सामुदायिक संगठन के प्रारूप | samudayik sangathan ke prarup

प्रस्तावना

सामुदायिक संगठन की रणनीतियों एवं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु एक सशक्त रूपरेखा का निर्माण किया जाना एक आवश्यक शर्त है जिसके अन्तर्गत सामुदायिक संगठन के प्रारूप की संरचना इसी का अभिन्न अंग है। समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में आशा के अनुरूप विकास के लिए प्रारूपों का कार्यक्षेत्र विभाजित किया गया है।
samudayik sangathan ke prarup
सामदायिक कोष के द्वारा जनकल्याण तथ जनसहयोग को प्रोत्साहन देने हेत जनकोष का निर्माण, क्रियान्वयन तथा प्रबन्धन को सुनिष्चित किया जाता है।

समुदायिक संगठन के प्रारूप की अवधारणा

सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता, अपने व्यवसाय में एक पूर्ण प्रशिक्षित एंव अनुभवशील कार्यकर्ता होता है। इसलिये उसे समुदाय की समस्याओं, आवश्यकताओं, उपलब्ध साधनों के विषय में पूर्ण जानकारी होती है। साथ-साथ कार्यकर्ता को उन सभी सामुदायिक कार्य के प्रारूपों के विषय में भी जानकारी रहती है जिन क्षेत्रों के विकास के लिये वह सदस्यों के साथ कार्य कर सामुदायिक संगठन कार्य को बढावा दे सकता है।

सामुदायिक संगठन के प्रारूप के प्रकार

उन प्रमुख प्रारूपों को, जिनमें समाज कार्यकर्ता एक सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता के रूप में कार्य करता है को निम्नलिखित भागों में व्यक्त कर स्पष्ट किया जा सकता है
इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख प्रारूप निम्नलिखित है जिनमें कार्यकर्ता सदस्यों के साथ कार्य करता है-

आर्थिक प्रारूप

(अ) कृषि एवं कृषि से सम्बन्धित कार्य
प्रायः देखा जाता है कि ग्रामीण सामुदायिक सदस्य अशिक्षा एवं अज्ञानता के कारण कृषि के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न विकास संस्थाओं के विषय में अनभिज्ञ रहते हैं। दूसरी तरफ भ्रष्टाचार एवं व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण कर्मचारी कृषि से सम्बन्धित सुविधाओं को आम सदस्यों तक नहीं पहुंचने देते हैं। इन कमियों के कारण न तो उपलब्ध साधनों का उचित सदुपयोग ही हो पाता है और न ही आम सदस्य लाभान्वित हो पाते हैं।
कार्यकर्ता अपने व्यावसायिक ज्ञान एवं कार्यकुशलता से सदस्यों को कृषि विकास के लिए उपलब्ध साधनों जैसे अच्छे किस्म के उत्पादक बीज, खाद, नये एवं अधिक कार्यकुशल कृषि यन्त्रों के बारे में उनका मार्गदर्शन करता है।

