वेश्यावृत्ति क्या है? परिभाषा, अवधारणा, प्रकार, कारण | Prostitution in Hindi

वेश्यावृत्ति

वेश्यावृत्ति को विश्व का सबसे पुराना व्यवसाय समझा जाता है। मानव-सभ्यता के प्रारंभिक काल से ही, यह लगभग हर समाज में किसी-न-किसी रूप में विद्यमान रही है। कई विद्वानों के मत में जब से विवाह और परिवार की संस्थाएँ समाज में स्थापित हुई, तभी से वेश्यावृत्ति एक व्यवसाय के रूप में उभरती गई। वेश्यावृत्ति को सदा ही हेय दृष्टि से देखा गया है। यद्यपि वेश्याओं का समाज में निदनीय स्थान रहा है, तथापि उनके पास जाने वाले पुरूषों को अधिक सामाजिक तिरस्कार का सामना नहीं करना पड़ा है।
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वेश्यावृत्ति के कई रूप होते हैं तथा वेश्याएँ कई प्रकार की होती है। वेश्यावृत्ति अपनाएं जाने के पीछे कई कारण होते हैं तथा इसके दुष्प्रभावों की भी कोई सीमा नहीं। आधुनिक युग में व्यापारिक वेश्यावृत्ति के व्यापक दुष्परिणामों और महिलाओं की प्रतिष्ठा और अधिकार के प्रति अंतराष्ट्रीय जागरूकता को ध्यान में रखते हुए विश्व के अनेक देशों में इसके उन्मूलन या नियमन के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए है।

वेश्यावृत्ति की अवधारणा

वेश्यावृत्ति की कई परिभाषाएं दी गई है, जिनमें कुछ निम्नलिखित है -
  1. मे जियोफ्रे के शब्दों में - “वेश्यावृति अभ्यासगत या सविराम कम या अधिक मात्रा में बिना किसी भेदभाव के यौन सम्बन्ध का व्यवसाय है, जो धन के लोभ में किया जाता है।
  2. अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 में वेश्यावृत्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई है, “वैश्यावृत्ति किसी स्त्री द्वारा अपने शरीर को नकद या प्रकार में भाड़े पर स्वच्छेद यौन समागम के लिए अर्पित करने की क्रिया है।"
  3. इलियट और मेरिल के अनुसार - वैश्यावृत्ति स्वच्छंद-संभोगी तथा धनलोलुप आधार पर होने वाला अनुचित यौन-सम्बंध है, जिसमें संवेगात्मक उदासीनता निहित रहती है।"
  4. हैवलॉक एलिस के मत में - "वेश्या वह स्त्री है, जो बिना किसी पसंद के पैसों के लिए अपने शरीर को निःसंकोच कई पुरूषों को समर्पित करती है।
सरल शब्दों में, वेश्यावृत्ति किसी स्त्री द्वारा अपनाए जाने वाले ऐसे व्यवसाय को कहते हैं, जिसमें वह कई पुरूषों के साथ बिना किसी भेदभाव या संवेगात्मक लगाव के केवल रूपये-पैसे या धन के लिए यौन-संबंध स्थापित करती है।

वेश्यावृत्ति में निम्नलिखित मुख्य तत्व विद्यमान रहते हैं -
  1. भुगतान - वेश्यावृत्ति में यौन सम्बन्ध के लिए रूपये पैसे देने पड़ते है। इसी भुगतान या आर्थिक लाभ के तत्व के कारण वेश्यावृत्ति को व्यवसाय माना जाता है।
  2. स्वैरिता या स्वच्छंद संभोग - वेश्यावृत्ति में स्त्री कई पुरूषों के साथ बिना किसी भेदभाव के केवल आर्थिक लाभ के लिए यौन सम्बन्ध स्थापित करती है। वह ऐसे किसी भी पुरूष के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित करती है, जो उसे पैसे देता है।
  3. संवेगात्मक उदासीनता - वेश्यावृत्ति में यौन सम्बन्ध के पीछे भावात्मक संवेदन नहीं होता। वेश्यावृत्ति में प्रेमभाव नहीं होता। वेश्या केवल पैसे के लिए शरीर बेचती है और पुरूष उसके पास केवल काम-पिपास बुझाने के लिए जाते हैं। दो प्रेमियों के अनुचित यौन सम्बन्ध वेश्यावृत्ति के अंतर्गत नहीं आते, क्योंकि उसमें व्यवसाय के तत्व की जगह पारस्परिक प्रेम भावना होती है।

