आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक विकास
आर्थिक संवृद्धि
- आर्थिक संवृद्धि, राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की प्रक्रिया का सम्मिलित संकेत करती है। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, आर्थिक संवृद्धि का एक बेहतर माप है, क्योंकि यह आम जनता के रहन-सहन के स्तर में वृद्धि की ओर संकेत करती है।
- आर्थिक संवृद्धि की माप राष्ट्रीय आय में वास्तविक वृद्धि के रूप में की जाती है, न केवल मौद्रिक आय अथवा सांकेतिक राष्ट्रीय आय में वृद्धि के रूप में। दूसरे शब्दों में, वृद्धि वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि के रूप में होनी चाहिए। केवल विद्यमान वस्तु की बाजार कीमत में वृद्धि के कारण नहीं।
- राष्ट्रीय आय में वृद्धि दीर्घ काल के लिए होनी चाहिए। राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दीर्घ कालीन अवधि तक रहनी चाहिए। आय में अल्प कालीन, मौसमी या अस्थायी वृद्धि को आर्थिक संवृद्धि से भ्रमित नहीं करना चाहिए।
- आय में वृद्धि, उत्पादन क्षमता में वृद्धि पर आधारित होनी चाहिए : अर्थव्यवस्था की आय में वृद्धि तभी निरंतर हो सकती है, जबकि यह वृद्धि उत्पादन क्षमता में स्थायी वृद्धि जैसे आधुनिकीकरण अथवा उत्पादन में नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग के कारण, आधारिक संरचना के शक्तिशाली होने जैसे परिवहन नैटवर्क, बिजली के उत्पादन में वृद्धि आदि के कारण हो।
- (i) प्राकृतिक संसाधन : किसी अर्थव्यवस्था के विकास को प्रभावित करने वाला मुख्य कारक प्राकृतिक संसाधन है। प्राकृतिक संसाधनों में भूमि, क्षेत्र और मिट्टी की गुणवत्ता, वन संपत्ति, अच्छी नदी पद्धति, खनिज व तेल संसाधन और अच्छी जलवायु आदि सम्मिलित हैं। आर्थिक संवृद्धि के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अधिक मात्रा में होना अनिवार्य है। प्राकृतिक संसाधनों में कमी वाला देश, तीव्र गति से अधिक विकास करने की स्थिति में नहीं हो सकता, लेकिन अच्छे प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता आर्थिक संवृद्धि के लिए आवश्यक शर्ते हैं, किंतु यह पर्याप्त नहीं है। कम विकसित देशों में प्राकृतिक संसाधन अप्रयुक्त, अल्पप्रयुक्त अथवा गलत प्रयुक्त होते हैं। उनके पिछड़ेपन के कारणों में से एक है। दूसरी ओर, देश जापान, सिंगापुर आदि में पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, किंतु वे संसार के विकसित देशों में से हैं। इन देशों ने उपलब्ध संसाधनों को सुरक्षित रखने में, संसाधनों के प्रबंध का सर्वोत्तम प्रयास तथा संसाधनों की बरबादी को न्यूनतम करने में वचनबद्धता दिखाई है।
- (ii) पूंजी निर्माण : किसी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए पूंजी निर्माण एक दूसरा महत्वपूर्ण कारक है। पूंजी निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसी समुदाय की बचतों को पंजीगत वस्तुओं, जैसे-प्लांट, उपस्कर और मशीनों के निवेश के लिए प्रयोग किया जाता है, जिससे देश की उत्पादन क्षमता तथा श्रमिकों की कुशलता में वृद्धि होती है तथा देश में वस्तुओं और सेवाओं के अधिक प्रवाह को सुनिश्चित किया जाता है। पूंजी निर्माण की प्रक्रिया यह संकेत देती है कि समुदाय अपनी समस्त आय वर्तमान उपभोग की वस्तुओं पर नहीं खर्च करता, किंतु इसका एक भाग बचा लेता है और इसका प्रयोग पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन करने अथवा उन्हें प्राप्त करने में करता है, जो राष्ट्र की उत्पादन क्षमता में बहुत अधिक वृद्धि लाता है।