(ब) सहकारी खेती एवं सहकारी बाजार से सम्बन्धित कार्य
ग्रामीण समुदाय के अधिकतर सदस्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि एंव उससे सम्बन्धित कार्य ही हैं। लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण आज खेतिहर भूमि के टुकड़े होते जा रहे हैं। इससे न तो उसमें आधुनिक मशीनों का प्रयोग हो पाता है और न ही उत्पादन बढ़ पाता है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता इस बारे में किसानों का मार्गदर्शन करता है तथा उन्हें सहकारी खेती के लिये प्रोत्साहित करता है। सहकारी खेती की भावना का विकास होने से सदस्यगण सामूहिक रूप से अपने श्रम, पूंजी, संगठन और आधुनिक एवं उत्पादक मशीनों का प्रयोग मिल-जुल कर करते हैं। इस प्रकार उत्पादन बढ़ता है और सदस्य लाभान्वित होते हैं। सहकारी खेती में अधिकाधिक सदस्यों का श्रम एवं पूंजी लगायी जाती है जिससे कम श्रम, पूंजी एवं समय में अधिकाधिक उत्पादन होता है और सदस्यगण सामूहिक रूप से लाभान्वित होते हैं।
उत्पादन के बावजूद भी खेतिहर सदस्यों को उनकी गरीबी, अज्ञानता, अशिक्षा एवं क्रय-विक्रय में बढ़ती हुई चोरबाजारी के कारण उत्पादन का उचित लाभ नहीं मिल पाता है। सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं के लिये दिये गये ऋण के बदले पूंजीपति, कृषकों के उत्पादन को अधिक ब्याज के साथ सस्ते मूल्य पर खरीद लेते हैं। कार्यकर्ता, सदस्यों को इन समस्याओं से अवगत कराते हुये उनसे लाभकारी सहकारी बाजार की स्थापना की आवश्यकता पर चर्चा करता है तथा उनमें सहकारी समिति स्थापित करने की योग्यता का विकास करता है, जिससे उनको उत्पादन का उचित लाभ, उचित क्रय-विक्रय प्रणाली के माध्यम से मिल सके। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सदस्यों को उनकी आवश्यकताओं एवं कार्यक्षमताओं का आभास कराते हुए अनेक सहकारी समितियां जैसे ऋण वितरण समिति, खाद-बीज वितरण, क्रय-विक्रय समिति इत्यादि की स्थापना कराने का प्रयास करता है।

(स) सहकारी दुग्ध केन्द्र स्थापना सम्बन्धी कार्य
प्रायः देखा जाता है कि ग्रामीण समुदायों में पशुपालन का विशेष महत्व है। पर वहां लोगों को पशुओं के दूध का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। दूसरी तरफ जहां दूध का अभाव है, वहां लोगों को शुद्ध दूध नहीं मिल पाता है और
यदि मिलता है तो उसका मूल्य जनसाधारण की सामर्थ्य के बाहर होता है। इस विडंबना को महसूस करते हुए कार्यकर्ता अपने सामुदायिक अनुभव एवं कार्यकुशलता के कारण सदस्यों के समक्ष इस विषय पर विचार-विमर्श करता है। सदस्यों को लाभकारी निर्णय लेने के लिये प्रोत्साहित करता है तथा कोशिश करता है कि उनके दूर स्थापित सहकारी समिति के माध्यम से खरीद कर उसे उन स्थानों पर ले जाकर बेचा जाये जहां उन्हें उचित लाभ मिल सके। इससे न केवल समूदाय का आर्थिक विकास होता है बल्कि सदस्यों में एकता एवं प्रेम-भाव का विकास होता है। इस प्रकार कार्यकर्ता समुदाय के सदस्यों को पशुपालन एवं सहकारी दुग्ध क्रय-विक्रय केन्द्र स्थापित करने को प्रोत्साहित करता है।

(द) स्थानीय औद्योगिक विकास सम्बन्धी कार्य
सामूदायिक संगठन कार्यकर्ता अपने ज्ञान एवं सामुदायिक अध्ययन के आधार पर समुदाय में उपलब्ध स्थानीय उद्योगों को भी बढ़ावा देने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार के उद्योगों के संचालन एवं विकास में वह सदस्यों की सहायता करता है। समुदाय में स्थापित विभिन्न संगठनों जैसे नवयुवक मंडल दल, महिला मंडल, कषक समिति इत्यादि के माध्यम से कार्यकर्ता समुदाय के उन पुरूषों, महिलाओं एवं बेरोजगार नवयुवकों को संगठित करता है जिन्हें रोजगार की जरूरत है। इससे-
  • स्थानीय स्तर पर उपलब्ध उद्योगों के विकास एवं सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है
  • बेरोजगार लोगों को रोजगार मिलता है
  • इस क्षेत्र में उपलब्ध कच्चे माल की खपत को बढ़ावा मिलता है और
  • समुदाय का आर्थिक एवं सामाजिक विकास सम्भव होता है।
  • स्थानीय उद्योग के सार्वजनिक विकास के लिये सामुदायिक कार्यकर्ता न केवल सदस्यों में इसके संचालन के लिये प्रयास करता है, बल्कि उनके द्वारा उत्पन्न सामान का उचित मूल्य दिलाने के लिये, उसके विक्रय के विषय में चर्चा करता है, लाभकारी निर्णय लेता है। उत्पादन को बाजार में उचित मूल्य पर बेचने से उत्पादकों को प्रोत्साहन मिलता है और उनका जीवन-स्तर ऊपर उठता है।

