प्रस्तावना
सामुदायिक संगठन समाज कार्य के प्रमुख तरीकों में से एक है, ठीक वैसे ही जैसे वैयक्तिक कार्य, समाज कल्याण प्रशासन तथा समाज कार्य शोध। जहाँ वैयक्तिक कार्यकर्ता का संदर्भ व्यक्ति से होता है, और समूह कार्यकर्ता का संदर्भ समूह होता है, वहीं सामुदायिक संगठनकर्ता समुदाय के संदर्भ में काम करता है। वैयक्तिक कार्यकर्ता का उद्देश्य व्यक्ति सेवार्थी को अपनी समस्याओं की पहचान करने, इन समस्याओं से निपटने के लिए इच्छाशक्ति विकसित करने, इनके सम्बन्ध में कार्रवाई में सहायता करने, तथा ऐसा करते हुए व्यक्ति के एकीकरण के लिए स्वयं को और स्वयं की क्षमता की समझ को बढाने में मदद करना होता है। इसी प्रकार सामुदायिक संगठनकर्ता सम्पूर्ण समुदाय के साथ सेवार्थी के रूप में काम करता है। संक्षेप में सामुदायिक संगठन शब्द सामुदायिक समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से समुदाय के जीवन में मध्यस्थता के लिए प्रयुक्त समाज कार्य के एक तरीके को परिभाषित करने के लिए किया जाता है।
सामुदायिक संगठन का दर्शन
मानवतावादी दृष्टिकोण से देखा जाए तो समुदायों के साथ काम करना इतना ही पुराना है जितना कि स्वयं समाज। सामुदायिक कार्य का एक न एक रूप हमेशा विद्यमान रहा है, किन्तु समाज कार्य के व्यवसाय के तरीकों के दृष्टिकोण से देखा जाए, तो समुदाय कार्य तुलनात्मक रूप से हाल ही के मूल का है। यह लेन समिति रिपोर्ट (1939) थी, जिसमें सबसे पहले सामुदायिक संगठन को समाज कार्य के तरीके के रूप में मान्यता दी।
सामुदायिक संगठन को समाज कार्य में अभ्यास का एक वृहत तरीका(फिंक, 1978) अथवा वृहत स्तर का समाज कार्य माना जाता है, चूँकि इसका प्रयोग लोगों के एक बड़े समूह को प्रभावित करने वाली व्यापकतर सामुदायिक समस्याओं का सामना करने के लिए किया जाता है। वृहत शब्द का उपयोग, सामूहिक रूप से सामुदायिक समस्याओं का समाधान करने में बड़ी संख्या में लोगों को शामिल करने की इसकी सक्षमता की वजह से किया जाता है। इस प्रकार यह तरीका हमें मध्यस्थता के कार्यक्षेत्र/स्तर में वृद्धि करने में सक्षम बनाता है। वैयक्तिक कार्य जिसमें एक समय में एक ही व्यक्ति के साथ व्यवहार किया जाता है, के विपरीत सामुदायिक संगठन में किसी भी समय में कई लोगों के साथ व्यवहार किया जाता है।
वैयक्तिक दृष्टिकोण उस संदर्भ में व्यावहारिक नहीं होता जहाँ समस्या/समस्याओं का आकार खतरनाक हो जाता है। ऐसे मामलों में हमें ऐसा तरीका उपयोग करना पडता है जो एक साथ लोगों की बड़ी संख्या में सहायता कर सके। यह विषेशकर विकासशील देशों के मामले में सत्य है जहाँ लोगों के समक्ष अनेक समस्याओं की मात्रा अत्यधिक होती है और इस तरह बड़े क्षेत्रों में साथ काम करने की तात्कालिक आवश्यक्तता पडती है। ऐसे में सामुदायिक संगठन इन देशों के सामने व्याप्त आर्थिक तथा सामुदायिक समस्याओं के निवारण के लिए समाज कार्य के अभ्यास के एक प्रभावी तरीके के रूप में उभरता है।
सामुदायिक संगठन को इसलिए भी एक वृहत तरीके के रूप में चित्रित किया जाता है क्योंकि सामुदायिक संगठन द्वारा स्थानीय स्तर (जैसे किसी परिवेश ) अथवा राज्य स्तर पर अथवा यहाँ तक कि क्षेत्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया जा सकता है।
सामुदायिक संगठन की अवधारणा
वर्तमान सामुदायिक जीवन के अध्ययन एवं अवलोकन से ज्ञात होता है कि समुदाय का मौजूदा रूप शताब्दी पूर्व के सामुदायिक जीवन से पूर्णतया भिन्न है। औद्योगिकीकरण, नगरीकरण, यातायात और संचार की सुविधाओं, सामाजिक अधिनियम एवं राजनैतिक तथा समाज सुधार आन्दोलनों ने न केवल नगरीय समुदायिक जीवन को ही प्रभावित किया है बल्कि ग्रामीण सामुदायिक जीवन को भी प्रभावित किया है। फलस्वरूप वर्तमान सामुदायिक जीवन अपनी वास्तविक विशेषताओं जैसे - सामदायिक सहयोग, आपसी जिम्मेदारी, सामुदायिक कल्याण, सुरक्षा एवं विकास से दूर सामुदायिक विघटन की तरफ बढ़ा जा रहा है। मात्रा की दृषि से कहा जा सकता है कि नगरीय समुदाय का विघटन ग्रामीण समुदाय से अधिक हुआ है। इन दोनों समुदायों के पुनर्गठन एवं विकास के लिए सामुदायिक संगठन अत्यन्त आवश्यक है।
समाज कार्य की इस प्राथमिक (सामुदायिक संगठन) प्रणाली का आविर्भाव वैसे तो मानव जीवन के साथ-साथ माना जाता है लेकिन प्रमाणित रूप में एक दान समिति के प्रयासों (चैरिटी आर्गेनाइजेशन सोसाइटी मूवमेंट) से हआ है। यह तब हआ जब इस दान समिति ने विभिन्न अन्य कार्यरत गैर-सरकारी कल्याण समितियों के मजबूत सम्बन्धों, सहयोग एवं इन समितियों के माध्यम से उपलब्ध सहायता कोष के धन के उचित उपयोग के विषय में कदम उठाया। इन प्रयासों से जन्मी प्रणाली को सामुदायिक संगठन का नाम दिया गया।
सामान्य बोलचाल की भाषा में सामुदायिक संगठन का अर्थ किसी निश्चित क्षेत्र या भू-भाग के व्यक्तियों की विभिन्न आवश्यकताओं एवं उस भू-भाग में उपलब्ध आन्तरिक एवं बाह्य विभिन्न साधनों के बीच समुचित एवं प्रभावपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करते हुए उन व्यक्तियों में अपनी समस्याओं एवं कठिनाइयों का अध्ययन करने तथा उपलब्ध साधनों से समस्या समाधान करने की योग्यता का विकास करना है।
सामुदायिक संगठन कार्य में विघटित समुदाय के सदस्यों को आपस में एकत्रित कर उनकी सामुदायिक कल्याण एवं विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं को खोज निकालने तथा उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक साधनों के जुटाने की योग्यता का विकास किया जाता है अर्थात् सामुदायिक कार्यकर्ता का काम सामुदायिक सदस्यों के साथ मिलकर उनकी अपनी समस्याओं का अध्ययन करने, अपनी आवश्यकताओं को महसूस करने, उपलब्ध साधनों के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने, सामूहिक समस्या समाधान के लिये उचित रास्ता अपनाने, एक होकर संघ बनाने, आपसी सहयोग से योग्य नेता का चुनाव करने तथा वैधानिक ढंग से अपनी समस्या का समाधान करने की योग्यता का विकास करना है। इस प्रकार समुदायिक संगठन की प्रक्रिया में सामुदायिक समस्याओं के अभिकेन्द्रीकरण से लेकर उनके समाधान तक किये गये समुचित कार्यों एवं चरणों की शामिल जाता है।
सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता का ज्ञान लोगों में उसी समय हुआ जब प्रथम विश्व युद्ध में इसने दान संगठन एवं कल्याण समिति के रूप में कार्य करके अभूतपूर्व सफलता हासिल की।
सामुदायिक संगठन की परिभाषा
सामुदायिक संगठन, समाज कार्य की एक प्रमुख प्रक्रिया है जिसमें एक प्रशिक्षित समाज कार्यकर्ता द्वारा समुदाय के सदस्यों की इस प्रकार सहायता की जाती है कि वे लोग अपनी समस्याओं का समाधान विभिन्न उपलब्ध साधनों के माध्यम से स्वयं कर सकें। इसकी अवधारणा को और स्पष्ट करने के लिये कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-
लिण्डमैन
इनके अनुसार “सामुदायिक संगठन सामाजिक संगठन का वह चरण है जिसमें समुदाय द्वारा प्रजातांत्रिक तरीके से अपने मामलों या कार्यों को नियोजित करने और अपने विशेषज्ञों, संस्थाओं, संगठनों के मान्य परस्पर सम्बन्धों द्वारा उच्चतम सेवा प्राप्त करने के सचेत सम्मिलित हैं।' ............... “ सामुदायिक संगठन की मुख्य समस्या प्रजातांत्रिक प्रक्रियाओं ओर विशेषज्ञों में एक कार्यात्मक सम्बन्ध स्थापित करना है।"
इस प्रकार लिण्डमेन के अनुसार सामुदायिक संगठन एक ऐसा कार्य है जिसमें किसी निश्चित भू-भाग मे निवास करने वाले व्यक्ति अपनी समस्याओं को जानते हुए समस्या समाधान के लिये प्रजातांत्रिक तरीके से आपस में योजना बनाते हैं और इस कार्य में विशेषज्ञों द्वारा दिये ज्ञान, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं एवं संगठनों के नियमों
का आदर करते हुए समस्या समाधान के लिये सतत् प्रयास करते हैं।
इस प्रकार इनकी परिभाषा में मुख्य रूप से पांच तत्व दिखाई देते हैं।
- समस्या की पहचान
- प्रजातान्त्रिक नियोजन
- विशेषज्ञों, संस्थाओं एवं संगठनों को मान्यता
- पारस्परिक सहयोग
- समाधान का सतत प्रयास आदि।
पैटिट ( 1925)
इनके अनुसार “सामुदायिक संगठन का अर्थ व्यक्तियों के एक समूह को अपनी सामान्य आवश्यकताओं को पहचानने और उन आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता देना है।"
लेन (1939)
इसके अनुसार “सामुदायिक संगठन का सामान्य उद्देश्य समाज कल्याण आवश्यकताओं और समाज कल्याण साधनों के बीच प्रगतिशील एवं अधिक प्रभावशाली समयोजन लाना और उसे बनाये रखना है। इसका तात्पर्य है कि सामुदायिक संगठन का संबंध (क) आवश्यकताओं की खोज और परिभाषा (ख) सामाजिक आवश्यताओं
और अयोग्यताओं की जहां तक सम्भव हो रोकथाम और समाप्ति (ग) बदलती हई आवश्यकताओं को अच्छे तरीके से पूरा करने के लिये साधनों के समुचित उपयोग से है।"
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि इनकी परिभाषा में मुख्यतया
- समाज कल्याण आवश्यकताओं,
- समाज कल्याण संस्थाओं,
- कल्याण सेवाओं एवं कल्याण संस्थाओं के साथ पारस्परिक सम्बन्ध एवं समायोजन बनाये रखने से सम्बन्धित बातों पर विशेष जोर दिया गया।
सैन्डर्सन एवं पालसन (1939)
इनके मतानुसार “सामुदायिक संगठन का लक्ष्य समूहों और व्यक्तियों में ऐसे सम्बन्धों को विकसित करना है जो एक साथ कार्य करने के योग्य बना सकें और ऐसी सुविधाओं एवं संस्थाओं का निर्माण और रख रखाव करने के योग्य बना सकें जिसके माध्यम से वे अपने सर्वोच्च मूल्यों को समुदाय के सभी सदस्यों के सामान्य कल्याण के लिए प्राप्त कर सकें।
रौस 1955
इनके अनुसार “सामुदायिक संगठन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज कार्यकर्ता अपनी अन्तर्दृष्टि एवं निपुणता का प्रयोग करके समुदायों (भौगोलिक एवं कार्यात्मक) को अपनी-अपनी समस्याओं को पहचानने और उनके समाधान हेतु कार्य करने में सहायता देता है।"
आपने अपनी इस परिभाषा में
- सामुदायिक कार्यकर्ता की निपुणता,
- सामुदायिक सदस्यों की अपनी समस्याओं की पहचान और
- समस्या समाधान हेतु सहायता जैसी बातों पर विशेष बल दिया है।
अपनी इस परिभाषा के साथ-साथ रौस ने एक और विस्तृत एवं आधुनिक परिभाषा देकर इसके अर्थ और उद्देश्य के साथ प्रक्रिया को भी बड़े ही सारगर्भित एवं साधारण शब्दों में स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
आपके अनुसार “सामुदायिक संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है - जिसके द्वारा समुदाय अपनी आवश्यकताओं या उद्देश्यों को पहचानता या निश्चित करता है, उन आवश्यकताओं या उद्देश्यों को क्रमबद्ध करता है, अपने अन्दर इन आवश्यकताओं या उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये प्रयास करने का विश्वास एवं इच्छा उत्पन्न करता है, इन आवश्यकताओं या उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये प्रयास करने का विश्वास एवं इच्छा उत्पन्न करता है, इन आवश्यकताओं या उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये साधनों (आन्तरिक और बाहरी) का पता लगाता है, उनकी प्राप्ति के लिये कार्यवाही करता है, और ऐसा करने में समुदाय में सहयोग एवं सहकारिता की मनोवृत्तियों और व्यवहारों में वृद्धि एवं विकास करता है।'
रौस द्वारा दी गयी परिभाषा में “समुदाय' शब्द का प्रयोग विशेष रूप से दो अर्थो में किया गया है-
- एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले समूह के अर्थ में एक ग्राम, एक नगर, एक पड़ोस या नगर का एक छोटा जनपद या मोहल्ला;
- व्यक्तियों के उस समूह के अर्थ में जो समान रूचियों या समान कार्य से संबन्धित है जैसे कल्याण, कृषि, शिक्षा या धर्म।
“समुदाय' शब्द वैज्ञानिक अर्थों में दो विशेषतायें रखता है
- भौतिक, भौगोलिक और भू-खण्डीय सीमायें जो एक समूह की एकलता और पृथकता जाहिर करती हो, और
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक समानता, आत्म सहायता या दूसरे सामान्य व्यवहार या अन्तक्रियात्मक सम्बन्धों का होना।'
“अपनी आवश्यकताओं या उद्देश्यों को निश्चित करने” का अर्थ उस तरीके से है जिससे समुदाय के सदस्य अपनी समस्याओं को स्वयं ढूंढने के योग्य होकर चिन्ताजनक विषयों या समस्याओं पर आवश्यक ध्यान देते हुये समस्या समाधान के लिय आवश्यक एवं उचित तरीकों का निर्धारण सामूहिक निर्णय के आधार पर करते हैं तथा इस कार्य के लिये सामुदायिक सदस्यों के घर जा कर उनसे विचार-विमर्श करके योजना तैयार करते है।
