राजभाषा और राष्ट्रभाषा में क्या अंतर है? | rajbhasha aur rashtrabhasha mein antar

राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर

  • राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है, जबकि राष्ट्रभाषा स्वाभाविक रूप से सृजित शब्द इस प्रकार राजभाषा प्रशासन की भाषा है तथा राष्ट्रभाषा जनता की भाषा।
  • समस्त राष्ट्रीय तत्वों की अभिव्यक्ति राष्ट्रभाषा में होती है, जबकि केवल प्रशासनिक अभिव्यक्ति राजभाषा में होती है।
  • राजभाषा की शब्दावली सीमित है, जबकि राष्ट्रभाषा की शब्दावली विस्तृत।
  • राजभाषा, नियमों से बंधी होती है, जबकि राष्ट्रभाषा स्वतंत्र या मुक्त प्रकृति की होती है।
  • राजभाषा में शब्दों का प्रवेश, निर्माण अथवा अनुकूलन (विशेषकर तकनीकी प्रकृति के शब्दों का) विद्वानों एवं विशेषज्ञों की समिति की राय से किया जाता है, जबकि राष्ट्रभाषा में शब्द समाज से आते हैं तथा प्रचलन के आधार पर रूढ़ होकर मान्यता प्राप्त करते हैं। इसके निर्माण में सभी का हाथ होता है।
  • राजभाषा, हिंदी भाषा का प्रयोजन मूलक रूप है इसलिए तकनीकी सृजन है। जबकि राष्ट्रभाषा, हिंदी भाषा का स्वाभाविक तथा पारंपरिक रूप है।
  • राजभाषा के प्रयोग का क्षेत्र सीमित होता है, जबकि राष्ट्रभाषा का क्षेत्र इतना व्यापक कि उसका व्यवहार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी होता है।
  • राजभाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग उत्तरोत्तर अंग्रेजी की जगह पर हो रहा है जबकि राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग स्वाभाविक स्वरूप से देश-विदेश सर्वत्र हो रहा है।

राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर
राष्ट्रभाषा राजभाषा
राष्ट्रभाषा सरकारी व्यवस्था और प्रयास से नहीं, बल्कि आम जनता के प्रयोग से स्वत: विकसित होती है। राजभाषा मुख्यत: सरकारी व्यवस्था और प्रयास पर निर्भर करती है । यह आम जनता के प्रयोग द्वारा स्वत: विकसित नहीं होती।
राष्ट्रभाषा का उपयोग आम जनता करती है। राजभाषा का उपयोग मुख्यत: सरकारी कर्मचारी करते हैं।
आम जनता अपने सामान्य कामकाज के लिए राष्ट्रभाषा का उपयोग करती है। अत: इसमें बोलचाल के सामान्य प्रचलित शब्दों का उपयोग होता है। सरकारी कर्मचारी शासकीय कार्य के लिए इसका उपयोग करते हैं। अत: इसमें शासकीय कार्य से संबंधित विशेष शब्दों का उपयोग अधिक होता है
आम जनता से संबंधित होने के कारण इसमें सरलता होती है। सरकारी कामकाज से संबंधित होने के कारण इसमें विशिष्टता होती है।
राष्ट्रभाषा में बोलचाल के ऐसे शब्दों का भी उपयोग होता है जिनका एक से अधिक अर्थ हो सकता है। राजभाषा में अर्थ की स्पष्टता बनाए रखना आवश्यक होता है। अत: शब्दों का सामान्यत: एक ही अर्थ होता है।
राष्ट्रभाषा के माध्यम से आमतौर पर सामान्य कार्य ही सम्पन्न किए जाते हैं। राजभाषा के माध्यम से सामान्यत: विशिष्ट कार्य संपन्न किए जाते हैं, जिनमें तकनीकी और कानूनी कार्य भी शामिल हैं।
राष्ट्रभाषा में आमतौर पर शब्दों की एकरूपता बनाए रखना आवश्यक नहीं होता है। इसमें स्थानीय शब्दों के उपयोग की पूरी छूट होती है। अत: राष्ट्रभाषा की कई शैलियाँ विकसित हो जाती हैं, जैसे- बम्बईया हिंदी, कलकतिया हिंदी आदि। राजभाषा में शब्दों की, विशेषकर तकनीकी, प्रशासनिक एवं कानूनी शब्दावली में, एकरूपता आवश्यक होती है। इसमें स्थानीय शब्दों के उपयोग की छूट नहीं होती है। अत: हर स्थान के व्यक्ति को शब्दों की एकरूपता का निर्वहन करना आवश्यक होता है।
राष्ट्रभाषा के अधिकांश शब्दों का अर्थ संदर्भ से ही स्पष्ट होता है, इसलिए राष्ट्रभाषा सरल प्रतीत होती है। राजभाषा के अधिकांश शब्द पारिभाषिक होते हैं इसका अर्थ केवल संदर्भ से स्पष्ट नहीं होता। पारिभाषिक शब्दों के अर्थ सीखने ही पड़ते हैं, जिसके बिना वे कठिन प्रतीत होते हैं
राष्ट्रभाषा के उपयोग का क्षेत्र व्यापक है, क्योंकि वह देश की बहसंख्यक जनता के व्यवहार एवं सम्पर्क की ऐसी भाषा है जो उन्हें राष्ट्रीयता का अहसास कराती है। राजभाषा के उपयोग का क्षेत्र मुख्यत: सरकार के कार्यों तक सीमित है।
राष्ट्रभाषा का सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व होता है। राजभाषा का सरकारी कामकाज की दृष्टि से विशेष महत्व होता है।