(य) कुटीर उद्योग का विकास
समुदाय के आर्थिक विकास के लिये आवश्यक है कि कार्यकर्ता समुदाय के सदस्यों में कुटीर उद्योग सम्बन्धी ज्ञान का विकास करे व सस्ते और सुविधाजनक कुटीर उद्योग जैसे माचिस, साबुन, चमड़ा उद्योग, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन आदि कार्यो के लिये उन्हें प्रोत्साहित करे। इसके लिये समुदाय में काम कर रहे विभिन्न संगठनों की सहायता लेनी चाहिए। समुदाय के आस-पास उपलब्ध विभिन्न साधनों से इस कार्य को विकसित करने का प्रयास किया जा सकता है। इन उद्योगों के विकास से बेरोजगार सदस्यों को रोजगार उनके समुदाय में ही उपलब्ध हो जाते हैं। कार्यकर्ता इन कुटीर उद्योगों द्वारा उत्पादित सामान की बिक्री के लिये भी सदस्यों के साथ विचार-विमर्श करता है तथा उचित मूल्य हासिल करने की योजना बनाने में उनकी सहायता करता है। इससे सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

(र) व्यावसायिक मार्गदर्शन एवं सलाह सम्बन्धी कार्य
कभी-कभी सदस्यों में कार्य की योग्यता होते हुए भी वे बेरोजगार रहते हैं। कुछ सदस्य किसी विशेष क्षेत्र से लगाव रखते है। लेकिन आवश्यक साधन व सुविधाओं के ज्ञान के अभाव के कारण व ऐछिक व्यवसाय-कार्य को नहीं
अपना पाते हैं। कुछ नवयुवकों को शिक्षा में कोई खास लगाव नहीं होता लेकिन पारिवारिक दबाव के कारण उन्हें विद्यालय तक जाना पड़ता है। दूसरी तरफ कुछ नव-युवक शिक्षा के लिए इच्छुक होते हैं पर पारिवारिक असमर्थता के कारण वे उससे वंचित रहते हैं। ऐसे सभी मामलों में व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं सामुदायिक कार्य के अनुभव के आधार पर इन विषयों में सदस्यों का मार्गदर्शन कर सकता है। रूचि के अनुसार व्यवसाय दिलाने में वह सदस्यों की मदद कर सकता है।

शैक्षणिक विकास का प्रारूप
समुदाय के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये आवश्यक है कि शैक्षणिक विकास पर बल दिया जाये । शिक्षा एक ऐसा विषय है जो व्यक्तियों में किसी भी विषय पर योजनाबद्ध तरीके से चिंतन करने की योग्यता प्रदान करती है। शिक्षा नागरिकों का एक संवैधानिक अधिकार होते हुये भी आज देश की लगभग 60% जनसंख्या अशिक्षित है। इसलिए सामुदायिक संगठन कार्य के क्षेत्र मे शैक्षणिक विकास का अपना महत्व है। शिक्षा के विकास के लिये कार्यकर्ता क्षेत्र में कार्यरत सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं का विस्तार करवाने तथा कार्यरत संस्थाओं से सामुदायिक अशिक्षित नवयुवकों, बच्चों एवं अशिक्षित मजदूरों तथा कृषकों को शिक्षित कराने का प्रयास निम्नलिखित प्रकार से करता है

