंप उन्मुख क्षेत्र है। इनके अतिरिक्त पूरा उत्तर-पूर्वी भारत, कच्छ, गुजरात, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर सबसे अधिक तीव्रता वाले भूकंप के प्रकोप को सहने वाले क्षेत्र हैं। पहले पठारी क्षेत्र भूकंप से सुरक्षित माना जाता था परंतु अब यह क्षेत्र भी भूकंप के चपेटे में आने लगे हैं। 1993 में लातूर में आए भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.4 एवं महाराष्ट के कोयना में 1967 में आए भूकंप की तीव्रता 6.5 मापी गई थी।

भूकंप का वर्गीकरण

भूकंप को उत्पत्ति के आधार पर सामान्य रूप में प्राकृतिक तथा मानवकृत भूकंप में वर्गीकृत किया जा सकता है-

प्राकृतिक भूकंप
जब भूकंप की उत्पत्ति प्राकृतिक कारणों से हो तब इसे प्राकृतिक भूकंप कहते हैं। प्राकृतिक भूकंप को पुनः चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
  1. ज्वालामुखी भूकंप
  2. भ्रंशमूलन भूकंप
  3. संतुलनमूलक भूकंप
  4. प्लूटानिक भूकंप

मानव जनित भूकंप या कृत्रिम भूकंप
इस प्रकार के भूकंप के लिए मानव की विभिन्न गतिविधियाँ जिम्मेदार होती है जिसके कारण वह पृथ्वी की संरचना एवं संतुलन में परिवर्तन ला देता है। उदाहरण स्वरूप, खानों में खुदाई, सुरंग खोदना, बड़े-बड़े भवनों का निर्माण, कृत्रिम जलाशय तथा बाँधों का निर्माण आदि।

भूकंप मूल की स्थिति के आधार पर भूकंप का वर्गीकरण
  • साधारण भूकंप - जब भूकंपमूल की स्थिति धरातल से 0 से 50 किमी की गहराई तक होती है, तो उसे 'साधारण भूकंप' कहा जाता है।
  • मध्यवर्ती भूकंप - जब भूकंपमूल की गहराई धरातल से 50 से 250 किमी तक होती है तो उसे मध्यवर्ती भूकंप कहा जाता है।
  • गहरे भूकंप - जब भूकंपतल की गहराई 250 से 700 किमी. होती है तब इसे गहरे भूकंप की श्रेणी में रखा जाता है।

भूकंप के कारण

हम जानते हैं कि पृथ्वी संतुलन अवस्था में होती है, जब किसी कारण से पृथ्वी की संतुलन अवस्था में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है तब भूकंप की स्थिति बनती है। अध्ययनों से पता चलता है कि भूकंप सामान्यतः कमजोर अव्यवस्थित भूपटल पर अधिक आते हैं। परंतु कोयना में 1967 को आया भूकंप तथा लातूर में 1993 को आया भूकंप इस धारणा को गलत साबित करता है।
भूकंप के कारणों को, जो धरातल पर संतुलन में अव्यवस्था के कारण उत्पन्न होते हैं, निम्न शीर्षकों में विभक्त किया जा सकता है-

