पारिवारिक साधन - पारिवारिक साधन का अर्थ, वर्गीकरण, विशेषताएँ, उद्देश्य | parivarik sadhan

पारिवारिक साधन का अर्थ

गृह प्रबन्ध में साधनों का महत्वपूर्ण योगदान है। साधन वह भौतिक वस्तुएं (मानवीय तथा अमानवीय) एवं गुण हैं जो हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं एवं जिनके उपयोग से हमें सन्तुष्टि प्राप्त होती है। मनुष्य साधनों के उपयोग द्वारा पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति करता है। गृह प्रबन्धन की प्रक्रिया में हम निरंतर साधनों के उचित एवं कुशल उपयोग के विषय में निर्णय लेते हैं। दैनिक जीवन में हम कई उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हैं। साधनों का उचित उपयोग एवं आवंटन आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। प्रबन्धन प्रक्रिया में हमें निरंतर यह प्रयास करना चाहिए कि उपलब्ध साधनों के प्रयोग द्वारा अधिकतम आवश्यकताओं एवं लक्ष्यों की पूर्ति हो।
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साधनों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है; मानवीय एवं अमानवीय। इनके माध्यम से विभिन्न लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। अलग-अलग व्यक्तियों, समुदायों एवं राष्ट्रों के पास उपलब्ध संसाधनों के प्रकारों तथा मात्रा में भिन्नता होती है। आइए साधनों के वर्गीकरण के बारे में जानें।

साधनों का वर्गीकरण

गृह प्रबन्ध में साधनों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है
  1. मानवीय साधन
  2. अमानवीय साधन

मानवीय साधनों के उदाहरण हैं, ज्ञान, रुचियाँ, योग्यता, कौशल, शक्ति एवं अभिवृत्तियां।
अमानवीय साधन के उदाहरण हैं, धन, समय, भौतिक वस्तुएँ एवं सामुदायिक सुविधाएँ।

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मानवीय साधन
अमानवीय साधनों की तुलना में मानवीय साधनों में स्पर्शनीय का गुण नहीं पाया जाता है। यह साधन मानव में अन्तर्निहित गुण एवं विशेषताएं हैं। कई गुण व्यक्ति को जन्मजात प्राप्त होते हैं एवं कुछ गुणों एवं विशेषताओं को व्यक्ति अपने श्रम एवं प्रयास के द्वारा अर्जित करता है, जैसे शिक्षा, व्यवसाय, किसी कार्य में निपुणता आदि। व्यक्ति की योग्यता एवं रुचि महत्वपूर्ण मानवीय साधन हैं। इन साधनों का समुचित उपयोग कर किसी व्यक्ति अथवा परिवार की उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है। जैसे यदि परिवार के किसी सदस्य की रुचि बागवानी में है तो अपनी इस रुचि का उपयोग कर वह घर पर ही कुछ फल एवं सब्जियों का उत्पादन कर सकता है।
यदि किसी महिला को सिलाई/बुनाई में रुचि है तो वह घर पर ही सस्ते दामों में विभिन्न वस्त्र एवं परिधान तैयार कर सकती है। गृहणी को यदि गृह सज्जा के कलात्मक पक्ष का ज्ञान एवं इसमें रुचि है तो इस गुण एवं अपने विचारों का प्रयोग कर वह अपने आवास को अद्भूत रूप से सजा सकती है। यदि किसी गृहणी को आहार नियोजन का उचित ज्ञान हो जो वह अपने परिवार को संतुलित एवं पोषक आहार प्रदान कर सकती है। आहार नियोजन हेतु वह विभिन्न खाद्य समूहों मे से सस्ते एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थों का चुनाव कर सकती है जिससे आहार में विविधता उत्पन्न हो, परिवार का बजट नियंत्रित रहे एवं सम्पूर्ण परिवार की पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हो। अभिवृत्ति को भी मानवीय साधनों के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। कुछ व्यक्ति किसी कार्य के प्रति अधिक आशावादी होते हैं तो कुछ अन्य व्यक्ति उसी कार्य के प्रति अधिक भाग्यवादी दृष्टिकोण रखते हैं। सामान्यतः आशावादी व्यक्ति अधिक लक्ष्यों एवं उपलब्धियों को प्राप्त करते हैं।