(अ) प्राथमिक एवं मूलभूत शिक्षा विकास सम्बन्धी कार्य
उन समुदायों में जहां के नागरिक न तो स्वयं शिक्षित है और न ही बच्चों की शिक्षा पर बल देते है। वहाँ कार्यकर्ता सदस्यों में व्याप्त शिक्षा के प्रति उनके निरूत्साह के विभिन्न आर्थिक, सामाजिक कारणों का पता लगाता है।
कारणों की जानकारी के पश्चात् बच्चों के शैक्षणिक अधिकार कार्य पर चर्चा कर इसे प्राथमिक कार्य के रूप में स्वीकार करवा कर उनकी सहायता करता है। शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों को शैक्षणिक उद्देश्य की पूर्ति के लिये सामुदायिक सदस्यों का सहयोग प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता अशिक्षत बच्चों को नियमित शिक्षा प्रदान कराने के लिये उनके माता-पिता, समुदाय के वरिष्ठ सदस्यों, शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों एवं बच्चों के साथ कार्य कर प्राथमिक एवं मूल शिक्षा के विकास के क्षेत्र में सहायक होता है।

(ब) प्रौढशिक्षा और प्रकार्यात्मक शिक्षा विकास सम्बन्धी कार्य
सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित प्रौढशिक्षा एवं प्रकार्यात्मक शिक्षा के विकास में कार्यकर्ता विभिन्न रूपों में सहायक होता है। सर्वप्रथम वह सदस्यों को इस प्रकार के संचालित कायक्रमों की महत्ता एवं आवश्यकता का बोध कराता है। इसकी दूसरी तरफ प्रौढ शिक्षा एवं प्रकार्यात्मक शिक्षा के जिम्मेदार कर्मचारियों की लाभार्थियों की आवश्यकता के अनुरूप कार्यक्रम का प्रारूप तैयार करने में सहायता करता है।
इन सबसे-
  1. सामुदायिक सदस्यों को शैक्षणिक कार्य-क्रमों के विषय में जानकारी होती है,
  2. जरूरतमन्द सदस्यों को लाभ मिलता है,
  3. संस्था के उद्देशयों की पूर्ति होती है,
  4. सरकारी जिम्मेदारियो की पूर्ति होती है,
  5. सामुदायिक संगठन कार्य सम्भव होता है,
  6. सामुदायिक सदस्यों एवं संस्थाओं के बीच सम्बन्ध बढता है,
  7. सामुदायिक कल्याण के साथ-साथ राष्ट्र कल्याण को बढावा मिलता है।

(स) वाचनालय एवं पुस्तकालय विस्तार सम्बन्धी कार्य
जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व का एक दूसरा वृहद् देश होने के कारण यहां की कुछ जनसंख्या ऐसे भागों में निवास करती है जहां देश -विदेश के समाचार तो दूर रहे प्रान्तीय स्तर के भी समाचार नही मिलते। सरकारी समाज कल्याण संस्थायें एवं स्वयंसेवी संगठन भी ऐसे क्षेत्रो में कार्यरत नही है। एक समुदाय में जहां एक बडी जनसंख्या निवास करती है, उनके स्वयं के सहयोग से सामूहिक वाचनालय एवं पुस्तकालय की स्थापनाकी जा सकती है। इस कार्य की सफलता के लिये कार्यकता सदस्यों की पुस्तकालय,एवं वाचनालय सम्बन्धी आवश्यकता के विषय में विचार -विमर्श कर इसके स्थापन एवं संचालन की योजना तैयार करने में सदस्यों की सहायता करता है। ऐसे कार्यक्रम में सहायता प्रदान करने वाली विभिन्न संस्थाओं एवं संगठनों एवं संगठनों के विषय में उन्हे जानकारी देती है जिससे (1) सामुदायिक सदस्यों को विभिन्न प्रकार की उपलब्ध पुस्तकों, समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं को पढने का सौभाग्य प्राप्त होता है,(2) सदस्यों का खाली समय अच्छे कार्य में व्यतीत हो जाता है,(3) कार्यरत संस्थाओं के उद्देश्यों की पूर्ति सम्भव होती है और (4) समुदाय म पारस्परिक सहयोग,संगठन एवं कल्याण का विकास सम्भव होता है।

