भ्रष्टाचार क्या है? परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, कारण, दुष्प्रभाव, उपाय | Corruption in hindi

भ्रष्टाचार की परिभाषा

भ्रष्टाचार विश्वव्यापी समस्या है। विकासशील देशों में भ्रष्टाचार काफी व्याप्त है। लोक प्रशासन के क्षेत्र में यह एक ऐसा रोग है जिससे समस्त समाज को परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। भारत देश में यह मुद्दा काफी तूल पकड़े हुए है। वैसे कौटिल्य ने भी अपने समय में चालीस प्रकार के भ्रष्टाचार बताये थे। प्रस्तुत लेख में इसी पर विस्तार से चर्चा की गयी है। सुशासन के अर्न्तगत शासन द्वारा स्वीकृत कार्यक्रमों को प्रशासन से जनता तक पहुँचाना ही एक मात्र कार्य है। परन्तु प्रशासन अपने दायित्वों का निर्वहन इमानदारी से नहीं करता।
फलस्वरूप समाज में फैली विकृतियां कम होने के बजाय बढ़ती जा रही हैं। उदाहरण के रूप में गरीबी उन्मूलन, अमीर एवं गरीब के बीच काफी अन्तर बढ़ गया है। विकास के हर क्षेत्र में यही समस्या विद्यमान है। इससे निपटने के लिए समय-समय पर बहुत सुझाव भी दिये गये। भ्रष्टाचार एक बहुआयामी अवधारणा है। यह अपने आप में इतना व्यायक एवं विस्तृत है, कि इसकी कोई एक स्पष्ट एवं सटीक परिभाषा नहीं दी जा सकती है।
हालांकि इसे सार्वजनिक धन के व्यक्तिगत लाभ के लिए प्रयोग किए जाने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, किन्तु यह परिभाषा भी पूर्णतः दोषमुक्त नहीं है। सामान्यतः भ्रष्टाचार का आशय तौर-तरीकों, नैतिकता और आदर्शो में विसंगति से लिया जाता है अर्थात् नैतिक और सामाजिक मूल्यों की उपेक्षा कर अपने कर्तव्यों से विमुख होकर अपने अधिकारों तथा साधनों का दुरुपयोग करना ही भ्रष्टाचार है। what is corruption in hindi

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भ्रष्टाचार नैतिकता के पतन का एक महत्त्वपूर्ण परिणाम है। भ्रष्टाचार का अंग्रेजी पर्याप्त Corruption लैटिन भाषा के शब्द Corrputus से लिया गया है, जिसका अर्थ है- 'तोड़ना या नष्ट करना'।
इसके अलावा भ्रष्टाचार, भ्रष्ट एवं आचरण से मिलकर बना है, जिसमें भ्रष्ट का अर्थ है बिगड़ा हुआ/बुरा तथा आचरण का अर्थ है व्यवहार, अर्थात् बिगड़ा हुआ या बुरा व्यवहार करना ही भ्रष्टाचार है। अतः यह ऐसा बिगड़ा हुआ व्यवहार है, जिसकी अपेक्षा लोक-सेवकों से नहीं की जा सकती है। हालांकि भ्रष्टाचार की कोई स्पष्ट परिभाषा देना संभव नहीं है किंतु फिर भी इसे इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।
जब सार्वजनिक धन और पद का इस्तेमाल अधिकारी या कर्मचारी द्वारा व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाए तो ऐसे कृत्य को भ्रष्टाचार कहा जाता है।
अतः प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से व्यक्तिगत लाभ के लिए निर्धारित कर्त्तव्यों की जान-बूझ कर उपेक्षा करना ही भ्रष्टाचार है। वस्तुतः भ्रष्टाचार नैतिकता की विफलता को इंगित करता है।
इसमें सरकारी विभागों से संविदायें मंजूर कराना, कर्मचारियों की भर्ती में धांधली, घटिया परियोजनाओं और विनियमों को लागू करवाना, खाद्यान्न वस्तुओं और दवाओं में मिलावट आदि भ्रष्टाचार के कुछ भयानक उदाहरण हैं।

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अनुसार
भ्रष्टाचार आपराधिक कत्य है। इस अधिनियम के तहत आपराधिक कृत्य में निम्नलिखित पाँच तरह के कार्य आते हैं-
  • किसी शासकीय कार्य के लिए या अन्य किसी कर्मचारी पर अपने प्रभाव का प्रयोग करने के लिए कानूनी तौर पर वेतन के अतिरिक्त (शासकीय कर्मचारी द्वारा) उपहार या पारितोषण माँगना या स्वीकार करना।
  • किसी ऐसे व्यक्ति से बिना मूल्य दिए या अपर्याप्त मूल्य देकर कोई मूल्यवान वस्तु प्राप्त करना जिससे उसका सरकारी काम पड़ता है या पड़ सकता है या जिसके साथ उसके अधीनस्थों का कार्य-व्यवहार है या जहाँ वह अपने प्रभाव का उपयोग कर सकता है।
  • स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान वस्तु या अधिक लाभ, भ्रष्ट या गैर-कानूनी साधनों से या शासकीय कर्मचारी की अपनी स्थिति का दुरुपयोग करके प्राप्त करना।
  • अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक की चल एवं अचल परिसंपत्तियाँ रखना।
  • जालसाजी, धोखाधड़ी या गबन तथा इसी प्रकार के अन्य आपराधिक मामले।
  1. के. संथानम समिति के अनुसार- "सरकारी कर्मचारी द्वारा कार्य निष्पादन के दौरान ऐसा कृत्य जो किसी स्वार्थ की दृष्टि से किया जाए अथवा जानबूझकर कार्य नहीं किया जाए, भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।"
  2. भारतीय दंड विधान (धारा 161) के अनुसार-“कोई भी सार्वजनिक कर्मचारी वैध पारिश्रमिक के अतिरिक्त अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए जब कोई आर्थिक लाभ इसलिए लेता है कि सरकारी निर्णय पक्षपातपूर्ण तरीके से किया जा सके तो वह भ्रष्टाचार है तथा इससे संबंधित व्यक्ति भ्रष्टाचारी है।"
  3. भ्रष्टाचार निरोधक समिति 1964 के अनुसार- एक सार्वजनिक पद अथवा जनजीवन में उपलब्ध एक विशेष स्थिति के साथ संलग्न शक्ति तथा प्रभाव का अनुचित या स्वार्थपूर्ण प्रयोग ही भ्रष्टाचार है।
  4. विश्व बैंक के अनुसार- “सार्वजनिक कार्यालय का व्यक्तिगत लाभ हेतु उपयोग ही भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार में रिश्वत, फिरौती, घपला, पक्षपात आदि शामिल हैं।"
  5. ट्रांसपैरेंसी इन्टरनेशनल के अनुसार- "सौंपी गई शक्ति का निजी लाभ के लिए दुरुपयोग करना ही भ्रष्टाचार है।"
उपरोक्त के आधार पर भ्रष्टाचार को बुरे या निकृष्ट आचरण के रूप में परिभाषित किया गया है। आचरण जो अनैतिक और अनुचित हो अर्थात् किसी शासकीय कर्मचारी द्वारा अपने सार्वजनिक पद, स्थिति अथवा अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए किसी प्रकार का आर्थिक या अन्य प्रकार का लाभ प्राप्त करना ही भष्टाचार है। भ्रष्टाचार में धन की उपस्थिति और सार्वजनिक पद का दुरुपयोग अनिवार्य है यानी निजी लाभ के लिये सार्वजनिक शक्ति का इस प्रकार प्रयोग करना, जिससे कानून भंग होता हो या समाज के मापदंडों का विचलन होता हो, उसे भ्रष्टाचार कहते हैं। किन्तु केवल यही भ्रष्टाचार नहीं है, इसके अलावा भी भ्रष्टाचार है जैसे-परीक्षा में शिक्षक द्वारा नकल करवाना, कॉपी में परीक्षक द्वारा अंक बढ़ाया जाना, सरकारी कर्मचारी द्वारा अटेंडेंस लगाने के बाद भी अपने कार्य स्थल से गायब रहना, खाद्य पदार्थों में मिलावट व नकली दवाईयाँ बेचना, जाति, धर्म, लिंग व भाषा के आधार पर भेदभाव करना, कर्तव्यों को अधिकार के रूप में पेश करना व उत्तरदायित्व से भागना, दहेज लेना आदि भ्रष्टाचार के विविध आयाम हैं, जिन्हें परिभाषित करना कठिन है।
भ्रष्टाचार कोई आधुनिक प्रवृत्ति नहीं है, सभ्यता के प्रत्येक चरण में इसका अस्तित्व रहा है। यह व्यवस्था की विडम्बना है कि एक ओर मानव अपने लिए समाज में ऊँचे मापदण्ड तय करता है, वहीं दूसरी ओर उसकी कमियों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करता है। आश्चर्यजनक यह है कि समाज ने भ्रष्टाचार को चाहे-अनचाहे रूप में मान्यता भी दे रखी है। भ्रष्टाचार का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है। आज कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं रहा है। यह समस्या केवल भारत ही नहीं अपितु सभी देशों में पाई जाती है। प्राचीन काल से ही प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में भ्रष्टाचार व्याप्त रहा है। जैसे- यूनान और रोमन साम्राज्यों में न्यायाधीशों एवं अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने के प्रमाण मिलते हैं। प्राचीन भारत में अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार किए जाने के प्रमाण मिलते हैं। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में 50 प्रकार के भ्रष्टाचारों का वर्णन किया है। मध्यकाल में भी अलाउद्दीन खिलजी, मोहम्मद बिन तुगलक तथा औरंगजेब के शासन काल में भी भ्रष्टाचार के प्रमाण मिलते हैं और उनके द्वारा रिश्वत रोकने के अनेक उपायों का भी जिक्र मिलता है। आधुनिक ब्रिटिश काल में तो पूरी की पूरी 'ड्रेन ऑफ वेल्थ' थ्योरी ही अंग्रेजों के भ्रष्टाचार के नायाब नमूने को पेश करती है। वर्तमान में भी विकसित देशों में उच्च स्तरीय व्यापार एवं खरीददारी में भ्रष्टाचार व्याप्त है, तो भारत में रेल टिकट आरक्षण से लेकर सिनेमा हॉल का टिकट बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों से लेकर सरकारी महाविद्यालयों में प्रवेश दिलाने तक में तथा सरकारी अस्पताल के बिस्तर से लेकर गैस सिलेंडर खरीदने तक में, हर जगह भ्रष्टाचार का बोल वाला है। अर्थात जहाँ अन्य देशों में अवैध या गैर-कानूनी चीजों के लिए भ्रष्टाचार होता है, वहीं भारत में वैध व आवश्यक चीजों के लिए भी रिश्वत दी जाती है।

भ्रष्टाचार के लक्षण या विशेषताएँ (Characteristics of Corruption)

भ्रष्टाचार एक अनैतिक कार्य है, जिसकी निम्नलिखित विशेषताएँ लक्षण हैं-
  • कर्त्तव्य से हटकर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ के लिए अनैतिक कार्य।
  • भ्रष्टाचार की व्यापक परिधि में राजनैतिक, प्रशासनिक और न्यायिक सभी क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  • इसमें व्यक्तिगत पक्षपात, निजी एवं स्वार्थपूर्ण भावनाएँ होती हैं।
  • भ्रष्टाचार में जल्दी काम कराने एवं जल्दी धन कमाने की मनोवृत्ति होती है।
  • इसमें नगद राशि व वस्तु माध्यम होती है।
  • यह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में किया जाता है।
  • भ्रष्टाचार साध्य भी है और साधन भी है।
  • इसमें कर्त्तव्यों का उल्लंघन होता है।
  • इसमें शक्ति, पद या अधिकारों का दुरुपयोग होता है।

