धातु और अधातु | dhatu aur adhatu

धातुएँ एवं अधातुएँ (Metalsetals and Non-metals)

धातुएँ (Metals)

धातु वे तत्त्व हैं, जो इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन बनाने की प्रवृत्ति रखते हैं। धातुओं को निम्न गुणों से पहचाना जाता है
  • धातुएँ कठोर व चमकदार होती हैं।
  • धातुएँ विद्युत व ऊष्मा की सुचालक होती हैं।
  • धातुएँ आघातवर्द्धनीय होती है।
  • अर्थात् हथौड़े आदि से पीटकर इनकी पतली चादर बनाई जा सकती है।
  • धातुएँ तन्य होती हैं अर्थात् खींचकर इनके पतले तार बनाए जा सकते हैं।
  • सोडियम और पोटैशियम को छोड़कर धातुओं के क्वथनांक तथा गलनांक उच्च होते हैं।
प्रमुख धातुएँ :
  • सोना (Au)
  • सोडियम (Na)
  • चाँदी (Ag)
  • कॉपर (Cu)
  • लोहा (Fe)
  • मैग्नीशियम (mg)
  • लीथियम (Li)
  • कैल्सियम (Ca)
  • एल्युमिनियम (AI) आदि। 

धातु निष्कर्षण (Extraction of metal)

  • जो धातुएँ रासायनिक रूप से बहुत कम सक्रिय होती हैं (जैसे- सोना, प्लेटिनम आदि), वे प्रकृति में मुक्त रूप में पाई जाती हैं।
  • जो धातुएँ रासायनिक रूप से अत्यधिक सक्रिय होती हैं (जैसे- सोडियम, कैल्सियम आदि), वे प्रकृति में संयुक्त अवस्था में पाई जाती हैं।

खनिज (Minerals)
धातु तथा उनके यौगिक (Compound) प्रकृति में जिस अवस्था में पाए जाते हैं, खनिज कहलाते हैं।

अयस्क (Ores)
वे खनिज जिनसे धातु निकालना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक होता है, अयस्क (Ores) कहलाते हैं।

गैंग/आधात्री (Gangue or matrix)
खनिजों में उपयोगी तत्त्वों के अतिरिक्त मिट्टी, कंकड़ आदि जो व्यर्थ की अशुद्धियाँ (Impurities) मिली होती हैं, उन्हें गैंग या आधात्री कहा जाता है।
dhatu aur adhatu

धातुओं के अयस्क

 

धातु

अयस्क

अयस्क का संघटन

Na

 

 

सोडियम क्लोराइड

NaCl

सोडियम कार्बोनेट

Na2CO3

Na2Co3.10H2O

सोडियम नाइट्रेट

NaNO3

बोरेक्स

Na2B4O7.10H2O

सोडियम सल्फेट

Na2SO4.10H2O

K

पोटैशियम क्लोराइड

KCI

पोटैशियम कार्बोनेट

K2CO3

पोटैशियम नाइट्रेट

KNO3

Ba

बेरियम कार्बोनेट

BaCO3

बेरियम सल्फेट

BaSo4

Mg

मैग्नेसाइट

MgCO3

डोलोमाइट

MgCO3.CaCO3

कार्नेलाइट

KCI.MgCl2.6H2O

एप्सम साल्ट (एप्सोमाइट)

MgSO4 7H2O

Ca

कैल्सियम कार्बोनेट

CaCO3

जिप्सम

CaSO4.2H2O

फ्लुलोरस्पार

CaF2

फस्फोराइट

Ca3(PO4)2

Al

बॉक्साइट

α- AlO(OH)

क्रायोलाइट

Na3AlF6

कोरंडम

Al2O3

डायोस्पार

Al2O3.H2O

Cr

फेरस क्रोमीइट

FeCr2O4

Sn

केसिटेराइट

SnO2

Pb

गैलेना

PbS

सीरुसाइट

PbCO3

मैटलोकाइट

PbCl2

Cu

कैल्कोंपाइराइट

CuFeS2

कैल्कोंसाइट

Cu2S

क्यूप्राइट

Cu2O

मैलेकाइट

CuCO3.(OH)2

ज़ुराइट

Cu3(CO3)2 (OH)2

Ag

नेटिव सिल्वर

Ag

अर्जेटाइट

Ag2S

केरार्जीराइट (सिल्वर क्लोराइड)

AgCl

Zn

जिंक ब्लेंड

ZnS

कैलामीन

ZnCO3

जिंकाइट

ZnO

 

Hg

सिनेबार

HgS

 

Mn

पाइरोलुसाइट

MnO2

मैगनाइट

Mn2O3.H2O

Fe

मैग्नेटाइट

Fe2O4

हेमेटाइट

Fe2O3

लाईमोनाइट

FeO(OH).nH2O

सिडेराइट

FeCO3

आयरन पाइराइट

FeS2

 
मिश्रधातु (Alloy)
धातु के गुणधर्मों को बेहतर बनाने के लिये भूल धातु को गलित अवस्था में लाकर उसमें दूसरे तत्त्वों को एक निश्चित अनुपात में इसमें विलीन किया जाता है। फिर इसे कमरे के ताप पर शीतलीकृत किया जाता है। इस प्रक्रिया को मिश्रात्वन तथा प्राप्त समांगी मिश्रण को मिश्रधातु (Alloy) कहते हैं।

अमलगम (Amalgam)
मिश्रधातु में यदि कोई एक धातु पारद (Mercury) है तो मिश्रधातु को अमलगम कहते हैं। 
  • लोहा पारद के साथ नहीं मिलता है। अतः अमलगम नहीं बनाता।
  • चाँदी और पारद के अमलगम को दाँतों की कैविटी भरने में प्रयोग करते हैं।
  • शुद्ध धातु की अपेक्षा मिश्रधातु की विद्युत चालकता तथा गलनांक कम होता है। उदाहरण के लिये ताम्र एवं जस्ते की मिश्रधातु पीतल तथा ताम्र एवं टिन की मिश्रधातु काँसा विद्युत के कुचालक हैं, लेकिन तांबे का उपयोग विद्युतीय परिपथ बनाने में किया जाता है।
  • सीसा तथा टिन की मिश्रधातु सोल्डर है, जिसका गलनांक बहुत कम होता है। इसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक, पाइपलाइन, धातु के चादरों एवं विद्युत तारों की वेल्डिंग के लिये किया जाता है।
  • लोहा सर्वाधिक उपयोग में आने वाली धात है। शद्ध लोहा अत्यंत नर्म होता है एवं गर्म करने पर सुगमतापूर्वक खिंच जाता है। लेकिन इसमें थोड़ा कार्बन (लगभग 0.05 प्रतिशत) मिला देने पर यह कठोर तथा प्रबल हो जाता है।
  • शुद्ध सोने को 24 कैरेट कहते हैं तथा यह काफी नर्म होता है। इसलिये आभूषण बनाने के लिये इसमें चांदी या ताबा का। कुछ भाग मिलाया जाता है, जिससे इसमें कठोरता आ जाती है। भारत में आभषण बनाने में प्रायः 22 कैरेट का उपयोग किया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि 22 भाग शुद्ध सोने में 2 भाग तांबा या चांदी मिलाया जाता है।

मिश्रधातु

अवयव घटक

उपयोग

पीतल (Brass)

Cu+Zn (70%+30%)

बर्तन बनाने में

काँसा (Bronze)

Cu+ Sn (90% +10%)

सिक्का एवं बर्तन बनाने में

जर्मन सिल्वर (German Silver)

Cu+Zn+Ni (60% +20% +20%)

बर्तन बनाने में

गन मेटल (Gun Metal)

Cu+Zn + Sn (90%+2% + 8%)

तोप, गेयर बनाने में

डेल्टा मेटल (Delta Metal)

Cu+Zn+Fe (60% +38% +2%)

वॉल्व, बेयरिंग बनाने में

मुंज मेटल (Muntz. Metal)

Cu+Zn (60% + 40%)

जहाजरानी उद्योग में

डच मेटल (Dutch Metal)

Cu+Zn (80% +20%)

सस्ते आभूषण बनाने में

मोनेल मेटल (Monel Metal)

Ni+Cu (70% + 30%)

रासायनिक संयंत्रों में तथा वैमानिकी उद्योग में

टाँका (Solder)

Sn + Pb (67% + 33%)

जोड़ों में टाँका लगाने में

रोज मेटल (Rose Metal)

Bi+Pb+ Sn (50% + 28% + 22%)

स्वचालित (Automatic) फ्यूज बनाने में

मैगनेलियम (Magnalium)

Al+Mg (95% +5%)

हवाई जहाज़ का ढाँचा बनाने में

ड्यूरेलुमिन (Duralumin)

Al+ Cu+ Mg + Mn (95% +4% +

.5% +5.%)

प्रेशर कुकर, हवाई जहाज का ढाँचा बनाने में

नोट: Cu (तांबा), Sn (टिन), Ni (निकेल), Pb (सीसा)


धातु कर्म (Metallurgy)

अयस्क से धातु प्राप्त करने की सभी विधियाँ सम्मिलित रूप से धातु कर्म कहलाती हैं। धातु कर्म के अंतर्गत निम्नलिखित विधियाँ आती हैं
  • अयस्क का पीसना
  • भर्जन 
  • अयस्क का सांद्रण
  • प्रगलन
  • निस्तापन
  • धातुओं का शोधन

अयस्क का पीसना (Crushing of ore)
सर्वप्रथम खानों (Mines) से प्राप्त अयस्क के बड़े-बड़े टुकड़ों को दलित्र (Crusher) आदि की सहायता से छोटे-छोटे टुकड़ों या महीन चूर्ण के रूप में पीस लिया जाता है।

अयस्क का सांद्रण (Concentration of ore)
अयस्क से व्यर्थ पदार्थ (गैंग) पृथक् करना, अयस्क का सांद्रण कहलाता है।
अयस्क के सांद्रण की तीन मुख्य विधियाँ हैं-
  1. घनत्व पृथक्करण विधि
  2. झाग प्लवन विधि
  3. चुंबकीय पृथक्करण विधि

घनत्व/गुरुत्व पृथक्करण विधि (Gravity separation process) : जब अयस्क व गैंग के भार में अंतर होता है तो सांद्रण हेतु यह विधि अपनाई जाती है। जब बारीक पिसे अयस्क को जल प्रवाह के साथ धोया जाता है तो हल्की अशद्धियाँ बह जाती हैं और भारी अयस्क शेष रह जाता है।

झाग प्लवन विधि (Froth floatation process) : सल्फाइड अयस्कों [जैसे आयरन पाइराइट (Fes), गैलेना (Pbs), जिंक ब्लैंड (ZnS)] का सांद्रण झाग (फेन) प्लवन विधि द्वारा किया जाता है।
  • इस विधि में जल से भरी एक टंकी में बारीक पिसा हुआ अयस्क, चीड़ का तेल (Pine oil) या क्रियोसोट तेल (Creosote oil) व पोटैशियम एथिल जैथेट मिलाकर जब वायु की प्रबल धारा प्रवाहित की जाती है तो सल्फाइड अयस्क तेल से भीगकर झाग के साथ ऊपर एकत्रित हो जाते हैं, जबकि अशुद्धि (गग) के कण जल से भीगकर तली में बैठ जाते हैं।
  • इस क्रिया में चीड़ का तेल या क्रियोसोट तेल फेन बनाने (Frother), जबकि पोटैशियम एथिल अँथेट संग्राही (Collector) का कार्य करता है।

चुंबकीय पृथक्करण विधि (Magnetic separation process)
यदि चुंबकीय अयस्क में अचुंबकीय पदार्थ की अशुद्धि पाई जाती है या अचुंबकीय अयस्क में चुंबकीय अशुद्धि पाई जाती है तो इसका सांद्रण चुंबकीय पृथक्करण विधि द्वारा किया जाता है।
टिनस्टोन (SnO2) में चुंबकीय आयरन ऑक्साइड (Fe3O4) की अशुद्धि होने पर इसी विधि द्वारा सांद्रण किया जाता है। 

निस्तापन (Calcination)
सांद्रित अयस्क को उच्च ताप पर गर्म करने की क्रिया निस्तापन कहलाती है, इससे उसमें उपस्थित नमी, बाष्पशील अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं।
निस्तापन क्रिया द्वारा धातु कार्बोनेट (MCO3) व धातु हाइड्रॉक्साइड [M(OH)2] धातु ऑक्साइड [MO] में बदल जाते हैं।

भर्जन (Roasting)
वायु की नियंत्रित मात्रा में सांद्रित अयस्क को गर्म करने की क्रिया भर्जन कहलाती है।
भर्जन क्रिया द्वारा अयस्क में उपस्थित सल्फर, आर्सेनिक आदि की अशुद्धियाँ वाष्पशील ऑक्साइडों में परिवर्तित हो जाती हैं।

प्रगलन (Smelting)
गालक (Flux) : वह पदार्थ जो अयस्क में उपस्थित अगलनीय गैंग से उच्च ताप पर क्रिया करके गलनीय धातुमल (Slag) बनाता है, गालक कहलाता है।
अम्लीय गैंग (जैसे सिलिका) को हटाने के लिये क्षारीय गालक (जैसे CaO,CaCO3) तथा क्षारीय गैंग (जैसे FeO) को
हटाने के लिये अम्लीय गालक (जैसे सिलिका) का प्रयोग किया जाता है।
अयस्क में गालक मिलाने पर गालक गैंग से क्रिया करके गलित धातुमल (Slag) बना लेता है और एक परत के रूप
में अलग हो जाता है।