(द) अपंगों के लिए शिक्षा सम्बन्धी कार्य
अशिक्षित एवं अविकसित समुदायों में अपंग सदस्यों को एक सामाजिक बोझ समझकर इन्हे सामान्य अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता उनकी अनेक प्रकार से सहायता कर सकता है। इनके प्रति परिवार व समुदाय में सदस्यों का दृष्टिकोण बदल सकता है। सामुदायिक सामथ्यता के अध्ययनोपरान्त कार्यकर्ता सदस्यों में इन नागरिकों के शैक्षणिक विकास के लिये विशेष विद्यालय की स्थापना में भी इनकी सहायता कर सकता है। अन्य कल्याणकारी संस्थाओं का ध्यान उनकी ओर खीच कर उनके लिये शिक्षा की व्यवस्था कर सकता है।

(य) जनसंख्या शिक्षा के विकास सम्बन्धी कार्य
सरकारी स्वयं सेवी संस्थाओं एवं स्वयं सेवकों के सतत प्रयास के बाद भी आज देश की जनसंख्या यहां के उपलब्ध साध्नों से कई गुनी अधिक है। सीमित साधनों के कारण और जनसंख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण अभी भी हम आर्थिक ,शैक्षणिक, स्वास्थ्य एवं विकास की दृष्टि से पीछे है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय की जनसंख्या समस्या का अध्ययन करता है। जनसंख्या सम्बन्धी सरकारी नीतियों, जनसंख्या वृद्वि के कारणों एवं इसके प्रभावों के विषय में लोगों का ज्ञानवर्धन कर सकता है। इसके साथ-साथ कार्यकर्ता छोटे परिवार के मूल्य को स्थापित करने में उनकी सहायता करता है। जनश्संख्या नियंत्रण के लिये काम कर रही सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं से लोगों को अवगत कराता है जिससे जरूरतमन्द लोग लाभान्वित हो सकें। इसके साथ-साथ जनसंख्या के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थाओं के कर्मचारियों और जरूरतमन्द सदस्यो के बीच सम्बन्ध स्थापित कराने में सहायक होता है।

स्वास्थ्य विकास सम्बन्धी प्रारूप
मनुष्य को आत्मनिर्भर होने के लिये सामाजिक, मानसिक एवं बौद्विक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है। अशिक्षित एवं पिछडे सदस्यों में आज भी लोग स्वास्थ्य की ओर अधिक ध्यान नहीं देते है। वे ओझा, फकीर एवं नीम-हकीमों के चक्कर में पड़े रहते है। अपने अज्ञान के कारण सामदायिक सदस्य न तो व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर ध्यान देते है और न ही स्वस्थ्य वातावरण का निर्माण ही कर पाते है। एक स्वस्थ वातावरण के निर्माण के लिये कार्यकर्ता सदस्यों के साथ निम्नलिखित क्षेत्रों में कार्य करता है

(अ) स्वास्थ्य शिक्षा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में
आज स्वतन्त्रता प्राप्ति के लगभग 65 वर्ष के बाद भी हमारी अधिकाधिक ग्रामीण एवं पिछडे भू भागों में निवास करने वाली जनसंख्या स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज्ञान-शून्य है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर समुदाय विशेष की स्वास्थ्य समस्या से सम्बन्धित पहलुओं का अध्ययन कर सदस्यों का ध्यान अपनी
ओर खींचता है। स्वास्थ्य सुरक्षा ,विकास एवं कल्याण के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थाओं के विषय में लोगों का ज्ञानवर्धन करता है। स्वास्थ्य सम्बन्धी पुरानी परम्पराओं एवं रूढियों के प्रभाव से लोगो को मुक्त कराने तथा उपलब्ध विभिन्न आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं से लाभान्वित कराने का प्रयास करता है।

(ब) स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना के क्षेत्र में
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक सदस्यों के सहयोग से स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना के लिये सम्बन्धित विभागों से सम्बन्ध स्थापित करता है। इससे आवश्यक स्वास्थ्य किन्द्रों के संस्थापन में सहायता मिलती है। समुदाय के धन सम्पन्न व्यक्तियों एवं उनके सामूहिक आर्थिक सहयोग से एकत्रित धन से आवश्यक स्वास्थ्य केन्द्रों को बढावा दिया जा सकता है।