- (iii) तकनीकी उन्नति : आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करने के लिए तकनीकी उन्नति बहुत महत्वपूर्ण कारक है। तकनीकी उन्नति, पुरानी विधियों में सुधार तथा उत्पादन की नई और बेहतर विधियों के अनुसंधान का संकेत देती है। कभी-कभी तकनीकी उन्नति का परिणाम उत्पादकता में वृद्धि होता है। दूसरे शब्दों में, तकनीकी उन्नति, प्राकृतिक संसाधनों तथा अन्य संसाधनों का उत्पादन में वृद्धि करने के लिए अधिक प्रभावशाली तथा अधिक लाभप्रद प्रयोग करने की क्षमता को बढ़ाती है। अच्छी तकनीक के प्रयोग से दिए गए संसाधनों की सहायता से अधिक उत्पादन करना अथवा संसाधनों की कम मात्रा से उतना ही उत्पादन करना संभव हो जाता है। तकनीकी उन्नति प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण प्रयोग करने की योग्यता में सुधार लाती है। उदाहरण के लिए, शक्ति के साधनों द्वारा चलाए जाने वाले कृषि के उपस्करों के प्रयोग से कृषि के उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जापान तथा अन्य उन्नतिशील औद्योगिक राष्ट्र सबने उन्नतिशील तकनीकी के प्रयोग से औद्योगिक शक्ति प्राप्त कर ली है। वास्तव में, उत्पादन की नई तकनीकी अपनाने से आर्थिक उन्नति में सुविधा हो जाती है।
- (iv) उद्यमशीलता : उद्यमशीलता निवेश के नए अवसरों का पता लगाने की योग्यता की ओर संकेत है। इससे जोखिम उठाने तथा नई और बढ़ती हुई व्यावसायिक इकाइयों में निवेश करने की इच्छा में वृद्धि होती है। विश्व में बहुत से अल्प विकसित देश, पूंजी की कमी, आधारिक संरचना, अकुशल श्रमिक, प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण नहीं, किंतु उद्यमशीलता की बहुत अधिक कमी के कारण निर्धन हैं, इसलिए अल्पविकसित देशों में शिक्षा, नए अनुसंधान तथा वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास को प्रोत्साहन देकर उद्यमशीलता को बढ़ावा देने का वातावरण सृजित करना अनिवार्य है।
- (v) मानव संसाधन विकास : आर्थिक संवृद्धि के स्तर के निर्धारण के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली जनसंख्या का होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए, मानव पूंजी में, शैक्षिक, चिकित्सा संबंधी और ऐसी अन्य सामाजिक योजनाओं के रूप में निवेश बहुत अधिक वांछनीय है। मानव संसाधन विकास लोगों के ज्ञान, कौशल तथा उनकी उत्पादकता बढ़ाने की क्षमता में वृद्धि लाता है।
- (vi) जनसंख्या वृद्धि : श्रम की पूर्ति जनसंख्या वृद्धि से होती है और इससे वस्तुओं और सेवाओं के विस्तृत बाजार उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार, अधिक श्रम अधिक उत्पादन करता है, जिसे विस्तृत बाजार आत्मसात करता है। इस प्रक्रिया में, उत्पादन, आय तथा रोजगार बढ़ते जाते हैं और आर्थिक संवृद्धि में सुधार होता है। किंतु जनसंख्या में वृद्धि सामान्य होनी चाहिए। एक दौड़ती हुई जनसंख्या आर्थिक उन्नति में रुकावट लाती है। जनसंख्या में वृद्धि केवल एक अल्प जनसंख्या वाले देश में वांछनीय है, किंतु भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश में यह वांछनीय नहीं है।