इतना ही नहीं आपके अनुसार, “अपनी आवश्यकताओं या उद्देश्यों को क्रमबद्ध करने” का अर्थ यह भी है कि सामुदायिक सदस्यों में इस बात का पूर्ण बोध हो जाए कि वे अपनी विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं को उनकी प्राथमिकता के आधार पर एक प्राथमिकता क्रम में रख सकें। इस प्रकार की योग्यता सामदायिक कार्यकर्त्ता महत्वपूर्ण भूमिका पर निर्भर होती है। इसमें सदस्यगण अपनी सम्पूर्ण आवश्यकताओं में एक के बाद एक आवश्यकता की पूर्ति के लिये उद्देश्य निर्धारित करने के योग्य हो जाते है।
“साधनों (आन्तरिक एवं बाहरी)" का तात्पर्य उन सभी आन्तरिक एवं बाह्म माध्यमों से है जिनको सामुदायिक सदस्य अपनी विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान, आवश्यकताओं की पूर्ति तथा निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के समय प्रयोग में लाते हैं। इन साधनों में व्यक्ति, उपकरण विधियां, सामग्री आदि आते हैं।
फ्रीड लैण्डर (1955) के अनुसार
“समाज कल्याण के लिये सामुदायिक संगठन को समाज कार्य की एक ऐसी प्रक्रिया कहकर पारिभाषित किया जाता है जिसके द्वारा एक भौगोलिक क्षेत्र के अन्दर समाज कल्याण आवश्यकताओं और समाज कल्याण साधनों के बीच एक प्रगतिशील एवं अधिक प्रभावी समायोजन स्थापित किया जाता है।"
सामुदायिक प्रक्रिया के रूप में सामुदायिक संगठन कार्य एक नहीं अनेक अवस्थाओं से गुजरता है जैसे
- सामुदायिक कल्याण की संरचना और सामाजिक संस्थाओं और उनके कार्यों का ज्ञान,
- जनता की सर्वोत्तम सेवा देने के लिये सरकारी और निजी संस्थाओं की विद्यमान सुविधाओं में समन्वय,
- निजी और सरकारी संस्थाओं के स्तर में सुधार,
- वर्तमान अपूरित मानवीय आवश्यकताओं की निर्धारित करने के लिये सर्वेक्षण एवं अनुसन्धान कार्य का प्रयोग,
- उपलब्ध साधनों के सन्दर्भ में इन आवश्यकताओं का विश्लेषण,
- सूचनाओं का संश्लेषण, तथ्यों का परीक्षण और आवश्यकताओं की महत्ता एवं जरूरत के अनुसार प्राथमिकता निर्धारित करना,
- आवश्यक सेवाओं का समायोजन और आवश्यकतानुसार नयी सेवाओं का विकास,
- जनता एवं सभी समूहों के समक्ष वर्तमान सेवाओं के ज्ञान का विस्तार या नयी सेवाओं के निर्माण की आवश्यकता का अर्थ निरूपण,
- समाज कल्याण क्रिया-कलापों के लिये आर्थिक साधनों एवं नैतिक समर्थन का जुटाव और
- शिक्षा एवं सूचनाओं द्वारा समाज कल्याण की आवश्यकताओं के विषय में समुदाय में ज्ञान का सृजन करना।
विभिन्न विद्वानों द्वारा व्यक्त उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक संगठन का उद्देश्य सामुदायिक सदस्यों में अपनी समस्याओं, आवश्यकताओं एवं उपलब्ध कल्याणकारी साधनों को पहचानने, समस्या समाधान के लिये योजना बनाने तथा निदान ढूंढ़ने की योग्यता का विकास करना है।
सामुदायिक संगठन की पद्धतियां
निःसंदेह , किसी कार्य को वैज्ञानिक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उद्देश्य का होना नितान्त आवश्यक है। उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। हमारे देश की स्वतंत्रता का एक प्रमुख कारण उद्देश्यों का उचित ढंग से चयन एवं उनका समुचित सम्पादन ही है। विभिन्न समाज के कार्यों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न हो सकते है जो उनके जीवन की आवश्यकताओं पर निर्भर होता है।
सामुदायिक संगठन की पद्धतियों का महत्व
मानव जीवन की विविध समस्याओं के निराकरण एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उद्देश्यों का चयन, कुशल एवं दूरदर्शी व्यक्तियों द्वारा किया जाता रहा है उद्देश्य योजनाबद्ध कार्यक्रम की कड़ी का एक महत्वपूर्ण अंग है जो न केवल सामुदायिक संगठन के कार्यक्षेत्र बल्कि प्रत्येक प्रकार के कार्यक्षेत्र में कार्य संयोजक एवं दिशा निर्देशन का कार्य करता है। स्पष्ट निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर हम उनकी पूर्ति के लिये कार्ययोजना बनाते है, अतः स्पष्ट है कि उद्देश्य की स्पष्टता न केवल कार्ययोजना के निर्माण में ही सहायक होती है बल्कि इसके कार्यान्वन, संचालन, मूल्यांकन एवं पूर्नगठन में भी सहायक होती है। कार्यकुशल एवं प्रशिक्षित कार्यकर्ता उद्देश्यों की महत्ता से पूर्णतया अवगत होता है, अतः वह अपनी कार्ययोजना में उद्देश्य की प्राथमिकता स्वीकार करता है और समयानसार इसमें यथासम्भव परिवर्तन करता है । किसी भी कार्यक्षेत्र में उद्देश्य हमें इस बात से अवगत कराते है कि हम और हमारे सहयोगी क्या कर रहे है, किस लिये कर रहे है, और कैसे कर रहें है ? इसी प्रकार सामुदायिक संगठन कार्य में सामुदायिक कार्यकर्ता को अपने उद्देश्यों से यह स्पष्ट होता है कि किसके लिये कार्य किया जायेगा तथा किस लिये किया जायेगा आदि।
स्पष्ट उद्देश्यों के आधार पर ही व्यक्ति आवश्यक कार्यक्रम बनाकर कार्य सिद्धि की तरफ आगे बढता है। उद्देश्य हमें सही दिशा प्रदान करते है और अपनाये गये मार्ग को अनुमोदित करते है। ये मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करते है जिससे साधनों के उपयोग में सुगमता होती है। इतना ही नही उद्देश्य, प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करते है, जिसके माध्यम से सम्बन्धित कर्मचारी एवं भागीदार सदस्य निर्धारित कार्य की तरफ अग्रसर होते रहते है।
सामुदायिक संगठन कार्य के प्रकार
सामुदायिक संगठन के विभिन्न उद्देश्यों के आधार पर सामुदायिक संगठन के कुछ प्रकारों को निम्नलिखित रूप से व्यक्त किया जा सकता है
1. सूचना निर्माण का प्रकार
सामुदायिक संगठन कार्य का प्रथम एवं महत्वपूर्ण प्रकार समुदाय की स्थिति का अध्ययन करना है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सामुदायिक सदस्यों के साथ उनके कल्याण कार्य के लिए सर्वप्रथम उनकी वर्तमान स्थितियों अर्थात् उनकी आवश्यकताओं एवं समस्याओं को जानना चाहिए। साथ ही उनकी सामाजिक स्थिति, उनकी समस्याओं के विषय में चेतना ओर समस्याओं को दूर करने के लिए किये गये प्रयासों का अध्धयन करना चाहिए। इसके साथ-साथ समुदाय कल्याण एवं विकास कार्य में लगी हुई विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य, मनोरंजन, संचार, खेती, व्यापार-व्यवसाय, उद्योग एवं समाज कल्याणकारी सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं का अध्ययन करना चाहिए। अध्ययन कार्य में कार्यकर्ता को न केवल विभिन्न प्रकार की कल्याण कार्य कर रही सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं का पता लगाना है बल्कि उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाओं को भी जानने का प्रयास करना है कि ये सेवायें किन लोगों को और किस प्रकार दी जाती हैं। इन सूचनाओं के ज्ञान से उद्देश्यों के निर्धारण तथा कार्यक्रम योजना के निर्माण में सहायता मिलती है।