धातुओं का शोधन (Refining of metal)

धातु की प्रकृति (Nature) व उसमें उपस्थित अशद्धियों के आधार पर धातुओं का शोधन करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-

विद्युत अपघटनी विधि (Electrolytic process)
इस विधि में अशुद्ध धातु का एनोड, शुद्ध धातु का कैथोड व धातु के लवण का विद्युत अपघट्य (Electrolyte) बनाते हैं। यह धातुओं का शोधन करने की प्रमुख विधि है।

द्रवण विधि (Liquation process)
कम गलनांक की धातओं (टिन आदि) का शोधन द्रवण विधि द्वारा किया जाता है।

आसवन विधि (Distillation process)
वाष्पशील धातुओं (मरकरी, जस्ता आदि) का शोधन आसवन विधि द्वारा किया जाता है। 

भट्ठियाँ (Furnaces)
धातुओं के निष्कर्षण में विभिन्न प्रकार की भट्ठियाँ प्रयोग की जाती हैं, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित है-
  • परावर्तनी भट्ठी
  • मफल भट्ठी
  • वात्या भट्ठी
  • विद्युत भट्ठी

परावर्तन भट्टी (Reverberatory furnace)
  • इस भट्ठी में ज्वाला की लपटें भट्ठी की छत से टकराकर, फिर लौटकर चूल्हे पर रखे पदार्थ को गर्म करती हैं। अत:
  • इसे परावर्तनी भट्ठी नाम दिया गया है। 
  • यह भट्ठी अग्निसह ईंटों द्वारा बनी होती है।
  • इस भट्ठी में मुख्यतः सल्फाइड अयस्कों का भर्जन (Roasting) किया जाता है। 

मफल भट्ठी (Muffle furnace)
  • इस भट्ठी में उच्चताप सह (Refractory) ईटों का बना हुआ एक कक्ष होता है, जिसे मफल (Muffle) कहा जाता है। 
  • मफल' भट्ठी में मुख्यतः जिंक धातु का निष्कर्षण किया जाता है। 

वात्या भट्ठी (Blast furnace)
  • वात्या भट्ठी में अयस्क का प्रगलन (Smelting) किया जाता है।
  • वात्या भट्ठी का ताप ऊपर से नीचे की ओर बढ़ता जाता है। 
  • वात्या भट्ठी का उपयोग मुख्यतः लोहा (Fe) व तांबा (Cu) आदि धातुओं के निष्कर्षण में किया जाता है। 

विद्युत भट्ठी (Electric furnace)
विद्युत भट्ठी में पदार्थ को गर्म करने के लिये विद्युत (Electricity) का प्रयोग किया जाता है जबकि परावर्तनी, मफल व वात्या भट्ठी में पदार्थ को गर्म करने हेतु किसी ईधन (Fuel) का प्रयोग करते हैं।

संक्षारण (Corrosion)
  • हम जानते हैं कि जब कोई धातु अपने आस-पास अम्ल, आर्द्रता आदि के संपर्क में आती है तो वह संक्षारित होती है।
  • संक्षारण के कारण कार के ढाँचे, पुल, लोहे की रेलिंग, जहाज तथा धातु विशेषकर लोहे से बनी वस्तुओं की बहुत क्षति होती है।
धातु संक्षारण की कुछ प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैं
सिल्वर वायु में उपस्थित सल्फर से अभिक्रिया करके सिल्वर सल्फाइड बनाता है, जिसकी काली परत सिल्वर के ऊपर जमा हो जाती है।
कॉपर वायु में उपस्थित आर्द्र कार्बन डाइऑक्साइड से क्रिया करके हरे रंग का कॉपर कार्बोनेट बनाता है. जिसकी हरी परत कॉपर पर जमा हो जाती है।
लंबे समय तक आर्द्र वायु में रहने पर लोहे पर भूरे रंग के पदार्थ की परत चढ़ जाती है, जिसे जंग कहते हैं।
वायु के संपर्क में आने पर एल्युमिनियम पर ऑक्साइड की पतली परत का निर्माण होता है। एल्युमिनियम ऑक्साइड की यही परत एल्युमिनियम का और संक्षारण से सुरक्षा करती है। 
एल्युमिनियम की संक्षारण से सुरक्षा हेतु इस पर मोटी ऑक्साइड की परत बनाने की प्रक्रिया को एनोडीकरण कहते हैं।
  • एनोडीकरण : एनोडीकरण के लिये एल्युमिनियम को एनोड बनाकर तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ विद्युत अपघटन किया जाता है। एनोड पर उत्सर्जित ऑक्सीजन गैस एल्युमिनियम के साथ अभिक्रिया करके ऑक्साइड की मोटी परत बनाती है।

संक्षारण से सुरक्षा
संक्षारण से धातुओं को सुरक्षित रखने हेतु निम्नलिखित विधियाँ अपनाई जाती हैं
  • धातु पर पेंट करके, तेल लगाकर, ग्रीज इत्यादि की परत चढ़ाकर
  • यशदलेपन
  • एनोडीकरण
  • क्रोमियम
  • लेपन
  • मिश्रधातु बना कर (मिश्रात्वन)

यशदलेपन (Galvanisation)
लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिये उन पर जस्ते (जिंक) की पतली परत चढ़ाई जाती है, जिसे 'यशदलेपन' कहा जाता है। यशदलेपित वस्तु जस्ते की परत नष्ट हो जाने के बाद भी जंग से सुरक्षित रहती है। धातु के गुणधर्मों को बेहतर बनाने की एक अच्छी विधि 'मिश्रात्वन' है, क्योंकि इस विधि द्वारा हम इच्छानुसार धातुओं के अत्यंत महत्त्वपूर्ण गुणधर्म को प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, जैसे- लोहा सर्वाधिक उपयोग में आने वाली धातु है, लेकिन कभी भी इसका उपयोग शुद्ध अवस्था में नहीं किया जाता है, क्योंकि शुद्ध लोहा अत्यंत नर्म होता है और गर्म करने पर यह सुगमतापूर्वक खिंच जाता है, लेकिन यदि इसमें थोड़ा कार्बन मिला दिया जाए तो यह कठोर तथा प्रबल हो जाता है। यदि लोहे के साथ निकेल एवं क्रोमियम मिला दिया जाए तो स्टेनलेस इस्पात प्राप्त होता है, जो कठोर होता है तथा उसमें जंग नहीं लगता है। इस प्रकार यदि लोहे के साथ कोई अन्य पदार्थ मिश्रित किया जाता है तो इसके गुणधर्म परिवर्तित हो जाते हैं। वास्तव में कोई अन्य पदार्थ मिलाकर किसी भी धातु के गुणधर्म को परिवर्तित किया जा सकता है। यह पदार्थ धातु या अधातु कुछ भी हो सकता है।

प्रमुख धातुएँ (Major metals)

तांबा [Copper (Cu)]
dhatu aur adhatu
प्राप्ति : तांबा (Cu) d ब्लॉक का तत्त्व (संक्रमण तत्त्व) है, जो प्रकृति में मुक्त (Free) तथा संयुक्तावस्था (Combined state) दोनों में पाया जाता है।

निष्कर्षण : कॉपर पाइराइट (CuFes.) तांबा का मुख्य अयस्क होता है। अत: तांबे का निष्कर्षण कॉपर पाइराइट अयस्क से करते हैं।
  • कॉपर पाइराइट अयस्क का सांद्रण ‘फेन प्लवन विधि' (Froth floatation process) द्वारा करते हैं, फिर इसे परावर्तनी भट्ठी (Reverberatory furnace) में गर्म करके, शोधन (Refining) करके तांबा प्राप्त किया जाता है।
  • कॉपर लाल-भूरे रंग की चमकदार धातु है, जिसे नम वायु में रखने पर हरे रंग के कॉपर कार्बोनेट की परत जम जाती है।

उपयोग (Uses)
विद्युत लेपन (Electro-plating) तथा विद्युतमुद्रण (Electro-typing) में तांबे का उपयोग करते हैं।
बिजली के तार, मुद्राएँ, मिश्र धातुएँ बनाने में तांबे का उपयोग करते हैं।
पेरिस ग्रीन, क्यूप्रिक आर्सेनाइट (तांबा के यौगिक) का उपयोग कीटनाशक व वर्णक के रूप में किया जाता है।

तांबे की मिश्र धातुएँ (Alloys of copper)

मिश्र धातु (Alloy)

संघटन (Composition)

उपयोग (Uses)

पीतल (Brass)

Cu=70%, Zn = 30%

बर्तन, आभूषण, तार, मशीन

जर्मन सिल्वर

Cu= 50%,Zn=35%, Ni = 15%

बर्तन, मूर्तियाँ

बर्तन, मूर्तियाँ बेल मेटल (Bell Metal)

Cu= 80%, Sn=20%

घंटियाँ

काँसा (Bronze)

Cu=88%, Sn = 12%

बर्तन, मूर्तियाँ

गन मेटल (Gun Metal)

Cu=88%, Sn = 10%, Zn%=2%

बंदूक, हथियार

कृत्रिम सोना (Rold Gold)

Cu= 90%,A1%=10%

आभूषण, मूर्तियाँ


कॉपर के यौगिक (Compounds of copper)

क्यूप्रस क्लोराइड [Cuprous chloride (CuCI)]
  • यह सफेद रंग का जल में अविलेय ठोस होता है।
  • क्युप्रिक क्लोराइड (CuCl2)को तांबे की छीलन तथा सांद्र HC के साथ गर्म करके जल में डाल देने पर क्यूप्रस क्लोराइड प्राप्त होता है।
  • नम वायु (Moist Air) रखने पर यह हरे रंग के बेसिक क्यूप्रिक क्लोराइड में बदल जाता है। 
  • क्यूप्रिक क्लोराइड अमोनिया विलयन में घुलकर रंगहीन संकर यौगिक बनाता है। क्यूप्रस क्लोराइड का यह अमोनियामय और को अवशोषित करके क्यूप्रस एसीटिलाइड का लाल अवक्षेप बनाता है, जो शुष्क अवस्था में विस्पोटक  (Explosive) होता  है 
  • क्यूप्रिक क्लोराइड का उपयोग एसिटिलीन के शोधन में, अमोनिया (NH3) व कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) को अवशोषित करने में डीकन विधि द्वारा क्लोरीन के निर्माण में उत्प्रेरक की भाँति किया जाता है।

क्यूप्रिक क्लोराइड [Cupric chloride (CuCI2)]
  • यह हरे रंग का क्रिस्टलीय ठोस होता है।
  • यह जल के दो अणुओ को निहित किये रहता है, जो उच्च ताप (लगभग 150°C) पर गर्म करने पर शुष्क (Dry) हो जाता है।
  • डीकन विधि द्वारा क्लोरीन के निर्माण हेतु इसका उपयोग उत्प्रेरक की भाँति किया जाता है।
नीला थोथा/क्यप्रिक सल्फेट [Blue stone/Cupric sulphate (Cuso4.2H2O)
  • यह तांबे का प्रमुख यौगिक होता है, जिसे साधारणतः 'नीला थोथा' या 'नीला कसीस' कहते हैं। 
  • निर्जल (Anhydrous) कॉपर सल्फेट रंगहीन होता है, जबकि जल की अल्प मात्रा में यह नीला रंग देता है। अत: निर्जल क्यूप्रिक सल्फेट का प्रयोग जल के परीक्षण में किया जाता है।
  • कॉपर सल्फेट के विषैले प्रभाव के कारण इसका उपयोग कीटनाशक (Insecticide) की तरह किया जाता है।
  • क्यूप्रिक सल्फेट का उपयोग विद्युत लेपन (Electro-plating),विद्युत सेलों में किया जाता है।

चांदी/सिल्वर [Silver (Ag)]
dhatu aur adhatu
प्राप्ति (Occurance)
प्रकृति में चांदी मुक्त अवस्था (Free State) तथा संयुक्त अवस्था में अपने खनिजों (हॉर्न सिल्वर, सिल्वर ग्लांस) में पाई जाती है।

निष्कर्षण (Extraction)
चांदी का निष्कर्षण इसके मुख्य अयस्क अर्जेंटाइट (Ag2S) से 'सायनाइड विधि' द्वारा किया जाता है।

भौतिक गुण (Physical properties)
  • यह सफेद चमकदार धातु है। 
  • चादा में आघातवर्द्धनीयता (Malleability) तथा तन्यता (Ductility) का गुण बहुत होता है। इसा गुण के कारण
  • पतला चादर (Foil) बनाने में. तार (Wire) बनाने में, आभूषण बनाने में किया जाता है।
  • चांदी का वैद्युत चालकता व ऊष्मा चालकता सभी ज्ञात तत्त्वों में सर्वाधिक है।
  • जबकि सीसा (लेड या Pb) ऊष्मा का न्यूनतम संचालक है।

रासायनिक गुण (Chemical properties)
  • सिल्वर की वायु, ऑक्सीजन (O2) व जल के साथ कोई अभक्रिया नहीं होती है।
  • एक अक्रिय धातु (Noble metal) होने के कारण सिल्वर की HCI तथा तनु  H2SO4 से कोई अभिक्रिया नहीं होती है, किन्तु सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) के साथ गर्म करने पर सिल्वर सल्फेट (Ag2SO4) तथा सल्फर डाइऑक्साइड गैस (SO2) बनती है ।
  • सिल्वर नाइट्रिक अम्ल से क्रिया करके सिल्वर नाइट्रेट व नाइट्रिक ऑक्साइड (तनु HNO3 द्वारा) तथा सिल्वर नाइट्रेट व नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (सांद्र HNOद्वारा) बनाती है। 
  • वायु की अधिकता में सिल्वर धात् सोडियम सायनाइड (NaCN) में घुलकर 'सोडियम अर्जेंटोसायनाइड' नामक संकर लवण बनाती है। 