वेश्याओं के प्रकार

वेश्याएं कई प्रकार की होती है। उनके व्यवसाय चलाने के ढंग भी अलग-अलग होते हैं। इतिहास की सभी अवस्थाओं में कई प्रकार की वेश्याओं के उल्लेख मिलते हैं।
साधारणतः वेश्याओं को दो मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है - (1) प्रत्यक्ष वेश्याएँ अपना व्यवसाय बिना किसी संकोच के प्रत्यक्ष रूप से चलाती है। दूसरी ओर, गुप्त वेश्याएँ अपना व्यवसाय चोरी छुपे गुप्त रूप से चलाती है। प्रायः सभी वेश्याएँ इन्हीं दो मुख्य श्रेणियों में सम्मिलित की जा सकती है, लेकिन भिन्न-भिन्न आधारों का सहारा लेकर उनके अन्ध प्रकारों का भी उल्लेख किया जाता है।

आधुनिक समाज के विशेष सन्दर्भ में वेश्याओं को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जा सकता है -
  1. प्रत्यक्ष वेश्याएँ- इस श्रेणी की वेश्याएँ अपना व्यवसाय बिना किसी संकोच के खुलेआम चलाती है। वे अधिकांशतः अपना व्यवसाय बदनाम मुहल्लों में वेश्यालयों में या कोठे पर चलाती है। उनके वेश्यालय साधारणतः शहरों के विशेष क्षेत्रों में रहते हैं, जिन्हें 'लाल रोशनी क्षेत्र' कहा जाता है।
  2. वंशानुगत वेश्याएँ- कई देशों में कुछ श्रेणियों की वेश्याएँ अपना व्यवसाय वंशानुगत चलाती आई है। वेश्यावृत्ति माँ से पुत्री को हस्तांतरित होती रहती है, और यह सिलसिला पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है। भारत में 'तवायफ' इसी श्रेणी की वेश्याओं में सम्मिलित है। साधारणतः, तवायफों की आय का मुख्य स्रोत नाच-गान था, लेकिन वे यौन-संबंधों के जरिए भी काफी धन अर्जित कर लेती थी।
  3. प्रथागत वेश्याएँ- विश्व के विभिन्न देशों में कुछ विशेष जनसमूहों में वेश्यावृत्ति प्रथागत चलती आई है। इन जनसमूहों में यौन सम्बन्धों में काफी छूट रहती है। इनमें वेश्यावृत्ति को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में कई जनसमूहों की स्त्रियाँ परम्परागत प्रथाओं के कारण वेश्यावृत्ति अपनाती आ रही है। इनमें 'रीत', 'कुलीना' और 'परवरदाह' प्रथाओं का उल्लेख किया जा सकता है। कतिपय भारतीय जनजातियों में भी वेश्यावृत्ति प्रथागत रूप से चलती आ रही है।
  4. गुप्त वेश्याएँ- इस श्रेणी की वेश्याएँ अपना व्यवसाय चोरी छिपे गुप्त रूप से चलाती है। गुप्त रूप से व्यवसाय चलाने वाली वेश्याएँ भी कई प्रकार की होती है। इनमें कई छोटी-छोटी नौकरियाँ करती है और अनुचित यौन सम्बन्ध के जरिए अतिरिक्त धन कमाती है। इनमें कई अपने परिवारों के साथ रहती है और धन के लोभ में पर-पुरूषों के साथ यौन-संबंध स्थापित करती है।
  5. कॉल गर्ल्स- इस श्रेणी की वेश्याओं को होटलों, क्लबों, शराबघरों, मनोरंजन-गृहों, अतिथिशालाओं आदि से संपर्क रहता है। ग्राहकों के अनुरोध पर उन्हें बुला लिया जाता है। इनमें कई स्टेनोग्राफर, टाइपिस्ट, टेलीफोन ऑपरेटर, कम्प्यूटर प्रोग्रामर आदि के रूप में काम करती है तथा कई कॉलेजों की छात्राएँ और अस्पतालों की नर्से भी होती है।
  6. छदवेशी वेश्याएँ - इस श्रेणी की वेश्याएँ दूसरे लुभानेवाले व्यवसायों में नियोजित तो रहती है, लेकिन उनमें कई वेश्यावृत्ति के जरिए भी बहुत कुछ अर्जित कर लेती है। विगत वर्षों में देश के कई नगरों में लड़कियाँ बार-हाउसेज में परिचारिका तथा नाचने-गाने के लिए पारिश्रमिक पर काम तो करती है, लेकिन उनमें कई वेश्यावृत्ति से भी धन अर्जित करती है। इसी तरह, ब्यूटी पार्लरों तथा मसाज-हाउसेज में काम करने वाली बड़ी संख्या में स्त्रियाँ तथा लड़कियाँ अपने सामान्य नियोजन की आय के अतिरिक्त वेश्यावृत्ति से भी पूरक आमदनी प्राप्त करती है। इस श्रेणी की वेश्याओं की संख्या दिनोदिन बढ़ती गई है।