अमानवीय साधन
अमानवीय साधनों को भौतिक साधन के रूप में भी जाना जाता है। यह स्पर्शनीय होते हैं एवं इन्हें पहचानना आसान है। पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति करने में अमानवीय साधनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। अमानवीय साधनों के अन्तर्गत भौतिक वस्तुएँ, धन, समय एवं सामुदायिक सुविधाएं आती हैं।
धन जैसे अमानवीय साधनों का विनिमय मूल्य होता है। इसके उपयोग द्वारा सभी भौतिक वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। सभी भौतिक वस्तुएँ जिनका स्वामित्व हमें प्राप्त है, अमानवीय साधन हैं। इनका उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में समय-समय पर करते हैं। अमानवीय साधनों के अन्तर्गत समय को भी सम्मिलित किया गया है। समय एक सीमित साधन है, किसी भी कार्य को पूरा करने हेतु समय आवश्यक है।
सामुदायिक सुविधाएं जैसे उद्यान, पुस्तकालय, सड़क, सरकारी स्कूल एवं अस्पताल, डाक सेवा आदि के लिए व्यक्ति को प्रत्यक्ष रूप से कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ता है। इनके उपयोग हेतु व्यक्ति को सरकारी या अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं को निर्धारित शुल्क चुकाना पड़ता है।

साधनों की विशेषताएँ

अब तक आप साधनों के वर्गीकरण से परिचित हो चुके हैं। सभी साधनों की कुछ मूल विशेषताएँ समान होती हैं। इस खण्ड में हम साधनों की विशेषताओं के विषय में पढ़ेंगे। साधनों के अन्तर्निहित गुणों की पहचान उनके उचित एवं प्रभावी उपयोग हेतु आवश्यक है। साधनों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. सभी साधन उपयोगी होते हैं।
समस्त साधनों में उपयोगिता का गुण निहित होता है। साधनों का उपयोग कर मनुष्य अपने लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। अतः साधनों में संतुष्टि प्रदान करने का गुण होता है। साधन की उपयोगिता लक्ष्य पर भी निर्भर करती है। जैसे चित्र को रुचिपूर्ण बनाने में व्यक्ति का चित्रकारी में कौशल महत्वपूर्ण है परंतु उसी वस्तु को क्रय करने में धन अधिक महत्वपूर्ण साधन है।

2. साधन सीमित होते हैं।
सभी साधनों की एक विशेषता यह है कि सभी साधन सीमित हैं। साधनों की सीमित उपलब्धता के कारण इनका कुशल प्रबन्धन आवश्यक है। साधनों के प्रबन्धन द्वारा प्रयास किया जाता है कि इसके सीमित निवेश में अधिकतम लक्ष्यों और आवश्यकताओं की पूर्ति हो। साधनों की सीमितता गुणात्मक एवं मात्रात्मक दोनों रूपों में होती है।

मात्रात्मक रूप से सीमित साधन
मात्रात्मक रूप से सीमित साधनों का आंकलन अथवा गणना आसानी से की जा सकती है। हम इन साधनों की मात्रा ज्ञात कर सकते हैं। इन्हें तौल सकते हैं एवं इनकी संख्या ज्ञात कर सकते हैं। समय, शक्ति, धन, भौतिक वस्तुएँ एवं परिवार के सदस्यों की योग्यता सभी मात्रात्मक रूप से सीमित साधन हैं। समय भी एक सीमित साधन है। प्रत्येक व्यक्ति के पास प्रतिदिन केवल 24 घंटे होते हैं जिसका उपयोग विभिन्न व्यक्ति अपनी सुविधानुसार करते हैं। कुछ व्यक्ति उपलब्ध समय में अधिक कार्यो को पूर्ण कर लेते हैं तथा कुछ व्यक्ति उपलब्ध समय का पूर्ण सदुपयोग नहीं कर पाते हैं। समय के साथ-साथ ऊर्जा भी एक सीमित साधन है। प्रत्येक व्यक्ति में निहित ऊर्जा की मात्रा भिन्न होती है। ऊर्जा की मात्रा का बहुत सटीक आंकलन संभव नहीं है। परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को अनुभव द्वारा यह ज्ञात होता है कि वह अपनी सीमित ऊर्जा से किसी कार्य को सम्पादित कर सकता है अथवा नहीं। धन जैसे साधन की सीमितता की गणना आसानी से की जा सकती है। विभिन्न व्यक्तियों के पास धन भिन्न मात्राओं में होता है।
धन की आवश्यकता समय एवं परिस्थिति द्वारा प्रभावित होती है। धन कमाया जा सकता है, संचय किया जा सकता है तथा उधार भी लिया जा सकता है। धन का विनिमय मूल्य किसी भी अन्य संसाधन की तुलना में अधिक है। परिवार के सदस्यों की योग्यता की भी एक सीमा होती है। योग्यताओं के उपयोग की सीमा कुछ हद तक जन्मजात प्राप्त होती है परन्तु प्रशिक्षण के द्वारा योग्यताओं के उपयोग में अधिक दक्षता एवं कुशलता लायी जा सकती है। भौतिक साधन जैसे भूमि, जल, ईधन, खनिज पदार्थ आदि सभी सीमित मात्रा में उपलब्ध साधन हैं। 