उपयोग (Uses)
  • सिक्के, आभूषण, बर्तन बनाने में चादी का उपयोग किया जाता है।
  • चांदी की पन्नी, भस्म का प्रयोग औषधि के रूप में दंत चिकित्सा में किया जाता है।
  • विद्युत लेपन, दर्पण की पॉलिश आदि करने में चांदी का उपयोग किया जाता है।

चांदी के यौगिक (Compounds of silver)
प्रमुख यौगिक निम्नलिखित है-

सिल्वर नाइट्रेट (Silver nitrate (AgNO3)
  • सिल्वर नाइट्रेट रंगहीन, जल में विलेय, क्रिस्टलीय ठोस होता है।
  • सिल्वर नाइट्रेट विलयन त्वचा, कागज आदि को काला कर देता है। अतः इसे लूनर कास्टिक (Lunar Caustic) भी कहते हैं।
  • शुद्ध चांदी को तनु नाइट्रिक अम्ल (HNO3) के साथ गर्म करने पर सिल्वर नाइट्रेट बनता है।
  • उच्च ताप पर गर्म करने से सिल्वर नाइट्रेट सिल्वर (Ag), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) तथा ऑक्सीजन (O2) में अपघटित हो जाता है। क्लोराइड, ब्रोमाइड आदि के परीक्षण हेतु प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।
  • मतदान के समय निशान लगाने वाली स्याही, कपड़ों आदि पर निशान लगाने में सिल्वर नाइट्रेट (AgNO3) का उपयोग किया जाता है।
  • सिल्वर नाइट्रेट को रंगीन बोतलों में भरकर रखा जाता है, क्योंकि यह सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपघटित हो जाता है।

सिल्वर क्लोराइड [Silver chloride (AgCy)]
  • इसे सामान्यतः हॉर्न सिल्वर (Horm Silver) कहा जाता है।
  • फोटोक्रोमेटिक काँच बनाने में सिल्वर क्लोराइड का प्रयोग किया जाता है।

सिल्वर ब्रोमाइड [Silver bromide (AgBr)]
  • सिल्वर ब्रोमाइड का उपयोग फोटोग्राफी में किया जाता है। सिल्वर ब्रोमाइड से फोटो फिल्में व प्रिंटिंग पेपर बनाए जाते हैं।

सोना [Gold (Au)]
dhatu aur adhatu
प्राप्ति (Occurance)
प्रकृति में सोना मुक्त व संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पाया जाता है। संयुक्त अवस्था में सोना क्वार्ट्ज (Quartz) के रूप में पाया जाता है।

निष्कर्षण (Extraction)
सोने के मुख्य अयस्क कैलेवराइट, सिल्वेनाइट, ऑरोस्टिबाइट तथा ऑरीक्यूप्राइड हैं, जिनसे सोना प्राप्त किया जाता है। 

भोतिक गुण (Physical properties)
  • सोना सभी धातुओं में सर्वाधिक तन्य (Ductile) तथा आघातवर्ध्य (Malleable) धातु है, जिसके मात्र 1gm से 1 वर्ग मी. की चादर बनाई जा सकती है।
  • सोना ऊष्मा तथा विद्युत का सुचालक होता है।
  • हवा, नमी आदि का सोने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। 

रासायनिक गुण (Chemical properties)
  • सोना एक उत्कृष्ट धातु (Noble metal) है। यह सामान्य अम्ल, क्षारों से क्रिया नहीं करता, किंतु अम्लराज (Aqua Regia) में घुलकर क्लोरोऑरिक अम्ल बनाता है।
  • मरकरी (Hg) से क्रिया करके सोना, अमलगम बनाता है। 

उपयोग (Uses)
  • सोने का उपयोग आभूषण, सिक्के, बर्तन आदि बनाने में किया जाता है।
  • गठिया, ट्यूबरकुलोसिस, कैंसर आदि की दवाइयाँ बनाने में सोने का उपयोग किया जाता है। 
  • सोने के कुछ लवणों का उपयोग फोटोग्राफी में किया जाता है। 
  • विद्यत लेपन (Electro plating) या स्वर्ण पत्र चढाने में सोने का उपयोग किया जाता है। 
  • कोलॉइडी स्वर्ण का उपयोग काँच व चीनी उद्योग में किया जाता है।

लोहा [Iron (Fe)]
dhatu aur adhatu
प्राप्ति (Occurance)
लोहा पृथ्वी पर दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्त्व है। लोहा संयुक्त अवस्था में अपने अयस्कों हेमेटाइट, मैग्नेटाइट, सिडराइट, लिमोनाइट आदि में पाया जाता है।

निष्कर्षण (Extraction)
लोहे का निष्कर्षण इसके प्रमुख अयस्क हेमेटाइट (Fe2O3) व मैग्नेटाइट (Fe3O2) से वात्या भट्ठी (Blast Furnace) में किया जाता है। 

भोतिक गुण (Physical properties)
  • लोहा भूरे रंग की क्रिस्टलीय धातु होती है।
  • लोहे में चुंबकीय गुण (Magnetic property) पाया जाता है।
  • धातुओं की भाँति लोहे में आघातवर्द्धनीयता (Maileability) एवं तन्यता (Ductility) का गुण पाया जाता है।

रासायनिक गुण (Chemical properties)
  • नम वायु में रखने पर उसके पृष्ठ पर भूरे रंग की परत (Fe2O3. xH2O) जम जाती है। इस क्रिया को लोहे का जंग
  • लगना (Rusting of Iron) कहते हैं।
  • लोहा तनु अम्लों (HCI, H2SO4 ) में घुल जाता है तथा हाइड्रोजन गैस (H2) मुक्त करता है। 

लोहे के प्रकार (Types of iron)
कार्बन की मात्रा के आधार पर लोहा तीन प्रकार का होता है
  1. ढलवाँ लोहा
  2. पिटवाँ लोहा
  3. इस्पात

ढलवाँ लोहा (Cast iron)
  • ढलवाँ लोहे में कार्बन 2-4%, लोहा 93-94% तथा शेष सिलिकॉन (Si), फॉस्फोरस (P), सल्फर (S) व मैंगनीज (Mn
  • आदि अशुद्धियाँ होती हैं।
  • कच्चे लोहे को रद्दी लोहे, कोक, चूना पत्थर के साथ क्यूपोला भट्ठी (Cupola furnace) में गलाने से ढलवाँ लोह प्राप्त किया जाता है।
  • ढलवाँ लोहा बहुत कठोर तथा भंगुर (Brittle) होता है।
  • ढलवाँ लोहे का प्रयोग ढलाई के काम में किया जाता है।
ढलवाँ लोहा दो प्रकार का होता है- सफेद ढलवा लोहा एवं भूरा ढलवाँ लोहा।
सफेद ढलवां लोहे में कार्बन संयुक्त अवस्था में पाया जाता है, जबकि भूरे ढलवाँ लोहे में कार्बन ग्रेफाइट के छोटे-छोटे क्रिस्टल के रूप में पाया जाता है।

पिटवाँ लोहा (Wrought iron)
  • इसका निर्माण ढलवाँ लोहे से पडलिंग विधि (Puddling process) द्वारा किया जाता है।
  • पिटवाँ लोहे में 98.8 से 99.9% लोहा और 0.1 से 0.25% कार्बन होता है, जबकि शेष सिलिकॉन (SI), फॉस्फोरस (P) व मैंगनीज (Mn) आदि अशुद्धियाँ होती हैं।
  • पिटवाँ लोहा आघातवर्द्धनीय (Malleable), तन्य (Ductile) व रेशेदार (Fibrous) होता है जो जल द्वारा शमन (Quenching) करने पर भी नर्म रहता है।
  • पिटवाँ लोहे का उपयोग युग्मन, कड़ियाँ, दरवाजे आदि बनाने के लिये किया जाता है।

इस्पात (Steel)
इस्पात में कार्बन की मात्रा ढलवाँ लोहे तथा पिटवाँ लोहे के मध्य लगभग 0.25 से 1.5% तक होती है। इसमें सिलिकॉन (Si), फॉस्फोरस (P) तथा सल्फर की अशुद्धियाँ लगभग अनुपस्थित रहती हैं।
इस्पात को ढलवाँ लोहे से निम्न 3 विधियों द्वारा प्राप्त किया जाता है।
  1. बेसीमर विधि
  2. सीमेंस मार्टिन विधि
  3. विद्युत विधि

इस्पात का ऊष्मा उपचार (Heat treatment of steel)
इस्पात को दी गई ऊष्मा के आधार पर इस्पात के यांत्रिक गुण (Mechanical properties) निर्धारित किये जाते हैं।

इस्पात का ऊष्मा उपचार (Heat treatment of steel)
इस्पात को दी गई ऊष्मा के आधार पर इस्पात के यांत्रिक गुण (Mechanical properties) निर्धारित किये जाते हैं। 

इस्पात का कठोरीकरण (Hardening of steel)
“इस्पात को रक्त तप्त (Red hot) ताप तक गर्म करके इसे ठंडे जल द्वारा अतिशीघ्र ठंडा करने की क्रिया, इस्पात का कठोरीकरण कहलाती है।"
कठोरीकरण की क्रिया द्वारा इस्पात कठोर तथा भंगुर हो जाता है। 

इस्पात का टेंपरीकरण (Tempering of steel)
“कठोरीकरण (Hardening) क्रिया द्वारा कठोर किये गए इस्पात को पुनः गर्म करके, धीरे-धीरे ठंडा करने की क्रिया, इस्पात का टेंपरीकरण कहलाती है।"
टेंपरीकरण की क्रिया द्वारा इस्पात नरम हो जाता है तथा इसकी भंगुरता समाप्त हो जाती है।

इस्पात का पृष्ठ कठोरीकरण (Case hardening of steel)
इस्पात को कार्बन या कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) गैस के साथ गर्म करने पर इस्पात की सतह पर 0.5-2 मिमी. मोटी आयरन कार्बाइड की परत चढ़ जाती है, जिससे इस्पात की सतह अत्यंत कठोर हो जाती है। यह घटना इस्पात का पृष्ठ कठोरीकरण कहलाती है।

इस्पात का नाइट्राइडीकरण (Nitriding of steel)
"इस्पात को अमोनिया (NH.) गैस के साथ 500°-600°C ताप पर गर्म करने पर इस्पात की सतह पर आयरन नाइट्राइड की परत चढ़ जाती है, जिससे इस्पात की सतह अत्यंत कठोर हो जाती है, यह घटना इस्पात का नाइट्राइडीकरण कहलाती है।" 

इस्पात के प्रकार (Types of steel)
इस्पात को विभिन्न उपयोग में लाने के लिये इसमें भिन्न-भिन्न धातुएँ मिलाकर कई प्रकार के इस्पात (स्टील) बनाए जाते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

मैंगनीज स्टील (Manganese steel)
इसमें 12-14% मैंगनीज (Mn), 1-1.5% कार्बन (C) होता है। 
यह बहुत कठोर व उच्च तनन सामर्थ्य (Tensile strength) वाला इस्पात होता है।
इसका उपयोग मशीनें, तिजोरियाँ आदि बनाने में किया जाता है। 

निकिल स्टील (Nickel steel)
इसमें 3-5% निकिल (Ni) मिलाया जाता है।
यह बिजली के तार, वायुयान के भाग आदि बनाने के काम में लाया जाता है। 

क्रोमियम स्टील (Chromium steel)
इसमें 2-4% क्रोमियम पाया जाता है।
कठोर होने के कारण इसका उपयोग काटने के औजार, मशीनें, गोलियाँ आदि बनाने में किया जाता है।

टंगस्टन स्टील (Tungsten)
इसमें 10-20% टंगस्टन होता है।
कम ताप पर यह कठोर होती है, जबकि उच्च ताप पर मुलायम हो जाती है। इसका उपयोग औज़ार आदि बनाने में किया जाता है। 

स्टेनलेस स्टील (Stainless steel)
इसमें 13% क्रोमियम, 0.25% कार्बन, 0.35% मैंगनीज होती है।
स्टेनलेस स्टील में जंग (Rust) आदि नहीं लगता है। अतः इसका उपयोग बर्तन बनाने, शल्य चिकित्सा के औजार आदि बनाने में किया जाता है।

क्रोम वैनेडियम स्टील (Chrome vanadium steel)
इसमें 2-10% क्रोमियम, 0.15% वैनेडियम होता है।
बहुत मज़बूत होने के कारण इसका उपयोग फ्रेम, शैफ्ट, कमानियाँ, धुरी आदि बनाने के लिये किया जाता है।

लीथियम [Lithium (Li)]
  • यह एक मुलायम, सफेद चांदी जैसी धातु है।
  • आदर्श परिस्थितियों में यह सर्वाधिक हल्की धातु (Lightest metal) है, जिसे चाकू से काटा जा सकता है।
  • कठोरतम धातु प्लेटिनम (Pt) होती है।
  • यह अत्यधिक क्रियाशील व ज्वलनशील (Flammable) होती है। अतः इसे खनिज तेलों में डुबाकर रखा जाता है।
  • लीथियम के लवणों का प्रयोग आर्द्रताग्राही (Hygroscopic), वायु शुद्धिकारक (Air purifier), वेल्डिंग (Welding), रॉकेट ईंधन आदि में किया जाता है।