प्लेट टेक्टोनिक सिद्धान्त तथा भू-भ्रंशन
पृथ्वी की भू-पर्पटी (Crust) पत्थरों की पर्त की बनी अलग-अलग मोटाई वाली जो कि समुद्र सतह के नीचे 10 किमी और महीद्वीपो में 65 किमी तक गहरी है। यह भू-पर्पटी पत्थर के किसी एक टुकड़े से नहीं बल्कि कई पर्तों से बना है जिन्हें प्लेट्स (Plates) कहा जाता है, जो कि अलग-अलग आकार के 100 किमी. से लेकर हजार किर्मी तक विस्तृत रहते हैं। प्लेट टेक्टोनिक सिद्धान्त (Theory of plate tectonic) के अनुसार ये प्लेट्स स्वयं से अधिक गतिशील मेण्टल के ऊपर फिसलते रहते हैं और किसी अन्य पद्धति (अब तक अज्ञात) द्वारा चालित होते हैं। एक अनुमान के अनुसार इन प्लेट्स के गतिशील होने के लिए ऊष्मा संचरण धाराएँ (Thermal convection currents) होती हैं। जब ये गतिशील प्लेट्स एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं तब भू-पर्पटी पर एक तनाव उत्पन्न होता है। इन तनावों को प्लेट्स के किनारों के एक-दूसरे के सापेक्ष गति की दिशा के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है-
  1. प्लेट्स का एक-दूसरे से दूर जाना (Divergent motion of plates)
  2. प्लेट्स द्वारा एक-दूसरे को धक्का देना (Convergent motion of plates)
  3. एक-दूसरे के किनारे गति करना (Transformational motion of plates)
ये सभी प्रकार की गतियाँ भूकंप से संबद्ध होती हैं।
वे क्षेत्र जहाँ प्लेट्स के किनारे फिसलकर या फटकर ऊर्जा को मुक्त करते हैं उन्हें फाल्ट्स (faults) कहा जाता है। भूकंप तरंगे जहाँ से प्रारंभ होती है उस बिंदु को केन्द्र (Focus) कहा जाता है। और केन्द्र के ठीक ऊपर धरातल का भाग एपीसेन्टर (Epicentre) कहलाता है। तन्यता का नियम (Theory of elasticity) कहता है कि भू-पर्पटी सदैव ही गतिशील प्लेट्स के के कारण तनाव की स्थिति में रहती है। कई बार यह अपनी अधिकतम सहनशक्ति तक पहुँच जाती है, उसके बाद फॉल्ट वाले हिस्से में दरार बनना प्रारंभ होता है और चट्टान अपने ही तनाव के कारण अपने प्रारंभिक अवस्था में पहुँच कर तनाव से मुक्त होते हैं। फॉल्ट पर उत्पन्न यही दरार भूकंप का कंपन उत्पन्न करता है जिसे सिसमिक (seismic) कहा जाता है। सिसमिक शब्द ग्रीक शब्द seismos से लिया गया है जिसका अर्थ होता है झटका या भूकंप। यह कंपन सभी दिशाओं में विकरित होता है।
विश्व में सात मुख्य एवं अनेकों लघु टेक्टोनिक प्लेट्स हैं। वे एक वर्ष में भू-पर्पटी के नीचे स्थित मेण्टल पर गति करते हुए कुछ इंच विस्थापित होते हैं।

ज्वालामुखी क्रिया के कारण
ज्वालामुखी तथा भूकंप एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, यह देखा गया है कि ज्वालामुखरी उद्गार के साथ भूकंप संबद्ध होता है।
इस संबंध को कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है कि जब ज्वालामुखी से तीव्र एवं वेगवती गैस एवं वाष्प धरातल के निचले भाग से बाहर प्रकट होने के लिए धक्के लगाती है तो भूपटल में अनायास ही जोरों से कम्पन पैदा हो जाती है तथा भयंकर भूकम्प अनुभव होता है। इस प्रकार के भूकंप की तीव्रता ज्वालामुखी के उद्गार की तीव्रता पर निर्भर करती है।

भूसन्तुलन में अव्यवस्था
जब कभी भी पृथ्वी की संतुलन अवस्था में परिवर्तन होता है, भूकंप आने की आशंका रहती है। जब यह अव्यवस्था अचानक होती है तब भूकंप का आना और अधिक आशंकित होता है।

जलीय भार के कारण
धरातलीय भाग में अत्यधिक जल का जमाव हो जाता है तब उससे उत्पन्न अत्यधिक भार तथा दबाव के कारण जलभण्डार की तली के नीचे स्थित चट्टानों में हेर-फेर होने लगता है। यदि यह हेर-फेर शीघ्रता से हो, तो भूकंप की स्थिति बनती है।

भारत में 1991 से अब तक आए प्रमुख भूकंप

तिथि

भूकंप क्षेत्र

प्रभाव

1991

उत्तरकाशी (उत्तरप्रदेश)

हजारों मकानों को अपार क्षति

1993

लातूर (महाराष्ट्र)

30,000 से अधिक लोग मृत तथा अपार संपत्ति की हानि

1997

जबलपुर (मध्यप्रदेश)

50 व्यक्ति मृत

1999

चमोली (उत्तरांचल)

अपार जन-धन की हानि

2001

भुज (गुजरात)