गुणात्मक रूप से सीमित साधन
साधनों में गुणात्मक सीमितता भी पायी जाती है। गुणात्मक सीमितता को आसानी से मापा नहीं जा सकता है। यह सीमितता भौतिक वस्तुओं के गुणों में अन्तर से सम्बन्धित हो सकती है। विभिन्न समुदायों को उपलब्ध सेवाओं से भी गुणात्मक सीमितता पायी जाती है।

3. सभी साधन परस्पर रूप से सम्बन्धित होते हैं।
साधन उपयोगी होने के साथ-साथ पारस्परिक रूप से सम्बन्धित भी होते हैं। किसी कार्य या लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हम अकसर दो या दो से अधिक साधनों का प्रयोग करते हैं। जैसे किसी परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए विषय का ज्ञान, समय एवं शक्ति आदि साधनों का उचित प्रयोग आवश्यक है। यदि कोई महिला सिलाई सीखना चाहती है तो उसे सिलाई उपयोगी विभिन्न वस्तुओं के साथ-साथ समय, शक्ति, सिलाई में कौशल जैसे विभिन्न साधनों के मिश्रित प्रयोग की आवश्यकता पड़ेगी। केवल एक प्रकार के साधन का उपयोग कर किसी लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन है। पारिवारिक लक्ष्य विभिन्न साधनों के उपयुक्त प्रयोग द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं।

4. प्रबन्धन प्रक्रिया सभी साधनों पर लागू होती है।
साधनों की सीमितता के कारण एवं उनके उचित उपयोग से अधिकतम आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इनका योजनाबद्ध एवं व्यवस्थित प्रयोग आवश्यक है। गृह प्रबन्धक को परिवार के उपयोग हेतु उपलब्ध सभी साधनों के विषय में समचित जानकारी होनी चाहिए ताकि सीमित साधनों को अन्य उपलब्ध साधनों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सके। धन जैसे सीमित साधन की बचत हेतु व्यक्ति इसके स्थान पर अपने श्रम, शक्ति एवं कौशल जैसे साधनों के उपयोग द्वारा इच्छित लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। प्रबन्धन प्रक्रिया के सभी चरणों जैसे नियोजन, व्यवस्थापन, नियंत्रण एवं मूल्यांकन का क्रियान्वयन साधनों के उत्तम उपयोग हेतु आवश्यक है। साधनों के प्रबन्धन द्वारा इनका सही मात्रा में उपयोग कर साधनों के अपव्यय को रोका जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर अधिक साधनों की व्यवस्था की जा सकती है एवं सस्ते साधनों को महंगे साधनों की अपेक्षा अधिक उपयोग किया जा सकता है।

5. साधनों के वैकल्पिक उपयोग होते हैं।
अधिकांश साधनों के वैकल्पिक उपयोग संभव हैं। एक साधन का प्रयोग कर कई लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं। यह निर्णय गृह प्रबन्धक को लेना होता है कि परिवार की प्राथमिकता क्या है और किसी विशेष साधन का प्रयोग किस लक्ष्य या वस्तु की प्राप्ति हेतु किया जाएगा। उदाहरण के लिए समान उपलब्ध समय के कई वैकल्पिक उपयोग हैं। उपलब्ध समय में व्यक्ति समाचार पत्र पढ़ सकता है, बाजार से सामान ला सकता है, बागवानी कर सकता है, आराम कर सकता है आदि।
परिवार की बचत का प्रयोग कई लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु किया जा सकता है जैसे उच्च शिक्षा, मकान क्रय करना, वस्तुएँ क्रय करना आदि। यह निर्णय गृह प्रबन्धक को लेना होता है कि परिवार के लिए क्या आवश्यक है। उस सीमित बचत से किस लक्ष्य या वस्त की प्राप्ति की जाए। व्यय किया गया साधन तदुपरान्त अन्य किसी वस्तु या लक्ष्य प्राप्ति हेतु पुनः उपलब्ध नहीं होता है।

6. साधनों का प्रतिस्थापन संभव है।
एक ही लक्ष्य की प्राप्ति हेतु हम एक साधन के स्थान पर दूसरे साधन का प्रयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए हम घर में बागवानी के द्वारा फल- सब्जियों का उत्पादन कर सकते हैं या धन का प्रयोग कर इन्हें बाजार से खरीद सकते हैं। साधनों के प्रतिस्थापन में यह प्रयास करना चहिये कि सीमित और अधिक उपयोगी साधनों की बचत की जाए एवं इनका प्रतिस्थापन कम उपयोगी साधनों द्वारा किया जाए। जैसे घर पर व्यंजन बनाने की अपेक्षा हम बाजार में उपलब्ध तैयार खाद्य सामग्री क्रय कर सकते हैं। इस प्रकार समय एवं श्रम का प्रतिस्थापन धन के उपयोग द्वारा संभव है।