सोडियम [Sodium (Na)]
सोडियम की क्रियाशीलता अधिक होती है। अत: यह कभी मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता है। सोडियम हवा में पीले रंग की लौ के साथ जलता है। अतः इसे केरोसिन तेल में डालकर रखते हैं। 
सोडियम का मुख्य लवण सोडियम क्लोराइड (NaCl) जल में अत्यधिक विलेय होने के कारण यह पृथ्वी पर उपस्थित जलस्रोतों (सागर, नदियाँ आदि) में पाया जाता है।

निष्कर्षण (Extraction)
सोडियम धातु का निष्कर्षण मुख्यत: दो विधियों द्वारा किया जाता है

कास्टनर विधि
द्रव सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) का वैद्युत अपघटन करने से सोडियम धातु प्राप्त की जाती है।

डाउ विधि
द्रव सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) का वैद्युत अपघटन करने से सोडियम धातु प्राप्त की जाती है।

सोडियम धातु के गुण (Properties of sodium meal)
  • सोडियम धातु चांदी के समान होती है, इसका घनत्व 097 है अर्थात् यह जला हरका होता है। अतः जल की सतह पर तैरने लगती है।
  • सोडियम धातु अत्यंत क्रियाशील होने के कारण आई वायु में उपस्थित ऑक्सीजन से क्रिया करके सोडियम आबनावट (Na2O) तथा जल से क्रिया करके सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) बनाती है।
  • सोडियम की जल के साथ क्रिया अत्यधिक तीव्र होती है। अत: सोडियम को केरोसीन तेल में डूबाकर रखा जाता है।
  • जब किसी अम्ल की क्रिया सोडियम धातु से की जाती है तो यह लवण बनाता है तथा हाइट्रोजन गैस मुक्त होता है।
  • सोडियम वाष्प लैंप का प्रकाश एकवर्णी (Mono chromatic) होता है, जो पानी की बूंदो से गुजरने पर भी विभक्त नही होता। अतः सोडियम वाष्प लैंप सड़कों पर प्रकाश के लिये प्रयुक्त किये जाते है।
  • प्रतिदीप्ति नली में कम दाब पर पारे की वाष्प तथा आर्गन (Ar) या नियान (Ne) गैस भरी जाती है।

सोडियम के यौगिक (Compounds of sodium)
सोडियम कुछ अन्य तत्त्वों से रासायनिक संयोग करके अपने यौगिक बनाता है, जो निम्नलिखित हैं।

सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH)/ दाहक सोडा (Caustie soda)
  • सांद्र सोडियम क्लोराइड विलयन (Brine) का वैद्युत अपघटन (Electrolysis) करके सोडियम हाइड्रॉक्साइड बनाया जाता है।
  • प्रयोगशाला में वैद्युत अपघटन द्वारा NaOH प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित तीन प्रकार के सैल उपयोग में लाए जाते हैं-
  1. नेल्सन सेल
  2. कास्टनर कैलनर सेल
  3. सॉल्वे कैलनर सेल
  • यह जल में विलेय होता है, साबुन निर्माण में इसका जलीय विलयन उपयोग में लाते हैं।
  • यह एक दाहक पदार्थ है, जो त्वचा पर गिरने पर फफोले डाल देता है। अत: इसे 'दाहक सोडा' (Caustic Soda) भी कहा जाता है।
  • NaOH का उपयोग कागज़ व रेशम उद्योग में किया जाता है।
  • NaOH का उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) गैस को अवशोषित करने में होता है।
  • NaOH का उपयोग पेट्रोलियम को शुद्ध करने के लिये भी किया जाता है।

सोडियम कार्बोनेट/सोडा ऐश [SODIUM CARBONATE (NA2 CO3)]
  • सोडियम कार्बोनेट का निर्माण 'सॉल्वे अमोनिया विधि' (Solvay Ammonia Process) के द्वारा किया जाता है।
  • निर्जल सोडियम कार्बोनेट सफेद अक्रिस्टलीय चूर्ण होता है, जिसे सोडा ऐश (Soda Ash) कहते हैं।
  • आर्द्र वायु में रखने पर यह अपना हाइड्रेट (जल के अणुओं के साथ संयोजन) बना लेता है, जैसे- Na2CO310H2O (धावन सोडा या वॉशिंग सोडा)।
  • सोडियम कार्बोनेट का उपयोग खाने का सोडा (NaHCO3), दाहक सोडा (NaOH), डिटरजेंट पाउडर आदि बनाने के लिये किया जाता है।
  • कठोर जल (Hard water) को मृदु जल (Soft water) बनाने के लिये सोडियम कार्बोनेट का उपयोग किया जाता है।
  • काँच, सुहागा, कागज आदि के निर्माण में सोडा ऐश का उपयोग किया जाता है। 

माइक्रोकॉस्मिक लवण (Microcosmic salt) [Na (NH4)HPO4 4H2O]
  • यह एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस होता है।
  • जब माइक्रोकॉस्मिक लवण को गर्म किया जाता है तो यह पिघलकर रंगहीन एवं पारदर्शक सोडियम मेटा फॉस्फेट (NaPO3) बनाता है।
  • माइक्रोकॉस्मिक लवण को गर्म करका रंगहीन पारदर्शक फॉस्फेट बीड बनाई जाती है। 
  • फॉस्फेट बीड द्वारा रंगीन क्षारीय मूलकों का परीक्षण किया जाता है। अत: इसका प्रयोग गुणात्मक विश्लेषण (Qualitative analysis) में किया जाता है।

सोडियम थायो सल्फेट/हाइपो Sodium thiosulphate/ hypo (Na2S2O3.5H2O)
यह एक रंगहीन उत्फुल्ल (Eflorescent) ठोस होता है। इसे हाइपो भी कहते हैं।
सोडियम थायो सल्फेट विलयन में सिल्वर ब्रोमाइड (AgBr) घुल जाता है तथा एक संकर लवण सोडियम अर्जेन्टोथायोसल्फेट [Na3 {A9 (S2O3)2] बनाता है अर्थात् यह अनअपघटित सिल्वर ब्रोमाइड (AgBr) को दूर करता है। 
यह गुण फोटोग्राफी में निगेटिव और पॉजिटिव का स्थायीकरण करने में काम आता है।
हाइपो का उपयोग विरंजित (Bleached) वस्त्रों से क्लोरीन दूर करने में अर्थात प्रतिक्लोर (Antichlor) के रूप में किया जाता है।
सोडियम थायो सल्फेट का उपयोग चांदी (Ag) तथा सोने (Au) के निष्कर्षण में किया जाता है।

मैग्नीशियम [Magnesium (Mg)]
  • प्राकृतिक रूप से मैग्नीशियम (Mg), मैग्नीशियम क्लोराइड (MgCI2) के रूप में समुद्री जल में घुला हुआ पाया जाता है।
  • हरे पौधों में पाए जाने वाले पर्णहरित (Chlorophyll) में भी मैग्नीशियम पाया जाता है।

निष्कर्षण (Extraction)
मैग्नीशियम का निष्कर्षण मैग्नीशियम सिलिकेट, समुद्री जल (Sea water) अथवा इसके प्रमुख अयस्क 'कार्नलाइट' (KCI. MgCI2. 6H2O) से किया जाता है।

गुण (Properties)
  • यह कोमल तथा प्रतन्य (Ductile) धातु है जिसे तार या फीते के रूप में खींचा जा सकता है।
  • मैग्नीशियम अपने छोटे आकार, अधिक आयनन विभव तथा d ऑर्बिटल की अनुपस्थिति के कारण अन्य क्षारीय मृदा धातुओं से गुणों में असमान होता है।
  • मैग्नीशियम की प्रकृति क्षारीय (Alkaline) होने के कारण यह क्षारों (NaOH आदि) से कोई क्रिया नहीं करता है तथा तनु अम्लों से अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस (H2) मुक्त करता है।
  • मैग्नीशियम क्लोराइड (MgCI2) आर्द्रताग्राही (Hygroscopic) होता है। यह जल के अणुओं के साथ संयोजन करके
  • MgCl2. 6H2O, MgCl2. 8H2O आदि बनाता है। 

उपयोग (Uses)
उद्योगों में उपयोग होने वाले धातुओं में यह सर्वाधिक हल्की है।
वैद्युत अपघटन की क्रिया में यह ऑक्सीजन की सफाई (Oxygen scavenger) का कार्य करती है। अत: यह अन्य धातुओं के लिये कैथोड परिरक्षण (Cathodic protection) का कार्य करती है। 
बल्ब, सिग्नल, फ्लैश लाईट आदि में मैग्नीशियम चूर्ण का उपयोग किया जाता है।
तांबा, स्टील आदि के निष्कर्षण में ऑक्सीजन का अंतिम अवयव (Last trace) हटाने के लिये मैग्नीशियम (Mg) का उपयोग किया जाता है।

कैल्सियम [Calcium (Ca)]
  • प्राकृतिक रूप से कैल्सियम, चूना पत्थर की चट्टानों आदि में लाइमस्टोन या कैल्सियम कार्बोनेट (CaCO3) के रूप में पाया जाता है।
  • वातावरणीय ऑक्सीजन से क्रिया करके यह बुझा चूना (CaO), हाइड्रोजन से क्रिया करके हाइड्रोलिथ (CaH2) जल से क्रिया करके चूने का पानी (Ca(OH)2) आदि यौगिक बनाता है।
  • नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन दोनों के प्रति कैल्सियम की अधिक बंधुता होने के कारण निर्वात नलिकाओं (Vaccum tubes) में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन के अंतिम अवयव (Last trace) हटाने के लिये कैल्सियम का उपयोग किया जाता है। 
  • प्रबल अपचायक (Reducing agent) होने के कारण कैल्सियम का उपयोग धातुओं के ऑक्साइड से धातु निष्कर्षण के लिये किया जाता है। 

कैल्सियम के यौगिक (Compounds of calcium)
कैल्सियम के कुछ मुख्य यौगिक निम्नलिखित हैं

कैल्सियम ऑक्साइड (CaO) चूना
  • लाइमस्टोन (चूने का पत्थर) को गर्म करने पर कैल्सियम ऑक्साइड प्राप्त होता है।
  • यह एक सफेद अक्रिस्टलीय चूर्ण है।
  • इसका उपयोग दाहक सोडा (NaOH) से सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3) बनाने में किया जाता है।
  • चीनी के शुद्धीकरण (Purification) में इसका उपयोग किया जाता है।
  • धातु निष्कर्षण में गालक (Flux) के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।

कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड/बुझा चूना [Calcium hydroxide/slaked lime Ca(OH)2]
  • चूने (CaO) में जल मिलाने पर कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड प्राप्त होता है, इस क्रिया को चूने का बुझना (Slaking of lime) कहा जाता है।
  • CaO+H2O→Ca(OH)2
  • यह एक सफेद अक्रिस्टलीय चूर्ण जैसा पदार्थ है।
  • यह जल में विलेय होता है। इसके जलीय विलयन को चूने का पानी कहा जाता है, जबकि इसका जल में निलंबन चूने का दूध कहलाता है।
  • कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड का उपयोग भवन निर्माण में 'मोर्टार' बनाने में किया जाता है।
  • कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड का उपयोग ब्लीचिंग पाउडर बनाने, चीनी के शुद्धीकरण में, काँच निर्माण, चमड़ा उद्योग आदि में किया जाता है। 

प्लास्टर ऑफ पेरिस [Plaster of paris (CaSO4.1/2H2O):
  • जिप्सम (CaSO4.2H2O) को 373K पर गर्म करने पर प्लास्टर ऑफ पेरिस प्राप्त होता है। 
  • यह एक सफेद चूर्ण होता है।
  • इसमें जल मिलाने पर लगभग 5-15 मिनट के बाद यह एक कठोर ठोस में परिवर्तित हो जाता है। इस घटना को 'प्लास्टर ऑफ पेरिस का जमना' (Setting of plaster of paris) कहा जाता है। 
  • प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग साँचे, सिरेमिक मॉडल, सजावटी वस्तुएँ आदि बनाने के लिये किया जाता है।
  • इसका उपयोग शल्य क्रिया में टूटी अस्थियों को जोड़ने के लिये, दंत चिकित्सा आदि में किया जाता है।
  • भवन निर्माण आदि में इसका उपयोग किया जाता है।

पोर्टलैंड सीमेंट (Portland cement)
  • सीमेंट, ट्राइकैल्सियम एलुमिनेट तथा डाई व ट्राइकैल्सियम सिलीकेट का मिश्रण होता है।
  • सीमेंट में जल मिला देने पर यह इंग्लैंड में पाए जाने वाले एक कठोर पदार्थ पोर्टलैंड पत्थर (Portland Stone) की भाँति कठोर हो जाता है। अतः इसे पोर्टलैंड सीमेंट नाम दिया गया है।
  • सीमेंट में भोड़ी सी मात्रा में जिप्सम (CaSO4,2H2O) मिला देने पर सीमेंट के जाने की दर धीमी हो जाती है।
  • मोती (Peart) में 85% कैल्सियम काबाट (एरागोनाइट), 2-4% जल तथा (0-10% प्रोटीन पाया जाता है। 

चूना पाचार, घाँक या मार्बल या संगमरमर
इसका रासायनिक नाम कैल्सियम काबोनेट (CaCO3) है।
यह पते पेस्ट (Tooth paste) का भी अवयव होता है।