भ्रष्टाचार का क्षेत्र एवं स्वरूप

लोक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार वर्तमान में समाज की सबसे बड़ी समस्या है। जीवन का प्रत्येक क्षेत्र और समाज का लगभग प्रत्येक वर्ग जैसे वकील, इंजीनियर, डॉक्टर, अधिकारी आदि सब इससे ग्रसित हैं। भ्रष्टाचार के इस व्यापक स्वरूप एवं प्रकृत्ति को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-
  • भ्रष्टाचार मूल रूप से वैयक्तिक क्रिया है परंतु अब इसका क्षेत्र व्यापक हो गया है। इसका रूप अब संस्थागत हो गया है तथा इसने एक सामूहिक क्रिया का रूप ले लिया है।
  • भ्रष्टाचार का सम्बन्ध व्यक्ति या समूह द्वारा अपने निर्धारित कर्त्तव्यों की उपेक्षा करने से है। कर्त्तव्यों की उपेक्षा आर्थिक लाभ या अन्य लाभों के लिए की जाती है।
  • भ्रष्टाचार में पक्षपात व प्रलोभन का तत्त्व निहित होता है।
  • भ्रष्टाचार वर्तमान में सामाजिक समस्या का रूप ले चुका है, क्योंकि इसका क्षेत्र समाज के अधिकांश वर्गों की सामान्य कार्य प्रणाली से संबंधित हो गया है परिणामस्वरूप समाज में नैतिक व सामाजिक मूल्यों का पतन हो रहा है।

भारत में प्रमुख घोटाले

उच्च पद पर आसीन कुछ व्यक्तियों ने गैरकानूनी कार्य करते हुए भ्रष्टाचार करके सरकार और जनता को करोड़ों रूपए का नुकसान पहुँचाया है और कई घोटाले किए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख घोटाले निम्न प्रकार हैं-
  • मारूति घोटाला (1974)।
  • चारा घोटाला (1985)।
  • बोफोर्स घोटाला (1987)।
  • हवाला घोटाला (1991)।
  • सिक्योरिटी स्कैम घोटाला (1992)।
  • सत्यम घोटाला (2008)।
  • 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला (2010)।
  • आदर्श हाउसिंग घोटाला (2011)।
  • राष्ट्रमंडल खेल घोटाला (2011)।
  • आई.पी.एल. घोटाला (2013)।
  • हेलीकॉप्टर खरीदी में घोटाला (2013)।
  • व्यापम घोटाला (2013)।
  • कोल घोटाला (2014)।

भ्रष्टाचार के प्रकार (Types of Corruption)

भ्रष्टाचार को उसकी प्रकृति, क्षेत्र तथा उद्देश्यों के आधार पर कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। भ्रष्टाचार के विभिन्न संस्थाओं द्वारा विभिन्न रूप बताए गए हैं, जो निम्न प्रकार है-

भ्रष्टाचार के प्रकार
  • विश्व बैंक के अनुसार (अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में)
  • केन्द्रीय सतर्कता आयोग के अनुसार (भारतीय संदर्भ में)

विश्व बैंक के अनुसार
विश्व बैंक ने भ्रष्टाचार को उसकी प्रवृत्ति, क्षेत्र तथा उद्देश्यों के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 6 प्रकारों में वर्गीकृत किया जो निम्नानुसार हैं-
  • प्रशासनिक भ्रष्टाचार
  • लघु भ्रष्टाचार
  • राजनीतिक भ्रष्टाचार
  • वृहद भ्रष्टाचार
  • लोक भ्रष्टाचार
  • निजी भ्रष्टाचार
  • प्रशासनिक भ्रष्टाचार - प्रशासन में सर्वाधिक प्रवर्तित इस श्रेणी में लोक नीति, नियमों तथा प्रक्रियाओं में हेर-फेर करके किसी को अवैध लाभ पहुंचाया जाता है।
  • राजनीतिक भ्रष्टाचार - वोट खरीदने से लेकर नीति एवं कानून के निर्माण एवं क्रियान्वयन तक की प्रक्रिया में सम्मिलित राजनीतिक नेतृत्व द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार, राजनीतिक भ्रष्टाचार कहलाता है।
  • लोक भ्रष्टाचार - जनता की सुविधा के लिए बनाए गए संगठनों का इस्तेमाल निजी लाभ के लिए करना ही लोक भ्रष्टाचार है।
  • निजी भ्रष्टाचार - व्यक्तिगत स्तर पर किया जाने वाला भ्रष्टाचार जैसे- माफिया द्वारा स्थानीय व्यक्तियों या व्यापारियों से पैसे ऐंठना आदि निजी भ्रष्टाचार है।
  • वृहद भ्रष्टाचार - उच्च स्तर पर किये जाने वाला भ्रष्टाचार जिसमें राजनीतिज्ञों से लेकर उच्च अधिकारी तक प्रत्यक्ष रूप से लिप्त रहते हैं। हालांकि आम जनता पर इसका प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से ही पड़ता है। जैसे-उच्च स्तरों पर पैसे का भारी लेन-देन करना।
  • लघु भ्रष्टाचार - निचले स्तर पर व्याप्त छोटा या फुटकर भ्रष्टाचार जो जोर-जबरदस्ती के साथ किया जाता है। तथा आम जनता को सीधे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है और यह फुटकर या छोटा भ्रष्टाचार पूरे देश में बड़े पैमाने पर फैला हुआ है। जैसे-कम पैसे लेकर छोटे-कार्मिकों द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार।

केन्द्रीय सतर्कता आयोग के अनुसार
केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने भ्रष्टाचार को उसकी प्रकृत्ति, क्षेत्र व विषय वस्तु के आधार पर 27 प्रकारों में वर्गीकृत किया है, जो निम्नानुसार हैं-
  • शासकीय पद या अधिकारों एवं शक्तियों का दुरुपयोग करना।
  • सार्वजनिक धन और कोष का दुरुपयोग करना।
  • निम्नस्तरीय वस्तुओं या कार्य को स्वीकार करना।
  • आय से अधिक संपत्ति रखना।
  • अनैतिक आचरण करना।
  • उपहार प्राप्त करना।
  • ठेकेदारों एवं फर्मों को रियायतें प्रदान करना।
  • लालच एवं अन्य कारणों से शासन को हानि पहुँचाना।
  • टेलीफोन कनेक्शन देने में अनियमितता व लापरवाही करना।
  • आयकर, सम्पत्ति कर आदि को कम बताना या छिपाना।
  • भर्ती, नियुक्ति, स्थानांतरण एवं पदोन्नति के संबंध में गैर-कानूनी रूप से धन लेना।
  • शासकीय आवास (क्वार्टरों) पर अनाधिकृत कब्जा एवं उन्हें गलत ढंग से किराए पर देना।
  • विस्थापितों के दावों का गलत मूल्यांकन करना।
  • रेल एवं वायुयान के सीट आरक्षण एवं कोटे में अनियमितता बरतना।
  • पुराने स्टांप या डाक टिकट का प्रयोग पत्र-व्यवहार में करना।
  • जाति, जन्म व मृत्यु के जाली प्रमाण-पत्र पैसे लेकर बनाना।
  • शासकीय कर्मचारियों को अपने निजी कार्यों में प्रयोग करना।
  • बिना पूर्वानुमति या पूर्व सूचना के अचल संपत्ति अर्जित करना।
  • विस्थापितों के दावों के निपटान में अनावश्यक विलंब करना।
  • मनीऑर्डर, बीमा एवं मूल्य देय पार्सलों को प्राप्तकर्ता को न देना।
  • आयात-निर्यात लाइसेंस देने में अनियमितता।
  • शासकीय कर्मचारी की जानकारी एवं सहयोग से साँठ-गाँठ करके कंपनियों के आयातित एवं आवंटित कोटे का दुरुपयोग करना।
  • झूठे दौरों, भत्तों, बिल एवं गृह किराया आदि का दावा करना।
  • वाहन खरीदने के लिए स्वीकृत अग्रिम धनराशि का दुरुपयोग करना।
  • ऐसी फर्मों या व्यक्तियों से ऋण लेना जिनसे कार्यालयीन संबंध है।
  • जिन व्यक्तियों से अधिकारियों के कार्यालयीन संबंध हैं उनके वित्तीय दायित्वों को वहन करना।
  • आवासीय भूमि की खरीद-बिक्री में धोखाधड़ी करना।

भ्रष्टाचार के कारण (Causes of Corruption)

भ्रष्टाचार के प्रमुख कारण निम्नानुसार है-
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सामाजिक कारण
  • जनजागरूकता का अभाव
  • नैतिक मूल्यों का पतन
  • बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति एवं भौतिकवाद
  • अधिक जनसंख्या
  • समाज में व्याप्त विभिन्न कुरीतियाँ
  • सामाजिक स्वीकार्यता

राजनीतिक कारण
  • नेता एवं अधिकारियों के बीच सांठ-गांठ
  • राजनीति का अपराधीकरण
  • लोकतांत्रिक शासन के दोष
  • बढ़ता चुनावी खर्च
  • राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव

प्रशासनिक कारण
  • जटिल नौकरशाही
  • प्रणाली पारदर्शिता का अभाव
  • प्रशासन में अनिश्चितता
  • शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार की स्वीकार्यता

आर्थिक कारण
  • कम वेतन मान
  • निजी स्वार्थ सिद्धि हेतु व्यापारियों, उद्योगपतियों और लोक प्रशासकों की मिली भगत

वैधानिक कारण
  • भ्रष्टाचार रोधी काननों का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं
  • जटिल न्यायिक प्रक्रिया
  • कठोर कानूनों का अभाव
  • सरकारी कर्मचारियों को दिया गया अनुचित संरक्षण

सामाजिक कारण (Social Causes )
  • जन जागरूकता का अभाव - भारत में भ्रष्टाचार के विरोध में जन जागरूकता का अभाव देखने को मिलता है। जनता भ्रष्टाचार की शिकायतें नहीं करती है। अतः भ्रष्टाचार का विरोध न होना भी इसे बढ़ावा देता है।
  • नैतिक मूल्यों का पतन - भारतीय समाज एवं व्यक्तियों में नैतिक मूल्यों का पतन होने के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। आज व्यक्ति किसी भी अनुचित तरीके को अपनाकर अपना काम निकालना चाहता है।
  • बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति एवं भौतिकवाद - समाज में बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति एवं भौतिकवाद भ्रष्टाचार का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। आज भौतिक समृद्धि स्टेटस सिंबल बन गई है। आज व्यक्ति का सम्मान और सफलता धन से आंकी जाती है। ऐसी मानसिकता के चलते लोग अच्छे या बुरे का विचार किए बिना भ्रष्टाचार की अंधी दौड़ में शामिल हो जात हैं।
  • अधिक जनसंख्या - देश की बड़ी जनसंख्या भ्रष्टाचार का एक अन्य बड़ा कारण है। इतनी बड़ी जनसख्या को सरकार गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक सेवाएँ उपलब्ध नहीं करा पा रही है, इसलिए इन सेवाओं को प्राप्त करने के लिए लोगों द्वारा रिश्वत दी जाती है।
  • समाज में व्याप्त विभिन्न कुरीतियाँ - समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियाँ भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती हैं, जैसे दहेज प्रथा के चलते इस दहेज हेतु सरकारी कर्मचारी द्वारा भ्रष्टाचार के माध्यम से धन जुटाया जाता है।
  • सामाजिक स्वीकार्यता - लोग भ्रष्ट कर्मचारियों के विरुद्ध शिकायत नहीं करते हैं, बल्कि वे अपनी गलत मांगों की पूर्ति के लिए रिश्वत देते हैं। हालांकि हाल के वर्षों में इस प्रवृत्ति में कुछ हद तक कमी गई है।

राजनीतिक कारण (Political Causes)
  • नेता एवं अधिकारियों के बीच साँठ-गाँठ - नेताओं व अधिकारियों की मिलीभगत एवं उन्हें मिलने वाला राजनीतिक प्रश्रय भ्रष्टाचार का एक महत्वपूर्ण कारण है। नेता एवं अधिकारी मिल कर घोटाले करते हैं, जिस पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। जैसे 2G स्पेक्ट्रम, कोल ब्लॉक आवंटन, बोफोर्स आदि घोटाले नेता एवं अधिकारियों के गठजोड़ के चलते हुए हैं।
  • राजनीति का अपराधीकरण - अपराधियों का राजनीतिकरण और अपराधी व राजनीतिज्ञ गठजोड़ भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है क्योंकि राजनीति से प्रशासन को और अपराधियों से प्रत्येक विरोध के स्वर को दबाया जा सकता है। अतः अप्रत्यक्ष रूप में यह भी भ्रष्टाचार को गति प्रदान करता है।
  • लोकतांत्रिक शासन के दोष - लोकतंत्र में जनता की भागीदारी को पर्याप्त रूप में सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है परिणामस्वरूप निगरानी तंत्र अत्यधिक दोषपूर्ण हो जाता है। इसके अलावा लोकतंत्र की विलंबकारी विधायी गतिविधियां भी भ्रष्टाचार का कारण बनती हैं।
  • बढ़ता चुनावी खर्च - चुनाव में पैसे का अत्यधिक अपव्यय किया जाता है, जिसकी भरपाई जीतने के पश्चात् भ्रष्टाचार के माध्यम से की जाती है।
  • राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव - भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में राजनीतिक पहल या इच्छाशक्ति का अभाव भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।