राजभाषा का अर्थ

राजभाषा का सीधा-सादा अर्थ है - राजकाज अर्थात् शासन-प्रशासन अथवा सरकारी कामकाज की भाषा। संविधान सभा की स्वीकृति से 14 सितम्बर, 1949 को हिंदी राजभाषा बनी। इस प्रकार से राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है, जिसकी परिभाषा इस प्रकार से दी जा सकती है-'सामान्य शासन-प्रशासन, न्याय-प्रक्रिया, संसद-विधान मंडल एवं सरकारी कार्यालयों में प्रयोग हेतु संविधान द्वारा स्वीकृत भाषा एवं लिपि तथा भारतीय अंकों का रूप ही राजभाषा है।' राजभाषा के ही समांतर राष्ट्रभाषा शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। राजभाषा के स्वरूप को अच्छी तरह समझने के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि राष्ट्रभाषा क्या है?

राजभाषा विभाग की अवधारणा तथा उसके कार्य क्षेत्र
राजभाषा संबंधी सांविधिक और कानूनी उपबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने तथा संघ के सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्रालय के एक स्वतंत्र विभाग के रूप में जून, 1975 में राजभाषा विभाग की स्थापना की गई थी। उसी समय से यह विभाग संघ के सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रगामी प्रयोग बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। भारत सरकार (कार्य आबंटन) नियम, 1961 के अनुसार, राजभाषा विभाग को निम्न कार्य सौंपे गए हैं।
  • संविधान में राजभाषा से संबंधित उपबंधों तथा राजभाषा अधिनियम, 1963 के उपबंधों का कार्यान्वयन, उन उपबंधों को छोड़कर जिनका कार्यान्वयन किसी अन्य विभाग को सौंपा गया है।
  • किसी राज्य के उच्च न्यायालय की कार्यवाही में अंग्रेजी भाषा से भिन्न किसी अन्य भाषा का सीमित प्रयोग प्राधिकृत करने के लिए राष्ट्रपति का पूर्व अनुमोदन।
  • केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के लिए हिंदी शिक्षण योजना और पत्र-पत्रिकाओं और उससे संबंधित अन्य साहित्य के प्रकाशन सहित संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रगामी प्रयोग से संबंधित सभी मामलों के लिए केन्द्रीय उत्तरदायित्व।
  • संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रगामी प्रयोग से संबंधित सभी मामलों में समन्वय, जिनमें प्रशासनिक शब्दावली, पाठ्य विवरण, पाठ्य पुस्तकें, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम और उनके लिए अपेक्षित उपस्कर (मानकीकृत लिपि सहित) शामिल हैं।
  • केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा का गठन और संवर्ग प्रबंधन।
  • केन्द्रीय हिंदी समिति से संबंधित मामले।
  • विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा स्थापित हिंदी सलाहकार समितियों से संबंधित कार्य का समन्वय।
  • केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो से संबंधित मामले।
  • हिंदी शिक्षण योजना और केन्द्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान से संबंधित मामले।
  • क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों से संबंधित मामले।
  • संसदीय राजभाषा समिति से संबंधित मामले।
राजभाषा विभाग के दायित्व और महत्त्व को देखते हुए संसदीय राजभाषा समिति ने राष्ट्रपति को प्रस्तुत अपने प्रतिवेदन के दूसरे, तीसरे और चौथे खंड में कहा है कि देश की एकता और अखंडता के परिप्रेक्ष्य में राजभाषा विभाग की भूमिका महत्त्वपूर्ण है और इसे सरकार द्वारा और अधिक सुदृढ़ बनाया जाए तथा इसे एक मंत्रालय का दर्जा दिया जाए।