एल्युमिनियम [Aluminium (Al)]
  • भूपर्पटी में सर्वाधिक मात्रा में पाई जाने वाली धातु एल्युमिनियम (AI) है।
  • प्रकृति में एल्युमिनियम, खनिजों के रूप में संयुक्त अवस्था में पाई जाती है, जिनमें से कुछ खनिज निम्नलिखित हैं-

एल्युमिनियम के मुख्य खनिज

कोरंडम (Corundum)

AI2O3

डायस्पोर (Diaspore)

Al2O3.H2O

बॉक्साइट (Bauxite)

Al2O3.2H2O

क्रायोलाइट (Cryolite)

Na3AIF6

एलुनाइट (Alunite)

K2SO4.Al2(SO4)3.4Al(OH)3


निष्कर्षण (Extraction)
एल्युमिनियम धातु का निष्कर्षण इसके मुख्य अयस्क (ore) बॉक्साइट (AI2O3.2H2O) से किया जाता है। यह अयस्क सर्वप्रथम फ्रांस के बॉक्स (Baux) नामक स्थान से प्राप्त किया गया था। अतः इसका नाम बॉक्साइट रखा गया।
एल्युमिनियम धातु का निष्कर्षण मुख्यतः तीन विधियों द्वारा किया जाता है।
  1. बेअर विधि
  2. हॉल विधि
  3. सरपेक विधि
शुद्ध व निर्जल (Anhydrous) एल्युमिना से एल्युमिनियम धातु वैद्युत अपघटनी विधि (Electrolysis process) से प्राप्त की जाती है।
एल्युमिनियम का शोधन (Refining) 'हूप विधि' (Hoope's process) द्वारा किया जाता है।

एल्युमिनियम के गुण (Properties of aluminium)
  • एल्युमिनियम कठोर, सफेद धातु है, जो आघातवर्द्धनीय एवं तन्य होती है।
  • वायु के संपर्क में आने पर एल्युमिनियम की सतह पर ऑक्साइड की पतली फिल्म बन जाती है, जिसके कारण यह रासायनिक रूप से अधिक सक्रिय नहीं होती है। एल्युमिनियम जल तथा नाइट्रिक अम्ल (HNO3) से अभिक्रिया नहीं करती है। जब भाप एल्युमिनियम के ऊपर से गुजरती है तो यह कोई प्रतिक्रिया नहीं करती है।
  • एल्युमिनियम, सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) से क्रिया करके सोडियम मेटा एलुमिनेट (NaAIO2) तथा HCl आदि अम्लों से क्रिया करके एल्युमिनियम क्लोराइड (AICI3) बनाती है। 

उपयोग (Uses)
Al का उपयोग विद्युत तारों को बनाने में किया जाता है।
Al का उपयोग बर्तन, खिलौने, मूर्तियाँ, पन्नी आदि बनाने में किया जाता है।
Al चूर्ण का उपयोग पेंट बनाने, क्रोमियम, मैंगनीज धातुओं के निष्कर्षण आदि में किया जाता है।
कोरंडम (Corundum) एल्युमिनियम ऑक्साइड के प्राकृतिक क्रिस्टल रूप होते है।
माणिक्य तथा नीलम कोरंडम के जवाहरात रूप होते हैं।

एल्युमिनियम की मिश्र धातुएँ (Alloys of aluminium)
  1. मैग्नेलियम (Magnalium) : (96%Al+4% Mg) हल्का एवं मजबूत होने के कारण जहाज, वायुयान निर्माण आदि में इसका उपयोग किया जाता है।
  2. ड्यूरेलुमिन (Duralumin) : (95%AI+ 4% Cu+ 0.6% Mg + 0.6% Mn + 0.4% Si) हल्का एवं मजबूत होने के कारण इसका उपयोग प्रेशर कुकर, जहाज, वायुयान निर्माण आदि में किया जाता है।
  3. एल्युमिनियम ब्रॉन्ज/कृत्रिम सोना (Aluminium bronze or artificial gold) : (90% Cu + 10%AI) सोने जैसी चमक होने के कारण यह बर्तन, मुद्राएँ, आभूषण आदि बनाने के काम आता है। 

एल्युमिनियम के यौगिक (Compounds of aluminium)

एल्युमिनियम क्लोराइड (AI2 CI6)
  • गर्म एल्युमिनियम की छीलन पर शुष्क क्लोरीन गैस या शुष्क हाइड्रोजन क्लोराइड (HCI) प्रवाहित करने पर एल्युमिनियम क्लोराइड प्राप्त होता है।
  • यह सफेद रंग का ठोस है, जो स्थायी रूप से AI2CI6 सूत्र बनाता है।
  • निर्जल AlCl3 का प्रयोग फ्रीडेल क्राफ्ट अभिक्रिया में उत्प्रेरक (Catalyst) के रूप में किया जाता है।
  • AICI3 का प्रयोग रंगबंधक (Mordant) के रूप में तथा पेट्रोलियम के भंजन (Cracking) में किया जाता है।

फिटकरी (Potash alum) [K2SO4.Al2(SO4)3.24H2O]
यह एक सफेद रंग का क्रिस्टलीय ठोस होता है जो जल में घुलकर 'अम्लीय विलयन' (Acidic solution) बनाता है।
फिटकरी का प्रयोग जीवाणुनाशी, रंगबंधक, जल शोधन (Purifier), बहते रक्त का थक्का बनाने (Blood coagulation) आदि में किया जाता है।

अधातुएँ (Non-metal)

धातुओं से भिन्न तत्त्व अधातु कहलाते हैं, इनको निम्नलिखित गुणों के आधार पर परिभाषित किया जाता है-
  • अधातुएँ विद्युत की कुचालक होती हैं।
  • अधातुओं के गलनांक तथा क्वथनांक धातुओं से कम होते हैं।
  • अधातुओं का घनत्व कम होता है।
  • अधातुओं में चमक नहीं होती।
  • कमरे के ताप पर धातुएँ ठोस, द्रव या गैस हो सकती हैं।
प्रमुख अधातुएँ
  • हाइड्रोजन (H)
  • ऑक्सीजन (O)
  • ओजोन (O)
  • सल्फर (S)
  • नाइट्रोजन (N)
  • फॉस्फोरस (P)
  • हैलोजन फ्लोरीन (F)
  • क्लोरीन (CI)
  • ब्रोमीन (Br)
  • आयोडीन (I)
  • एस्टेटीन (AT)

हाइड्रोजन (Hydrogen)
हाइड्रोजन ब्रह्मांड (विश्व) में सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्त्व है।
  • हाइड्रोजन आवर्त सारणी का प्रथम तत्त्व है, जिसका परमाणु क्रमांक 1 होता है।
  • हाइड्रोजन की खोज सन् 1776 ई. में हेनरी केवेंडिश ने की थी
  • हाइड्रोजन के कुछ गुणों की समानताएँ क्षार धातुओं तथा कुछ गुणों की समानताएँ हैलोजन्स से होती हैं। अतः हाइड्रोजन को आवर्त सारणी में एक उचित स्थान नहीं दिया जा सका है, जो आवर्त सारणी का एक दोष है।

हाइड्रोजन के समस्थानिक (Isotopes of hydrogen)
हाइोजन के तीन समस्थानिक ज्ञात हैं।
  1. प्रोरिया (1H1) या H
  2. ड्यूटीरियम (1H2) या D
  3. ट्राइटियम (1H3) या T

हाइड्रोजन के समस्थानिक

समस्थानिक

(Isitope)

प्रतीक (Symbol)

नाभिक में प्रोटोन की संख्या

नाभिक में न्यूट्रोंन की संख्या

परमाणु क्रमांक (Z)

परमाणु द्रव्यमान (A)

प्रकृति में प्रतिशत मात्रा (भारात्मक)

प्रोटियम

1H1 या H

1

0

1

1

99.98%

इयूटीरियम

1H2 या D

1

1

1

2

0.015%

ट्राइटियम

1H3 या T

1

2

1

3

10-15%


हाइड्रोजन के प्रकार (Types of hydrogen)

पारमाणविक हाइड्रोजन (Atomic hydrogen)
  • हाइड्रोजन गैस (H2) को सामान्य दाब व 4000-4500°C ताप पर दो टंगस्टन छडों के बीच विद्युत आर्क के माध्यम से प्रवाहित करने पर पारमाणविक हाइड्रोजन प्राप्त होता है।
  • पारमाणविक हाइड्रोजन का जीवन काल 0.3 सेकंड होता है। अत: यह तुरंत ही आणविक हाइड्रोजन (H2) में परिवर्तित हो जाता है तथा अत्यधिक ऊर्जा निर्मुक्त करता है। इस ऊर्जा का प्रयोग काटने व वेल्डिंग हेतु किया जाता है।

नवजात हाइड्रोजन (Newborn hydrogen)
यह रासायनिक अभिक्रियाओं में किसी यौगिक द्वारा तुरंत ही निकाली हुई हाइड्रोजन होती है जो आणविक हाइड्रोजन से अधिक क्रियाशील होती है।

ऑर्थो हाइड्रोजन (Ortho hydrogen)
डाइ हाइड्रोजन के एक अणु में हाइड्रोजन (H) के दो परमाणु होते हैं। दोनों परमाणुओं के नाभिक यदि एक ही दिशा में चक्रण गति (Spin motion) करते हैं तो इस रूप को ऑर्थो हाइड्रोजन कहते हैं।

पैरा हाइड्रोजन (Para hydrogen)
डाइ हाइड्रोजन के अणु में हाइड्रोजन (H) के दोनों परमाणुओं के नाभिक यदि विपरीत दिशा में चक्रण गति करते हैं तो इस रूप को पैरा हाइड्रोजन कहते हैं।

हाइड्रोजन गैस [Hydrogen (H2) gas]
  • यह एक रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन गैस है जो अत्यधिक ज्वलनशील होती है। 
  • यह ज्ञात सर्वाधिक हल्का तत्त्व है, जिसका घनत्व वायु का 1/4 होता है। साधारण ताप व दाब पर 1 लीटर हाइड्रोजन का वज़न केवल 0.0899 ग्राम होता है।
  • धातुओं (Na, K, Ca आदि) पर जल की क्रिया, जल (H2O) के विद्युत अपघटन तथा अम्ल, क्षार की क्रिया से हाइड्रोजन प्राप्त की जाती है।
  • हाइड्रोजन को जलाने पर जल (H2O) प्राप्त होता है।
  • प्रयोगशाला में दानेदार जस्ता (Granulated zinc) पर सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा हाइड्रोजन प्राप्त की जाती है।
  • व्यापारिक स्तर पर जल के वैद्युत अपघटन द्वारा, कोक हाइड्रो कार्बन पर भाप की क्रिया द्वारा, तप्त लोहे पर भाप व जल गैस प्रवाहित करके हाइड्रोजन (H2) गैस प्राप्त की जाती है।

उपयोग (Uses)
  • उच्च दाब पर वनस्पति तेल, निकिल उत्प्रेरक की उपस्थिति में जब हाइड्रोजन से संयोग करते हैं तो वनस्पति घी में बदल जाते हैं, यह प्रक्रिया तेलों का हाइड्रोजनीकरण (Hydrogenation of oil) कहलाती है।
  • हैबर विधि द्वारा अमोनिया के निर्माण में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है।
  • अंतरिक्ष अनुसंधानों में रॉकेट ईंधनों के रूप में द्रव ऑक्सीजन व द्रव हाइड्रोजन का प्रयोग किया जाता है।
  • धातुओं को काटने व वेल्डिंग करने हेतु हाइड्रोजन का प्रयोग 'ऑक्सी हाइड्रोजन टॉर्च' के रूप में किया जाता है।
  • ईंधन सेल, संश्लेषित पेट्रोल (Synthetic petrol) आदि बनाने में डाई हाइड्रोजन का प्रयोग किया जाता है।
  • सामान्यतः गुब्बारे में हाइड्रोजन गैस भरी जाती है।

भारी हाइड्रोजन ड्यूटीरियम [Heavey hydrogen/deuterium (D2)]
  • यूरे (Urey) नामक वैज्ञानिक ने अपने प्रयोगों द्वारा बताया कि साधारण हाइड्रोजन में लगभग 0.0156% भारी हाइड्रोजन (D2) होता है। 
  • भारी हाइड्रोजन (D2) तथा भारी जल (D2O) की खोज के लिये यूरे को 1934 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। 
  • साधारण जल के 6000 भागों में लगभग 1 भाग भारी जल (D2O) का होता है अतः भारी जल का विद्युत अपघटन करके, भारी जल की सोडियम धातु से अभिक्रिया कराकर, लाल तप्त (Red hot) लोहे पर भारी जल का वाष्प प्रवाहित करके ड्यूटीरियम गैस (D2) प्राप्त की जाती है।

समस्थानिक प्रभाव (Isotope effect)
एक ही तत्त्व के समस्थानिकों के रासायनिक गुण समान होते हैं किंतु ड्यूटीरियम का परमाणु द्रव्यमान (2) हाइड्रोजन (1) की तुलना में अधिक होने के कारण हाइड्रोजन की अपेक्षा ड्यूटीरियम की रासायनिक अभिक्रियाओं की दर धीमी होती है, यह घटना 'समस्थानिक प्रभाव' (Isotope effect) कहलाती है।

उपयोग (Uses)
नाभिकीय संलयन (Nuclear fusion) क्रिया में, कृत्रिम विघटन प्रक्रियाओं में ड्यूटीरियम का प्रयोग एक भारी प्रक्षेप्य (Heavy projectile) के रूप में किया जाता है।
विभिन्न जैव रासायनिक क्रियाओं में ड्यूटीरियम का प्रयोग सूचक (Tracer) के रूप में किया जाता है।
नाभिकीय रिएक्टरों में ड्यूटीरियम का प्रयोग मंदक के रूप में किया जाता है।