  7. रखैल - कई धनी सम्पन्न व्यक्ति अपनी कामवासना की तृप्ति के लिए रखैल भी रख लेते है। वे रखैल को जीवन निर्वाह के लिए रुपये-पैसे, धन-दौलत देते रहते हैं। रखैलों का बहुतों के साथ यौन सम्बन्ध नहीं होता। उनका संबंध साधारणतः उनके परवरिश करने वालों से होता है, लेकिन चोरी-छिपे वे धन के लोभ में अन्य लोगों के साथ भी यौन सम्बन्ध स्थापित करती रहती है।
  8. धर्मर्पित वेश्याएँ- कई युवतियों को धर्म की आड़ में वेश्यावृत्ति के लिए बाध्य किया जाता है। भारत में देवदासियाँ इसी प्रकार की वेश्याओं के उदाहरण है। उनका मुख्य काम अपने नृत्य और गान से मंदिरों की शोभा बढ़ाना था, लेकिन पुजारी उन्हें यौन-संबंध के लिए भी बाध्य करते रहे है। केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तथा आंध्र प्रदेश में देवदासी प्रथा सदियों से चली आ रही है। कई यूरोपीय देशों में गिरजाघर भी व्यभिचार के केन्द्र रहे है।
  9. शोशण के शिकार- कई युवतियाँ बलात्कार, अपहरण, अनैतिक व्यापार तथा अन्य आपराधिक कृत्यों के शिकार हो जाती है। वे स्वेच्छा से या रुपये-पैसों के लिए पर-पुरूष से समागम नहीं करती, बल्कि उन्हें अवैध यौन-संबंधों के लिए जोर-जबरदस्ती से बाध्य किया जाता है। इनमें कुछ को तो प्रत्यक्ष रूप से व्यवसाय चलाने के लिए कोठों पर जाना पड़ता है, तथा कई को अपने घर-मुहल्ले में ही यौन-अत्याचार सहने पड़ते है।
  10. निर्धनता के शिकार- निर्धनता से ग्रस्त कई परिवारों की लड़कियों और स्त्रियों को केवल अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सतीत्व बेचना पड़ता है। बाढ़, सूखा, अकाल तथा सर्वनाश की अन्य स्थितियों में उनकी विवशता और बढ़ जाती है। इन स्थितियों में उन्हें केवल जीवन की रक्षा तथा परिवार के भरण-पोषण के लिए पतन की ओर अग्रसर होना पड़ता है। अगर उनकी आर्थिक स्थिति ठीक रहती, तो संभवतः वे अनैतिकता से दूर रहती। इनमें कई तो चोरी-छिपे आवश्यकतानुसार यौन संबंध करती है, तथा कई को अंततः वेश्यावृत्ति को प्रत्यक्ष रूप से व्यवसाय के रूप में अपनाना पड़ता है।
  11. वासनापीड़ित वेश्याएँ- कई युवतियों में कामवासना बड़ी प्रबल होती है। वे अनैतिकता का सहारा लेकर अपनी कामवासना की तृप्ति के लिए स्वयं पर-पुरूषों को आमंत्रित करती है। वे अपनी प्यास बुझाने के लिए पुरूषों पर खर्च करने के लिए भी तैयार रहती है। ऐसी अधिकांश वेश्याएँ पारिवारिक जीवनयापन करती है।
  12. विलासप्रिय वेश्याएँ- कई स्त्रियाँ विलासलोलुप होती है। वे उचित अनुचित के विचार के बिना हर तरह से भौतिक सुख-साधनों से संपन्न जीवन व्यतीत करना चाहती है।
यहाँ यह दुहराना आवश्यक प्रतीत होता है कि वेश्याओं के उपर्युक्त वर्गीकरण में परस्पर-व्यापन भी है। कई वेश्याएँ एक से अधिक श्रेणियों में सम्मिलित की जा सकती है। वेश्याओं के प्रकार बताते समय वेश्यावृत्ति के उद्देश्यों, व्यवसाय के स्वरूप, उसके कारणों तथा संरक्षकों या ग्राहकों की प्रकृति को ध्यान में रखा गया है, जिससे वेश्यावृत्ति के नियंत्रण और वेश्याओं के पुनर्वासन को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जा सके।