प्रशासनिक कारण (Administrative Causes )
  • जटिल नौकरशाही प्रणाली - भारत में नौकरशाही की कार्यप्रणाली कानूनों, कठोर नियमों, जटिल प्रक्रियाओं तथा लिखित कार्यवाही से घिरी होने के कारण धन, श्रम एवं समय साध्य होती है। अधिकांश व्यक्ति इन प्रक्रियाओं से परेशान होकर शीघ्रता से अपना कार्य करवाने के लिए रिश्वत देने के लिए बाध्य होते हैं। शासकीय कर्मचारी भी धीरे-धीरे रिश्वत लेने के आदी हो जाते हैं।
  • पारदर्शिता का अभाव - पारदर्शिता का अभाव भ्रष्टाचार की प्रक्रिया को आसान बनाता है क्योंकि गोपनीयता की आड़ में ऐसे आंकड़े छुपा लिए जाते हैं, जो भ्रष्टाचार को सामने ला सकते हैं शासन-प्रशासन में अपारदर्शिता के कारण भ्रष्टाचार के अधिक रास्ते मिलते हैं।
  • प्रशासन में अनिश्चितता - शासन-प्रशासन में अनिश्चितता के कारण भी भ्रष्टाचार बढ़ता है। प्रशासन में लालफीताशाही, असक्षमता, औपचारिकता एवं असंवेदनशीलता के कारण प्रशासकीय अनिश्चितता की स्थिति रहती है अर्थात् जब तक अवैध साधनों का सहारा नहीं लिया जाता तब तक फाइलें दबी रहती हैं। साथ ही शासकीय कार्य संस्कृति में जनसामान्य से दूरी बनाकर रहने से संवाद के अभाव में लोग शीघ्र काम कराने के लिए पैसे एवं अन्य साधनों का उपयोग रिश्वत देने के लिए करते हैं।
  • शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार की स्वीकार्यता - शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार की स्वीकार्यता बढ़ने से भ्रष्टाचार को अधिक बढ़ावा मिला है।

आर्थिक कारण (Economic Causes)
  • कम वेतनमान - भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण शासकीय कर्मचारियों को कम वेतन भी है। वर्तमान में कई कर्मचारियों को वेतन कम मिलता है, जो बढ़ती हुई महँगाई के अनुरूष नहीं है। महँगाई की मार वेतन भोगियों पर पड़ने से वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं।
  • निजी स्वार्थसिद्धि हेतु व्यापारियों, उद्योगपतियों और लोक प्रशासकों की मिली भगत - बड़े व्यवसायी, उद्योगपति व ठेकेदार, लोक सेवकों से अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए उन्हें रिश्वत देते हैं और कभी कभी अर्जित लाभ का कुछ हिस्सा लोक सेवकों में बांट देते हैं।

वैधानिक कारण (Statutory Causes)
  • भ्रष्टाचार रोधी कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं - भ्रष्टाचार निवारण हेतु बनाए गए नियम एवं कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन में कमी भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है।
  • जटिल न्यायिक प्रक्रिया - भारत में न्यायिक प्रक्रिया अत्यंत जटिल एवं विलम्बकारी है। इस कारण से भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति प्रायः मामलों को लम्बा खींचते हुए बच निकल जाते हैं। इस प्रकार भारत की न्याय प्रणाली का भ्रष्टाचार के मामलों का शीघ्र निपटारा करने में असफल रहना, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
  • कठोर कानूनों का अभाव - भारत में भ्रष्टाचार निवारण हेतु बनाए गए कानून एवं नियमों में अल्प सजा का प्रावधान तथा सजा की न्यूनतम संभावना की प्रवृत्ति के कारण भ्रष्टाचारियों को कानून का भय नहीं है और इसके कारण वे निरंतर ऐसी गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं।
  • सरकारी कर्मचारियों को दिया गया अनुचित संरक्षण - भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेद जैसे- अनुच्छेद 310, अनुच्छेद 311 में सरकारी कर्मचारियों को संरक्षण संबंधी प्रावधान हैं। ये उपबंध भ्रष्ट कर्मचारियों पर प्रभावी ढंग से कार्रवाई करना कठिन बना देते हैं।

भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव (Negative Impacts of Corruption)

भ्रष्टाचार एक अनैतिक कृत्त्य है, जिसके दुष्प्रभाव एवं परिणाम निम्नलिखित है-
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सामाजिक प्रभाव
  • सामाजिक असमानता का बढ़ना
  • सामाजिक असंतोष का बढ़ना
  • लोक-कल्याण में कमी सामाजिक न्याय में कमी

राजनीतिक प्रभाव
  • राष्ट्रहित को हानि शासन-प्रशासन के प्रति अविश्वास
  • सेवा में गुणवत्ता का अभाव

प्रशासनिक प्रभाव
  • प्रशासनिक अकर्मण्यता में वृद्धि
  • लालफीताशाही
  • प्रशासनिक कुशलता में कमी

आर्थिक प्रभाव
  • सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
  • विकास प्रक्रिया में बाधा
  • आर्थिक विषमताओं को
  • बढ़ावा सरकारी कोष को हानि

सामाजिक दुष्प्रभाव (Social Negative Impacts)
  • सामाजिक असमानता का बढ़ना- भ्रष्टाचार के माध्यम से आय एवं अन्य आर्थिक लाभ प्राप्त भ्रष्ट लोग देश में सामाजिक असमानता को बढ़ाते हैं। अधिकांश धन कुछ लोगों के पास केंद्रित हो जाने से गरीब और अधिक गरीब तथा अमीर और अधिक अमीर होता जाता है। यह सारी स्थितियाँ समाज में घोर असमानता को बढ़ावा देती हैं।
  • सामाजिक असंतोष का बढ़ना- सामाजिक असमानता बढ़ने से सामाजिक असंतोष में भी वृद्धि होती है। जो लोग ईमानदार होते हैं उन्हें बहुत अधिक मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक दुविधाओं/चिंताओं का सामना करना पड़ता है। इससे देश की प्रतिभाओं को अवसर नहीं मिलते। भ्रष्टाचार के कारण मानसिक चिंता बढ़ने से सामाजिक असंतोष में वृद्धि होती है और कई बार लोग आत्महत्या भी कर लेते हैं।
  • लोक-कल्याण में कमी- एक लोक-कल्याणकारी राज्य के लिए भ्रष्टाचार कैंसर के समान है। इससे देश को परियोजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है साथ ही जनकल्याण के लिए आया हुआ पैसा भ्रष्टाचारियों की जेब में चला जाता है। अतः व्यापक रूप से फैला हुआ भ्रष्टाचार हर तरह से देश एवं उसके नागरिकों को हानि ही पहुँचाता है। अतः भ्रष्टाचार के कारण लोक-कल्याण में भी कमी आती है।
  • सामाजिक न्याय में कमी- भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा प्रभाव न्याय से वंचना के रूप में दिखाई देता है। सरकारी कार्यालयों में अपने वाजिब हक के लिए दौड़ने वाले व्यक्ति को, न्यायालय में जाकर इंसाफ की गुहार लगाने वाले व्यक्ति को इन संस्थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण न्याय से वंचित होते देखना हमारे देश में आम बात है। भ्रष्टाचार की वजह से गरीबों के हित के लिए चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुंच पाता।

राजनीतिक दुष्प्रभाव (Political Negative Impacts)
  • राष्ट्रहित को हानि- स्वयं के आर्थिक लाभ के लिए राष्ट्रीय हितों से समझौता करने को प्रवृत्ति राष्ट्रहितों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। ऐसे निर्णय गुणवत्ता के आधार पर नहीं बल्कि स्वहित के आधार पर लिए जाते हैं। सेना के लिए निम्न गुणवत्ता के हथियार खरीदना, शासकीय संस्थाओं के लिए गुणवत्ताहीन वस्तुएँ खरीदी जाना आदि इसी तरह के भ्रष्टाचार हैं।
  • शासन-प्रशासन के प्रति अविश्वास- भ्रष्टाचार का एक बड़ा नकारात्मक प्रभाव यह है कि इससे आम जनता शासन-प्रशासन एवं संपूर्ण व्यवस्था के प्रति अविश्वास बढ़ता है। लोक-सेवकों में नैतिकता के पतन से उनकी विश्वसनीयता में कमी आती है। आम जनता शासन प्रशासन के रवैये के प्रति हताश व निराश रहती है। अतः एक लोकतांत्रिक देश के लिए भ्रष्टाचार दीमक की तरह है।
  • सेवा में गुणवत्ता का अभाव- भ्रष्टाचार का प्रभाव सेवा में गुणवत्ता के अभाव के रूप में दिखाई देता है। र भ्रष्टाचार की वजह से अयोग्य व्यक्ति सरकारी सेवा का हिस्सा बन जाते हैं, जिसकी वजह से सेवा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

प्रशासनिक दुष्प्रभाव (Administrative Negative Impacts)
  • प्रशासनिक अकर्मण्यता में वृद्धि- भ्रष्टाचार बढ़ने से प्रशासनिक अकर्मण्यता में वृद्धि होती है। रिश्वत लेने की प्रवृत्ति लोक सेवकों में भ्रष्टाचार की आदत का विकास करती है, जिसके परिणामस्वरूप लोक सेवक बिना रिश्वत के काम नहीं करते। यह समस्या प्रशासनिक अकर्मण्यता में वृद्धि करती है।
  • लालफीताशाही- प्रशासनिक अधिकारी बिना रिश्वत लिए काम नहीं करते और फाइलों पर फाइल इकट्ठा होती जाती हैं। लालफीताशाही भ्रष्टाचार से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। लाल कपड़े में बंधी हुई सरकारी फाइलें भ्रष्टाचार के प्रभाव की स्थिति बताती हैं।
  • प्रशासनिक कुशलता में कमी- ईमानदार अधिकारियों में, उन्हें परेशान करने और भ्रष्ट अधिकारियों को हर तरफ से लाभ मिलने आदि, से असंतोष पनपता है। जिससे ईमानदार अधिकारियों की नैतिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अधिकारियों के पदस्थापन, पदोन्नति एवं रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के द्वारा अंतर किया जाता है। इन सब कारणों से प्रशासनिक कुशलता में वृद्धि होने के स्थान पर अकुशलता व अक्षमता में वृद्धि होती है।

आर्थिक दुष्प्रभाव (Economic Negative Impacts)
  • सार्वजनिक व्यय में वृद्धि - भ्रष्टाचार के कारण सार्वजनिक व्यय में वृद्धि होती है। कार्य में अनावश्यक देरी, कार्य को टाला जाना, समयबद्धता का अभाव आदि प्रत्यक्ष रूप से सरकारी खर्च को ही बढ़ाते हैं।
  • विकास प्रक्रिया में बाधा - भ्रष्टाचार की वजह से विकास के लिए चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का लाभ धरातल तक नहीं पहुंच पाता। अधिकतर योजनाओं के लिए आवंटित धन को राजनेता एवं अधिकारी हड़प लेते हैं। इस संदर्भ में भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की प्रसिद्ध युक्ति उल्लेखनीय है "सरकारी योजनाओं के लिए आवंटित 1 रुपए में से धरातल तक केवल 10 पैसे ही पहुंचते हैं।"
  • आर्थिक विषमताओं को बढ़ावा - भ्रष्टाचार के कारण देश में दो प्रक्रियाएं एक साथ चल रही हैं। प्रथम, अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। दूसरी, गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि गरीबों के लिए आवंटित राशि गरीबों तक न पहुंचकर ऊपर ही ऊपर लूट की भेंट चढ़ती जा रही है।
  • सरकारी कोष को हानि - भ्रष्टाचार का सबसे अधिक प्रभाव सरकारी कोष पर पड़ता है। अधिकांश व्यक्ति शीघ्र कार्य करवाने के लिए कर, शुल्क या प्रशुल्क देने के स्थान पर अवैध या काला धन देते हैं, जिससे पैसा भ्रष्ट अधिकारियों क पास पहुँचता है और सरकारी कोष का नुकसान होता है, उसकी उगाही या नुकसान की भरपाई न होने का पूरा बोझ सरकारी कोष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जनता पर पड़ता है।

भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उपाय

भ्रष्टाचार रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-
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  • सेवा शर्तों को आकर्षक बनाया जाए - सरकारी कर्मचारियों के वेतन में मँहगाई के अनुरूप समय-समय पर सुधार किये जाने की आवश्यकता है। यदि अधिकारियों-कर्मचारियों को अच्छे वेतन दिये जाएंगे तो वे भ्रष्ट तरीकों से आर्थिक लाभ या धन प्राप्त करने की कोशिश नहीं करेंगे। अतः भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिये सेवा-शर्तों को आकर्षक बनाया जाना आवश्यक है।
  • प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल किया जाए - भ्रष्टाचार का एक प्रमुख कारण प्रशासनिक क्रियाकलापों का जटिल एवं कठिन होना है। अत्यधिक औपचारिकताओं एवं कागजी कार्यवाहियों के कारण कार्यों में अनावश्यक विलंब होता है। लोग अनावश्यक देरी एवं उत्पीड़न से बचने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को घूस देते हैं। अतः इन समस्याओं से निपटने के लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल, पारदर्शी एवं जनसहयोगी बनाए जाने की आवश्यकता है। इसके लिये सूचना प्रौद्योगिकी व ई-प्रशासन को बढ़ावा देना चाहिए।
  • नैतिक संहिता एवं आचरण संहिता को स्थापित करना - प्रशासनिक अधिकारियों एवं नेताओं के लिए आचरण संहिता को लागू किया जाना चाहिए। अपने दायित्वों को पूर्ण करने के दौरान स्वविवेक से निर्णय करने, उपहार आमंत्रण एवं अन्य लाभ दिए जाने के समय अनुशासित रहने के नियम अनिवार्य रूप से लागू किए जाने चाहिए अर्थात सभी विभागों के लिए नीति संहिताओं व आचरण संहिताओं का निर्माण और उनका कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • स्वविवेकी शक्तियों को कम करना - प्रशासनिक क्षेत्र में स्वविवेकी शक्तियों से प्रशासन के निचले स्तरों पर भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ती है। सरकारी कर्मचारी व लोक-सेवक, लोगों को रिश्वत देने हेत मजबूर करते हैं। इसलिए स्वविवेक से निर्णय करने को न्यूनतम किया जाना चाहिए।
  • जन-जागरूकता को बढ़ावा - जनता को इसके दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करना। भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए सबसे प्रभावी उपाय है। यदि जनता भ्रष्टाचार की भागीदार नहीं बनेगी और न ही भ्रष्टाचारियों को सहन करेगी तो इससे भ्रष्टाचार में कमी आएगी। लोकतांत्रिक देशों में जनता का भ्रष्टाचार के विरुद्ध जागरूक होना भ्रष्टाचार को नियंत्रित करता है।
  • उच्च नैतिक/प्रशासनिक मूल्यों को बढ़ावा देना - भ्रष्टाचार निवारण हेतु ब्रिटेन की नोलन समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट में प्रस्तुत 7 सिद्धांत-नि:स्वार्थता, सत्यनिष्ठा, वस्तुनिष्ठता, उत्तरदायित्व, पारदर्शिता, ईमानदारी और नेतृत्व जैसे-विशेष मूल्यों को सार्वजनिक व व्यक्तिगत जीवन में बढ़ावा देना चाहिए।
  • पारदर्शिता को बढ़ावा देना - पारदर्शिता नागरिकों को सरकार के कार्यों की जानकारी प्रदान कर उन्हें सरकार के कार्यों की समीक्षा करने में सक्षम बनाती है, जिससे उत्तरदायित्व सुनिश्चित होता है और भ्रष्टाचार में कमी आती है।
  • विकेन्द्रीकरण एवं जन सहभागिता को बढ़ावा देना - शासन एवं शक्तियों के विकेन्द्रीकरण तथा शासन में लोगों की सहभागिता को बढ़ावा देकर भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है। अतः प्रशासन में नागरिक समाज की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए।
  • शिक्षा व्यवस्था में सुधार - शिक्षा व्यवस्था में सुधार कर तथा नैतिक शिक्षा द्वारा भ्रष्टाचाररोधी मूल्यों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • भ्रष्टाचार निवारण संस्थाओं को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखना - विभिन्न भ्रष्टाचार निवारण संस्थाएँ यथा- CBI, CVC, प्रवर्तन निदेशालय आदि को राजनीतिक नियंत्रण एवं दबाव से मुक्त रखना चाहिए।
  • कठोर कानून एवं उनका उचित क्रियान्वयन - भ्रष्टाचार की रोकथाम हेतु कठोर कानूनों व नियमों जाए तथा उनका उचित क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • समयबद्ध लेखा परीक्षा - समयबद्ध और नियमित रूप से लेखा परीक्षण कर अनियमितता तथा भ्रष्टाचार की संभावना को कम किया जा सकता है। अतः समयबद्ध लेखा परीक्षा निर्धारित की जाए।
  • सूचना एकत्र करना - लोक-सेवकों क बारे में सूचना एकत्र करना, जैसे-चल-अचल संपत्ति का विवरण, बैंक बैलेंस के ब्योरे, आय के स्रोतों का उल्लेख, वाहन सहित विदेश यात्रा के संबंध में सारी सूचनाएँ एकत्रित की जानी चाहिए, साथ ही संदिग्ध लोक-सेवकों पर निगरानी रख कर भ्रष्टाचार को नियत्रित किया जा सकता है।
अन्य उपाय
  • सूचना का अधिकार एवं नागरिक घोषणा-पत्र के लिए जन जागरूकता बढ़ाना चाहिए।
  • ई-गवर्नेस को बढ़ावा देना चाहिए।
  • भ्रष्टाचार संबंधी मुकदमों की कार्यवाही में तीव्रता लाना चाहिए।
  • सत्यनिष्ठ अधिकारियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • भ्रष्टाचार रोकने के लिए मीडिया को सक्रिय करना चाहिए।
  • लोक-सेवकों में भ्रष्टाचार के प्रति विरोध की भावना विकसित की जानी चाहिए।
  • अधिकारियों की निगरानी संबंधी भूमिका पर पुनः जोर दिए जाने की आवश्यकता है।
  • प्रत्येक अधिकारी की वार्षिक निष्पादन रिपोर्ट में एक कॉलम ऐसा होना चाहिए जहाँ अधिकारी को यह प्रकट करना हो कि उसने अपने अधीनस्थों के बीच भ्रष्टाचार नियंत्रण हेतु क्या उपाय किये हैं।
  • विभागीय कार्यवाहियों में नियमितता लाना चाहिए ताकि भ्रष्टाचार संबंधी मामलों का निपटारा संभव हो सके।
  • संदिग्ध अधिकारियों को संवेदनशील पदों से दूर रख, उदारवादी नीतियों को सावधानी से लागू किया जाना चाहिए।
  • नियमों के उल्लंघन पर त्वरित व उचित दंड का प्रावधान सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

भ्रष्टाचार निवारण हेतु सरकारी प्रयास

भारत में भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या है, जिसे रोकने के लिए आजादी के बाद से ही ढांचागत एवं कानूनी प्रयास करना शरू कर दिए गए थे, जो निम्नानुसार हैं-
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केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC)
  • यह भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने वाली एक महत्त्वपूर्ण संस्था है। केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना संथानम समिति की सिफारिश पर भारत सरकार द्वारा भ्रष्टाचार निवारण हेतु 11 फरवरी, 1964 को एक संकल्प पारित कर की थी।
  • यह 'सांविधिक निकाय' है।
  • केन्द्रीय सतर्कता आयोग एक बहुसदस्यीय निकाय है। जिसमें एक केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) तथा दो अन्य सतर्कता आयुक्त (सदस्य) होते हैं। इनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति गृहमंत्री लोक/सभा में विपक्ष का नेता) की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त वेतन भत्ते एवं अन्य सेवा शर्ते संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के समान होती है, जिनमें नियुक्ति के पश्चात् कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
  • इनका कार्यकाल 4 वर्ष या 65 वर्ष तक होता है। अपने कार्यकाल के पश्चात् वे केन्द्र अथवा राज्य सरकार के किसी भी पद के योग्य नहीं होते हैं।

केन्द्रीय सतर्कता आयोग के कार्य एवं शक्तियाँ
  • यह आयोग ऐसी सभी शिकायतों के संबंध में जाँच करता है जिसमें किसी शासकीय अधिकारी पर अनुचित उद्देश्य या भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाया गया हो।
  • जनहित प्रकटीकरण तथा मुखबिर संरक्षण के अंतर्गत प्राप्त शिकायतों की जाँच करना तथा उचित कार्यवाही हेतु सिफारिश करना।
  • राजपत्रित अधिकारियों तथा उनके समकक्ष कर्मियों के भ्रष्टाचार मामलों की जाँच करना।
  • केंद्र सरकार के मंत्रालयों व प्राधिकरणों के सतर्कता प्रशासन पर नजर रखना।
  • प्रतिवर्ष राज्य सतर्कता आयुक्तों का वार्षिक अधिवेशन बुलाना।

राज्य सतर्कता आयोग (State Vigilance Commission)
  • भ्रष्टाचार निवारण हेतु गठित 'संथानम समिति' की अनुशंसा पर केन्द्रीय स्तर पर केंद्रीय सतर्कता आयोग' के गठन के साथ-साथ राज्यों में भी 'राज्य सतर्कता आयोग' की स्थापना की गई।
  • राज्य सतर्कता आयोग राज्य स्तर पर 1964 से विद्यमान एक भ्रष्टाचार नियंत्रक एजेंसी है। इसकी स्थापना भी कार्यकारी प्रस्ताव के द्वारा ही की गई है।
  • राज्य सतर्कता आयोग में भी जाँच एवं पूछताछ संबंधी विभिन्न अभिकरण कार्य करते हैं। इसका प्रमुख लोकायुक्त या राज्य सतर्कता आयुक्त होता है, जिसकी सहायता के लिए अन्य सहायक आयुक्त भी होते हैं।
  • आयोग अपनी कार्यवाहियों की एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार कर राज्यपाल को भेजता है। यह वार्षिक रिपोर्ट राज्यपाल द्वारा राज्य विधानसभा में प्रस्तुत की जाती है।

केन्द्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission)
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत् गठित यह एक विधिक (सांविधिक) निकाय है।
  • पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के संवर्द्धन एवं प्राधिकारियों के नियंत्रणाधीन सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन किया गया है।
  • यह एक बहुसदस्यी निकाय है जिनमें एक मुख्य सूचना आयुक्त तथा अन्य सूचना आयुक्त होते है। मुख्य सूचना आयुक्त व अन्य आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति एक समिति (प्रधानमंत्री के नेतृत्व में, लोक सभा से विपक्ष के नेता व प्रधानमंत्री द्वारा नाम विनिर्दिष्ट संघ मंत्रिमंडल का एक मंत्री) की सिफारिश पर करता है।
  • मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्तों क वेतन-भत्ते एवं अन्य सेवा शर्तों का निर्धारण केन्द्र सरकार द्वारा किया जाएगा जिनमें इनके सेवा काल के दौरान कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
  • मुख्य सूचना आयुक्त तथा अन्य आयुक्त पद ग्रहण से 5 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र (जो भी पहले हो), तक पद धारण करेंगे।

केन्द्रीय सूचना आयोग की शक्तियाँ और कार्य
  • आयोग किसी भी व्यक्ति से शिकायतें प्राप्त कर सकता है और उनकी जाँच कर सकता है।
  • आयोग समुचित आधार पर किसी भी मामले में अपनी पहल पर जाँच करने का आदेश दे सकता है।
  • जाँच करते समय आयोग के पास एक सिविल अदालत की शक्तियाँ होती हैं।
  • किसी शिकायत की जाँच के दौरान आयोग किसी भी ऐसे अभिलेख का परीक्षण कर सकता है, जो सार्वजनिक प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन है।
  • आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंपता है।