- (vii) सामाजिक लागतें : आर्थिक संवृद्धि का एक अन्य निर्धारक सामाजिक लागतों का प्रावधान है। जैसे-स्कूल, कॉलेज, तकनीकी संस्थाएं, चिकित्सा महाविद्यालय, अस्पताल तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं हैं। ऐसी सुविधाएं कार्यशील जनसंख्या को स्वस्थ, कुशल तथा उत्तरदायी बनाती हैं। ऐसे लोग अपने देश को आर्थिक रूप से आगे बढ़ा सकते हैं।
- राजनीतिक कारक : आधुनिक आर्थिक संवृद्धि में राजनीतिक स्थिरता तथा मजबूत प्रशासन अनिवार्य तथा सहायक हैं। एक स्थिर, शक्तिशाली तथा कुशल सरकार, ईमानदार प्रशासन, पारदर्शक नीतियां और उनको कुशलतापूर्वक लागू करने से निवेशकों के विश्वास में विकास होता है तथा इससे घरेलू तथा विदेशी पूंजी आकर्षित होती है, जिससे आर्थिक विकास तीव्र गति से होता है।
- सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारक : सामाजिक कारकों में सामाजिक दृष्टिकोण, सामाजिक मूल्य तथा सामाजिक संस्थाएं सम्मिलित हैं, जो शिक्षा के विस्तार और एक समाज से दूसरे समाज में रूपांतरण से परिवर्तित होते हैं। आधुनिक विचारधारा, मूल्य तथा दृष्टिकोण से नई खोज तथा नवोत्पाद लाते हैं तथा परिणामस्वरूप नए उद्यमियों में वृद्धि होती है। पुराने सामाजिक रीति-रिवाज, व्यावसायिक और भौगोलिक गतिशीलता को सीमित करते हैं और इस प्रकार आर्थिक विकास में बाधा लाते हैं।
- शिक्षा : यह अब भली प्रकार स्वीकार कर लिया गया है कि शिक्षा विकास का एक मुख्य साधन है। उन देशों में अधिक उन्नति प्राप्त कर ली गई, जहां शिक्षा का अधिक विस्तार है। शिक्षा की मानव संसाधन विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इससे श्रम की कुशलता में सुधार होता है और मानसिक संकुचित विचार नए विचारों और ज्ञान में सुधार लाते हैं, जिनसे आर्थिक विकास में सहायता मिलती है।
- भौतिक सुधार की इच्छा : भौतिक उन्नति की इच्छा, आर्थिक विकास के लिए एक आवश्यक पहली शर्त है। समाज, जो स्व-संतुष्टि, स्व-स्वीकार, भाग्य में विश्वास आदि रखते हैं, जोखिम तथा साहस को सीमित करते हैं तथा देश को पिछड़ा हुआ रखते हैं।
आर्थिक विकास
आर्थिक संवृद्धि |
आर्थिक विकास |
|
अर्थ |
आर्थिक संवृद्धि से
अभिप्राय देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वास्तविक वृद्धि से है। |
आर्थिक विकास में,
आय बचत निवेश में परिवर्तनों के
साथ-साथ एक देश के सामाजिक और आर्थिक ढांचे में प्रगतिशील परिवर्तन भी शामिल है।
(संस्थागत और प्रौद्योगिकी परिवर्तन) |
करक |
आर्थिक संवृद्धि का
संबंध सकल घरेलू उत्पाद के किसी घटक, जैसे-उपभोग, सरकारी व्यय, निवेश, शुद्ध निर्यात में उत्तरोत्तर वृद्धि से है। |
विकास का संबंध,
मानव पूंजी में वृद्धि,
असमानता के अंकों में कमी,
और संरचनात्मक परिवर्तनों से है
जिनसे जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। |
माप |
आर्थिक संवृद्धि की
मात्रात्मक कारकों, जैसे-वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद अथवा प्रति व्यक्ति आय
में वृद्धि द्वारा मापा जाता है |
आर्थिक विकास को
मापने के लिए गुणात्मक माप जैसे मानव सूचकांक, साक्षरता दर आदि का प्रयोग किया जाता है |
प्रभाव |
आर्थिक संवृद्धि
अर्थव्यवस्था में मात्रात्मक परिवर्तन लाती है |
आर्थिक विकास
अर्थव्यवस्था मात्रात्मक परिवर्तनों के साथ-साथ गुणात्मक परिवर्तन भी लाता है |
प्रसंग |
आर्थिक संवृद्धि,
राष्ट्रीय आय अथवा प्रति
व्यक्ति आय में वृद्धि पर प्रतिबिंब डालती है। |
आर्थिक विकास किसी
अर्थव्यवस्था में जीवन की गुणवत्ता की उन्नति को प्रतिबिंबित करता है। |