भारी जल [Heavy water (D2O)]
  • भारी जल की खोज यूरे (Urey) तथा वाशबर्न (Washburn) ने की थी।
  • ड्यूटीरियम के ऑक्साइड को भारी जल (D2O) कहा जाता है।
  • साधारण जल के 6000 भागों में लगभग 1 भाग भारी जल पाया जाता है। अतः क्षारीय जल का विद्युत अपघटन करने पर भारी जल प्राप्त किया जाता है।
  • भारी जल रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन द्रव होता है।
  • भारी जल का हिमांक, क्वथनांक, घनत्व, सामान्य जल से अधिक होता है।
  • भारी जल के रासायनिक गुण, साधारण जल से लगभग मिलते-जुलते हैं। 

उपयोग (Uses)
  • ड्यूटीरियम व इसके यौगिक जैसे ND3, PD3, CD4 आदि बनाने में भारी जल का प्रयोग किया जाता है। 
  • नाभिकीय रिएक्टरों में भारी जल का प्रयोग मंदक के रूप में किया जाता है।
  • विभिन्न जैव रासायनिक क्रियाओं में भारी जल का प्रयोग पूषक' (Trnoon) किया जाता है।
  • भारी जल में सामान्यता पौधों व अतुओं की विभिन्न उपापचयी क्रियाएँ, (Metabolic activities) मंद पड़ जाती। अतः यह शरीर के लिये हानिकारक होता है।

मृदु जल (Sejn water)
  • वह जल जो साबुन के साथ आसानी से भाग देता है, मृदु जल कहलाता है।
  • भार के अनुसार जल में 11.11% हाइड्रोजन पाया जाता है।

कठोर जल (Hard water)
वह जल जो साबुन के साथ आसानी से झाग नहीं देता है, कठोर जल कहलाता है।
जल की कठोरता दो प्रकार की होती है।
  1. अस्थायी कठोरता
  2. स्थायी कठोरता

अस्थायी कठोरता (Temporary hardness)
  • जल की अस्थायी कठोरता, जल को उबालने से दूर की जा सकती है।
  • जल की अस्थायी कठोरता उसमें उपस्थित कैल्सियम व मैग्नीशियम के बाईकार्बोनेट के कारण होती है।
  • जल में बुझा चूना Ca(OH)2 मिला देने पर भी अस्थायी कठोरता दूर हो जाती है। 

स्थायी कठोरता (Permanent hardness);
  • जल की स्थायी कठोरता उसमें उपस्थित कैल्सियम व मैग्नीशियम के सल्फेट व क्लोराइड के कारण होती है।
  • यदि जल की कठोरता उसे उबालने पर दूर नहीं की जा सकती तो इसे स्थायी कठोररता कहते हैं।
  • जल की स्थायी कठोरता दूर करने की मुख्य विधि परम्यूटिट विधि (Permutit Method) है। परम्यूटिट, सोडियम जिओलाइट (Na2AL2Si2O8.xH2O) को कहा जाता है।
  • जल में सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3) मिलाकर उबालने से स्थायी कठोरता व अस्थायी कठोरता दोनों दूर की जा सकती हैं।

हाइड्रोजन परॉक्साइड [Hydrogen peroxide (H2O2)]
  • शुद्ध हाइड्रोजन परॉक्साइड हल्का नीला (Pale blue) रंग का गाढ़ा द्रव होता है।
  • थीनार्ड (J.L. Thenard) ने बेरियम परॉक्साइड पर तनु सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा सर्वप्रथम हाइड्रोजन परोक्साइड प्राप्त किया तथा इसका नाम 'ऑक्सीजिनेटिड वाटर' रखा।
  • व्यापारिक स्तर पर 2-एथिल एंथ्राक्विनोल के स्वत: ऑक्सीकरण द्वारा तथा सल्फ्यूरिक अम्ल के वैद्युत अपघटन द्वारा हाइड्रोजन परॉक्साइड प्राप्त की जाती है। हाइड्रोजन परॉक्साइड त्वचा पर फफोले डाल देती है।
  • हाइड्रोजन परॉक्साइड ऑक्सीकारक तथा अवकारक दोनों की भाँति कार्य करता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड अपने ऑक्सीकारक गुण के कारण विरंजक (Bleaching agent) का कार्य करता है। यह रेशम, ऊन, बाल, हाथी दाँत आदि का विरंजन कर देता है।

उपयोग (Uses)
  • हाइड्रोजन परॉक्साइड का उपयोग तनु विलयन कीटनाशी (Germicide) के रूप में, प्रतिरोधी (Antiseptic) के रूप में घाव धोने, कान व दाँत साफ करने, गरारे करने आदि में किया जाता है।
  • हाइड्रोजन परॉक्साइड का उपयोग रॉकेट, जेट आदि के ईधन तथा किसी अन्य ईधन के ऑक्सीकारक के रूप में किया जाता है।
  • हाइड्रोजन परॉक्साइड का उपयोग भोज्य पदार्थ परिरक्षक (Food preservative) के रूप में किया जाता है।
  • हाइड्रोजन परॉक्साइड का उपयोग काले पड़े पुराने तेल चित्रों (Oil paintings) का रंग उभारने में किया जाता है।

सिलिकॉन (Si)
सिलिकॉन भूपर्पटी (Earth crust) में दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्त्व (Second most abundant element) है (लगभग 26%) जो रेत, क्वार्टज, फ्लिद, चिकनी मिट्टी आदि में पाया जाता है।

प्राप्ति (Occurance)
  • विद्युत भट्ठी में सिलिका या रेत (SiO2) का कार्बन द्वारा अपचयन कराने पर सिलिकॉन (Si) प्राप्त होता है।
  • सिलिकॉन से अतिशुद्ध सिलिकॉन जोन शोधन (Zone refining) विधि द्वारा प्राप्त किया जाता है।

उपयोग (Uses)
  • सिलिकॉन एक अर्द्धचालक (Semiconductor) होता है। अतः इससे अतिचालकता (Superconductivity) प्राप्त की जा सकती है।
  • अतिशुद्ध सिलिकॉन का उपयोग ट्रांजिस्टरों के निर्माण में किया जाता है।
  • माइक्रोप्रोसेसर आदि की चिप बनाने में सिलिकॉन का प्रयोग किया जाता है।
  • कई मिश्र धातुओं के निर्माण, लोहे को अम्ल प्रतिरोधी (Acid resistant) बनाने आदि में इसका उपयोग किया जाता है।
  • सिलिका जेल, कीजेल्गर आदि के रूप में इसका उपयोग शुष्ककारक (Drying agent) की तरह किया जाता है।

सिलिकॉन कार्बाइड अथवा कार्बोरेंडम [Silicon carbide or carborandum (SiC)]
यह रंगहीन, पारदर्शक, हीरे जैसा कठोर पदार्थ है, अत: इसे कृत्रिम हीरा (Artificial diamond) कहा जाता है।
यह रासायनिक रूप से अक्रिय पदार्थ है। अत: यह अम्लों (HF, HCL) आदि) से क्रिया नहीं करता है।
यह अत्यधिक ताप सह सकने तथा दुर्गलनीय (Refractory) प्रकृति का होने के कारण क्रूसीबिल बनाने के लिये उपयोग में लाया जाता है।
औद्योगिक भट्ठियों, रेगमाल (Sand paper), अपघर्षी चूर्ण (Abrasive powder) आदि बनाने के लिये इसका उपयोग किया जाता है।

सिलिकेट (Silicates)
  • भूपर्पटी (Earth crust) में विभिन्न संरचनाओं के धातु सिलिकेट पाए जाते हैं।
  • सिलिकेट मुख्यत: 2 प्रकार के होते हैं-
  1. ऑर्थोसिलिकेट
  2. पाइरोसिलिकेट

काँच (Glass)
  • काँच एक अतिशीतित द्रव (Super cooled liquid) होता है जो एक अक्रिस्टलीय ठोस होता है। अत: इसका कोई निश्चित गलनांक नहीं होता है।
  • काँच सिलिका (SiO2), सोडियम सिलिकेट (Na2 SiO3) तथा कैल्सियम सिलिकेट (CaSiO3) का मिश्रण होता है।
  • काँच एक मिश्रण (Mixture) है, यौगिक (Compound) नहीं; अतः काँच का रासायनिक सूत्र निश्चित नहीं होता है।
  • काँच का औसत संघटन Na2SiO3.CaSiO3.4SiO2 होता है।

काँच के प्रकार (Types of glass)
काँच निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

मृदु काँच (Soft glass)
यह सोडा चूना काँच (Soda lime glass) होता है, जो लगभग 600°C ताप पर नर्म पड़ जाता है। इसका उपयोग ग्लास, बोतल, खिड़की के काँच, काँच के बर्तन आदि बनाने में किया जाता है।

कठोर काँच (Hard glass)
यह पोटाश चूना काँच (Potash lime glass) होता है, जो लगभग 800°C ताप पर नर्म पड़ जाता है। इसका उपयोग बीकर, परखनली, फ्लास्क आदि बनाने में किया जाता है।

फ्लिट काँच (Flint glass)
यह पोटाश लेड चूना (Potash lead lime) काँच होता है इसका उपयोग प्रिज्म व लॅस आदि बनाने में किया जाता है।

क्रक्स कांच (Crookes elasst)
इस काँच में सीजियम ऑक्साइड (Cesium oxide) पाए जाते  है  इसका उपयोग  चश्मों के लेंस बनाने में किया जाता है।

पाइरेक्स कांच (Pyrex glass)
इसमें सिलिका व बोरिक एनहाइड्राइड (B2O3)अधिक मात्रा में पाए जाते है इसका उपयोग प्रयोगशाला के उच्च कोटि के उपकरण बनाने में किया जाता है।

उपयोग (Uses)
  • काँच को काटने में हीरे का उपयोग किया जाता है।
  • काँच को खुरचने, डिजाइन आदि बनाने के लिये हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल (HF) का उपयोग किया जाता है। काँच पर हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल के प्रभाव से घुलनशील सिलीकेट बनता है।

नाइट्रोजन [Nitrogen (N2)]
  • नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत वायुमंडल है, जिसमें 78% नाइट्रोजन पाई जाती है।
  • नाइट्रोजन एक रंगहीन-गंधहीन गैस होती है, जो रासायनिक रूप से निष्क्रिय (Inert) होती है।
  • प्रयोगशाला में नाइट्रोजन, अमोनिया (NH3) गैस को उत्प्रेरक की उपस्थिति में गर्म करने से प्राप्त होता है।
  • वातावरण में पाई जाने वाली मुक्त नाइट्रोजन को दलहन पौधों की जड़ों में पाया जाने वाला सहजीवी जीवाणु राइजोबियम व कुछ अन्य मुक्तजीवी जीवाणु, नाइट्राइट तथा नाइट्रेट के रूप में बदल देते हैं तथा इन्हें पौधे ग्रहण कर लेते हैं। पौधों के माध्यम से यह जंतुओं में भी पहुँच जाता है।
  • जब पौधों व जंतुओं की मृत्यु हो जाती है तो विनाइट्रीकारक जीवाणु (Denitrifying bacteria) मृत शरीर के नाइट्राइट तथा नाइट्रेट को नाइट्रोजन में बदल देते हैं तथा नाइट्रोजन को वातावरण में मुक्त कर देते हैं। इस प्रकार प्रकृति में नाइट्रोजन की मात्रा स्थिर रखने हेतु एक नाइट्रोजन चक्र चलता रहता है।
  • नाइट्रोजन का प्रयोग वायुयानों के टायरों में भरने, क्रायो बैंक (Cryo bank) एवं एक्स सीटू संरक्षण (Ex situ conservation) आदि के लिये किया जाता है। 

नाइट्रोजन के यौगिक (Compounds of nitrogen)

अमोनिया [Ammonia (NH3)]
  • अमोनिया नाइट्रोजन का एक स्थायी हाइड्राइड होता है।
  • 1774 में सर्वप्रथम प्रीस्टले ने अमोनियम क्लोराइड (NH4CI) तथा लाइम [Ca(OH)2] के मिश्रण को गर्म करके अमोनिया गैस प्राप्त की और इसे क्षारीय वायु (Alkaline air) कहा। बर्थोलेट ने बताया कि यह नाइट्रोजन (N2) व हाइड्रोजन (H2) का यौगिक है। डेवी ने इसका सूत्र NH3 स्थापित किया।

गुण (Properties)
  • यह एक रंगहीन, तीक्ष्ण विशेष गंधयुक्त गैस है। इसे सूंघने पर आँसू आ जाते हैं। अत: इसका उपयोग अश्रु गैस (Teargas) के रूप में भीड़ को तितर-बितर करने में किया जाता है।
  • यह गैस वायु से हल्की होती है तथा जल में घुलनशील होती है। इसका जलीय विलयन क्षारीय (Alkaline) होता है।
  • अमोनिया अज्वलनशील (Non fiamrnable) गैस होती है अर्थात् न तो स्वयं जलती है और न ही जलने में सहायक होती है।
संरचना (Structure) : अमोनिया (NH3) की संरचना चतुष्फलकीय (Tetrahedral) व आकृति पिरामिडीय (Pyramidal) होती है, जिसमें एक इलेक्ट्रॉन युग्म मुक्त पाया जाता है।
प्रयोगशाला निर्माण विधि (Laboratory preparation method) : प्रयोगशाला में नौसादर (NH4CI) को बुझे चूने (Slaked Lime) के साथ गर्म करने पर अमोनिया बनाई जाती है।
  • प्रयोगशाला में अमोनिया बनाने हेतु उपकरण वायुरोधी (Air tight) होना चाहिये।
  • अमोनिया को मर्करी (Hg) के ऊपर वायु के अधोमुखी विस्थापन द्वारा एकत्रित किया जाता है।
  • अमोनिया गैस को सुखाने के लिये क्विक लाइम (CaO) का उपयोग करते हैं।