राज्य सूचना आयोग (State Information Commission)
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत् गठित राज्य सूचना आयोग एक उच्च प्राधिकार युक्त स्वतंत्र विधिक निकाय है।
  • यह एक बहु सदस्य निकाय है जिसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्त होते हैं, जिनकी संख्या 10 से अधिक नहीं होनी चाहिये।
  • राज्य सूचना आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिश पर की जाती है। इनके वेतन, भत्ते एवं अन्य सेवा शतों का निर्धारण केन्द्र सरकार द्वारा किया जाएगा जिसमें इनकी नियुक्ति के पश्चात् कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
  • आयोग के अध्यक्ष व सदस्य अपने पद पर 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक बने रह सकते हैं। यह राज्य सूचना आयोग राज्य सरकार के अधीन कार्यरत कार्यालयों, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि के बारे में शिकायतों एवं अपीलों की सुनवाई करता है।

केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI)
  • सी.बी.आई. केन्द्र सरकार की मुख्य अनुसंधान ऐजेंसी है। जिसकी स्थापना भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए गठित संथानम् समिति की सिफारिश पर 1963 में की गई।
  • सी.बी.आई कोई वैधानिक संस्था नहीं है। यह गृह मंत्रालय के एक संकल्प द्वारा स्थापित हुई थी, बाद में इसे कार्मिक मंत्रालय को स्थानांतरित कर दिया गया और उसकी स्थिति वहां एक सम्बद्ध कार्यालय के रूप में रही। बाद में स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट, (जो कि निगरानी के मामले देखता था) का भी इसमें विलय कर इसके स्वतंत्र निकाय बना दिया गया।
  • इसे शक्ति दिल्ली विशेष पुलिस अधिष्ठान अधिनियम, 1946 से मिलती है।

कार्य/कार्यपणाली
  • सी.बी. आई. भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों, आर्थिक अपराधों और परम्परामत अपराध के मामलों की जाँच का कार्य करती है।
  • यह सामान्य रूप से अपनी गतिविधियों को केन्द्र सरकार और संघशासित प्रदेशों तथा उनके सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, कर्मचारियों के द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार सम्बन्धी अपराधों तक सीमित रखती है।
  • यह राज्य सरकारों द्वारा सौंपे जाने पर या उच्चतम न्यायालय/उच्च न्यायालयों के द्वारा निर्देशित किये जाने पर हत्या, अपहरण और बलात्कार जैसे परम्परागत अपराधों की जाँच भी करती है।
  • यह लोकपाल एवं केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त की सहायता करती है।
  • सीबीआई भारत में इंटरपोल के राष्ट्रीय केन्द्रीय ब्यूरो के रूप में कार्य करती है।
  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो उपरोक्त की जाँच करने के लिये दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (DSPE Act) से अधिकार प्राप्त करता है और इसी के तहत् सात जाँच विभागों का गठन करता है।
जो निम्नलिखित हैं-
  1. भ्रष्टाचाररोधी विभाग।
  2. आर्थिक अपराध विभाग।
  3. विशेष अपराध विभाग।
  4. नीति एवं अन्तर्राष्ट्रीय पुलिस सहयोग विभाग ।
  5. प्रशासन विभाग।
  6. अभियोजन निदेशालय।
  7. केन्द्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला।
  • भ्रष्टाचार निवारण विभाग, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत पंजीकृत सभी मामलों और भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं अथवा अन्य कानन के अंतर्गत अपराधों, यदि उन्हें घूसखोरी तथा भ्रष्टाचार के अपराधों के साथ किया गया हो, के मामलों की जाँच करता है। साथ ही, लोक-सेवकों द्वारा की गई गंभीर अनियमितताओं से संबंधित आरोपित किये गए मामलों की भी जाँच करता है।
  • यह राज्य सरकारों के लोक-सेवकों के विरुद्ध मामलों की भी जाँच करता है, यदि मामला सी. बी. आई. को सौंपा गया है।
  • विशेष अपराध विभाग, आर्थिक अपराधों और परंपरागत अपराधों के सभी मामलों की जाँच करता है, जैसे कि आंतरिक सुरक्षा, जासूसी, तोड़-फोड़, नारकोटिक्स और नशीले पदार्थ, पुरातन अवशेष, हत्या, डकैतियाँ/लूट, धोखाधड़ी, विश्वास का आपराधिक तौर पर भंग होना, जालसाजी, दहेज के कारण मौतें, संदेहास्पद मौतें और भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अन्य अपराध आदि।

भ्रष्टाचाररोधी कानूनों का निर्माण

भारत में भ्रष्टाचार की रोकथाम हेतु कई भ्रष्टाचाररोधी कानूनों का लागू किया गया है, जिनमें से कुछ प्रमुख कानून निम्नानुसार हैं-

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1947
भ्रष्टाचार निवारण हेतु स्वतंत्र भारत में लाया गया यह पहला अधिनियम था। इस अधिनियम के माध्यम से भारतीय दंड संहिता (धारा 161 से 165 तक) में भ्रष्ट लोक सेवकों एवं कर्मचारियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करने के लिए भ्रष्टाचार संबंधी परिभाषा के वैधानिक उपबंधों का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं-
  • इस अधिनियम में एक नए अपराध "पद कर्त्तव्य के निर्वहन में आपराधिक कदाचार" को परिभाषित किया गया। जिसके लिए सजा का प्रावधान न्यूनतम एक वर्ष और अधिकतम 7 बर्ष किया गया था।
  • इसके अन्तर्गत कुछ मामलों में सबूत देने का प्रभार भी अभियुक्त पर ही डाला गया।
  • इस अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया था कि जब कभी यह साबित कर दिया जाता है कि 'लोक-सेवक' ने कोई परितोषण ग्रहण किया है तो यह माना जाएगा कि लोक-सेवक ने इस अधिनियम के तहत् भ्रष्टाचार किया है। 

आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 1952
आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 1952 के लागू होने के पश्चात् भ्रष्टाचार से संबंधी कानूनों में कुछ परिवर्तन हुए, जो निम्नानुसार हैं-
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 165 के अधीन उल्लिखित सजा को दो वर्ष की बजाय तीन वर्ष कर दिया गया।
  • भारतीय दंड संहिता में एक नई धारा 165 (क) जोड़ दी गई जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 161 और 165 में परिभाषित किये गए अपराधों को दुष्प्रेरित करना भी अपराध बना दिया गया।
  • इसमें यह भी प्रावधान किया गया कि भ्रष्टाचार से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई विशेष न्यायाधीशों द्वारा ही की जाए।

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 एवं संशोधित अधिनियम 2018
इस अधिनियम में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1947, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 1952 और भारतीय दंड संहिता के कुछ उपबंधों (धारा 161 से 165A) को शामिल किया गया है। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
  • इस अधिनियम में 'लोक-सेवक' शब्द की परिभाषा का विस्तार किया गया है, अतः बड़ी संख्या में कर्मचारियों को इसके दायरे में लाया गया। साथ ही इसमें 'लोक कर्त्तव्य' की नवीन अवधारणा को भी शामिल किया गया है।
  • भारतीय दंड संहिता में भ्रष्टाचार से संबंधित अपराधों को अधिनियम के अध्याय 3 में रखा गया है और भारतीय दंड संहिता से उन अपराधों को हटा दिया गया है।
  • इस अधिनियम में प्रावधान किया गया कि भ्रष्टाचार संबंधी सभी मामलों की सुनवाई विशेष न्यायाधीशों द्वारा हो होगी, साथ ही न्यायालय की कार्यवाही दिन-प्रतिदिन के आधार पर होगी।
  • विविध अपराधों के लिये जुर्माने में वृद्धि की गई है।
  • इस अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई के शीघ्र निपटान हेतु दण्ड प्रक्रिया संहिता में संशोधन किया गया।
  • इस अधिनियम के तहत् कोई भी न्यायालय कार्यवाही पर रोक के आदेश, मंजूर की गई शास्ति में किसी चूक या अनियमितता के आधार पर तब तक नहीं जारी करेगा, जब तक न्यायालय के विचार में उचित न्याय करने में विफलता न हुई हो।
  • इस अधिनियम में रिश्वत देने वाले व्यक्ति को उपधारणा, उन्मुक्ति, उप पुलिस अधीक्षक के स्तर के अधिकारी द्वारा बैंकों के रिकॉों तक पहुंच आदि प्रावधानों को पूर्ववत् ही रखा गया।
  • इस अधिनियम में रिश्वत संबंधी अपराधों और अन्य संबंधित अपराधों एवं जर्मानों को सूचीबद्ध किया गया। इन अपराधों में किसी पदेन कृत्य को करने या करने के लिए किसी लाभ हेतु उपहार या कोई भी अवैधानिक
  • परितोषण को ग्रहण करना या कोई भी अवैधानिक कृत्य करना आदि शामिल है।
वर्ष 2018 में 30 साल पुराने कानून (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988) में संशोधन किया गया, जो भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018 कहलाया, जिसमें निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
  • संशोधित अधिनियम में रिश्वत देने वाले को भी भ्रष्टाचार के दायरे में लाया गया है।
  • इसमें भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने का प्रावधान है।
  • इस अधिनियम के तहत् लोक सेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केन्द्र एवं राज्यों के मामलों में क्रमशः लोकपाल एवं लोकायुक्त से अनुमति लेनी होगी।
  • रिश्वत देने वाले को अपना पक्ष रखने के लिए 7 दिन का समय दिया जाएगा, जिसे 15 दिन तक बढ़ाया जा सकता है।
  • जांच के दौरान यह भी देखा जाएगा कि रिश्वत किन परिस्थितियों में दी गई है।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information (RTI) Act, 2005)
  • लोक प्राधिकारियों से नागरिकों द्वारा सूचना की प्राप्ति हेतु एक व्यावहारिक व्यवस्था की जरूरत को मान्यता देते हुए तथा सभी लोक प्राधिकारियों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता को प्रोत्साहन देने के लिए संसद ने 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया।
  • यह अधिनियम व्यापक है और प्रशासन के लगभग सभी मामलों पर सूचना के प्रकटीकरण को शामिल करता है। यह केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय सभी स्तरों की सरकारों पर लागू होता है। साथ ही यह सरकारी सहायता प्राप्त करने वाले गैर-सरकारी संगठनों और सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण और वित्त पोषण के अधीन आने वाले निकायों पर भी लागू होता है।
  • यह विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं सभी संवैधानिक निकायों को अपने दायरे में शामिल करता है।
इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ या प्रावधान निम्नलिखित हैं-
  • इस अधिनियम के तहत् केंद्रीय एवं राज्य स्तर पर सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत् भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है, यह सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है। यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वंतत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटों के भीतर ही उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
  • इस अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेजों का संरक्षण करते हुए। उन्हें कम्प्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।
  • प्राप्त की गई सूचना की विषयवस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त न होने जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत सभी संवैधानिक पद, निकाय, संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियमों द्वारा गठित संस्थानों और निकायों को दायरे में लाया गया।
  • इस अधिनियम के अन्तर्गत राष्ट्र की संप्रभुता, एकता-अखण्डता, सामरिक हितों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली सूचनाएँ प्रकट करने की बाध्यता से मुक्ति प्रदान की गई है।
  • इसके कार्यक्षेत्र में केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो, रॉ, बीएसएफ, सीआईएसएफ, एनएसजी जैसे अभिसूचना और सुरक्षा संगठन शामिल नहीं हैं फिर भी इन संगठनों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन या भ्रष्टचार के आरोपों से जुड़ी सूचनाएँ इसके दायरे में आती हैं।
सन्, 2019 में संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में संशोधन किया था, जिस पर कई आलोचकों एवं विश्लेषकों का मानना था कि इस कदम से सूचना का अधिकार कानून की मूल भावना ही खतरे में आ जाएगी। अधिनियम में मुख्य संशोधन निम्नानुसार हैं-
  • संशोधन के तहत प्रावधान किया गया कि भारत के मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्तों तथा राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य अन्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्ते केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएमी।
  • उल्लेखनीय है कि RTI अधिनियम की धारा-13/ में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध किया गया था। अधिनियम में कहा गया था कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते और शर्ते क्रमशः मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होंगी। इसमें यह भी उपबंध किया गया था कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमशः निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगा।