7. साधनों के उपयोग द्वारा जीवन की गुणवत्ता निर्धारित होती है।
साधनों के व्यवस्थित उपयोग द्वारा सीमित साधनों में भी अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं की प्राप्ति की जा सकती है। साधनों के उपयोग में विवेकपूर्ण एवं सुनियोजित प्रबन्धन प्रक्रिया की पारिवारिक जीवन की गुणवत्ता निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है। साधनों के उचित उपयोग द्वारा जीवन स्तर ऊँचा उठाया जा सकता है। जो परिवार समय, धन, शक्ति आदि साधनों का समुचित उपयोग करते हैं उनके रहन-सहन का स्तर ऊँचा होता है। वे उपलब्ध सीमित साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग कर आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं एवं सन्तुष्टि प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत कई परिवार अधिक साधनों के व्यय में भी लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं। अभाव के कारण उनके जीवन स्तर में कमी आती है।

अब हम साधनों के उपयोग के उद्देश्यों की चर्चा करेंगे।

साधनों के उपयोग के उद्देश्य

प्रत्येक साधन उपयोगी होता है। साधनों की उपयोगिता के कारण ही इनका प्रबन्धन आवश्यक है। परिवार उपलब्ध साधनों का उपयोग कर विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति करते हैं।
साधनों के उपयोग के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

लक्ष्यों की प्राप्ति
साधनों के उपयोग का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है, पारिवारिक या व्यक्तिगत लक्ष्यों की प्राप्ति। किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति साधनों के निवेश के अभाव में संभव नहीं है। प्रत्येक परिवार को यह प्रयास करना चाहिए कि साधनों का आवंटन महत्व के आधार पर लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु किया जाए । उदाहरण के लिए बच्चों की शिक्षा हेतु परिवार को समय, धन, परिश्रम एवं ज्ञान जैसे साधनों का उपयोग आवश्यक है।

मितव्ययिता
साधनों का उपयोग मितव्ययिता से करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि साधनों के कम उपयोग द्वारा अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो। अधिकांशतः साधन सीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं। प्रत्येक परिवार के पास साधन भिन्न-भिन्न मात्रा में उपलब्ध रहते हैं। यह आवश्यक है कि साधनों के उपयोग में मितव्ययी प्रबन्धन प्रक्रिया का अनुसरण किया जाए जिससे सीमित साधनों में अधिकतम लक्ष्यों की प्राप्ति हो।

आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु
परिवार की शारीरिक, मानसिक, धार्मिक व शैक्षिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु साधनों की आवश्यकता होती है। आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए मानवीय एवं अमानवीय दोनों प्रकार के साधनों का उपयोग किया जाता है।

परिवार के सदस्यों के विकास हेतु
परिवार के सदस्य साधनों का प्रयोग अपने विकास हेतु करते हैं। परिवार के सदस्यों के समुचित विकास हेतु साधनों के उपयोग में व्यवस्थापन महत्वपर्ण है। साधनों का उचित उपयोग एक व्यवस्थापन कौशल है। परिवार के सभी सदस्यों के मध्य साधनों का व्यवस्थापन, आवंटन एवं उपयोग इस प्रकार किया जाना चाहिए कि प्रत्येक सदस्य का विकास संभव हो सके।

सन्तुष्टि की इच्छा
साधनों का उपयोग कर व्यक्ति अपने लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति कर सन्तुष्टि प्राप्त करता है। अतः साधनों का उचित उपयोग व्यक्ति को सन्तुष्टि प्रदान करता है।

साधनों के उपयोग द्वारा प्राप्त सन्तुष्टि में वृद्धि करने हेतु सुझाव
अधिकांशतः साधन सीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं एवं इनके उचित उपयोग हेतु इन पर प्रबन्धन प्रक्रिया लागू होती है। साधनों के प्रबन्धन का मुख्य उद्देश्य है कि इनके उपयोग द्वारा प्राप्त सन्तुष्टि में वृद्धि की जा सके। एलिजाबेथ हाँयट ने साधनों से प्राप्त सन्तुष्टि में वृद्धि हेतु चार मार्गदर्शक सुझाव प्रस्तावित किए हैं जो निम्नलिखित हैं-
  • साधनों की पूर्ति में वृद्धि करना।
  • साधनों के वैकल्पिक उपयोग का ज्ञान।
  • साधनों की उपयोगिता में वृद्धि एवं उनके गुणों की प्रशंसा।
  • साधनों के चुनाव में संतुलन।
आइए इन विकल्पों पर विस्तार से चर्चा करें।