वेश्यावृत्तियों के कारण

वेश्यावृत्ति के कारकों को दो मुख्य श्रेणियों में रखा जा सकता है-
(क) वैयक्तिक या आंतरिक कारक तथा (ख) अवैयक्तिक या बाह्म कारक। इन दोनों मुख्य श्रेणियों में प्रत्येक के अंतर्गत कई विशिष्ट कारक होते हैं।
साधारणतः, इन सभी कारको को वेश्याओं की माँग और आपूर्ति दोनों से प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध होता है। इन कारको की विवेचना करने के पहले यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि ये एक-दूसरे से संबद्ध और एक दूसरे पर आश्रित रहते हैं और उनका प्रभाव सम्मिलित रूप से पड़ता रहता है।
वेश्यावृत्ति के संबंध में, फ्लेक्सनर के इस कथन में सत्य की मात्रा अधिक है- “कोई भी एक परिस्थिति अकेले घातक नहीं होती। प्रभावों और संबंधों के जटिल लच्छे को पूरी तरह सुलझाया नहीं जा सकता।

1. वेश्यावृत्ति के व्यक्तिगत या आंतरिक कारक
वेश्यावृत्ति के व्यक्तिगत या आंतरिक कारकों में निम्नलिखित मुख्य है-
  • यौन अनुभव की इच्छा तथा असामान्य कामुकता- यौन अनुभव की इच्छा तथा असामान्य कामुकता वेश्यावृत्ति की माँग और पूर्ति दोनों पक्षों को प्रभावित करती है। कई स्त्रियों में यौन-अनुभव की तीव्र इच्छा होती है। समय पर विवाह नहीं होने, पति से दूर रहने, विधवा से जाने, तलाक कर दिए जाने तथा कई अन्य कारणों से उनकी यह इच्छा समाज द्वारा स्वीकृत तरीके से पूरी नहीं हो पाती। अतः वे यौन-तृप्ति के लिए अनैतिकता का सहारा लेती है और उनमें कई वेश्यावृत्ति अपना लेती है।
  • मानसिक दुर्बलता एवं अज्ञानता-  कई लड़कियाँ और स्त्रियाँ अपनी मानसिक दुर्बलता और अज्ञानता के कारण अच्छे-बुरे, उचित-अनुचित, पाप-पुण्य आदि के बीच अंतर को पहचानने में असमर्थ होती है। वे सहजता से असामाजिक तत्वों, जैस- गुंडों, बदमाशों, दलालों आदि के चंगुल में फँस जाती है। ये असामाजिक तत्व उनका तरह-तरह से शोषण करते हैं और कई को वेश्यालयों में पहुँचाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।
  • विलासप्रियता - कई लड़कियों और स्त्रियों में विलासिता से पूर्ण जीवन व्यतीत करने की प्रबल इच्छा होती है। वे नए फैशन, अच्छे मकान, कार, कम्प्यूटर, इलेक्ट्रानिक सामान आदि आधुनिक सुख-साधनों की ओर भागती रहती है। इन सुख-साधनों के निरंतर विस्तार से इनके प्रति प्रलोभन के अवसर भी बढ़े है। कम आमदनीवाले परिवारों में उनके विलासपूर्ण जीवन की इच्छा पूरी नहीं हो पाती। विलासिता और आराम के जीवन व्यतीत करने के लोभ में कई लड़कियाँ और स्त्रियाँ अनुचित और अवैध यौन संबंधों के माध्यम से धन कमाने लगती है।
  • आलस्य एवं उपाय कुशलता का अभाव- आलस्य और उपाय-कुशलता का अभाव वेश्यावृत्ति में माँग और पूर्ति दोनों पक्षों को प्रभावित करते हैं। आलस्य के कारण कई पुरूषों और स्त्रियों का शारीरिक और मानसिक विकास समुचित रूप से नहीं हो पाता। ऐसे व्यक्तियों के लिए उपयोगी जीवन व्यतीत करना तथा आत्मनिर्भर होना बहुत कठिन होता है। अनेक आलसी पुरूष अपने मंद जीवन से राहत पाने के लिए वेश्याओं के पास जाते रहते हैं। दूसरी ओर, कई लड़कियाँ और स्त्रियाँ अपने आलस्य एवं नीरसता से पूर्ण जीवन में आनंद के लिए अनुचित यौन-संबंधों का सहारा लेती है और धीरे-धीरे पतन की ओर अग्रसर हो जाती है।