सूचना का अधिकार अधिनियम के उद्देश्य
  • पारदर्शिता लाना।
  • जवाबदेही तय करना।
  • नागरिकों को सशक्त बनाना।
  • भ्रष्टाचार पर रोक लगाना।
  • लोकतंत्र की प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करना।

सूचना का अधिकार अधिनियम के लाभ
  • यह समाज के गरीब और वंचित वर्गों को सार्वजनिक नीतियों और कार्यों के बारे में जानकारी मांगने और प्राप्त करने हेतु सशक्त बनाता है, जिससे उनका कल्याण संभव हो सके।
  • यह सरकार के सभी कार्यों को आम जनता के समक्ष जाँच के दायरे में लाता है।
  • यह सरकार और सरकारी विभागों को और अधिक जवाबदेह बनाता है और उनके कार्यों में पारदर्शिता लाता है।
  • यह सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा अनावश्यक गोपनीयता को हटाकर निर्णयन में सुधार करता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम के समक्ष चुनौतियाँ
  • लोगों में जागरूकता की कमी।
  • प्रदान की गई सूचनाएँ अधिकांशतः अधूरी होना।
  • लोगों को समय पर सूचना प्राप्त न हो पाना।
  • शासन-प्रशासन में रिकार्डों को रखने व उनके संरक्षण की व्यवस्था का कमजोर होना।
  • पर्याप्त अवसंरचना और स्टाफ का अभाव।
  • अधिनियम के पूरक कानूनों जैसे- 'व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम' आदि का अच्छे से क्रियान्वयन नहीं हो पाना।

सूचना का अधिकार अधिनियम का उपयोग आम नागरिक कैसे करें?
  • आपको जिस लोक प्राधिकारी से जानकारी चाहिए, उसकी पहचान कीजिए।
  • उस लोक सूचना अधिकारी को चिन्हित कीजिए, जिसके पास यह जानकारी है।
  • जानकारी प्राप्त करने के लिए लिखित आवेदन तैयार कीजिए।
  • आवेदन में जानकारी का स्पष्ट उल्लेख कीजिए, किस रूप में (छायाप्रति, सीडी, फ्लापी, प्रिंटआउट, अवलोकन, निरीक्षण) जानकारी चाहिए। आवेदन के साथ शुल्क रु. 10/- नकद या नॉन ज्यूडिशियल स्टॉम्प के रूप में जमा करें अथवा पोस्टल ऑर्डर संलग्न करें।
  • यदि गरीबी रेखा के नीचे के आवेदक हैं तो इससे संबंधित प्रमाणपत्र (छायाप्रति) संलग्न कीजिए।
  • आवेदन में अपना पत्राचार का पता दीजिए, एवं फोन नंबर दीजिए।
  • संबंधित लोक सूचना अधिकारी के यहाँ आवदेन जमा कर पावती प्राप्त कीजिए।
  • 30 दिन में जानकारी न मिलने पर अपोलीय अधिकारी के पास आवेदन कीजिए, यदि जानकारी मिल भी गई लेकिन आपको लगता है कि यह जानकारी सही नहीं है या आधी-अधूरी जानकारी दी गई है, तो आप जानकारी प्राप्त होने की दिनांक से 30 दिन के अंदर अपीलीय अधिकारी के पास पुनः आवेदन कर सकते हैं।
  • अपीलीय अधिकारी के स्तर से भी यदि समुचित कार्यवाही न की जा रही हो अर्थात् आपको जानकारी उपलब्ध न हो तो द्वितीय अपील 90 दिन के अंदर सूचना आयोग के समक्ष कर सकते हो।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत जानकारी निम्नलिखित रूप में प्राप्त की जा सकती है-
  1. कार्यालय अभिलेख, फाइलों एवं कार्यों का निरीक्षण।
  2. कार्यालय में संधारित अभिलेख/दस्तावेजों की प्रमाणित छायाप्रति।
  3. सामग्री के प्रमाणित नमूने।
  4. कम्प्यूटर से उपलब्ध सीडी/फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेट या-प्रिंट-आउट के रूप में।

व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014 (The Whistleblowers Protection Act, 2014)
  • लोक हित प्रकटीकरण अधिनियमों का अधिनियमन करने और गैर-कानूनी गतिविधियों के सूचनादाताओं की रक्षा करने के उद्देश्य से व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम 2014 लाया गया।
  • इस अधिनियम में कुल 6 अध्याय और 31 धाराएँ हैं।
  • यह अधिनियम सूचना के अधिकार अधिनियम का पूरक है, इसमें 'व्हिसलब्लोअर' को स्पष्ट परिभाषित न कर इसे एक (शिकायतकर्ता) परिवादी के रूप में बताया गया है।
  • सामान्य रूप में व्हिसलब्लोअर वह होता है, जो भ्रष्टाचार तथा अन्य अनैतिक कार्यों का खुलासा करता है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य एक ऐसी नियमित प्रणाली प्रदान करना है, जिससे लोक सेवकों और मंत्रियों द्वारा भ्रष्टाचार या सत्ता का जान बूझकर दुरुपयोग करने के बारे में जानकारी देने वाले व्यक्तियों को प्रोत्साहित किया जा सके।

विशेषताएँ
व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014 की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
  • इसमें भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले लोगों की सुरक्षा और गलत या फर्जी शिकायत करने वाले लोगों के लिए दंड का प्रावधान किया गया है।
  • इसमें किसी सरकारी कर्मचारी के भ्रष्टाचार या प्रदत्त शक्ति का दुरुपयोग करने के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराने के लिए तंत्र की स्थापना की व्यवस्था की गई है।
  • इसमें खुलासे की जाँच की प्रक्रिया निर्धारित करने के साथ ही जानकारी देने वाले लोगों की सुरक्षा के पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं।
  • यह अधिनियम केंद्रीय सतर्कता आयोग को सशक्त बनाएगा और आवश्यकता पड़ने पर जानकारी देने वालों को पुलिस सुरक्षा की गारंटी भी देगा।
  • प्रतिकार की आशंका से भयभीत कोई भी व्यक्ति इस कानून के तहत् संरक्षण पा सकता है।
  • यह गोपनीय सूचनाओं के खुलासे की अनुमति को प्रतिबंधित करता है।
  • इस अधिनियम के तहत् सक्षम प्राधिकारी को सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।

लोक-सेवा गारंटी अधिनियम (Public Service Guarantee Act)
लोक सेवा गारंटी की संकल्पना नागरिक घोषणा-पत्र को वैधानिक रूप देने से जुड़ी है। एक जवाबदेहो प्रशासन के लिए यह आवश्यक है कि वह न सिर्फ जनता के प्रति अपनी नैतिक बाध्यताओं को स्पष्ट करे बल्कि उन्हें वैधानिक रूप से भी स्वीकार करे। लोक-सेवा गारण्टी अधिनियम जनता को यह अवसर प्रदान करता है कि वे लोक-सेवाओं को विधिक रूप से प्रश्नगत करें और लोक सेवकों को विधिक रूप से दंडित कर सकें। भारत में लोक सेवा गांरटी अधिनियम बनाने वाला पहला राज्य मध्यप्रदेश था, जिसने अगस्त, 2010 में सरकारी सेवाओं की विधिक बाध्यता को स्वीकार किया। उसके बाद बिहार, दिल्ली, पंजाब, हिमाचलप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों ने इस कानून को लागू किया।

इन कानूनों के सामान्य प्रावधान निम्नलिखित हैं-
  • नागरिकों को लोक सेवाओं को निश्चित समय में उपलब्ध कराना।
  • तय समय सीमा में सेवा न मिलने पर नागरिक प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास अपील करते हैं जिसकी समय सीमा निर्धारित है, निराकरण न होने पर द्वितीय अपील अधिकारी को अपील की जाती है।
  • अगर कोई लोक सेवक निश्चित समय सीमा में नागरिकों को सेवा उपलब्ध नहीं करवा पाता है तो लोक सेवक पर 250 रुपए प्रति दिन के हिसाब से 5 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा।
  • लोक सेवक से वसूली गई जुर्माने की राशि पीड़ित व्यक्ति को मुआवजे के रूप में दी जाएगी।
  • विभिन्न विभागों में लोक सेवा केंद्रों की स्थापना की जाएगी। वर्तमान में सभी विकास खण्डों में इनकी स्थापना की जा चुकी है।
  • इस अधिनियम के दायरे में 9 विभागों की 26 सेवाएं थी। वर्तमान में बढ़कर 52 विभागों की 172 सेवाएं अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित की जा चुकी हैं।

बेनामी सम्पत्ति व लेन देन (प्रतिषेध) अधिनियम, 2016
कालेधन पर रोक लगाने हेतु बेनामी लेन देन (प्रतिषेध) अधिनियम पहली बार 1988 में पारित किया तथा 2016 में इसमें संशोधन किया गया संशोधित अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं-
  • यह बेनामी लेनदेन की परिभाषा को बेनामी के मानदंड पर खरा उतरने वाले अन्य लेनदेन से जोड़ कर उसे संशोधित करता है, जैसे- सम्पत्ति का लेनदेन जहाँ
  1. लेनदेन काल्पनिक नाम पर किया जाता है,
  2. जहाँ स्वामी, सम्पत्ति के स्वामित्व की जानकारी से अभिज्ञ ह या उसकी जानकारी से इन्कार करता है, या
  3. जहाँ सम्पत्ति का मूल्य चुकाने वाला व्यक्ति अज्ञात हो तथा उसका पता न लगाया जा सका हो।
  • यह बेनामी लेनदेन से संबंधित पूछताछ या जाँच करने के लिए चार प्राधिकरणों की स्थापना करता है- (1) प्रवर्तक अधिकारी, (2) अनुमोदन अधिकारी, (3) प्रशासक तथा (4) निर्णायक प्राधिकारी।
  • यह बेनामी लेनदेन में प्रवेश के लिए अर्थदण्ड निर्धारित करता है।
  • यह वास्तविक स्वामी द्वारा बेनामीदार से बेनामी पाई गई सम्पत्ति की पुनः प्राप्ति का भी निषेध करता है।
  • यदि कोई सम्पत्ति पत्नी, बच्चे या परिवार के किसी सदस्य के नाम पर है, तो वह बेनामी सम्पत्ति की श्रेणी में नहीं आएगी।
  • अधिनियमों में नियमों का उल्लंघन करने की स्थिति में सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें बेनामी सम्पत्ति खरीदने पर 7 साल तथा जांच एजेन्सियों को गलत सूचना देने पर 5 साल की सजा का प्रावधान है।
  • आय घोषणा योजना के तहत् कोई व्यक्ति अपनी बेनामी सम्पत्ति की घोषणा करता है तो इस अधिनियम के प्रावधानों से उसे राहत दी जाएगी।
  • बेनामी सम्पत्ति सरकार द्वारा बिना कोई मुआवजा प्रदान किए जेब्त की जा सकती है।

ब्लैक मनी (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) और आयकर अधिनियम का अधिरोपण, 2015
यह अधिनियम ऐसी अघोषित विदेशी आय और संपत्ति से संबंधित है जो भारत के कर कानूनों और विदेशी मुद्रा संबंधी प्रावधानों का उल्लंघन करके छिपायी गई है। भारत में काले धन की समस्या से निपटने में इस कानून को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। 1 जुलाई 2015 से प्रभाव में आया हैं।

भ्रष्टाचार निवारण में समाज, परिवार, सूचना-तंत्र एवं व्हिसलब्लोअर की भूमिका
भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में जितना महत्त्व निगरानी संस्थाओं और कानूनों का है, उससे भी ज्यादा महत्त्व समाज, परिवार, सूचना तंत्र (मीडिया) एवं व्हिसलब्लोअर का है। भ्रष्टाचार निवारण हेतु बनाए गए कानून एवं निगरानी संस्थाएं बिना समाज, परिवार, मीडिया व व्हिसलब्लोअर के मृत प्राय सिद्ध होंगे, इसलिए इन सभी की सम्मिलित भूमिका से ही भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है। अतः भ्रष्टाचार निवारण में समाज, परिवार, सूचना तंत्र एवं व्हिसलब्लोअर की भूमिका को हम निम्नानुसार समझ सकते हैं-