(स) शारीरिक एवं मानसिक रूप से अपंगों की देख-रेख में
बहुधा सामुदायिक सदस्य अपनी अज्ञानता के कारण बच्चों में पनपने वाली शारीरिक एवं मानसिक विकृतियों को
न ही समझ पाते है और न उनकी देख-रेख कर पाते है। सामुदायिक संगइन कार्यकर्ता अपने ज्ञान एवं अनुभवि के
आधार पर इन शारीरिक-मानसिक अपंगताओं के बारे सदस्यों का ज्ञानवर्धन कर सकता है और निवारण के विषय में सहायक हो सकता है।कार्यकर्ता विभिन्न कल्याणकारी संस्थाओं जैसे बाल -निर्देशन केन्द्र, मन्द बुद्धि विद्यालय,मूक-वधिर विद्यालय आदि की सुविधाओं को बताकर इन सुविधाओं से अपंग व्यक्तियों को लाभान्वित होने में उनकी सहायता करता है। अपंग व्यक्तियों के विचारों,भावनाओं एवं आकांक्षाओं को सामान्य लोगों तक पहंचा कर सामान्य सदस्यों के अपेगों के प्रति व्यवहार को अधिक मानवीय बनाने का प्रयत्न करता है।

सडक एवं मकान निर्माण सम्बन्धी प्रारूप
विशेषकर अविकसिक ग्रमीण समुदायों में जहां आवागमन के लिये सडक तथा रहने के लिये पर्याप्त हवादार मकानों की सुविधा नहीं है, कार्यकर्ता उस समुदाय के सदस्य से इसकी आवश्यकता के विषय में उनसे विचार
विमर्श करता है। सामुदाय में व्याप्त मानवीय एवं आर्थिक शक्तियों का पता लगाता है। सामुदायिक सदस्यों को संगठित कर पंचायत एवं खण्ड विकास केन्द्र से आवश्यक सुविधा/साधन उपलब्ध कराकर सडक निमार्ण में सदस्यों की सहायता करता है। इससे वर्षा के मौसम में होने वाली कीचड एवं वातावरण को दूषित करने वाले पानी को रोका जा सकता है। कार्यकर्ता निम्नलिखित रूपों में उनकी सहायता करता है।

(अ) झुग्गी-झोपडी और सफाई की स्थिति में सुधार
औद्योगिकीकरण, नगरीकरण एवं आसमान छूती हुई महंगाई के कारण झुग्गी-झोंपडी वाली बस्तियों की वृद्वि में जीवन का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि किस प्रकार ये लोग नारकीय जीवन जी रहे है। इन झोंपडियों के छोटे-छोटे दरवाजे जिनमें आसानी से आना-जाना भी कठिन है तथा प्रकाश और हवा का अभाव होता है। इन
बस्तियों में फैली गन्दगी ,खुली नाली,खुले पडे हुए कचडे एवं एक झोपडी में 8 से 10 व्यक्तियों को रहते देखकर इन बस्तियों को जलाकर एक स्वस्थ बस्ती के निर्माण की इच्छा होती है।
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक सदस्यों को इनके बुरे प्रभावों से अवगत कराता है। उनसे एक साफ-सुथरे समुदाय के निर्माण की चर्चा करता है तथा सामुदायिक वातावरण की शुद्धता पर विचार-विमर्श करता है। समुदाय में बिजली एवं पानी कि सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सदस्यों का मार्गदर्शन करता है जिससे सम्बन्धि विभाग के सहयोग से समुदाय में बिजली एवं पानी सम्बन्धी समस्याओं का हल ढूंढा जा सके। समुदाय की स्वच्छता बनाये रखने तथा सफाई को बढावा देने के लिये, सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय के शिक्षित/अशिक्षित नवयुवकों,समुदाय के बालकों, महिलाओं एवं वृद्व व्यक्तियों को संगठित करता है और एक स्वच्छ वातावरण के निर्माण में उनकी रूचि पैदा करता है।