2. समस्याओं के समाधान का प्रकार
सामुदायिक संगठन कार्य का दूसरा प्रकार है समस्याओं के समाधान के लिए सामुदायिक सदस्यों को एकत्रित कर विचार करना। फिर सदस्यों को उन साधनों के प्रति सचेत करना जो समुदाय में उपलब्ध हैं और जो समुदाय के बाहर से प्राप्त किये जा सकते हैं। इन साधनों को ध्यान में रखते हुए प्रभावपूर्ण एवं व्यावहारिक योजनाओं पर विचार करना।
3. जनकल्याण का प्रकार
एक समुदाय में शिक्षित, अशिक्षित एवं विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षित लोग निवास करते है। इनमें अपनी समस्या जानने, समझने और इसके निराकरण की योग्यता होती है। इसलिए सामुदायिक संगठन कार्य का तीसरा प्रकार यह होना चाहिये कि सामुदायिक सदस्य अपनी व्यक्तिगत कल्याण एवं विकास की भावनाओं को जोड़े। इससे प्रत्येक धर्म, जाति एवं वर्ग के लोग स्वेच्छा से एवं उपलब्ध सरकारी एवं गैर-सरकारी कल्याण सेवा प्रदान करने वाली संस्थाओं के सहयोग से जन-कल्याण को बढ़ावा दे सकते हैं।
4. जनहित प्रोत्साहन का प्रकार
एक समुदाय कई समूहों एवं उप-समूहों का योग होता है। इन समूहों एवं उप-समूहों का बटवारा व्यक्तियों के सामाजिक आर्थिक एवं वैचारिक विविधताओं के आधार पर होता है। एक समूह के व्यक्ति विशेषकर अपने समूह या उप-समूह के सदस्यों के साथ अपना तालमेल रखना चाहते है, अतः सामुदायिक संगठन कार्य में सामुदायिक कार्यकर्ता को इन विभिन्न समूहों एवं उपसमूहों के सदस्यों के मनोबल को बढाते हुए इनमें जनहित की भावना का विकास करना चाहिए। उसे ऐसी योजनाओं का निर्माण करना चाहिये जो सभी समूहों व उपसमूहों को लाभकर हो तभी सभी का सहयोग मिल सकता है।
5. जन संगठन का प्रकार
इसके लिए एक संगठन स्थापित करने की आवश्यकता होती है। यह संगठन ऐसा होना चाहिए जो विभिन्न लोगों को मान्य हो। इसकी प्रकृति प्रजातांत्रिक होनी चाहिए। इसमें सभी वर्गों के लोगों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। इसका नेतृत्व सुयोग्य पदाधिकारियों के हाथ होना चाहिये।
6. समाज कल्याण का प्रकार
सामुदायिक कार्य का यह भी एक महत्वपूर्ण प्रकार है कि विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित समुदाय कल्याण सेवाओं के बारे में लोगों को बताया जाये। साथ ही यदि इस समुदाय को किसी विशेष सेवा की आवश्यकता है तो उसके बारे में उन संस्थाओं का ध्यान आकृष्ट किया जाये। संचालित सेवाओं की अधिक आवश्यकता होने पर स्थापित सामुदायिक संगठन द्वारा सम्बन्धित संस्था से निवेदन कर ऐसी सेवाओं को और बढाया जाये जिससे सहायता प्राप्त करने वाले लोग आवश्यकतानुसार पर्याप्त सेवाओं से लाभान्वित हो सकें। साथ-साथ समुदाय के ऐसे वर्ग जिन्हें इन सेवाओं की आवश्यकता है लेकिन किसी कारण से वे इनसे लाभान्वित नही हो पाये है को भी लाभान्वित होने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
7. सामुदायिक संसाधनों के विकास का प्रकार
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि कुछ सदस्य अपने अज्ञान, पारिवारिक, आर्थिक एवं समाजजिक जिम्मेदारियों तथा विशेषज्ञों की सलाह के अभाव के कारण समुदाय के उपलब्ध साधनों को नही पहचान पाते है। इसलिये वे उन साधनों से लाभान्वित नही हो पाते है अतः सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को चाहिये कि वह एक विशेषज्ञ या सलाहकार के रूप में कार्य करे जिससे समुदाय या समुदाय के आस-पास विभिनन संस्थाओं द्वारा संचालित सेवाओं को सभी लोग जान सकें तथा समयानुसार अपनी मूल भूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उन उपलब्ध साधनों का यथासम्भव प्रयोग कर सकें। सामदायिक कार्यकर्ता एवं संगठन के विभिन्न पदाधिकारियों, कर्मचारियों एवं सदस्यों को चाहिये कि वे नियमित कल्याण सेवा न प्रदान करने वाली संस्थाओं तक पहंचकर उनकी कल्याण सेवा को नियमित बनाने में सहायता कर सकें। इससे उपलब्ध संसाधनों की पर्याप्त मात्रा एवं आवश्यक दिशा में उपयोग हो सकता है।
8. सौहार्द विकास का प्रकार
समुदाय में जहां विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तर के लाग होते है। उन के विचारों में भिन्नता होना स्वाभाविक ही है। इसीलिये सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सभी के विचारों का ख्याल रखते हए आपसी सहयोग को बढाने का प्रयास करना चाहिए।
9. समुदाय में समन्वय स्थापना का प्रकार
सामुदायिक संगठन कार्य न केवल व्यक्ति विशेष के लिये है, न ही व्यक्ति विशेष के प्रयास से इसके लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है, बल्कि समुदाय के सम्पूर्ण व्यक्तियों के साथ व्यक्तियों के द्वारा सम्भव है। इसलिए सामुदायिक कार्य की वास्तविक सफलता, पारस्परिक विकास एवं समृद्धि के लिये आवश्यक है कि समुदाय कल्याण कार्य के लिये निर्धारित कार्यक्रमों में समुदाय के विभिन्न व्यक्तियों, समूहों, उप-समूहों एवं विभिन्न जाति, धर्म एवं वर्ग के संगठनों के साथ आवश्यक समन्वय स्थापित किया जाये।
10. समाज सुधार का प्रकार
सामुदायिक कार्यकर्ता को सामुदायिक बुराइयों को दूर करने तथा समुदाय को कंटक रहित बनाने का प्रयास करना चाहिए। सामुदायिक विकास के लिए परिवर्तनशील विधियों द्वारा समुदाय में उत्पन्न होने वाली समस्याओं से लोगों को आगाह करना चाहिए। उसे समस्याओं को अच्छे ढंग से समझने, श्रेणीकरण करने और उन्हें दूर करने के लिए आवश्यक योग्यता का विकास करना चाहिए।
सामुदायिक संगठन की अवस्थाएं
सामुदायिक संगठन कार्य की अवस्था को स्पष्ट करने तथा इसे सरल बनाने के लिये आवश्यक होगा कि इन उद्देश्यों की महत्ता पर प्रकाश डाला जाये। निर्धारित उद्देश्य की निम्नलिखित उपयोगितायें हैं जो कार्यकर्ताओं को उनके कार्य में सफलता प्रदान करते है।
कार्य की दिशा की स्पष्टता