साधनों की पूर्ति में वृद्धि करना
साधनों की आपूर्ति में वृद्धि करने से पूर्व परिवार के लिए यह आवश्यक है कि वह यह ज्ञात करे कि उनके पास विभिन्न साधन कितनी मात्रा में उपलब्ध हैं। कौन से ऐसे साधन हैं जिनकी सीमितता अधिक है एवं कौन से साधन बहुतायत में उपलब्ध हैं। किसी भी परिवार के सम्मुख समय-समय पर विभिन्न आवश्यकताएं प्रकट होती रहती हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु परिवार को अधिक साधनों की आवश्यकता पड़ती है। परिवार के सम्मुख उपलब्ध समस्त साधनों एवं विकल्पों के ज्ञान द्वारा अतिरिक्त साधनों की पूर्ति संभव है। उदाहरण के लिए अतिरिक्त समय की मांग को पूर्ण करने के लिए गृहणी श्रम एवं शक्ति की बचत करने वाले उपकरणों का उपयोग कर सकती है। धन, ज्ञान एवं कौशल ऐसे साधन हैं जिनमें परिश्रम एवं प्रयास द्वारा वृद्धि की जा सकती है।

साधनों के वैकल्पिक उपयोग का ज्ञान
साधनों के प्रबन्धन में साधनों के वैकल्पिक उपयोग का ज्ञान होना आवश्यक है। समय और धन, जैसे साधनों के कई वैकल्पिक उपयोग संभव हैं। निर्धारित समय अवधि का मनुष्य विभिन्न प्रकार से उपयोग कर सकता है। जैसे गृह कार्यों में, मनोरंजन में, नया कौशल विकसित करने में, सामाजिक कार्यों में, आराम करने में आदि। उपलब्ध धन भी कई वस्तुओं एवं सेवाओं को क्रय करने में व्यय किया जा सकता है। एक बार व्यय किया गया साधन उपयोग के पश्चात् अन्य उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अनुपलब्ध हो जाता है। किसी भी साधन के कई वैकल्पिक उपयोग होने के कारण यह भी संभव है कि हम एक साधन जो सीमित मात्रा में उपलब्ध है, का प्रतिस्थापन दूसरे साधन जो कि बहुतायत में एवं आसानी से उपलब्ध है, के द्वारा कर पाएं। उदाहरण के लिए धन के अभाव में परिवार की फल एवं सब्जियों की आवश्यकता की पूर्ति कुछ हद तक अपने घर के छोटे उद्यान में किए गए श्रम द्वारा उत्पन्न ताजी सब्जियों एवं फलों के माध्यम से की जा सकती है। इस प्रकार धन के स्थान पर अन्य वैकल्पिक साधन (श्रम एवं समय) के प्रयोग द्वारा नियत उद्देश्य की पूर्ति संभव है।
यदि कामकाजी महिला समय के अभाव के कारण बच्चों की पढ़ाई एवं स्कूल का गृह कार्य स्वयं नहीं करा सकती है तो इस कार्य हेतु वह बालक की शिक्षा हेतु निजी शिक्षक अथवा ट्यूशन की व्यवस्था कर सकती है। इस प्रकार समय के अभाव की पूर्ति धन के माध्यम से की जा सकती है या दूसरे शब्दों में समय का प्रतिस्थापन धन के द्वारा किया जा सकता है। यदि परिवार के सदस्यों को साधनों के प्रतिस्थापन गुण एवं साधनों के वैकल्पिक उपयोग के विषय में समुचित ज्ञान हो तो सीमित मात्रा में उपलब्ध महत्वपूर्ण साधनों की बचत की जा सकती है एवं उनके स्थान पर अन्य वैकल्पिक साधनों का प्रयोग किया जा सकता है। बचत किए गए साधनों के माध्यम से अन्य लक्ष्यों की पूर्ति की जा सकती है।