भ्रष्टाचार निवारण में समाज की भूमिका
भ्रष्टाचार के खिलाफ जब तक आम जनता/समाज जागरुक नहीं होगी, भ्रष्ट गतिविधियों का प्रत्येक स्थान पर विरोध नहीं करेगी तब तक केवल कानूनों एवं निगरानी संस्थाओं से भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार भ्रष्टाचार निवारण में समाज की भूमिका को हम निम्न प्रकार समझ सकते हैं-
  • आज समाज में भ्रष्टाचार की एक सामाजिक स्वीकार्यता बन गई, इस सामाजिक स्वीकार्यता को बदलकर समाज में भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है।
  • समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त आंदोलन चलाकर, भ्रष्टाचार को समाज में नियंत्रित किया जा सकता है। इस प्रकार एक सतर्क एवं सुदृढ़ समाज भ्रष्टाचार पर प्रभावी निगरानी रख सकता है।
  • भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं की जानकारी देने वालों (व्हिसलब्लोअर) को समाज प्रोत्साहित एवं सुरक्षा प्रदान कर भ्रष्टाचार निवारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
  • महत्वपूर्ण सरकारी संस्थाओं और कार्यालयों जहां बड़ी संख्या में जन सम्पर्क होता है, में सदाचार व नैतिकता का आकलन करने तथा उसे बनाए रखने की प्रक्रिया में लोगों को शामिल कर भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सकता है।
  • सामाजिक कुरीतियों का अंत कर भी समाज भ्रष्टाचार को नियंत्रित कर सकता है, जैसे दहेज प्रथा के कारण सरकारी कर्मचारी अपनी बेटी की शादी में दहेज देने के लिए पैसे जुटाने के चक्कर में भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं। अतः सामजिक कुरीतियों का अन्त कर भी समाज से भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है।
  • समाज में भ्रष्टाचारियों को बहिष्कृत कर, समाज में भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है।

भ्रष्टाचार को रोकन में परिवार की भूमिका
प्रत्येक व्यक्ति परिवार से ही परिपूर्ण होता है एवं बह परिवार के बिना नहीं रह सकता है, ऐसे में परिवार भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में सबसे सशक्त भूमिका निभा सकता है। अतः भ्रष्टाचार को समाप्त करने में परिवार की भूमिका को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-
  • परिवार अपने बच्चों में उच्च नैतिक मूल्यों जैसे- सदाचार, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा आदि को बढ़ाने पर प्रारंभ से ध्यान दे, तो इस बात की अधिक संभावना है, कि वह बच्चा भविष्य में कम भ्रष्ट होगा।
  • भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति पर पारिवारिक दबाव बनाकर भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • यदि कोई व्यक्ति पारिवारिक दबाव के बाद भी भ्रष्टाचार करता है, तो परिवार इसका बहिष्कार कर भ्रष्टाचार न करने हेतु उसे प्रेरित कर सकता है।
  • भ्रष्टाचार से अर्जित संपत्ति वाले परिवार के सदस्य सुविधा एवं विलासिता पूर्ण जीवनयापन के आदि हो जाते हैं, ऐसे में वे और अधिक भ्रष्टाचार करने की ओर अग्रसर होते हैं। अतः यदि वे भोग विलासितापूर्ण जीवन न जिये और सीमित आय से अपना खर्च चलाए तो भ्रष्टाचार की कम संभावना है।
  • अधिकांशतः यह देखा जाता है, कि परिवार के सदस्य उपभोक्तावादी संस्कृति से प्रभावित होकर अधिक सुख-सुविधाओं की कामना करते हैं, ऐसे में व्यक्ति भ्रष्टाचार के माध्यम से अधिक धन कमाने की जुगाड़ में रहता है। ऐसे में परिवार के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। इसके विपरीत यदि परिवार भोगवादी संस्कृति का त्याग करे और सीमित आय से जीवन यापन करे, तो भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है।
  • परिवार अपने सदस्यों/बच्चों में उच्च नैतिक मूल्यों का विकास कर उन्हें भ्रष्टाचार के प्रति आकर्षित होने से रोक सकता है।
  • परिवार की चिंता भी लोगों को भ्रष्टाचार के प्रति हतोत्साहित करती है, क्योंकि उसको इस बात की चिंता रहती है, कि यदि वह भ्रष्टाचार के मामले में जेल चला गया, तो उसके परिवार का क्या होगा।

भ्रष्टाचार निवारण में सूचना-तंत्र (मीडिया) की भूमिका
मीडिया/सूचना तंत्र भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत् समझ सकते हैं-
  • मीडिया, जनता को भ्रष्टाचार पर सूचना एवं शिक्षा देकर भ्रष्टाचार को नियंत्रित कर सकती है।
  • मीडिया सरकार में भ्रष्टाचार एवं घोटालों का पर्दाफाश करती है।
  • सूचना तंत्र ई-प्रशासन के माध्यम से प्रशासन में पारदर्शिता व खुलापन लाता है, जिससे भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • मीडिया समाज में ईमानदारी एवं सत्यनिष्ठा का प्रचार-प्रसार कर एवं नैतिक मूल्यों का विकास कर भ्रष्टाचार को नियंत्रित करती है।
  • मीडिया, भ्रष्टाचार को कुकृत्त्य एवं घृणित बताकर व निन्दा कर समाज में भ्रष्टाचार की स्वीकार्यता को कम करती है।
  • मीडिया, भ्रष्टाचार निवारक कानूनों के संदर्भ में लोगों में जागरुकता का प्रसार करती है।
  • मीडिया भ्रष्टाचार के मामलों के बारे में सरकारी जांच एजेंसियों जैसे- CBI, EVC, आदि को नियमित ब्यौरे जानकारी देकर भ्रष्टाचार की लड़ाई में सहायता कर सकती है।
  • भ्रष्टाचार संबंधी सभी आरोपों व शिकायतों के लिए आवश्यक समुचित जांच के मानदंड और प्रणाली को अपना कर तथा उन्हें जनता के सामने लाने हेतु कार्यवाही कर मीडिया भ्रष्टाचार को नियंत्रित कर सकती है।
  • सोशल मीडिया (फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर) से आज प्रत्येक व्यक्ति पत्रकार बन गया और वह इसके माध्यम से भ्रष्टाचार संबंधी मामलों पर अपनी राय व्यक्त कर भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • मीडिया विभिन्न स्टिंग्स आँपरेशनों के माध्यम से बड़े-बड़े घोटालों व भ्रष्टाचारों का खुलासा करती है।
  • सोशल मीडिया ने लोगों को सार्वजनिक मंच उपलब्ध कराया है। यदि किसी अधिकारी द्वारा कार्यवाही नहीं की जाती है, या रिश्वत मांगी जाती है, या अन्य आर्थिक लाभों की अपेक्षा की जाती है, तो पीड़ित उसे सोशल मीडिया के माध्यम से संज्ञान में लाकर कार्यवाही करने का दबाव बना सकता है।
  • स्मार्ट फोन एवं अन्य तकनीकी माध्यमों से भ्रष्टाचार संबंधी साक्ष्य एकत्र करना जैसे- फोटो खींचना, आवाज रिकॉर्ड करना, कॉल रिकॉर्ड करना, विडियो बनाना आसान हो गया है। इससे भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना आसान हो गया है।
  • मीडिया विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली रिपोर्टों का मिलान व मूल्यांकन कर तथा सार्वजनिक कार्यालयों में शिकायतों का अनुवीक्षण कर भ्रष्टाचार का पता लगाती है।

भ्रष्टाचार निवारण में व्हिसलब्लोअर की भूमिका
व्हिसलब्लोअर वह होता है, जो भ्रष्टाचार तथा अन्य अनैतिक कार्यों का खुलासा करता है या सूचना देता है। इस प्रकार भ्रष्टाचार के मामले सामने लाने एवं भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में व्हिसलब्लोअर की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसे हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-
  • ये सरकारी, अर्द्ध सरकारी एवं निजी संस्थाओं में हो रहे घोटालों एवं भ्रष्टाचारों का खुलासा करते है, जैसे व्यापम घोटाला आदि।
  • व्हिसलब्लोअर आर.टी.आई. के माध्यम से भ्रष्टाचार को नियंत्रित करते हैं।
  • व्हिसलब्लोअर के भय के कारण सरकारी, अर्द्धसरकारी व निजी संस्थाओं के अधिकारी व कर्मचारी भ्रष्टाचार से दूर रहते हैं।
  • ये संगठन में रहते हुए भ्रष्टाचार संबंधी जानकारी व साक्ष्य एकत्र कर घोटालों के खुलासे में मदद करते हैं। जैसे-इंडियन ऑयल घोटाला आदि।
  • इनकी उपस्थिति के कारण संगठन के अधिकारियों पर ईमानदारीपूर्ण एवं सत्यनिष्ठा के साथ कर्त्तव्य पालन का दवाब बना रहता है।

भ्रष्टाचार पर संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा
भ्रष्टाचार को एक विश्वव्यापी समस्या के रूप में देखते हुए तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफी अन्नान ने इसके विरुद्ध सम्मेलन बुलाया जिसमें भ्रष्टाचार के विरोध में अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनी। इसे संयुक्त राष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी प्रसंविदा (यू.एन.सी.ए.सी.) के नाम से जाना गया। यह भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों द्वारा किया गया, एक बहुपक्षीय कानूनी रूप से बाध्यकारी सार्वभौमिक भ्रष्टाचार विरोधी उपाय है। इस अभिसमय के अंतर्गत भ्रष्टाचार रूपी वैश्विक समस्या के समाधान के उपाय/साधन निर्धारित किये गए हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 31 अक्टूबर, 2003 को संकल्प/प्रस्ताव द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभिसमय पारित किया गया था। इस अभिसमय को 14 दिसंबर, 2005 से लागू कर दिया गया। इस अभिसमय पर 140 सदस्य देशों ने हस्ताक्षर करके अनुसमर्थन प्रदान किया। अक्टूबर, 2017 तक 183 देश इस अभिसमय पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।
इस अभिसमय या प्रसंविदा के अन्तर्गत कुल 71 अनुच्छेद हैं, जो 8 अध्यायों में विभक्त हैं। यह प्रसंविदा सदस्य देशों से यह अपेक्षा करती है कि उसके अन्तर्गत आने वाले विभिन्न अनुच्छेदों को वे अपने भ्रष्टाचार विरोधी विभिन्न कानूनों, नियमों, संस्थानों एवं व्यवहारों में स्थान दें। अभिसमय में भ्रष्टाचार के विभिन्न प्रकार शामिल हैं, जैसे- रिश्वतखोरी, व्यापार पर प्रभाव डालना, कार्यो का दुरुपयोग एवं निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार के विभिन्न कार्य। इस
अभिसमय में अपराधियों को प्रत्यर्पित करने के लिये तथा अदालत के उपयोग में आने वाले साक्ष्य एकत्रित और | स्थानांतरित करने में और पारस्परिक कानूनी सहायता के विशिष्ट सहयोग के रूप में सौंपने के प्रावधान निर्धारित किये गए हैं। संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स व क्राइम कार्यालय इस प्रसंविदा को लागू करता है।

प्रावधान
इस अभिसमय में पाँच प्रमुख क्षेत्रों को सम्मिलित किया गया है जिसमें निवारक उपाय, अपराधीकरण और कानून प्रवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, संपत्ति की वसूली तथा तकनीकी सहायता एवं सूचना विनिमय शामिल हैं। जो निम्न प्रकार हैं-
  • सामान्य प्रवाधान - इसमें यूएन कांफ्रेंस के उद्देश्य, सत्यनिष्ठता और जबावदेही की परिभाषा के साथ ही सदस्य देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और तकनीकी सहायता को शामिल किया गया है।
  • निरोधक उपाय - इनमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों को निरोधक उपायों के तहत् शामिल करने के साथ ही भ्रष्टाचाररोधी संस्थाओं की स्थापना, चुनाव प्रचार के वित्त पोषण में पारदर्शिता और राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को पारदर्शी बनाये जाने के प्रावधान शामिल है।
  • आपराधिक और विधि प्रवर्तन - भ्रष्टाचार संबंधी अपराधों को पुनः परिभाषित करने और भ्रष्टाचार के अन्य तरीकों को अपराध घोषित करने के प्रावधान है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग - भ्रष्टाचार रोधी जांच और अपराधियों को सजा दिलाने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अनिवार्य होगा।
  • सम्पत्ति की वसूली - सदस्य देशों में भ्रष्टाचार से अर्जित सपत्ति की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वूसली की जा सकेगी।
  • तकनीकी सहायता और सूचनाओं के आदान - प्रदान कार्यान्वयन के लिए तंत्र की स्थापना तथा उपाय।
उपर्युक्त प्रावधानों के तहत् भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की दिशा में सदस्य देशों द्वारा प्रयासों की शुरूआत हुई, परंतु वर्तमान में भी इन प्रावधानों को वैश्विक तथा घरेलू स्तर पर लागू करना,नीतिगत दिशा निर्देश, तकनीकी सहायता, सभी देशों के अपने-अपन हित आदि चुनौतियां मौजूद हैं, जिनसे शीघ्र निजात पाए जाने के उपाय समन्वय व आपसी सहयोग से दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ करने होंगे, जिससे भ्रष्टाचार जैसी खतरनाक समस्या को दूर किया जा सके।