उद्देश्य की निश्चितता के आधार पर ही कार्य की दिशा का निर्धारण किया जाना सम्भव हुआ है। अन्यथा संगठनकर्ता सही एवं आवश्यक दिशा में न कार्य करते हुए अनावश्यक दिशाओं में इधर-उधर भटकता रहता है। इससे अनावश्यक समय एवं धन का उपव्यय होता है, कार्य की सिद्धि नही हो पाती है, बल्कि कार्य सिद्धि का मार्ग उलझा जाता हैं, अतः उद्देश्य निर्धारण परम आवश्यक है। यह न केवल संगठनकर्ता के लिये ही उपयोगी है बल्कि कार्य संचालक एवं लाभार्थियों के लिये भी महत्वपूर्ण है।
कार्य क्षेत्र की स्पष्टता
पिछले दो अध्यायों में समुदाय के आकार को स्पष्ट किया गया है, जिससे ज्ञात होता है कि एक समुदाय में न केवल एक जाति, धर्म एवं स्तर के लोग रहते है बल्कि अनेक जाति एवं धर्म के लोग रहते है। उद्देश्य की स्पष्टता के बिना कार्यकर्ता भ्रमित हो जाता है और उसे पता नही चल पाता है कि समुदाय क्षेत्र के किस वर्ग के जन समुदाय के साथ कार्य करना है। उद्देश्य की स्पष्टता से कार्यकर्ता को उसके सेवार्थियों अर्थात् जिसके साथ उसे कार्य करना है की स्पष्टता दिखाई देती है, जिसके परिणामस्वरूप कार्यकर्ता निश्चित समय पर निर्धारित क्षेत्र के जनसमुदाय के लोगों के साथ कार्य संचालन करता है।
आवश्यक नेतृत्व का ज्ञान
निर्धारित उद्देश्यों से सामुदायिक संगठन कर्ता एवं सामुदायिक सदस्यों को एक दूसरे से सहयोग के क्षेत्र का ज्ञान हो जाता है। कार्यकर्ता आवश्यक दिशा में सदस्यों को शिक्षित-प्रशिक्षित कर एवं सलाह के माध्यम से कार्य-कुशल बनाने में सहायक सिद्ध होता है। कार्यकता को उसकी भूमिका का स्पष्ट ज्ञान होता है और सदस्यों को कार्यकर्ता के ज्ञान से लाभ होता है। परिणामस्वरूप सामुदायिक सदस्यगण एवं कार्यकर्ता अपनी-अपनी परिस्थिति एवं भूमिका का निभाते हुए दूसरे का सहयोग करते हुये लक्ष्य प्राप्ति की तरफ अग्रसर होते है।
आवश्यक साधनों को जुटाने में सहायक
सामुदायिक संगठन के जिम्मेदार सदस्यों को किसी विशेष क्रिया एवं उसके विभिन्न चरणों के लिए कौन से साधन एवं सामान की आवश्यकता होगी इस बात का ज्ञान भी स्पष्ट उद्देश्यों से होता है। वे साधन कहां से उपलब्ध होंगें कैसे उपलब्ध होंगें, आदि बातों के निर्धारण में उद्देश्य सहायक होते है। इससे सभी सम्बन्धित जिम्मेदार व्यक्ति साधनों से ससज्जित होकर कार्यक्रम को सफल बनाने में ज्यादा प्रभावशाली भमिका निभा सकते है।
मूल्यांकन एवं आवश्यक परिवर्तन में सहायक
कार्यकर्ता एवं सदस्यों को अपने कार्य की दिशा एवं लक्ष्य का ज्ञान होने से वे अपने कार्य में लगे रहते है और उनमें अपने कार्यो की उपलब्धियों की जानकारी की उत्सुकता बनी रहती है। वे यह जान पाते है कि कार्य आवश्यक दिशा में चल रहा है या नही, यदि आवश्यक दिशा में चल रहा है तो कितनी सफलता मिली है और अभी कितनी प्राप्त करनी बाकी है। इस प्रकार जिम्मेदार व्यक्तियों को कार्यक्रमों की वास्तविक सफलता की समयबद्ध जानकारी मिलती रहती है। उद्देश्य स्पष्ट होने से कार्यकर्ता को न केवल कार्यक्रम के निर्धारित उद्देश्यों की उपलब्धि के विषय में ही जानकारी होती है।
अवलोकन में सहायक
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता का मुख्य कार्य समुदाय के सदस्यों के साथ कार्य कर, उनके विचारों एवं कार्यों में
आवश्यक परिवर्तन स्थापित कर, उनमें अपनी समस्या समाधान एवं आवश्यकता की पूर्ति करने की योग्यता का विकस करना है। इसलिये कार्यकर्ता को अपने सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ-साथ समुदाय विशेष जहां उसे कार्य करना हैं, की वास्तविक व्यावहारिक विशेषताओं को जानना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को समुदाय में भ्रमण कर वहां की सभ्यता एवं संस्कृति का पूर्ण अवलोकन करना चाहिए। कार्यकर्ता को समुदाय के साथ कार्य करना है, इसलिए उसे समुदाय की सभ्यता एवं संस्कृति का पूर्ण अवलोकन करना चाहिए।
अध्ययन में सहायक
अध्ययन कार्य की सफलता स्वीकृति के अभाव में असम्भव है। स्वीकृति प्राप्त सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सामुदायिक सदस्यों के साथ द्वितीय चरण में समुदाय की उन सभी समस्याओं एवं अनुभूत आवश्यकताओं का अध्ययन करना चाहिए जो उस समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है। अध्ययन करते समय कार्यकर्ता को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि समुदाय के इस निश्चित भू-भाग में रहने वाले सभी जाति, धर्म एवं सामाजिक-आर्थिक स्तर के लोगों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं से सम्बन्धित सूचनाओं को एकत्रित किया जाये।
आवश्यकता की चेतना के प्रसार में सहायक
सामदायिक सदस्य अपनी सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण कुछ मूलभूत सामुदायिक
आवश्यकताओं जैसे स्वास्थ्य, सफाई, सामाजिक -आर्थिक उन्नति आदि को भी नही पहचान पाते है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये कार्यकर्ता व्यक्तिगत रूप से, सामूहिक रूप से, तथा पूरे समुदाय के साथ विचार-विमर्श कर सामुदायिक आवश्यकताओं के विषय में सभी सदस्यों की चेतना को बढाता है।
संगठन की रचना में सहायक
कार्यकर्ता, सामुदायिक शक्ति को प्रभावी बनाने के लिए, संगठन में समुदाय की विभिन्न जातियों, धर्म और वर्ग के सदस्यों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। इससे समदाय में संगठन का विकास होता है और सामदायिक संगठन में अधिकाधिक सदस्यों का सहयोग प्राप्त होता है।
नेतृत्व के विकास में सहायक
समुदाय में संगठन की रचना के पश्चात् योग्य नेता के चुनाव की आवश्यकता होती है। योग्य नेता में अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करने तथा निर्देशित करने की क्षमता होनी चाहिए। वह अपनी शक्तियों का प्रयोग व्यक्तियों के विकास में करता है। अपनी चपलता एवं अन्तः क्रियाओं की कुशलता से वह व्यक्तियों में नवीन चेतना का संचार करता है और सामाजिक क्रियाओं को प्रोत्साहन देता है। समय-समय पर वह अपने सुझाव रखता है जो दसरे लोगों के लिये मान्य होते है। कार्यकर्ता सदस्यों में योग्य एवं जिम्मेदार नेता का प्रजातांत्रिक ढंग से चुनाव करने के लिए सामुदायिक सदस्यों को प्रोत्साहित करता है।
सामुदायिक संगठन के चरण