2. वेश्यावृत्ति के अवैयक्तिक या बाह्म कारक
वेश्यावृत्ति में अवैयक्तिक या बाह्म कारक अत्यंत ही महत्वपूर्ण होते है। वास्तव में, व्यक्तियों के आचरण पर इन कारकों का गहरा प्रभाव पड़ता रहता है। व्यापारिक वेश्यावृत्ति में तो ये कारक और भी शक्तिशाली होते हैं। इन बाह्म कारकों को भी वेश्यावृत्ति की माँग और पूर्ति दोनों पक्षों पर प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि वेश्यावृत्ति के नियंत्रण के लिए पर्यावरण में सुधार को भी अति आवश्यक बताया जाता है।

वेश्यावृत्ति के कुछ महत्वपूर्ण अवैयक्तिक या बाह्म कारक निम्नलिखित है -

निर्धनता एवं आर्थिक परनिर्भरता
कई अध्ययनों और सर्वेक्षणों दिखाया गया है कि वेश्यालयों में रहने वाले अधिकांश वेश्याएं निर्धन परिवारों से आई है।
  • लौड्रेस- 'भूख' को वेश्यावृत्ति की आधारशिला मानते हैं। वेश्यावृत्ति का इतिहास बताता है कि अभावों ग्रस्त अनेक लड़कियों और स्त्रियों को केवल अपने और अपने बाल-बच्चों के पेट भरने के लिए ही अनैतिक पतन और अग्रसर होना पड़ा है। अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पिता द्वारा पुत्री को, पति द्वारा पत्नी तथा संबंधियों द्वारा संबंधी लड़कियों को वेश्यावृत्ति से धन कमाने के लिए बाध्य किए जाने के अनेक उदाहरण लेते है।

आर्थिक असमानता
जहाँ आर्थिक विषमताएँ व्यापक से फैली होती है, वहाँ वेश्यावृत्ति की संभावना भी अधिक होती है। साधारणतः, ऐसा देखा जाता है कि जिन जनसमूहों या जनसंख्या के बड़े में निर्धनता व्याप्त रहती है, उनमें अपने ही सदस्यों के संरक्षण में वेश्यावृत्ति की समस्या नहीं के बराबर होती है। संपन्न व्यक्ति ही इन निर्धन लड़कियों और स्त्रियों की आर्थिक दयनीयता का लाभ उठाकर उन्हें वेश्यावृत्ति की ओर जाते हैं।