राजभाषा की विशेषताएं
  • भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा माना गया है।
  • राजभाषा सरकारी कामकाज की भाषा होती है।
  • कार्य के निर्णय, शिक्षा का माध्यम, रेडियो और दूरदर्शन आदि में राज्य भाषा का ही प्रयोग होता है।
  • क्षेत्रीय भाषा ही राजभाषा होती है।

राष्ट्रभाषा का अर्थ

एक राष्ट्र में समस्त राष्ट्रीय तत्वों को व्यक्त करने वाली भाषा जो राष्ट्र में भावनात्मक एकता कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हो राष्ट्रभाषा है। भारत एक ऐसा बहुभाषा-भाषी राष्ट्र है, जहां समृद्ध संस्कृति की विशाल परंपरा है, जो यहां की विभिन्न भाषाओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। इस प्रकार से इस राष्ट्र में अनेक भाषाएं व्यवहृत होती हैं। इनमें से प्रमुख 22 भाषाओं को राष्ट्रीय स्वीकृति मिली है तथा उन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। इनमें हिंदी ही एक मात्र ऐसी भाषा है, जो लिखने, पढ़ने, बोलने तथा समझने में अपेक्षाकृत सहज है तथा सभी भाषाओं के बीच संपर्क सूत्र का काम करती है। प्रत्येक भारतवासी इसे समझता और थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ बोलता है।
इस प्रकार से हिंदी का प्रयोग अखिल भारतीय स्तर पर सर्वस्वीकृत माध्यम के रूप में हो रहा है। हिंदी का यह राष्ट्रभाषा रूप है। राजभाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग संविधान के अनुसार नियम बनाकर हो रहा है, इसलिए सैद्धांतिक स्तर पर राजभाषा और राष्ट्रभाषा एक ही चीज नहीं है. उनमें पर्याप्त अंतर है। वर्तमान समय में हिंदी राष्ट्रभाषा के साथ-साथ संघ तथा 11 राज्यों की राजभाषा है।

राष्ट्रभाषा की विशेषताएं
  • राष्ट्रभाषा की संस्कृति, इतिहास और साहित्य की प्रेरणा होती है।
  • इसे राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है।
  • यह शिक्षा प्रशासन और जनसंपर्क की निर्विवाद भाषा होती है।
  • यह राष्ट्र की संपर्क भाषा होती है और जनजीवन को प्रभावित करती है।
  • इसका अपना साहित्य होता है।
  • इसका साहित्य समृद्धि एवं व्यापक होता है।
  • राष्ट्रभाषा बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली जाती है।

हिंदी को राजभाषा के रूप में कब स्वीकार किया गया था।
सन 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में महात्मा गांधी जी ने सर्वप्रथम हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप स्वीकार करने की मांग की थी। उन्होंने इसे भारत की जनमानस की भाषा कहा था। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के संबंध में निर्णय लिया था। 1950 में संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के द्वारा हिंदी को देवनागरी लिपि में राजभाषा का दर्जा दिया गया।
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प्रत्येक राज्य को अपना राजकाज और प्रशासन की गतिविधियों को चलाने के लिए एक निश्चित भाषा की आवश्यकता होती है। यह भाषा राजभाषा कहलाती है। प्रायः यह भाषा उस क्षेत्र की बहुसंख्य आबादी द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली भाषा होती है। किन्तु राजभाषा होने की स्थिति में इसके कुछ मापदंड निश्चित हो जाते हैं और फिर भाषा की स्वाभाविकता और लचीलापन गायब हो जाती है। यही खास बात इसे राष्ट्रभाषा से अलग करती है। और यही खास बात राष्ट्रभाषा को अधिक व्यापक क्षेत्र और स्वीकार्यता प्रदान करती है।

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