लगभग 1,00 000 लोग मृत तथा अपार जन-धन की हानि


विश्व में कुछ महत्वपूर्ण भूकंप की घटनाएँ

Date

Location

Deaths

January 23, 1556

China, Shansi

830,000

October 11, 1737

India, Calcutta

300,000

December 26, 2004

Sumatra

280,000

July 27, 1976

China, Tangshan

255,000

August 9, 1138

Syria, Aleppo

230,000

May 22, 1927

China, near Xining

200,000

December 16, 1920

China, Gansu

200,000

March 23, 893+

Iran, Ardabil

150,000

September 1, 1923

Japan, Kwanto

143,000

September, 1290

China, Chihli

100,000

November, 1667

Caucasia, Shemakha

80,000

November 18, 1727

Iran, Tabriz

77,000

December 28, 1908

Italy, Messina

70,000

November 1, 1755

Portugal, Lisbon

70,000

December 25, 1932

China, Gansu

70,000

May 31, 1970

Peru

66,000

January 11, 1693

Italy, Sicily

60,000

May 30, 1935

Pakistan, Quetta

30,000

February 4, 1783

Italy, Calabria

50,000

June 20, 1990

Iran

50,000


भूकंप के प्रभाव

भूकंप एक विनाशकारी प्रक्रिया है, भूकंप के निम्न प्रभाव होते हैं-
  • अपार संपत्ति की हानि (Great Loss of Property) भूकंप के झटकों के प्रभाव से छोटे-छोटे घरों से लेकर ऊँची ईमारतें, स्काई वॉक, फलाई ओवर, पुल विभिन्न कार्यालयों की ईमारतें ढह कर मलवे का रूप धारण कर लेती है, जिसके कारण अपार संपत्ति की हानि होती है। 1967 को कोयना में आए एक भूकंप ने बाँध को अत्यधिक क्षति पहुँचाई थी।
  • अपार जन हानि (Great Loss of Life) भूकंप इतनी आकस्मिक घटना है कि लोगों को इसे समझ कर प्रतिक्रिया करने का भी मौका नहीं मिलते और वर्ष भर में विश्व में लाखों लोग भूकंप के कारण ढहे ईमारतों के मलवे के नीचे दब कर मर जाते है, कितने ही बच्चे अनाथ हो जाते हैं और कितने ही माता-पिता अपने बच्चों को खो देते हैं, लोग बेघर हो जाते है, और ऐसी अनेक स्थितियाँ एक भूकंप से जुड़ जाती हैं।
  • नदी के बहाव में परिवर्तन (Changes in river course) कई बार भूकंप के प्रभाव से नदी का रास्ता बाधित हो जाता है, और नदी दूसरे पथ पर चल पड़ती है, जो कि बाढ़ का कारण बन जाता है।
  • सुनामी (Tsunami) सुनामी समुद्र में आये भूकंप के कारण उठती है। सूनामी एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ होता है ऊँची समुद्री तरंग। सुनामी के आने पर समुद्र के किनारे डूब जाते है, बड़े-बड़े जहाज जल में समा जाते हैं। 26 दिसंबर 2004 को सुमात्रा में उठे सुनामी ने करोड़ों की संपत्ति का सर्वनाश कर दिया था एवं भारत तथा श्रीलंका के लाखों लोगों ने इस सुनामी में अपनी जान गंवाई थी।
  • कीचड़ का झरने का निर्माण (Formation of mud fountains) कई बार भूकंप के कारण जमीन के अंदर से गर्म पानी एवं कीचड़ बने हुए दरार से धरातल पर आकर जमा हो जाता है और कीचड़ का झरना बन जाता है। 1934 में बिहार में आए भूकंप में इसी प्रकार कीचड़ के एक झरने में खेतों में काम कर रहे किसान घुटने तक धंस गये थे और उनकी फसल बर्बाद हो गई थी।
  • भू-स्खलन की आशंका (Chances of Landslide) पहाड़ी क्षेत्रों में आया भूकंप भू-स्खलन को भी अंजाम दे सकता है।
  • धरातल पर दरारों का निर्माण (Fissures on the earth surface) तीव्र भूकंप के कारण धरातल पर दरारों का निर्माण हो जाता है। जब ये दरारें सड़कों, रेल की पटरियों, खेतों पर बनती हैं तो इनकी उपयोगिता को बाधित करती हैं।

सुनामी (Tsunami)