यौन-संबंधों के कठोर एवं दोहरे मानक
प्रायः देखा जाता है कि जिन समाजों में यौन सम्बन्धी मानक अधिक कठोर होते हैं, उनमें यौन सम्बन्धों के नियमों के उल्लंघन करने वालों के साथ सख्ती का बरताव किया जाता है। साधारणतः, ऐसे नियम लड़कियों और स्त्रियों के लिए अधिक कठोर होते हैं। उनके उल्लंघन के लिए लड़कियों को घर से निकाल देने, शारीरिक ताड़नाएँ देने, बहिष्कृत करने आदि के अनेक उदाहरण मिलते हैं। समाज ऐसी लड़कियों और स्त्रियों को स्वीकार नहीं करता। उनके साथ विवाह और सामाजिक समायोजन की समस्या सदा बनी रहती है। इनमें कई लड़कियाँ असामाजिक तत्वों के चंगुल में फँस जाती है जो उनका तरह-तरह से शोषण करने लगते हैं। अगर ऐसी लड़कियों की भूल पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, तो इसमें कई वेश्यावृत्ति से बच जाती।

पारिवारिक दशाएँ
परंपरा से ही यौन-संबंधी आचरण को विनियोजित एवं नियंत्रित करने में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। परिवार यह कार्य समुचित ढंग से तभी कर सकता है, जब वह सुव्यवस्थित, समेकित और विघटनरहित हो। लेकिन, कई आर्थिक, सामाजिक, औद्योगिक तथा अन्य कारणों से अनेक परिवारों में विघटन के तत्व आ जाते हैं, ऐसे टूटे हुए परिवारों में तलाक, कलह, तनावपूर्ण संबंध, स्वेच्छाचारिता, नशीले पदार्थों का सेवन आदि आम बाते हो जाती है। अभिभावकों की सुरक्षा के अभाव में कई लड़कियाँ चरित्रहीन हो जाती है। अगर माँ वेश्या होती है, तो पुत्री भी वेश्यावृत्ति अपनाती है। माता-पिता और अभिभावकों की दुश्चरित्रता और ढिलाई के कारण भी लड़के और लड़कियां निरंकुश होकर अनैतिक यौन-संबंध स्थापित करने लगते हैं। तलाक और सौतेले माता-पिता के दुर्व्यवहार के कारण भी अनेक कन्याएं वेश्यावृत्ति की ओर अग्रसर हुई है।

अनैतिक पर्यावरण
वेश्यावृत्ति और अनैतिक पर्यावरण में गहरा संबंध होता है। कई स्थानीय समुदायों, मुहल्लों, काम के स्थानों, अड़ोस-पड़ोस आदि में अनैतिक वातावरण छाया रहता है। इनमें गुड़े, बदमाश और अन्य असामाजिक तत्व अपने-अपने अवैध धंधों में लगे रहते हैं। कुछ स्थान शराब और अन्य नशीली वस्तुओं के व्यापक सेवन, तस्करी, सस्ते मनोरंजन आदि के लिए बदनाम रहते हैं। ऐसे वातावरण में लड़कियों को अपनी नैतिकता बनाए रखना कठिन होता है। अनैतिक वातावरण के प्रभाव में कई पुरूष भी आसानी से दुराचरण में लग जाते हैं। टी.वी., सिनेमा या सी.डी. द्वारा अश्लील प्रदर्शनों तथा संपर्क माध्यमों में आए क्रांतिकारी परिवर्तनों के चलते यौन उत्तेजना, यौन अपराध, अनैतिक यौन-संबंध तथा वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहन मिलता गया है।