किसी कार्य को व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न करने के लिये जिस प्रकार एक क्रमबद्ध योजना की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार कार्यक्रम के कार्यान्वन के लिए कई चरणों से गुजरना आवश्यक है। ये चरण न केवल सामुदायिक संगठन से जुडे है बल्कि उन सभी कार्यक्रमों से भी जुड़े है जो एक समुदाय में चल रहे है। जैसे कि वैयक्तिक सेवा कार्य के अभ्यास के लिए तीन प्रमुख चरणों जैसे अध्ययन, निदान, उपचार आदि को आवश्यक माना गया है, उसी प्रकार सामुदायिक संगठन कार्य के भी विभिन्न विद्वानों ने कुछ चरण बताये है। इनमें से कुछ प्रमुख चरण निम्नलिखित है जिनसे गुजरना सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सामुदायिक संगठन कार्य के उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए आवश्यक है
अवलोकन तथा स्वीकृति प्राप्त करना
उद्देश्य की पूर्ति के लिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को समुदाय में भ्रमण कर वहां की सभ्यता एवं संस्कृति का पूर्ण अवलोकन करना चाहिए। कार्यकर्ता को समुदाय के साथ कार्य करना है, इसलिए उसे समुदाय की सभ्यता एवं संस्कृति का पूर्ण अवलोकन करना चाहिए। कार्यकर्ता को समुदाय के साथ कार्य करना है , इसलिए उसे समुदाय की सभ्यता और संस्कृति को स्वीकार कर अपने व्यवहार, कार्य एवं अंतःक्रियाओं को उनके अनुसार ढालना चाहिए। उसे समुदाय की प्रत्यके जाति, धर्म, समूह एवं उप-समूह के सदस्यों की स्वीकृति ही सामुदायिक संगठन के निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निर्णायक सिद्ध होते है।
अध्ययन करना
सामुदायिक संगठन कार्य का दूसरा चरण समुदाय का अध्ययन करना है। अध्ययन कार्य की सफलता स्वीकृति के अभाव में असम्भव है। स्वीकृति प्राप्त सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सामुदायिक सदस्यों के साथ द्वितीय चरण में समुदाय की उन सभी समस्याओं एवं अनुभूत आवश्यकताओं का अध्ययन करना चाहिए जो उस समुदाय के लिए महत्वपर्ण है। अध्ययन करते समय कार्यकर्ता को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि समुदाय के इस निश्चित भू-भाग में रहने वाले सभी जाति, धर्म एवं सामाजिक-आर्थिक स्तर के लोगों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं से सम्बन्धित सूचनाओं को एकत्रित किया जाये। इसके साथ-साथ कार्यकर्ता सामुदायिक शक्तियों एवं सामुदायिक कल्याण तथा विकसा सके लिए उपलब्ध विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं की सूचनाओं को भी एकत्रित करता है। इससे सामुदायिक सदस्यों की वास्तविक स्थिति जानने तथा सही योजना बनाने में सहायता मिलती है।
आवश्यकता की चेतना का प्रसार करना
सामुदायिक संगठन कार्य का तीसरा चरण सामुदायिक सदस्यों को उनकी मूलभूत आवश्यकताओं से अवगत कराना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये कार्यकर्ता व्यक्तिगत रूप से, सामूहिक रूप से, तथा पूरे समुदाय के साथ विचार-विमर्श कर सामुदायिक आवश्यकताओं के विषय में सभी सदस्यों की चेतना बढाता है।
संगठन की रचना करवाना
सामुदायिक संगठन कार्य का चौथा महत्वपूर्ण चरण सामुदायिक सदस्यों में संगठन की आवश्यकता एवं संगठित जीवन की उपयोगिता पर बल देते हुए संगठित जवीन को प्रोत्साहन देना है। सामुदायिक शक्ति को प्रभावी बनाने के लिए, संगठन में समुदाय की विभिन्न जातियों, धर्म और वर्ग के सदस्यों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। इससे समुदाय में संगठन का विकास होता है और सामुदायिक संगठन में अधिकाधिक सदस्यों का सहयोग प्राप्त होता है।
नेतृत्व का विकास करना
समुदाय में संगठन की रचना के पश्चात् योग्य नेता के चुनाव की आवश्यकता होती है।
कल्याणकारी योजना एवं कार्यक्रम तैयार करना
इसके पश्चात सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय की समस्या एवं आवश्यकतानुसार सामान्य कल्याणकारी योजना बनाने एवं कार्यक्रम तैयार करने के लिये मार्गदर्शन देता है। कल्याणकारी योजना एवं कार्यक्रम तैयार करने में कार्यकर्ता सदस्यों की सहभगिता पर बल देता है और सुझाव, सलाह एवं विचार-विमर्श के लिये उन्हें प्रोत्साहित करता है। जिन आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सदस्यों की विशेष रूचि देखता है और जिनकी प्राप्ति न्यूनतम प्रयास से संभव हो उन्हें वह प्राथमिकता देता है। अनुभव के साथ-साथ अन्य आवश्यक लम्बे समय में पूर्ण होने वाले कार्यों को कार्यक्रम की सूची मे रखता है।
साधनों को संचालित करना
कल्याणकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों के निर्धारण के पश्चात कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया जाता है। अपने व्यावहारिक ज्ञान एवं अनुभव से कार्यकर्ता इस बात से पूर्ण अवगत होता है कि कार्यक्रमों की सफलता सदस्यों की रूचि, दक्षता और सहभागिता पर निर्भर करती है। इसलिये कार्यकर्ता कार्यक्रम के जिम्मेदार सदस्यों को शिक्षित, प्रशिक्षित एवं प्रोत्साहित कर उन्हें अपनी भूमिका निभाने तथा उनकी भूमिकाओं को सरल बनाने का प्रयास करता है। निर्धारित कार्यक्रमों के कार्यान्वन में उत्पन्न रूकावटों एवं विवादों को सदस्यों के समक्ष रख उन्हें दूर करने का प्रयत्न करता है।
मूल्यांकन एवं ऐच्छिक परिवर्तन
सामुदायिक संगठन में मूल्याकन का एक विशेष महत्व है। मूल्यांकन से हमें सामुदायिक उद्देश्यों की सफलता एवं असफलता का ज्ञान होता है। हमें सदस्यों के कार्य के वास्ततिक परिणामों का ज्ञान होता है। इससे सदस्यों की कार्य शक्तियों, निपुणताओं, उनकी कमियों, अक्षमताओं, दोषों एवं संघर्षों को जानने में सुविधा होती है। मूल्यांकन से हमें अपनाये गये तरीकों एवं प्रविधियों, तरीकों में ऐच्छिक परिवर्तन लाया जा सके।
अन्तिम चरण में कार्यकर्ता को यह देखने की आवश्यकता होती है कि सदस्यों मे कहाँ तक स्वयं अपनी सहायता करने की योग्यता का विकास हुआ है। क्या वे बिना कार्यकर्ता के स्वयं सामूहिक निर्णय ले पाते है या नही, और कार्यक्रमों को क्रियान्वित कर पाते है या नही। उनकी सफलता इसमें है कि वह स्वयं समुदाय के लिये अनावश्यक बन जायें।
सामुदायिक संगठन कार्य की विशेषताएँ
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं एंव उनमें व्यक्त तथ्यों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक संगठन कार्य की कुछ सामान्य और प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है।