'सुनामी' एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ होता है ऊँची समुद्री तरंगे (High water currents) अंत:सागरीय भूकंपों द्वारा उत्पन्न लहरों को सुनामी की संज्ञा दी जाती है। यह तरंगों की एक श्रृंखला होती है जिनकी तरंगदैर्ध्य एवं कालांतर बड़ी होती है। तरंगों के बीच का समय कुछ मिनटों से एक घंटे तक हो सकता है। सुनामी को सामान्यतः समुद्री लहरों से संबद्ध किया जाता है, परंतु उनका समुद्र में सदैव उठने वाली तरंगों से कोई संबंध नहीं होता है। सागर तली में अचानक परिवर्तन तथा अव्यवस्था के कारण सागरीय जल में विस्थापन हो जाने से सुनामी की लहरों की उत्पत्ति होती है। सुनामी दिन के किसी भी समय में आ सकती है।
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सुनामी समुद्री के तल पर होने वाले किसी भी बड़े , त्वरित विस्थापन के कारण उत्पन्न हो सकती है। भूकंप सामान्यतः समुद्री तल के उर्ध्वातर कंपन द्वारा सुनामी की उत्पत्ति के कारण होते हैं। तली में भ्रशन. अवपातन, अगाध जल में भूस्खलन, एवलांश आदि किसी भी कारण से सागरीय तल में परिवर्तन हो सकता है। समुद्र के बीच स्थित ज्वालामखी उदगार भी सनामी को परिणाम दे सकते हैं। यदि समुद्र के तल का कंपन क्षैतिज हो तब सनामी नहीं उठता है। 6.5 तीव्रता के भूकंप झटके सुनामी की उत्पत्ति के लिए अत्यधिक जिम्मेदार होते हैं। सुनामी समुद्री तल में भू-स्खलन के द्वारा भी उत्पन्न होते हैं। सुनामी के साथ जल की गति समस्त गहराई तक होता है इसलिए सुनामी अत्यंत प्रबल तथा विनाशकारी होते हैं।
सामान्यतः विश्व के विभिन्न हिस्सों को मिलाकर वर्ष में दो बार सुनामी आती है, जो आस-पास के क्षेत्र को प्रभावित करता है। सामान्यतः प्रत्येक 15 वर्षों में प्रसांत महासागर में उठने वाला विध्वसकारी सुनामी उठती है। 26 दिसंबर 2004 को भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में आई सुनामी अभी तक की ज्ञात सबसे प्रभावी सुनामी थी। सुनामी की तीव्रता एवं गति उस जल की गहराई पर निर्भर करता है, जिससे होकर यह गुजरती है। (सुनामी का वेग पानी के गहराई और पृथ्वी के गुरूत्वीय त्वरण के गुणनफल के वर्गपूल के बराबर होता है) सुनामी 4000 मी. की गहराई में औसतन 700 किमी. प्रति घंटे के वेग से आगे बढ़ता है। 10 मीटर की गहराई के साथ वेग में 36 किमी प्रति घंटा की कमी आती है। सुमात्रा में उत्पन्न सुनामी को भारत के तमिलनाडु के तट पर पहुँचने में 2 घंटे का समय लगा था।
जब लहरें छिछले जल वाले भाग, संकरे सागरीय द्वार या संकरी खाड़ी में पहुँचती हैं तो इकी उँचाई अचानक अधिक हो जाती है। समुद्र के किनारों पर भी सुनामी की गति इतनी तेज होती है कि व्यक्ति के लिए दौड़ कर इससे बच पाना मुश्किल होता है। सुनामी की उर्ध्वाधर ऊँचाई कुछ सेमी से 30 मीटर की ऊँचाई तक हो सकता है। अधिकांश सुनामी की ऊंचाई 3 मीटर से कम होती है। गहरे जल में सुनामी तरंगों की ऊंचाई मुश्किल से 1 मीटर तक होती है, और उसके तरंगों के बीच का कालखण्ड लंबा होता है, जिससे सामान्य तौर गहरे समुद्र में तैर रहे जहाज सुनामी को नहीं देख पाते। सुनामी जैसे ही तटवर्ती क्षेत्रों में पहुँचता है (जल की गहराई कम) इसकी ऊँचाई बढ़ती जाती है और यह 10 गुना तक बढ़ जाती है। तट के आकार पर भी सुनामी के तरंगों की ऊंचाई निर्भर करती है, एक ही तट के दो भिन्न बिन्दुओं की आकृति के अनुसार उनमें सुनामी के तरंगों की ऊंचाई भिन्न-भिन्न हो सकती है। एक बड़ा सुनामी तटवर्ती क्षेत्रों में भूमि की ओर लगभग डेढ़ किमी तक प्रवेश कर सकता है। सुनामी बहुत शक्तिशाली होता है, और यह बड़े जहाजों, कई टन किलो के चट्टानों को तट पर पहुँचते समय सुनामी प्रायः तेज गति से उठते और गिरते समुद्री लहर के समान दिखाई देता है। कभी-कभी पानी की दीवार या टूटते हुए तरंगों की श्रृंखला के समान भी दिखाई देता है। कई बाद सुनामी किनारों के जल को समुद्र की ओर ढकेल देता है जिससे समुद्र का तल कुछ दूरी तक दिखाई देने लगता है और उसके ठीक बाद इसकी तरंग का शिखर तेजी से आता है। सुनामी उन नदियों एवं धाराओं तक भी पहुँच जाती है जो समुद्र में आकर मिलते हैं।

सुनामी और पवन जनित तरंगों में अंतर (Difference between Tsunami and Wind generated Waves)
पवन जनित तरंगों के बीच का अंतराल सामान्यत: 5 से 20 सेकण्ड का होता है जबकि सनामी में तरंग अंतराल 5 मिनट से लेकर एक घंटे तक होता है। पवन जनित तरंगें किनारों पर आकर अपनी ऊर्जा का मंस कर कमजोर हो जाते हैं पर सुनामी अधिक उग्र हो जाता है।

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