औद्योगिक निर्माण (Industrial preparation)
  • अमोनिया का औद्योगिक निर्माण 'हेबर विधि' (Haber's process) द्वारा किया जाता है।
  • हेबर विधि में आयरन उत्प्रेरक के रूप में व मॉलिब्डेनम उत्प्रेरक वर्द्धक की भाँति प्रयोग किया जाता है।

उपयोग (Uses)
  • द्रवित अमोनिया का उपयोग बर्फ जमाने में प्रशीतक (Coolant) के रूप में किया जाता है।
  • यूरिया, अमोनियम सल्फेट आदि बनाने में अमोनिया का प्रयोग किया जाता है।

नाइट्रस ऑक्साइड (N2O)
  • नाइट्रस ऑक्साइड गैस को अल्प मात्रा में सूंघने पर हँसी आने लगती है। अतः इसे हँसी उत्पन्न करने वाली गैस (Laughing gas) कहा जाता है।
  • इसे प्रयोगशाला में अमोनियम नाइट्रेट (NH4 NO3) को गर्म करके बनाया जाता है।
  • नाइट्रस ऑक्साइड गैस को मर्करी (Hg) के ऊपर जल के अधोमुखी विस्थापन (Downward displacement) द्वारा एकत्रित किया जाता है।
  • यह एक उदासीन ऑक्साइड (Neutral oxide) होता है।
  • नाइट्रस ऑक्साइड व ऑक्सीजन का मिश्रण दंत चिकित्सा व सामान्य शल्य क्रिया में निश्चेतक (Anaesthetic) के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

नाइट्रिक अम्ल (HNO3)
  • प्रयोगशाला में नाइट्रिक अम्ल, पोटैशियम नाइट्रेट (KNO) को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल (H,SO) के साथ गर्म करके प्राप्त किया जाता है।
  • नाइट्रिक अम्ल के औद्योगिक उत्पादन हेतु दो मुख्य विधियाँ हैं-
  1. ओस्टवाल्ड विधि,
  2. वर्कलैंड विधि

सधूम नाइट्रिक अम्ल (Fuming nitric acid)
  • पीले-भूरे रंग का सांद्र नाइट्रिक अम्ल (98%) सधूम नाइट्रिक अम्ल कहलाता है।
  • सधूम नाइट्रिक अम्ल में से भूरे रंग का धुआँ NO2 के कारण निकलता रहता है।

उपयोग (Uses)
  • नाइट्रिक अम्ल का उपयोग उर्वरक बनाने में किया जाता है।
  • रंग, इत्र, औषधियाँ आदि बनाने में भी नाइट्रिक अम्ल का उपयोग किया जाता है।
  • विस्फोटक (TNT, पिकरिक अम्ल, गन कॉटन आदि) बनाने में नाइट्रिक अम्ल का उपयोग किया जाता है।
  • प्रयोगशाला में नाइट्रिक अम्ल का उपयोग अभिकर्मक व प्रबल ऑक्सीकारक के रूप में किया जाता है।

अम्लराज (Aquaregia)
  • भाग सांद नाइट्रिक अम्ल (HNO3) और 3 भाग सांद्र हाड्रोक्लोरिक अम्ल (HCL) को मिलाने पर अलराज (Aquaregia), प्राप्त होता है। (HNO3 + 3HCl)
  • अम्लराज मुक्त क्लोरीन की उपस्थिति के कारण प्रबल ऑक्सीकारक का कार्य करता है, जो सोने (Au) तथा प्लेटिनम (Pt) जैसी उत्कृष्ट धातुओं को घोल लेता है। 

फॉस्फोरस [Phosphorus (P)]
  • (Phos = Light and Phero = I carry)
  • अंधेरे में चमकने के कारण इसे फॉस्फोरस नाम दिया गया है।
  • सभी जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों में फास्फोरस पाया जाता है। जंतुओं की हदिडयों व दाँतों में यह कैल्सियम फॉसफट व हाइड्रॉक्सीएपेटाइट के रूप में पाया जाता है।
  • फॉस्फोरस को मुख्यतः कैल्सियम फॉस्फेट [(Ca3 (PO4)2] या हड्डी की राख (Bone ash) से दो विधियों द्वारा प्राप्त किया जाता है-
  1. रिटॉर्ट विधि (Retort process)
  2. विद्युत तापीय विधि (Electrothermal process)

फॉस्फोरस के अपररूप (Allotropes of phosphorus)
प्रकृति में फॉस्फोरस के कई अपरथप पाए जाते हैं, जैसे- सफेद या पीला फॉस्फोरस, लाल फॉस्फोरस, सिंदूरी फॉस्फोरस, काला फॉस्फोरस, बैंगनी फॉस्फोरस, इनमें से सफेद व लाल फॉस्फोरस प्रमुख होते हैं।

सफेद व लाल फॉस्फोरस के गुणों की तुलना

गुण(Properties)

सफेद फॉस्फोरस

लाल फॉस्फोरस

भौतिक अवस्था

P4 रूप में मुलायम ठोस

चूर्ण जैसा

रंग

सफेद या पीला

लाल

क्रिस्टल

क्यूबिक

रोम्बोयडल

गंध

लहसुन जैसी

रोम्बोयडल

गलनांक

44°C

589.5°C

ज्वलनताप

30°C

260°C

कार्बन डाइसल्फाइड में विलेयता

विलेय

अविलेय

अभिक्रियाशीलता

अत्यधिक अभिक्रियाशील

कम अभिक्रियाशील

जलने का गुण

वायु में रखने पर स्वत: जलता है।

कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

विषैला गुण

अत्यधिक विषैला

विषैला नहीं

स्फुरदीप्ति

स्फुरदीप्त होता है।

स्फुरदीप्त नहीं होता है।

गर्म NaOH से क्रिया

फॉस्फीन (Ph3) गैस बनाता है।

कोई अभिक्रिया नहीं करता।


उपयोग (Uses)
होम्स सिग्नल (Holme's Signal) बनाने में कैल्सियम फॉस्फाइड का उपयोग किया जाता है, जिनका उपयोग समुद्र में जहाजों को संकेत देने में किया जाता है। 
लाल फॉस्फोरस का उपयोग माचिस, आतिशबाजी व विस्फोटक बनाने में किया जाता है। 
चूहा मारने के विष में जिंक फॉस्फाइड के रूप में फॉस्फोरस का प्रयोग किया जाता है।

फॉस्फोरस के यौगिक (Compounds of phosphorus)

फॉस्फीन [Phosphine (PH3)]
  • सफेद फॉस्फोरस को सांद्र कास्टिक सोडा (NaOH) विलयन के साथ गर्म करने पर फॉस्फीन गैस प्राप्त होती है। 
  • कार्बनिक पदार्थों (पेड़-पौधों आदि) के सड़ने से दलदली (Marshy) स्थानों में फॉस्फीन पैदा होती है, जो वायु में जलकर चमक उत्पन्न करती है। 
  • फॉस्फीन एक रंगहीन गैस है जिससे सड़ी हुई मछली जैसी गंध आती है।
नोट- फॉस्फीन में P2H4 की अशुद्धि होने के कारण यह ज्वलनशील होती है। 

उपयोग (Uses)
  • समुद्र के जहाजों को संकेत देने हेतु 'होम्स संकेत' (Holme's signal) में फॉस्फीन का उपयोग किया जाता है।
  • धूम्रपट (Smoke screen) बनाने हेतु फॉस्फीन का उपयोग किया जाता है।

ऑक्सीजन [(Oxygen (O2)]
  • ऑक्सीजन गैस की खोज सर्वप्रथम शीले नामक वैज्ञानिक ने की थी।
  • ऑक्सीजन एक रंगहीन, गंधहीन, अज्वलनशील गैस है, जो पदार्थों के दहन में सहायक होती है।
  • प्रकृति में लगभग 20.29% ऑक्सीजन पाई जाती है, जो प्राणियों के श्वसन में सहायक होती है।
  • ऑक्सीजन भूपर्पटी में सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्त्व है।
  • धरती की सतह पर सर्वाधिक पाए जाने वाले तीन तत्त्व निम्नलिखित हैं-
ऑक्सीजन (O) > सिलिकॉन (Si) > एल्युमिनियम (Al)

भूपर्पटी में सर्वाधिक मात्रा में पाए जाने वाले तत्त्व और उनकी प्रतिशत मात्रा इस प्रकार है-

तत्त्व

भार (% में)

तत्त्व

भार (% में)

तत्त्व

भार (% में)

O

46.6%

Ca

3.6%

Ti

0.44%

Si

27.7%

Na

2.8%

H

0.14%

Al

27.7%

K

2.6%

P

0.2%

Fe

5.0%

Mg

2.1%

Mn

0.1%


ऑक्सीजन अणु (O2) अनुचुंबकीय (Paramagnetic) होता है, क्योंकि इसमें दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं।
ऑक्सीजन का हाइड्राइड, जल (H2O) होता है। जल के अणु में हाइड्रोजन बंध पाए जाने के कारण जल द्रव है तथा इसका क्वथनांक उच्च होता है।
ऑक्सीजन जीव-जंतुओं के श्वसन हेतु अत्यंत आवश्यक होती है। कृत्रिम श्वसन हेतु ऑक्सीजन व हीलियम के मिश्रण का उपयोग किया जाता है।
रॉकेट ईंधन के रूप में द्रव ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।

ओज़ोन (Ozone -O3)
  • वायुमंडल में पाई जाने वाली ऑक्सीजन पर पराबैंगनी प्रकाश (Ultraviolet light) के पड़ने से ओजोन गैस बनती है।
  • ओजोन में पराबैंगनी प्रकाश को अवशोषित करने की अत्यधिक क्षमता होती है। अतः यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों (UV Rays) का अवशोषण कर उनके हानिकारक प्रभाव से जीव-जंतुओं को बचाती है।
  • शुष्क ऑक्सीजन गैस में विद्युत विसर्जन करने पर ऑक्सीजन व ओजोन का मिश्रण प्राप्त होता है। इसमें 5-10% ओजोन होता है। इसे ओजोनित ऑक्सीजन (Ozonized oxygen) कहते हैं।
  • ऑक्सीजन से ओजोन बनाने हेतु प्रयुक्त उपकरण को ओज़ोनाइजर कहते हैं।
  • शद्ध ओजोन नीले रंग की विस्फोटक गैस होती है, जिससे मछली जैसी गंध आती है।
  • ओजोन प्रतिचुंबकीय (Diamagnetic) गैस होती है।
  • ओजोन वनस्पति के रंगों का विरंजन (Bleaching) कर देती है। इसमें यह विरंजक गुण ओजोन के ऑक्सीकारक गुण के कारण होता है।
  • मर्करी से ओजोन की अभिक्रिया होने पर मर्करी की मेनिस्कस (Meniscus) खत्म हो जाती है और यह काँच से चिपकने लगती है।

उपयोग (Uses)
  • जल के रोगाणुओं को मारने के लिये कीटाणुनाशी (Insecticides) के रूप में ओज़ोन का प्रयोग किया जाता है।
  • हवा को शुद्ध करने के लिये ओजोन का प्रयोग किया जाता है।
  • भोज्य पदार्थ संरक्षक (Food preservative) के रूप में ओज़ोन का प्रयोग किया जाता है।
  • ओजोन के विरंजक गुण (Bleaching property) का उपयोग वनस्पति तेल, स्टार्च आदि को रंगहीन बनाने के लिये किया जाता है।

सल्फर [Sulphur (S)]
  • भूपर्पटी (Earth Crust) पर सल्फर लगभग 0.05% पाई जाती है। संयुक्त अवस्था में यह विभिन्न तत्त्वों के सल्फाइड व सल्फेट खनिजों के रूप में पाई जाती है।
  • सल्फर अणु ठोस, अष्टपरमाणुक (S8), सिकुड़ी हुई वलय (Puckered ring) के आकार का होता है।
  • S-S बंध ऊर्जा उच्च होने के कारण सल्फर परमाणु में श्रृंखलित होने का गुण (Catenation) पाया जाता है। इसके कई अपररूप ज्ञात हैं, जिनमें से कुछ मुख्य अपररूप निम्नलिखित हैं-
  1. रोबिक सल्फर
  2. मोनोक्लिनिक सल्फर
  3. अमॉरफस सल्फर
  4. कोलॉइडी सल्फर
  5. प्लास्टिक सल्फ
  • रोबिक सल्फर, सल्फर की सबसे स्थायी अवस्था होती है, जो S8 अणु के रूप में पाई जाती है। 
  • 369 K ताप पर रोंबिक सल्फर मोनोक्लिनिक सल्फर में परिवर्तित हो जाती है। इस ताप को संक्रमण ताप (Transition temperature) कहा जाता है।
  • उबलते, द्रवीभूत सल्फर को ठंडे पानी में डाल देने से एक मुलायम रबर की तरह पदार्थ प्राप्त होता है, जिसे प्लास्टिक सल्फर कहा जाता है।