साधनों की उपयोगिता में वृद्धि एवं उनके गुणों की प्रशंसा
कुछ साधनों के वैकल्पिक उपयोग संभव हैं, साथ ही कुछ ऐसी वस्तुएँ होती हैं जिन्हें एक से अधिक कार्य के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। ऐसी वस्तुओं का चुनाव कर परिवार उनसे प्राप्त उपयोगिता में वृद्धि कर सकता है। जैसे दीवान पलंग का उपयोग सोने, बैठने एवं सामान संग्रह करने के लिए किया जा सकता है। फर्नीचर में वस्तुओं को संग्रहित करने की व्यवस्था हो तो बैठने के साथ-साथ घर को व्यवस्थित रखने में भी वह सहायक होता है। खाना बनाने अथवा खाना परोसने योग्य बर्तन के माध्यम से दो उद्देश्यों की पूर्ति होती है तथा उपयोगिता में वृद्धि होती है।
किसी वस्तु की स्वीकार्यता एवं उसकी प्रशंसा अधिक कठिन कार्य है। स्वीकार्यता एवं प्रशंसा से साधन या वस्तु को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है। जैसे यदि कोई व्यक्ति किसी कला प्रदर्शनी में जाता है तो वह कला के प्रकार एवं उसकी स्वीकार्यता एवं प्रशंसा पर अपना अधिक ध्यान केन्द्रित करता है। किसी वस्तु की स्वीकार्यता एवं प्रशंसा हेतु एक से अधिक साधनों की आवश्यकता होती है या साधनों के मिश्रित प्रयोग की आवश्यकता होती है। जैसे ज्ञान एवं अभिवृत्ति के साथ धन का प्रयोग।

साधनों के उपयोग में संतुलन
संतुलन का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। एक सामाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य से यह अपेक्षित होता है कि वह अपने पारिवारिक जीवन के विभिन्न पक्षों में संतुलन स्थापित करे, संतुलित व्यवहार करे आदि। प्रकृति के विभिन्न तत्त्वों में भी संतुलन स्थापित है जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन संभव है। इसी प्रकार साधनों के चुनाव के माध्यम में भी संतुलन आवश्यक है। प्रभावपूर्ण प्रबन्धन प्रक्रिया के लिए सभी उपयोगी साधनों की उचित मात्रा में उपस्थिति अनिवार्य है। साथ ही यह भी संभव है कि एक ही साधन के अत्यधिक उपयोग से बचने के लिए हम उसके स्थान पर किसी अन्य साधन को प्रतिस्थापित कर दें। प्रतिस्थापन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि अन्य साधनों के उपयोग में कोई बाधा न उत्पन्न हो। उदाहरण के लिए समय जैसे साधन का संतुलित उपयोग किया जाना चाहिए। यदि एक ही कार्य को अत्यधिक समय दिया जाए तो जीवन के अन्य कार्यों के लिए कम समय उपलब्ध होता है। किसी कक्ष की उत्तम सजावट कला के सभी तत्त्वों का उचित अनुपात में उपयोग आवश्यक है। अतः यह कहा जा सकता है कि लक्ष्य प्राप्ति एवं अधिकतम संतोष हेतु सभी साधनों का उचित अनुपात में समावेश आवश्यक है।

साधनों के उपयोग के सिद्धान्त
परिवार उपलब्ध साधनों का प्रयोग लक्ष्य प्राप्ति हेतु करते हैं। इस खण्ड में आप साधनों के उपयोग के सिद्धान्तों के विषय में पढ़ेंगे। साधनों के उपयोग के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं।

लक्ष्य निर्धारित करना
साधनों के उपयोग के लिए सर्वप्रथम लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं। निर्धारित लक्ष्य साधनों के उपयोग हेतु मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। प्रत्येक परिवार अपने मूल्य, रुचि, आवश्यकता एवं प्राथमिकता के आधार पर स्वयं के लक्ष्य निर्धारित करता है।

योजना बनाना
निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु योजनाबद्ध रूप से कार्य करना महत्तवपूर्ण है। यह विचार करना आवश्यक है कि लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कौन-कौन से साधनों का कितनी मात्रा में प्रयोग किया जाए, साधनों के उपयोग की कार्य प्रणाली कैसी होगी आदि। योजना बनाकर कार्य करने से साधनों की व्यर्थ बर्बादी को नियंत्रित किया जा सकता है।

साधनों को एकत्रित करना
योजना बनाने के उपरान्त योजना के क्रियान्वयन हेतु उपयोगी साधनों को एकत्रित किया जाता है। साधनों के अभाव में न ही योजना पर कार्य किया जा सकता है और न ही लक्ष्यों की प्राप्ति संभव है।

साधनों को महत्व के क्रमानुसार स्थापित करना
साधनों को एकत्रित करने के उपरान्त उन्हें महत्व के क्रम अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। परिवार के समक्ष उपलब्ध साधनों की मात्रा में भिन्नता होती है। साथ ही कुछ साधन अधिक मात्रा में होते हैं तो कुछ साधन कम मात्रा में। साधनों की उपलब्धता, सीमितता, महत्व एवं लक्ष्य प्राप्ति में योगदान के अनुसार साधनों का क्रम स्थापित किया जाता है।