(ब) सरकारी मकान निर्माण अभियान के क्षेत्र में
इस बारे में सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक सदस्यों को मकान निर्माण के लिये सहकारी समिति बनाने के लिये प्रोत्साहित करता है। इससे सस्ती दर पर सामूहिक सहयोग से मकानों का निर्माण संभव होता है।

सामुदायिक मनोरंजन का प्रारूप
मानव विकास में मनोरंजन का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। मनोरंजन का अर्थ न केवल संगीत,नृत्य एवं गाने से लगाया जाता है बल्कि खाली समय के अच्छे उपयोग से भी। बहुधा देखा गया है कि लोग अपने खाली समय को दूसरों की बुराई में लगा देते है। इस खाली समय को अच्छे कामों में भी लगाया जा सकता है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता अपने ज्ञान एवं कौशल से सदस्यों के अतिरिक्त समय व शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों को सामुदायिक कल्याण में लगाने के लिये निम्नलिखित कार्य करता है-
  • (अ) सदस्यों में विकास की चेतना लाने के लिये कार्यकर्ता सामुदायिक सदस्यों के सहयोग से समाज सुधारकों एवं महापुरूषों के चरित्र पर ड्रामा/नाटक का आयोजन कराने में उनकी सहायता करता है। इससे सामुदायिक मनोरंजन तथा सामूहिक कल्याण एवं विकास को बढावा मिलता है।
  • (ब) अच्छे चल-चित्रों के माध्यम से समुदाय में आवश्यक परिवर्तन लाने के लिये कार्यकर्ता चलचित्र का प्रदर्शन कराने ,दूरदर्शन एवं रेडियो उपलब्ध कराने का प्रयास करता है। इस कार्य की सफलता के लिये वह सदस्यों को सामूहिक रूप में संगठित कर इस प्रकार की सुविधा प्रदान करने वाली संस्थाओं एवं संगठनों से उनका संपर्क कराता है।
  • (स) बच्चों एवं नवयुवकों में नयी चेतना का संचार करने के लिये कार्यकर्ता विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन कराने की कोशिश करता है। इनमें न केवल खेलकुद की प्रतियोगितायें शामिल हैं बल्कि शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रतियोगितायें भी आती है।

सांस्कृतिक कार्यक्रमो का प्रारूप
सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता एवं सामुदायिक सहयोग को बढावा देने के लिये सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय के सांस्कृतिक कार्यकलापों का अध्ययन करता है।सामुदायिक कल्याण कार्य को बढावा देने के लिये वह सामुदायिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाता है।इसके लिये वह निम्न प्रकार के कार्य करता
है।

(अ) भजन एवं कीर्तन का आयोजन
बहुधा देखा जाता है कि सामुदायिक सदस्यों का धार्मिक कार्यो जैसे भजन-कीर्तन में अधिक विश्वास होता है। इस प्रकार के कार्यक्रमों से सदस्यों में धर्म के प्रति आस्था और विश्वास तो बढ़ता है साथ ही एकता का विकास होता है।

(ब) सामूहिक भोज का आयोजन
समुदाय में आपसी सहयोग एवं संगठन के विकास के लिये सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता विभिन्न धार्मिक एवं सामजिक पर्वो एवं अवसरों पर सामूहिक भोज का आयोजन कराता है। इससे सामुदायिक भावना का और अधिक विकास होता है।

(स) कवि सम्मेलन का आयोजन
समुदाय की सांस्कृतिक परम्पराओं की रक्षा एवं सामुदायिक संगठन को बढावा देने के लिये सामुदायिक संगठन कार्यक में कवि सम्मेलन का आयोजन एवं संचालन कराने में सहायक होता है।

(द) सामूहिक विचार-विमर्श का आयोजन
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय के विभिन्न भागों में निवास करने वाले विभिन्न सामाजिक -आर्थिक स्तर के लोगो को एक साथ एकत्र कर सामूहिक विचार-विमर्श का भी आयोजन करता है। इससे सदस्यों में नयी जागृति और उत्साह का संचार होता है।