प्रथाएँ एवं परंपराएँ
कुछ धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं एवं पंरपराओं से भी वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहन मिलता रहा है। जैसा कि इस अध्याय में पहले कहा जा चुका है, दक्षिण भारत के मंदिरों में नृत्य और गान में कुशल लड़कियों को देवदासियों के रूप में धर्म को समर्पित किए जाने की प्रथा सदियों से चलती आ रही है। कई हिन्दू-धर्मग्रंथों में इसे एक धार्मिक कृत्य समझा गया है। भारत के कई भागों में संतान के इच्छुक माता-पिता यह मनौती मानते आए है कि अगर कन्या का जन्म हुआ, तो वे उसे देवता को समर्पित कर देगे। इन देवदासियों का नाम उन देवताओं के नाम पर रखा जाता था, जिन्हें उन्हें समर्पित किया जाता था। देवदासियों को देवताओं की विवाहिता समझा जाता था। देवदासियों का मुख्य कार्य नृत्य और गान के माध्यम से मंदिरों की शोभा बढ़ाना था। लेकिन, मंदिरों के पुजारी इन देवदासियों को यौन-संबंधों और वेश्यावृत्ति के लिए बाध्य करने लगे। कालक्रम से देवदासी प्रथा और भी कलुषित होती गई। अनेक माता-पिता धन के लोभ में भी अपनी लड़कियों को मंदिरों में समर्पित करने लगे। देश के अलग अलग भागों में देवदासियों को अलग अलग नामों से पुकारा जाता रहा है, जैसे–केरल में 'कुदिकर', महाराष्ट्र में 'मुरली', आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में 'वासवी', 'भाविन, 'देवाली' और 'नैकिन', कर्नाटक में 'जोगाथी' तथा राजस्थान में 'भगतिन'। सर्वेक्षणों में दिखाया गया है कि इनमें अधिकांश देवदासियाँ निर्धन हरिजन परिवारों की रही है।

लड़कियों को धर्म को समर्पित किए जाने की प्रथा केवल भारत में ही नहीं रही है। यूनान और रोम की पुरानी सभ्यताओं तथा मध्यकालीन युग में यूरोपीय देशों के गिरजाघरों में भी धर्म के नाम पर वेश्यावृत्ति को प्रचुर प्रोत्साहन मिला है। गिरजाघरों में साधुओं द्वारा साध्वियों के अनैतिक शोषण के अनेक उदाहरण मिलते हैं। कई पादरी सुंदरी कुमारियां को स्वर्ग के फाटक खोलने का साधन समझते थे। कई सर्वेक्षणों में दिखाया गया है कि वेश्यालयों में रहने वाली कई वेश्याएँ पहले गिरजाघरों में ही भ्रष्ट हो चुकी थी।

इन धार्मिक प्रथाओं के अतिरिक्त कुछ सामाजिक प्रथाओं के कारण भी वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहन मिलता आया है। हिमालय क्षेत्र के कई भागों में 'रीत' प्रथा प्रचलित है। इसमें पति को अपनी पत्नी को बेचकर नई पत्नी खरीदने का जनसमूहों में वेश्यावृत्ति परंपरा से चलती आई है। कुछ सामान्य सामाजिक कुप्रथाओं, जैसे-दहेज, बहुविवाह, अन्य विवाह, परिवीक्षाविवाह आदि के कारण भी अनैतिक यौन-संबंध और वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहन मिलता आ रहा है।

उद्योगीकरण और नगरीकरण
उद्योगीकरण तथा नगरीकरण भी वेश्यावृत्ति के महत्वपूर्ण कारक रहे है। जैस-जैसे उद्योगों और नगरों का विकास होता गया है, वैसे-वैसे बड़ी संख्या में लोग रोजी-रोटी के लिए गाँवों से औद्योगिक केन्द्रों और नगरों में चले जाते हैं। उनके कई अपने परिवारों को गाँवों में ही ब्रेड़ देते हैं। शहरों और औद्योगिक केन्द्रों में आवासीय कठिनाइयों के कारण अनेक श्रमिक और कर्मचारी परिवारों से दूर अकेले जीवन व्यतीत करते हैं।
कई छावनियों में सैनिक भी बड़ी संख्या में रहते हैं। वाणिज्य-व्यापार, कार्यालय, परिवहन के साधनों, सेवाओं आदि के विस्तार से भी नगरों और औद्योगिक केन्द्रों में पुरूष-कर्मचारियों या स्वनियोजित व्यक्तियों की संख्या में व्यापक वृद्धि हुई है। इन सबके फलस्वरूप नगरों और औद्योगिक केन्द्रों में लिंग अनुपात में व्यापक विषमता आ जाती है तथा स्त्रियों की तुलना में पुरूषों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है। परिवारों से दूर आकर रहने वाले अनेक व्यक्तियों को यौन-संतुष्टि के लिए वेश्याओं के पास जाना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।