क्रियान्वयन करना
लक्ष्य प्राप्ति हेतु यह आवश्यक है कि निर्धारित योजना क्रियान्वित की जाए। योजना एवं साधनों का इस प्रकार क्रियान्वयन किया जा सके कि साधनों का उचित तथा पूर्ण उपयोग हो सके।

निरीक्षण करना
लक्ष्य प्राप्ति हेतु सभी कार्य भली प्रकार सम्पादित हो रहे हैं अथवा नहीं यह जानने के लिए योजना का निरीक्षण आवश्यक है। साधनों का उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है अथवा उनके उपयोग में कोई कठिनाई तो नहीं आ रही है, यह ज्ञात करने के लिए निरीक्षण किया जाता है। साथ ही यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि वास्तविकता में योजना में कोई त्रुटि तो नहीं रह गई अथवा लक्ष्य प्राप्ति हेतु योजना में कहाँ परिवर्तन की आवश्यकता है।

समायोजन
निरीक्षण के उपरान्त यदि यह ज्ञात होता है कि अमुक चरण योजना क्रियान्वयन में कठिनाई आ रही है तो इस चरण में समायोजन की आवश्यकता होती है। पूर्व योजना में थोड़ा परिवर्तन कर समायोजन किया जाता है जिससे लक्ष्यों की प्राप्ति संभव हो।

मूल्यांकन
साधनों के उपयोग का यह अंतिम सिद्धान्त है। इस चरण में यह समीक्षा की जाती है कि लक्ष्य प्राप्ति में कितनी सफलता प्राप्त हुई तथा साधनों के उपयोग द्वारा कितनी संतुष्टि प्राप्त की जा सकी।

पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले कारक

आप जानते हैं कि किसी भी कार्य के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपलब्ध साधनों का उचित उपयोग आवश्यक है। पारिवारिक साधनों की उपयोगिता तथा क्षमता को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं

पारिवारिक जीवन चक्र
प्रत्येक परिवार पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। पारिवारिक जीवन चक्र की अलग-अलग अवस्थाओं में परिवार का आकार एवं आवश्यकतायें भिन्न होने के कारण प्रत्येक चरण साधनों के उपयोग को प्रभावित करता है।

परिवार का आकार
छोटे तथा कम सदस्यों वाले परिवारों की अपेक्षा बड़े परिवारों को साधनों की अधिक आवश्यकता होती है। संयुक्त परिवार एकल परिवारों की तुलना में अधिक साधन व्यय करते हैं।

जीवन के प्रति दृष्टिकोण
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण भिन्न होता है। व्यक्ति अथवा परिवार का दृष्टिकोण साधनों के उपयोग को प्रभावित करता है। संचयी व्यक्ति साधनों के उपयोग एवं वस्तुओं के संचय में विश्वास करता है जबकि नयी तकनीक से लगाव रखने वाला व्यक्ति उस तकनीक को शीघ्र अपनाना चाहता है चाहे उसे प्राप्त करने के लिए उसे अधिक धन अथवा साधन व्यय करने पड़े। व्यक्ति जीवन के प्रति अभिवृत्ति, धारणाओं एवं मूल्य के अनुसार ही उपलब्ध साधनों का उपयोग करता है।

प्रबन्धन कुशलता
यदि व्यक्ति या परिवार का मुखिया एक कुशल प्रबन्धक है तो वह यथा संभव उपलब्ध साधनों का अधिकतम प्रयोग करता है एवं साधनों के अपव्यय को या उनकी बर्बादी होने से बचाता है। कुशल प्रबन्धन के माध्यम से सीमित साधनों में भी अधिक सन्तुष्टि प्राप्त की जा सकती है। साधनों का सही समय पर उपयोग एवं उपयुक्त विधि का प्रयोग कुशल प्रबन्धन के अभिन्न अंग हैं।

व्यवसाय एवं पारिवारिक आय
परिवार का व्यवसाय एवं आय दोनों साधनों को प्रभावित करते हैं। उच्च आय वर्ग की श्रेणी में आने वाले परिवारों के पास अधिक साधन उपलब्ध होते हैं। वे निम्न आय वर्ग के परिवारों की अपेक्षा परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में कहीं अधिक सक्षम होते हैं तथा साधनों का भी अधिक प्रयोग करते हैं। व्यवसाय की दृष्टि से भी साधनों के उपयोग में भिन्नता होती है। नौकरी पेशा एवं निश्चित आय वाले व्यक्ति बजट के अनुसार धन व्यय करते हैं। व्यवसायी एवं अनिश्चित आय अर्जित करने वाले परिवारों के धन व्यय एवं साधनों के उपयोग के प्रकार में भिन्नता होती है।