उद्देश्य
  • भ्रष्टाचार रोधी संयुक्त राष्ट्र संघ के इस अभिसमय के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
  • भ्रष्टाचार को नियंत्रित एवं अल्पमत करने वाले उपायों को बढ़ावा देना और मजबूत करने के लिए अधिक कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से प्रयास करना।
  • भ्रष्टाचार की रोकथाम और लड़ाई में तकनीकी सहायता व सुविधा प्रदान करना भ्रष्टाचार की जांच में सहयोग करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
  • लोक परिसंपत्ति एवं मामलों में सत्यनिष्ठा, जवाबदेही और उचित प्रबंधन को बढ़ावा देना।

ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल
ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल या अंतर्राष्ट्रीय पारदर्शिता एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी एवं गैर-लाभकारी संगठन है, जिसकी स्थापना भ्रष्टाचार रोकने के लिए प्रतिबद्ध व्यक्तियों के एक समूह द्वारा वर्ष 1993 में जर्मनी में हुई। ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल का मुख्यालय बर्लिन में स्थित है। यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों की सरकारी, वाणिज्यिक कंपनियों एवं कॉर्पोरेटों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार की निगरानी करता है।
ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल सत्ता, रिश्वतखोरी और गुप्त सौदों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकारों, उद्यमियों और नागरिकों के साथ मिलकर काम करता है।

संरचना/संगठन
  • ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल, अंतर्राष्ट्रीय सचिवालय, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स, व्यक्तिगत सदस्य, सलाहकार परिषद एवं अन्य स्वयंसेवकों की सहायता से ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के चार्टर द्वारा शासित होता है।
  • अंतिम निर्णय संगठन की वार्षिक सदस्यता बैठक, जिसमें मान्यता प्राप्त स्थानीय संगठन एवं व्यक्तिगत सदस्य शामिल होते हैं, में लिये जाते हैं।
  • ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के अन्तर्गत एक सैकड़ा से ज्यादा स्थानीय रूप से स्थापित स्वतंत्र संगठन अपने संबंधित देशों में भ्रष्टाचार से लड़ते हैं।
  • ये छोटी रिश्वत से लेकर बड़े पैमाने पर होने वाले घोटालों एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ स्थानीय विशेषज्ञों के साथ मिलकर कार्य करते हैं और भ्रष्टाचार की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उद्देश्य
  • ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल का उद्देश्य भ्रष्टाचार को रोकना तथा समाज एवं सभी स्तरों और क्षेत्रों में पारदर्शिता, जबावदेहिता और अखंडता को बढ़ावा देना है।
  • यह सरकार, राजनीति, नागरिक समाज और लोगों के दैनिक जीवन को भ्रष्टाचार से मुक्त होने का दृष्टिकोण रखता है।

भूमिका
ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल 100 से अधिक देशों में 1993 से भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये दुनिया भर में कार्य कर रहा है, इसकी भूमिका में हम निम्नानुसार समझ सकते हैं-
  • यह प्रतिवर्ष विभिन्न देशों में आंतरिक एवं बाहरी स्रोतों से प्राप्त जानकारी और सर्वेक्षण के आधार पर भ्रष्टाचार बोध सूचकांक जारी करता है। यह सूचकांक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार के स्तर का अध्ययन करने का एक महत्त्वपूर्ण मापदंड है।
  • यह वैश्विक भ्रष्टाचार बैरोमीटर, रिश्वतदाता सूचकांक, सरकारी रक्षा संबंधी भ्रष्टाचार रोधी सूचकांक, राजस्व पारदर्शिता संवर्द्धन तथा रक्षा क्षेत्र की कंपनियों का भ्रष्टाचार विरोधी सूचकांक का प्रकाशन करता है।
  • यह भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच नहीं करता बल्कि भ्रष्टाचार निवारण के लिए उपायों एवं साधनों का विकास करता है, साथ ही इन उपायों के प्रयोग से भ्रष्टाचार की रोकथाम करने में सहायता करता है।
  • ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल भ्रष्टाचार पर वैश्विक सहमति एवं इसके विरुद्ध सभी को एकजुट करता है।
  • भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के पारित एवं लागू होने में भी इसकी प्रमुख भूमिका रही है।
  • ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल भ्रष्टाचार रोधी उपकरण विकसित करने और बढ़ावा देने के लिए सक्रियता से कार्य करता है।
  • यह भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिए लोगों और संगठनों की क्षमता में वृद्धि करने का प्रयास करता है।
  • ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार रोकने हेतु भी उपाय सुझाता है।

आलोचना
इस संगठन ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनमत निर्माण में एक महतो भूमिका निभाई है। इसके बावजूद भी यह आलोचना से मुक्त नहीं है। विभिन्न आलोचकों ने निम्नलिखित आधार पर इसकी आलोचना की है-
  • कुछ आलोचकों का मानना है कि भ्रष्टाचार मापने की इसकी प्रविधि कमजोर है।
  • इस पर यह आरोप लगाया जाता है कि यह विकसित एवं विकासशील देशों के मध्य भेदभाव करता है।
  • हाल ही में इस पर आरोप लगा है कि इसने ऐसी कम्पनियों से भी अनुदान ग्रहण किया है, जो पूर्व में भ्रष्टाचार की गतिविधियों में संलिप्त रह चुकी है।
  • भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले व्यक्तियों की सहायता एवं सुरक्षा को लेकर भेदभाव के भी आरोप इस संगठन पर लगे हैं।

भ्रष्टाचार का मापन

भ्रष्टाचार का संबंध व्यक्ति के कार्य एवं व्यवहार से है। अतः इसको मापना एक कठिन प्रक्रिया है, क्योंकि यह निरंतर नए रूपों में सामने आता रहता है तथा कई बार इसकी पहचान करना भी मुश्किल हो जाता है। किसी राष्ट्र में कितना भ्रष्टाचार है, इसके संबंध में आकलन ही किया जाता है क्योंकि इस संदर्भ में प्रामाणिक डेटा और साक्ष्य उपलब्ध नहीं हो पाते हैं।
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हालांकि वर्तमान में भ्रष्टाचार मापन की कई विधियां एवं उपाय मौजूद हैं, लेकिन फिर भी भ्रष्टाचार के संबंध में कोई स्पष्ट साक्ष्य और इसकी तीव्रता के कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। वर्तमान में भ्रष्टाचार मापने के कई साधन हैं, जिनका वर्णन निम्नानुसार है-
  • भ्रष्टाचार बोध सूचकांक - यह सूचकांक ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा वर्ष 1995 से प्रतिवर्ष जारी किया जाता है। इसमें विभिन्न देशों को भ्रष्टाचार के अधिकतम या न्यूनतम मापदंड पर रैंक प्रदान की जाती है। इस सूचकांक में किसी को भी पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार मुक्त जैसा दर्जा प्रदान नहीं किया जाता बल्कि भ्रष्टाचार अधिकतम या न्यूनतम होने की सीमा पर रैंकिंग प्रदान की जाती है।
  • वैश्विक भ्रष्टाचार बैरोमीटर - इसका प्रकाशन भी ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल द्वारा प्रतिवर्ष किया जाता है। यह सूचकांक मुख्य रूप से लोगों की राय पर आधारित होता है। इसके तहत् लोगों से यह पूछा जाता है कि शासकीय कार्यों को कराने के लिए क्या उन्होंने किसी प्रकार की रिश्वत दी है।
  • रिश्वत दाता सूचकांक - इसका प्रकाशन भी ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा वर्ष 1999 से लगातार किया जा रहा है। यह सूचकांक विभिन्न देशों की औद्योगिक कंपनियों के बीच व्यापार, लाभ एवं आपूर्ति प्रभावित करने के लिए बड़े पैमाने पर रिश्वत के लेन-देन होने की स्थिति को बताता है।
  • सरकारी रक्षा संबंधी भ्रष्टाचाररोधी सूचकांक - इसका प्रकाशन भी ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा वर्ष 2013 से किया जा रहा है। यह रक्षा एवं सुरक्षा संस्थानों में भ्रष्टाचार के जोखिम को नियंत्रित करने के लिए संस्थागत एवं अनौपचारिक नियंत्रणों के अस्तित्व, प्रभाव और प्रवर्तन का मूल्यांकन करता है।
  • राजस्व पारदर्शिता संवर्धन - इसका प्रकाशन ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा किया जाता है। यह विभिन्न तेल और गैस कंपनियों के राजस्व एवं भागीदारी देख-रेख के संदर्भ में पारदर्शिता से संबंधित है। इन कंपनियों में पारदर्शिता का मूल्यांकन मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों-भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रमों, संगठनात्मक प्रकटीकरण और वित्तीय तथा तकनीकी डाटा के राष्ट्र स्तर पर प्रकटीकरण से संबंधित है।
  • वैश्विक सत्यनिष्ठा रिपोर्ट - यह रिपोर्ट 'ग्लाबल इंटीग्रिटी' नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा प्रतिवर्ष जारी की जाती है। यह रिपोर्ट भ्रष्टाचाररोधी संस्थाओं और दुनिया भर की जांच एजेंसियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शिका है, जिसका उद्देश्य नीति निर्माताओं, अधिवक्ताओं, पत्रकारों और नागरिकों को उन क्षेत्रों की पहचान कराने से है, जहाँ सार्वजनिक क्षेत्र के भीतर भ्रष्टाचार होने की अधिक संभावना है। यह रिपोर्ट भ्रष्टाचाररोधी कानूनी ढाँचे और उसके व्यावहारिक कार्यान्वयन के मूल्यांकन से संबंधित है।
  • विश्वव्यापी शासन संकेतक - इसका प्रकाशन विश्व बैंक द्वारा किया जाता है। यह विभिन्न देशों और क्षेत्रों के लिए समग्र और व्यक्तिगत प्रशासन के संकेतकों से संबंधित है। यह शासन के निम्नलिखित छः संकेतकों के लिए रिपोर्ट प्रकाशित करता है-
  1. आवाज और जवाबदेही।
  2. राजनीतिक स्थिरता एवं हिंसा का अभावा,
  3. प्रशासन की प्रभावशीलता।
  4. विनियामक गुणवत्ता।
  5. विधि का शासन।
  6. भ्रष्टाचार का नियंत्रण।
  • रक्षा क्षेत्र की कंपनियों का भ्रष्टाचाररोधी सूचकांक - इसका प्रकाशन भी ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा वर्ष 2012 से किया जा रहा है। यह सूचकांक रक्षा व सुरक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार को आपूर्ति पक्ष का मापन करता है।
  • अफ्रीकन शासन पर इब्राहिम सूचकांक - यह सूचकांक मोहम्मद इब्राहिम फाउंडेशन द्वारा वर्ष 2007 से प्रतिवर्ष जारी किया जा रहा है। यह सूचकांक अफ्रीकी देशों में शासन की गुणवत्ता का वार्षिक आकलन प्रदान करता है। यह सूचकांक चार मुख्य संकल्पनात्मक श्रेणियों के अंतर्गत प्रगति का मूल्यांकन करता है-
  1. सुरक्षा और विधि का शासन।
  2. भागीदारी और मानवाधिकार।
  3. सतत् आर्थिक अवसर।
  4. मानव विकास।

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