उपयोग (Uses)
  • सल्फर का उपयोग डाई (Dye) बनाने, कीटाणुनाशी (Insecticides) आदि के रूप में किया जाता है।
  • सल्फर युक्त दवाइयाँ (सल्फा ड्रग्स) बनाने में सल्फर का उपयोग किया जाता है। विभिन्न यौगिकों, जैसे- SO2, SO3, H2SO4, H2SO4 CaHSO3 आदि बनाने में सल्फर का उपयोग किया जाता है।
  • विस्फोटक, माचिस आदि बनाने में सल्फर का उपयोग किया जाता है।

वल्कनीकरण (Vulcanisation)
"प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली रबड़ में सल्फर मिलाने की प्रक्रिया रबड़ का वल्कनीकरण कहलाती है।"
वल्कनीकरण की क्रिया से रबड़ का स्थायित्व व औद्योगिक उपयोग काफी बढ़ जाता है।

सल्फर डाइऑक्साइड [Sulphur dioxide (SO2)]
यह एक रंगहीन, ज़हरीली, दम घोंटने वाली गैस होती है।
औद्योगिक रूप से सल्फाइड खनिजों (आयरन पाइराइट, जिंक ब्लैंड) को भुनने (Roasting) पर सल्फर डाइऑक्साइड प्राप्त होती है।
नमी (Moisture) की उपस्थिति में सल्फर डाइऑक्साइड विरंजक (Bleaching) गुण प्रदर्शित करता है, परंतु इसकी विरंजन क्रिया अस्थायी होती है।
सल्फर डाइऑक्साइड का उपयोग भोजन संरक्षक (Food preservative), प्रतिक्लोर (Antichlor), विरंजक (Bleaching agent), प्रतिसंक्रमण (Disinfectant), प्रशीतक (Refrigerant) आदि की तरह किया जाता है।

सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4)
  • इसे कसीस का तेल (Oil of vitriol) भी कहा जाता है।
  • सल्फ्यूरिक अम्ल औद्योगिक रूप से काम में आने वाले सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रसायनों में से एक है। अत: इसे रसायनों का सम्राट कहा जाता है
  • सल्फ्यूरिक अम्ल को बनाने के लिये व्यापारिक स्तर पर दो मुख्य विधियों का प्रयोग किया जाता है।
  1. लेड कक्ष विधि (Lead chamber process)
  2. संपर्क विधि (Contact process)

लेड कक्ष विधि : इस विधि में नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) उत्प्रेरक की उपस्थिति में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) तथा वायु की भाप से क्रिया कराने पर सल्फ्यूरिक अम्ल प्राप्त होता है।

संपर्क विधि
इस विधि में सल्फर डाइऑक्साइड व ऑक्सीजन की क्रिया से सल्फर ट्राइऑक्साइड (SO3) बनता है, जिसका प्लेटिनम (Pt) तथा वैनेडियम पेंटा ऑक्साइड (V2O5) उत्प्रेरकों की उपस्थिति में जल के साथ क्रिया कराने पर सल्फ्यूरिक अम्ल प्राप्त होता है।

उपयोग (Uses)
सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग ऑक्सीकारक, अभिकारक और निर्जलीकारक (Dehydrating agent) के रूप में किया जाता है।
विस्फोटक बनाने, पेट्रोलियम के शोधन, लेड स्टोरेज बैटरी आदि बनाने में सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग करते हैं।

हैलोजन (Halogen)
आवर्त सारणी के वर्ग VII-A (P ब्लॉक) में 5 तत्त्वों को रखा गया है। इन तत्त्वों को हैलोजन कहा जाता है, क्योंकि ये तत्त्व लवण (NaCl आदि) के रूप में समुद्री जल में पाए जाते हैं।

F
फ्लोरीन

Cl
क्लोरीन

Br
ब्रोमीन

I
आयोडीन

At
एस्टेटीन

संयोजकता (Valency)
हैलोजन तत्त्वों के बाह्यतम कोश के S ब्लॉक में 2 तथा P ब्लॉक में 5 इलेक्ट्रॉन (ns2 np5) पाए जाते हैं। फ्लोरीन अपने सभी यौगिकों में एक संयोजक (Monovalent) होता है अर्थात् 1 संयोजकता प्रदर्शित करता है।

परमाणु त्रिज्या (Atomic radius)
वर्ग में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर परमाण त्रिज्याएँ बढती जाती हैं।

आयनन विभव (lonisation potential)
वर्ग में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर आयनन विभव घटता जाता है।

विद्युत ऋणात्मकता (Electronegativity)
  • अभी तक ज्ञात तत्त्वों में फ्लोरीन (F) सर्वाधिक विद्युत ऋणात्मक तत्त्व है जो हैलोजंस में सर्वाधिक क्रियाशील तत्त्व है।
  • वर्ग में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर विद्युत ऋणात्मकता घटती जाती है।

क्लोरीन [Chlorine (Cl2)]
  • क्लोरीन हरे-पीले रंग की तीखी (Pungent) व दम घोंटने वाली गैस है।
  • क्लोरीन एक विषैली गैस है जो श्वसन अंगों (नाक, फेफड़े) पर दुष्प्रभाव डालती है।
  • क्लोरीन गैस जल में घुलकर 'क्लोरीन जल' (Chlorine water) बनाती है, इससे क्लोरीन की गंध आती है।
  • क्लोरीन गैस बहत सक्रिय होती है। अतः यह मुक्त अवस्था में नहीं पाई जाती है। संयुक्त अवस्था में यह मुख्यत: NaCl व MgCI2 के रूप में पाई जाती है।
  • प्रयोगशाला में ठोस पोटैशियम परमैगनेट (KMnO4) पर सांद्र HCI की क्रिया कराने पर क्लोरीन गैस प्राप्त होती है।
  • व्यापारिक स्तर पर क्लोरीन को डीकन विधि (Deacon process) एवं विद्युत अपघटनी विधि (Electrolytic process) से बनाया जाता है।
  • क्लोरीन कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) से अभिक्रिया करके एक विषैली गैस कार्बोनिल बलोराइड या फॉस्जीन (COCI2) बनाती है।
  • क्लोरीन में ऑक्सीकारक गुण के कारण विरंजक का गुण पाया जाता है।

उपयोग (Uses)
  • क्लोरीन का उपयोग जल शोधन में, कीटनाशी के रूप में किया जाता है।
  • क्लोरीन गैस व क्लोरीन जल का प्रयोग ऑक्सीकारक के रूप में किया जाता है।
  • क्लोरीन का उपयोग विभिन्न तत्त्वों के क्लोराइड (PCl5, NCl3), ब्लीचिंग पाउडर, क्लोरोफॉर्म (CHCl3), कार्बन टेट्रा क्लोराइड (CCl4), रंजक (Dyes) व विस्फोटक आदि बनाने के लिये किया जाता है।

ब्लीचिंग पाउडर/कैल्सियम क्लोरो हाइपोक्लोराइड [Bleaching powder/calcium chloro hypochlorid (CaOCl2)]
  • ब्लीचिंग पाउडर हल्के सफेद-पीले रंग का चूर्ण होता है, जिससे क्लोरीन की गंध आती है।
  • सूखे बुझे चूने पर क्लोरीन गैस की क्रिया द्वारा ब्लीचिंग पाउडर बनता है।
  • हैजनक्लेवर तथा बैचमैन विधि व्यापारिक स्तर पर ब्लीचिंग पाउडर बनाने की दो प्रमुख विधियाँ हैं।
  • ब्लीचिंग पाउडर से किसी अम्ल की अधिक मात्रा में क्रिया कराने पर क्लोरीन मुक्त होती है, इसे 'प्राप्य क्लोरीन' (Available Chlorine) कहते हैं।
  • सामान्यतः ब्लीचिंग पाउडर में लगभग 35% 'प्राप्य क्लोरीन' पाई जाती है।
  • ब्लीचिंग पाउडर के काफी दिनों तक रखे रहने पर इसके अपघटन के कारण "प्राप्य क्लोरीन' की मात्रा धीरे-धीरे कम होती जाती है।
  • रोगाणुनाशी (Disinfectant) के रूप में पेय जल को शुद्ध करने के लिये ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग किया जाता है।
  • ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग विरंजन कारक (Bleaching Agent) के रूप में भी किया जाता है।

हाइड्रोजन क्लोराइड(Hydrogen chloride (HCl)]
  • यह एक रंगहीन, तीक्ष्ण, दम घोंटने वाली, गंध युक्त गैस है। यह जल में अत्यधिक विलेय होती है। अत: इसके जलीय विलयन को 'हाइड्रोक्लोरिक अम्ल' के नाम से जाना जाता है।
  • सोडियम क्लोराइड (NaCl) को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) के साथ गर्म करने पर हाइड्रोजन क्लोराइड प्राप्त होता है।
  • उपरोक्त प्रक्रिया से प्राप्त हाइड्रोजन क्लोराइड गैस को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल (Conc. H2SO4) से होकर प्रवाहित करने पर इसका शुष्कन (Drying) हो जाता है।

उपयोग (Uses)
  • कैल्को छपाई, चमड़ा उद्योग एवं दवाइयाँ बनाने आदि में इसका उपयोग किया जाता है।
  • विभिन्न तत्त्वों के क्लोराइड, अम्लराज (Aquaregia), ग्लूकोज़ आदि बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
  • गैल्वनीकरण, विद्युत प्लेटिंग (Electro plating) में इसका उपयोग किया जाता है।

ब्रोमीन [Bromine (Br2))
Bromos = A Stench (दुर्गंध)
  • ब्रोमीन गहरे लाल रंग का गाढ़ा, द्रव अधातु (Liquid non metal) है, जिसकी अत्यधिक तीक्ष्ण गंध के कारण ही इसका नाम ब्रोमीन रखा गया है। प्रकृति में संयुक्त अवस्था में ब्रोमीन समुद्री जल में (NaBr, KBr,MgBr2 के रूप में) समुद्री जंतुओं व पौधों में, खनिज झरनों (NaBr, KBr) आदि में पाया जाता है।
  • कार्नेलाइट अयस्क (KCI.MgCI2.6H2O) में लगभग 0.25% ब्रोमीन पाई जाती है।
  • समुद्री जल को अम्लीय (pH = 3.5) करके उसमें क्लोरीन गैस प्रवाहित करने पर ब्रोमीन गैस मुक्त होती है।

उपयोग (Uses)
  • ब्रोमीन का उपयोग जीवाणुनाशक (Disinfectant) के रूप में, ऑक्सीकारक (Oxidising agent) के रूप में, प्रयोगशाला के अभिकर्मक (Reagent) के रूप में किया जाता है।
  • सिल्वर ब्रोमाइड (AgBr) का उपयोग फोटो-फिल्म, फोटो कागज़ बनाने में किया जाता है।
  • अश्रु गैस, रंजक, औषधि आदि बनाने में ब्रोमीन का उपयोग किया जाता है।

आयोडीन [Iodine (I2)]
Ioeides = Violet (बैंगनी)
  • आयोडीन के वाष्प का रंग बैंगनी होने के कारण इसका नाम आयोडीन रखा गया है।
  • प्राकृतिक रूप से आयोडीन समुद्री जंतुओं, समुद्री शैवालों (जैसे- लैमिनेरिया) आदि में पाया जाता है।
  • आयोडीन की कमी होने से घेघा (Goitre) रोग हो जाता है। अतः घेघा पीड़ितों को आयोडीन दिया जाता है।
  • चिली साल्ट पीटर (NaNO3) जिसे कालीचे (Caliche) भी कहा जाता है, में आयोडीन सोडियम आयोडेट (NalO3) के रूप में पाया जाता है। यह आयोडीन प्राप्त करने का प्रमुख स्रोत होता है।
  • व्यापारिक स्तर पर आयोडीन समुद्री शैवाल (भूरे) जिन्हें कैल्प कहते हैं, को भट्ठियों में जलाकर उसकी राख से प्राप्त किया जाता है। कैल्प में 0.4 से 1.3% आयोडोन पाया जाता है।
  • सामान्य ताप पर आयोडीन नीले-काले रंग का क्रिस्टलीय ठोस होता है।
  • आयोडीन का एथिल अल्कोहल (C2H5OH) में बना विलयन 'आयोडीन का टिंचर' (Tincture of iodine) कहलाता है।
  • द्रव अमोनिया में ठोस आयोडीन मिलाने पर काले रंग का नाइट्रोजन ट्राइ आयोडाइड, अमोनिया यौगिक (NI3,NH3) बनता है जिसे गर्म करने, रगड़ने पर विस्फोट होता है।
  • आयोडीन स्टार्च विलयन को नीला कर देता है।
  • सभी हैलोजनों में आयोडीन प्रबलतम ऑक्सीकारक होता है।

उपयोग (Uses)
  • आयोडीन का उपयोग आयोडोफार्म परीक्षण, आयोडेक्स बनाने आदि में किया जाता है। 
  • रंजक (Dyes) व आयोडीन युक्त कार्बनिक यौगिक बनाने में भी आयोडीन का उपयोग किया जाता है।
  • रेडियोएक्टिव आयोडीन 1-131 का उपयोग थाइराइड कैंसर एवं ब्रेन ट्यूमर का पता लगाने में होता है।
  • सिल्वर आयोडाइड का प्रयोग कृत्रिम वर्षा करवाने हेतु किया जाता है।

एस्टेटीन [Astatine (At)]
यह भूपर्पटी (Earth crust) में सबसे कम मात्रा में पाया जाने वाला तत्त्व है।
एस्टेटीन एक रेडियोएक्टिव तत्त्व है। अतः यह अत्यंत अस्थायी होता है।

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