इस प्रकार, नगरों और औद्योगिक केन्द्रों में वाणिज्यिक वेश्यावृत्ति व्यापक से चलती रहती है। श्रमिकों और कर्मचारियों के केन्द्रीकरण वाले क्षेत्रों में दूर-दूर, यहाँ तक कि विदेशों से वेश्याएँ आकर बस जाती है।

प्रवसन
विगत वर्षों में कई देशों से लड़कियाँ और युवतियाँ रोजगार या धन-अर्जन के लोभ में विदेश जाने लगी है। भारत में प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में लड़कियाँ रोजगार के लिए खाड़ी देशों, ग्रेट ब्रिटेन तथा अन्य देशों में जाती है। उनमें कई को व्यभिचार, अनुचित यौन-संबंध तथा अंततः वेश्यावृत्ति के लिए बाध्य किया जाता रहा है। इसी तरह, कई देशों से पुरूषों के अंतराष्ट्रीय प्रवसन में भी व्यापक वृद्धि होती गई है। परिवार को स्वदेश में ही छोड़कर विदेशों में प्रवसन करने वाले पुरुषों से वेश्याओं की माँग को प्रोत्साहन मिलता रहा है। एक ही देश में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पुरूष या स्त्री श्रपिकों के प्रवसन से भी वेश्यावृत्ति की माँग और पूर्ति दोनों प्रभावित होती रही है।

व्यापार के रूप में लाभदायक
कई लोग वेश्यावृत्ति को लाभदायक व्यापार समझते हैं। कुछ देशों में इस व्यापार में अलग-अलग रूप में कई लोग होते हैं। वास्तव में, इस व्यवसाय का अधिकांश लाभ दलालों, वेश्यालयों के स्वामियों, कुटनियों, भडुओं, गुंडों और बदमाशों में बँट जाता है। वे विभिन्न तरीकों का सहारा लेकर वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियों और स्त्रियों की आपूर्ति बनाए रखते हैं और ग्राहकों को लाते रहते हैं। कभी-कभी इस व्यवसाय में अच्छी खासी रकम लगी होती है, जिसके कारण इसमें पूँजी लगानेवाले तथा व्यापार पर निर्भर लोग इसकी उन्नति और निरंतरता बनाए रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं। वेश्यावृत्ति में अंतराष्ट्रीय व्यापार भी होते रहते हैं।

सार संक्षेप

वास्तव में वेश्यावृत्ति को विश्व का सबसे पुराना व्यवसाय माना जाता रहा है और यह प्रारम्भिक कार्य से ही समाज में किसी न किसी रूप में विघमान रही है। यह ऐसा व्यवसाय है जिसे समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। प्रस्तुत लेख में वेश्यावृत्ति की अवधारणा एवं परिभाषा के बारे में विस्तृत चर्चा की गई है जिसमें बताया गया है कि वेश्या वह स्त्री है जो बिना किसी पसन्द के पैसो के लिए अपने शरीर को निःसंकोच कई पुरूषों को समर्पित करती है। इसी इकाई में वेश्यावृत्ति के प्रमुख तत्वों के बारे में प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत लेख में विभिन्न प्रकार के वेश्याओं का भी वर्णन किया गया है जिनमें प्रत्यक्ष वेश्यायें, वंशानुगत वेश्यायें, प्रथागत वेश्यायें एवं गुप्त वेश्यायें प्रमुख है। इसी लेख के अन्त में वेश्यावृत्ति के व्यक्तिगत तथा वाह्य कारणों की भी चर्चा प्रस्तुत की गई है।

पारिभाषिक शब्दाबली
  • वेश्यावृत्ति- अनैतिक व्यापार अधिनियम 1956 के अनुसार “वेश्यावृत्ति किसी स्त्री द्वारा अपने शरीर को नकद या प्रकार के भाड़े पर स्वच्छन्द यौन समागम के लिये अर्पित करने की क्रिया है।"
  • वेश्या- वेश्या वह स्त्री है जो किसी विना पसन्द के पैसों के लिए अपने शरीर को निःसंकोच कई पुरूषों को समर्पित करती है।

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