(य) राष्ट्रीय दिवस एवं त्यौहारों का आयोजन
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सदस्यों को प्रमुख राष्ट्रीय दिवसों को मनाने के लिये भी प्रोत्साहित करता है। इससे राष्ट्रीय भावना के विकास में मदद मिलती है।

समाज सेवा का प्रारूप
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक सदस्यों में गरीब, असहाय एवं जरूरतमन्द सदस्यों से लगाव एवं दयाभाव रखने तथा उनकी सहायता करने की याग्यता का विकास करता है। सदस्यों में ऐसी भावनाओं का विकास के लिये कार्यकर्ता उन समाज सुधारकों एवं महापुरूषों का उदाहरण प्रस्तुत करता है जिन्होंने मानव सेवा में अपना जीवन लगा दिया। समाज सेवी संगठनों के माध्यम से समुदाय के आस-पास घटित सामाजिक घटनाओं जैसे किसी खास बीमारी का प्रकोप ,बाढ, सूखा ,गैस काण्ड एवं भूकम्प जैसी संकट की घडियों में वह लोगों में सेवा भाव को संचारित करता है ताकि लोग एकजुट होकर ऐसे किसी भी संकट का सामना कर सके।

सामुदायिक जीवन का प्रारूप
उपर्युक्त कार्या के अतिरिक्त कार्यकर्ता सामुदायिक जीवन को विकसित करने के लिये सदस्यों द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों को आयोजित करने में उनकी सहायता करता है। विकास के क्षेत्र में भाग लेने,अपने विचार रखने तथा महत्वपर्ण स्थान हासिल करने में सदस्यों की सहायता करता है।
इस सब में वह विशेषकर निम्नलिखित ढंगों से सहायता करता है-

(अ) सामुदायिक केन्द्र आरम्भ करने में
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय के विकास के लिये सामुदायिक केन्द्रों को समुदाय क्षेत्र मे ही स्थापित करने के लिये प्रयास करता है। विभिन्न संस्थाओं एवं संगठनों से ऐसे केन्द्रों की स्थापना के लिये सहायता प्राप्त करने का प्रयास करता है। सामुदायिक केन्द्र की स्थापना से-
  1. सदस्यों को विकास के सम्पूर्ण क्षेत्रों का ज्ञान प्राप्त होता है,
  2. विकास कार्य को संचालित करने वाली संस्थाओं के विषय में ज्ञान होता है,
  3. विकास एंव कल्याणकारी साधन एवं सुविधाओं का उपयोग करने में मार्गदर्शन मिलता है।

(ब) पंचायत एवं सहकारी समितियों के संगठन में
कार्यकर्ता सदस्यों से पंचायत की आवश्यकता एवं महत्ता पर चर्चा करता है। सरकार द्वारा प्रदान की जा रही सुविधाओं एवं सरकारी ग्रामीण पंचायत नीति पर विचार -विमर्श कर प्रजातान्त्रिक आधार पर अनुभवशील पंचों का चुनाव करने में सहायता करता है।
इससे-
  • विभिन्न संस्थाओं एवं संगठनों द्वारा प्रदान की जा रही सुविधाओं एवं साधनों का समुचित उपयोग होता है,
  • सामुदायिक संगठन एवं सहयोग को बढावा मिलता है,
  • समुदाय की सामाजिक परिस्थिति में वृद्धि होती है।

(स) सामूहिक सभा के आयोजन एवं संगठन में
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समय-समय पर सामूहिक सभा के आयोजन की व्यवस्था करता है। इस प्रकार की सभा में समुदाय के सदस्यगण एवं सामुदायिक विकास सेवाओं के जिम्मेदार अधिकारी भाग लेते है जिससे सामुदायिक संगठन एवं विकास में आने वाली समस्याओं का निपटारा सम्भव होता है और सामुदायिक विकास कार्य को बढावा मिलता है।
अतः स्पष्ट है कि सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता का कार्यक्षेत्र सीमित न होकर व्यापक है। एक अर्थ में वह सामुदायिक विकास की धुरी है। उसकी भूमिका आज के परिवर्तनशील और विकासोन्मुख समय में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

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