मकान एवं उसकी स्थिति
मकान का आकार साधनों के उपयोग को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए बड़े मकान को रख-रखाव एवं देख-रेख की अधिक आवश्यकता होती है। साथ ही बड़े मकान के लिए अधिक फर्नीचर की आवश्यकता होती है। मकान की स्थिति भी साधनों के उपयोग को प्रभावित करती है। यदि मकान शहर के बीचों-बीच सभी सामुदायिक सुविधाओं के निकट स्थित है तो आवागमन में व्यय कम होता है एवं व्यक्ति कई सुविधाओं का समुचित लाभ उठा सकता है। यातायात की सुविधायें व्यक्ति को आसानी से प्राप्त हो जाती हैं। इसी प्रकार ग्रामीण एवं शहरी समुदाय में रहने वाले परिवारों के साधनों के उपयोग में भिन्नता पायी जाती है क्योंकि उनके परिवेश एवं आवश्यकताएं भिन्न होती हैं।

महिला की कार्य स्थिति
एक कामकाजी महिला तथा एक गृहणी की दिनचर्या एवं आवश्यकताओं में भिन्नता होती है। साथ ही इनके द्वारा साधनों के उपयोग में भी भिन्नता पायी जाती है। कामकाजी महिला के समक्ष समय की सीमितता होती है। अतः वह श्रम एवं शक्ति की बचत करने वाले उपकरणों पर अधिक निर्भर रहती है। इसके विपरीत एक गृहणी को गृह कार्यों के लिए अपेक्षाकृत अधिक समय उपलब्ध होता है।
साधारणतः कामकाजी महिलाओं के पास धन होता है जिसका प्रतिस्थापन वह समय या अन्य साधनों से करती है। इसके विपरीत एक गृहणी धन के लिए दूसरों पर आश्रित होती है
तथा कभी-कभी धन अभाव की स्थिति में भी हो सकती है।

उपलब्ध साधनों के विकल्पात्मक प्रयोग का ज्ञान
यदि गृह प्रबन्धक को उपलब्ध साधनों के वैकल्पिक प्रयोगों का समुचित ज्ञान है तो वह सीमित साधनों में भी बचत कर सकता है एवं उपलब्ध साधनों के साथ आसानी से उनका प्रतिस्थापन कर सकता है। व्यक्ति अपने कौशल, समय आदि गुणों एवं साधनों के प्रयोग द्वारा घर के छोटे-छोटे कार्यों को स्वयं कर धन की बचत कर सकते हैं। अतः प्रबन्धक का साधनों के वैकल्पिक प्रयोग का ज्ञान साधनों के उपयोग को प्रभावित करता है।

सारांश

गृह प्रबन्धन प्रक्रिया में हम निरन्तर साधनों के कुशल उपयोग के विषय में निर्णय लेते हैं तथा यह प्रयास करते हैं कि उपलब्ध साधनों में अधिकतम आवश्यकताओं की पूर्ति हो। साधनों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है; मानवीय साधन एवं अमानवीय साधन। सभी साधनों की मूल विशेषताएँ समान होती हैं जैसे सभी साधन उपयोगी, सीमित तथा परस्पर रूप से सम्बन्धित होते हैं। साधनों पर प्रबन्धन प्रक्रिया लागू होती है, इनके वैकल्पिक उपयोग होते हैं, इनका प्रतिस्थान संभव है तथा साथ ही इनके उपयोग से जीवन की गुणवत्ता भी निर्धारित होती है। साधनों के उपयोग का मुख्य उद्देश्य है लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति, विकास एवं इनके उपयोग द्वारा संतुष्टि प्राप्त करना। पारिवारिक साधनों को कई कारक प्रभावित करते हैं, विशेष रूप से पारिवारिक जीवन चक्र, दृष्टिकोण, प्रबन्धन कुशलता, पारिवारिक आय, महिलाओं की कार्य स्थिति एवं साधनों के उचित प्रयोग का ज्ञान।

पारिभाषिक शब्दावली
  • साधन : वह भौतिक वस्तुएं एवं मानवीय गुण जो हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  • मानवीय साधन : मानव में अन्तर्निहित गुण जैसे ज्ञान, रूचियाँ, कौशल, शक्ति, योग्यताएँ, अभिवृत्तियाँ।
  • अमानवीय साधन : वह भौतिक वस्तुएँ एवं साधन जो स्पर्शनीय होते हैं जैसे समय, धन, वस्तुएँ एवं सामुदायिक सुविधाएँ।
  • प्रतिस्थापना : पुनः स्थापित करना, बदले में रखना अथवा उपयोग करना।
  • सीमित : अल्प मात्रा में उपलब्ध।

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