- यह एक निर्धारित भू भाग में निवास करने वाले विभिन्न जाति धर्म एवं समूहों के सदस्यों के विकास का कार्य है। एक समुदाय के लिए निश्चित भू.भाग का तात्पर्य यहां एक गांव ,मुहल्ला, शहर,प्रान्त राज्य एवं राष्ट्र से है।
- सामुदायिक संगठन कार्य में प्रशिक्षित समाज कार्यकर्ता के ज्ञान एवं कौशल का प्रयोग आवश्यक है। इसमें समस्या का अध्ययन करने की योग्यता का विकास किया जाता है।
- सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को पूर्ण ज्ञान होता है कि सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता सामुदायिक सदस्यों पर ही निर्भर है। इसलिए सामुदायिक कार्यकर्ता अपने उपयोगी ज्ञान को जो सामुदायिक सदस्यों के लिए आवश्यक है उनमें संचारित करता है।
- समस्या के समाधान के उचित रास्तों का चयन करने के लिए आवश्यक है कि समस्या का अध्ययन किया जाए। इसलिए सर्वप्रथम समाज कार्यकर्ता सदस्यों की समस्याओं का अध्ययन करते हुए सदस्यों में अध्ययन करने की स्वयं योग्यता का विकास करता है जिससे वे स्वयं समस्या का अध्ययन करते हुए इसकी वास्तविक रूप.रेखा जान सके।
- सामुदायिक संगठन कार्य प्रजातान्त्रिक निर्णय पर आधारित है।
- साधनों को जानने एवं उसे संचालित करने का प्रयास किया जाता है।
- सामुदायिक कार्यकर्ता अपने व्यावहारिक ज्ञान से सदस्यों को लाभान्वित होने के लिए उनमें आवश्यक कदम उठाने की योग्यता का विकास करता है जिससे कल्याण सेवा प्रदान करने वाली संस्थायें अपनी सेवाओं को नियमित कर सकें और सदस्यगण लाभान्वित हो सके।
- सामुदायिक नियोजन एंव एकता का विकास किया जाता है।
- सामुदायिक कल्याण के विकास को जनकल्याण में बदला जाता है।
इन कार्यक्रमों के लिए न केवल प्रशिक्षित समाज कार्यकर्ता की ही आवश्यकता होती है बल्कि उन सभी सरकारी, गैर-सरकारी कर्मचारियों एवं स्वयं सेवी कार्यकताओं की भी आवश्यकता होती है जिन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के विषय में पूर्ण जानकारी है या वे विभिन्न प्रकार की संचालित सरकारी एवं गैर-सरकारी कल्याण सेवाओं के संचालन कार्यक्रमों के एक अंग है। साथ-साथ इन कार्यो में उन विशेषताओं एवं अनुभवशील कर्मठ कर्मचारियों के योगदान की आवश्यकता पड़ती है जो लोगों के ज्ञान स्तर को पहचानते हुये आवश्यक ज्ञान वालों को सरल एवं स्पष्ट रूप से लोगों के समक्ष रख सकें, जिससे जरूरतमंद इसे आसानी से समझ कर अपनी क्षमताओं को बढ़ाते हुए इस का प्रयोग सामदायिक एवं राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कतिक विकास में लगा सकें। इस प्रकार सामुदायिक विकास कार्य सरकारी विस्तार कार्यों पर निर्भर होता है। इन विस्तार कार्यों में विभिन्न प्रकार के उपलब्ध संचालित कार्यक्रमों के विषय में, जो समुदाय विशेष के लोगों के लिए आवश्यक है चाहे वह कृषि के विकास में सम्बन्धित हो या ग्रामिण विकास से सम्बन्धित क्यो न हो को इस योग्य बनाने का प्रयास किया जाता है जिससे सभी सदस्य अपने आपसी सहयोग, सहायता एवं सहभागिता के साथ संचालित आवश्यक कार्यक्रमों द्वारा आवश्यकताओं एवं उपलब्ध सरकारी एवं गैर-सरकारी साधनों के बीच सदस्यों की योग्यता का विकास कर समझौता स्थापित करते है जिससे उपलब्ध साधनों को जरूरतमन्द लोगों तक पहुँचा कर संस्था एवं सेवा के उद्देश्य को पूरा किया जाए साथ-साथ जरूरतमन्द लोगों को आवश्यक सेवायें उनकी आवश्यकतानुसार मिलती रहें और पारस्परिक सहयोग, सहायता एवं सहकारिता को बढ़ावा मिल सके।
इन उपर्युक्त विचारधाराओं से सामुदायिक संगठन कार्य की अवधारणा स्पष्ट होती है तथा यह भी स्पष्ट होता है कि सामुदायिक संगठनकर्ता, सामुदायिक संगठन की एक प्रक्रिया के रूप में किस प्रकार की भूमिका किसके साथ निभाता है। यदि सामुदायिक संगठन कार्य को इसकी अन्य सम्बन्धित अवधाराओं से जोड़ा जाता है तो सभी सम्बन्धित विषय जैसे - सामुदायिक विकास, सामुदायिक कार्य, कार्य योजना, सामुदायिक क्रिया आदि लोगों में भ्रम पैदा करते है। उदाहरणार्थ सामुदायिक विकास कार्य से हमारा तात्पर्य उस प्रकार के विकास कार्य से है जिसमें सरकारी कर्मचारियों द्वारा सामुदायिक सदस्यों की योग्यता एवं उनकी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शक्तियों का विकास कर उसे राष्ट्रीय विकास से जोड़ना है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सामुदायिक विकास कार्य में सामुदायिक सदस्यों, में उनका सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्तर का विकास सरकारी, स्वयं सेवी एवं व्यावसायिक कार्यकर्ताओं के शिक्षण-प्रशिक्षण द्वारा किया जाता है। अतः कहा जा सकता है। कि इस कार्य में:
सदस्यों को उनकी अपनी विभिन्न उपलब्ध साधनों एवं सुविधाओं को विकसित कर उसको आवश्यक दिशा में उपयोग करने के लिये उनकी योग्याताओं एवं क्षमताओं का विकास करना सम्मिलित है जिससे सामुदायिक विकास के साथ-साथ राष्ट्रीय विकास कार्य को साकार बनाया जा सकें।
सामुदायिक संगठन और सामुदायिक विकास में अंतर
- सामुदायिक संगठन का मुख्य उद्देश्य सामुदायिक सदस्यों के बीच आपसी सहयोग, सलाह एंव एकता को विकसित करना है। जबकि सामुदायिक विकास में सामुदायिक सदस्यों विशेषकर, अविकसित एवं विकासात्मक समुदायों के आर्थिक विकास पर जोर दिया जाता है।
- सामुदायिक संगठन कार्य आवश्यक नहीं है कि सरकार द्वारा ही संचालित हो, यह स्वंय सेवी संस्थाओं द्वारा प्रशिक्षित सामुदायिक संगठन कार्यकर्ताओं के सहयोग से भी किया जा सकता है। जबकि सामुदायिक विकास सरकार द्वारा संचालित सामुदायिक सदस्यों के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है।
- इस सामुदायिक संगठन कार्य में एक कुशल सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता के मार्गदर्शन से सामुदायिक सदस्यों में अपने आप सामुदायिक योजना तथा संगठन बनाने की क्षमता का विकास करना सम्मिलित है। जबकि सामुदायिक विकास कार्य में सामुदायिक सदस्यों के वर्तमान अवस्था को ऊंचा उठाने के लिये, विशेषरूप से उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिये प्रसार कार्यक्रमों को कार्यान्वित एवं नियमित करना सम्मिलित है।
- सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समाजकार्य व्यवसाय में एक प्रशिक्षित कार्यकर्ता होता है जो अपने ज्ञान एवं कौशल का प्रयोग सामुदायिक सदस्यों के साथ उनकी सामुदौयिक योजना बनाने तथा सामुदायिक एकता में करता है। जबकि सामुदायिक विकास कार्यकर्ता एक सरकारी कार्यकर्ता होता है जो समुदाय की वर्तमान अवस्था के विभिन्न कारकों एवं उपायों के विषय में ज्ञान रखता है।
- सामुदायिक संगठन कार्य वह कार्य है जिसमें सामुदायिक कार्यकर्ता सामुदायिक सदस्यों को उनकी आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच समायोजन लाने की योग्यता एवं सामुदायिक कल्याण की भावना का विकास करता है। जबकि सामुदायिक विकास योजना वह कार्य है जिसमें सामुदायिक सदस्यों द्वारा समुदाय की सामान्य आवश्यकताओं एवं विभिन्न उपलब्ध साधनों के बीच व्यवस्थित सन्तुलन स्थापित करना सम्मिलित है।
सामुदायिक संगठन और सामुदायिक क्रिया में अंतर
- सामुदायिक संगठन कार्य का प्रयोग असंगठित एवं विघटित समुदाय के साथ उनकी अपनी आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच समता स्थापन में किया जाता है। जबकि सामदायिक क्रिया का प्रयोग सामदायिक बराई एवं तनाव में सदस्यों का सत्ता के साथ आपसी एकता एवं सामूहिक विकास के लिये किया जाता है।
- सामुदायिक संगठन की प्रक्रिया सीमित है जबकि सामुदायिक क्रिया की प्रक्रिया काफी विकसित है।
- इसकी प्रक्रिया सीमित होने के कारण इसमें अत्यधिक समय एवं योगदान की आवश्यकता नहीं होती है जबकि सामुदायिक क्रिया के लिये अत्यधिक समय एवं योगदान की आवश्यकता पड़ती है।
सामुदायिक संगठन के उद्देश्य
समाज कार्य के उद्देश्य के समान सामुदायिक संगठन का मुख्य उद्देश्य सामुदायिक सदस्यों की इस प्रकार सहायता करना है जिससे सामुदायिक सदस्य अपनी समस्याओं के कारणों को खोज निकालने, आवश्यकताओं को पहचानने तथा समुदाय में आत्मनिर्भरता का दीप जला सकें और विकसित हो सकें। विशेष रूप से एक समुदाय में सामदायिक संगठन का मख्य उद्देश्य समदाय की विभिन्न सामयिक आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच समुदाय में आवश्यक सहयोग, सहकारिता एवं एकता के माध्यम से समायोजन स्थापित करना है।
जिन विद्वानों ने सामुदायिक संगठन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला है उनमें से कुछ प्रमुख विद्वानों के विचार निम्नलिखित है।
हार्पर एवं डनहम के अनुसार
हार्पर एवं डनहम ने 1939 में संगठित नेशलन कॉन्फ्रेंस आफ सोशल वर्क द्वारा नियुक्त केन कमेटी द्वारा दिये गये प्रतिवेदन के आधार पर सामुदायिक संगठन के निम्नलिखित उद्देश्यों का उल्लेख किया है। इन्हें दो भागों में बाँट कर व्यक्त किया जा सकता है
(1) सामान्य उद्देश्य
आपके अनुसार सामुदायिक संगठन का सामान्य उद्देश्य सदस्यों की समाज कल्याण की आवश्यकताओं एवं विभिन्न कल्याणकारी उपलब्ध साधनों के बीच प्रगतिशील समायोजन स्थापित करना है। इसे और स्पष्ट करते हुए निम्नलिखित भागों में व्यक्त किया गया है।
- (क) विभिन्न प्रकार की कल्याण आवश्यकताओं का पता लगाना और उन्हें परिभाषित करना।
- (ख) अयोग्यताओं की रोकथाम करना।
- (ग) बदलती परिस्थितियों में उत्पन्न विभिन्न आवश्यकताओं का स्पष्टीकरण करते हुये इन आवश्यकताओं को पूरा करने वाले साधनों का पता लगाना तथा दोनों में समायोजन स्थापित करना।
(2) द्वितीयक उद्देश्य
हार्पर एवं डनहम ने सामान्य उद्देश्यों के साथ कुछ द्वितीयक उद्देश्यों का भी उल्लेख किया है जो निम्नलिखित है:
- (क) प्रभावी नियोजन कार्य के लिये वास्तविक एवं पर्याप्त आधारों की खोज करना तथा उन्हें बनाये रखना।
- (ख) आवश्यक कल्याणकारी कार्यक्रमों एवं उपयुक्त सेवाओं को आरम्भ करना, उन्हें विकसित करना तथा समय[-समय पर आवश्यक संशोधन करना जिससे आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच समचित समायोजन स्थापित किया जा सके।
- (ग) समाज कार्य के स्तर को ऊँचा करते हुये वैयक्तिक संस्थाओं की कार्यक्षमता को बढाना।
- (घ) पारस्परिक सम्बंधों एवं सहयोग को बनाये रखने वाली विधि को आसान बनाना और विभिन्न कल्याणकारी संगठनों, समूहों एवं व्यक्तियों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध एवं आवश्यक समन्वय को बढाना एवं स्थापित करना।
- (ड) सामुदायिक सदस्यों को समाज कार्य के उद्देश्यों, कार्यक्रमों एवं प्रणालियों के विषय में अवगत कराना।
- (च) संचालित किये जाने वाले आवश्यक कल्याणकारी कार्यक्रमों के विषय में जनता को बताते हुए जनता हुये जनता का समर्थन प्राप्त करना तथा उनकी सहभागिता बढाना।
मैकनील के विचार
मैकनील ने सामुदायिक संगठन के लक्ष्य को समाज कार्य के लक्ष्य के समान ही माना है, क्योंकि दोनों का केन्द्र बिन्दु मानव समाज ही है। सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच प्रजातांत्रिक जीवन के सिद्धान्त के आधार पर आवश्यक साधनों को जुटाना सामुदायिक संगठन का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
मैकनील ने समाज कल्याण के क्षेत्र में सामुदायिक संगठन के निम्नलिखित उद्देश्यों का उल्लेख किया है
- आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये साधनों का विश्लेषण करना।
- मानवीय आवश्यकताओं के विषय में तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना।
- तथ्यों का संश्लेषण, सहसंबंध एवं परीक्षण करना।
- उपलब्ध सेवाओं एवं मानवीय आवश्यकताओं सम्बंधी तथ्यों को मिलाना।
- सभी सम्बन्धित व्यक्तियों एवं समूह के प्रतिनिधियों को कार्यक्रम के प्रत्येक चरणों में सहभागी बनाना।
- उत्पन्न हो रही विभिन्न सामाजिक समस्याओं के प्रति जनता में रूचि को बढ़ाना और उचित शिक्षा एवं सहभागिता द्वारा उनका समाधान खोजने के लिये जनता को प्रोत्साहित करना।
- प्राथमिकता निर्धारित करना।
- सेवाओं के स्तरों में सुधार एवं विकास लाना।
- विभिन्न कल्याणकारी सेवाओं में विद्यमान कमियों का पता लगाना।
- संचालित कल्याणकारी सेवाओं के समापन, उनका अन्य आवश्यक सेवाओं के साथ समायोजन एवं नयी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये नयी सेवाओं को विकसित करना।
- सामदायिक सदस्यों में शिक्षा के माध्यम से उनके ज्ञान में वृद्धि करना।
- नैतिक एवं आर्थिक समर्थन को जुटाना, आदि।
सैन्डरसन एवं पोलसन के विचार
सैन्डरसन के अनुसार सामुदायिक संगठन का सामान्य उद्देश्य समूहों एवं व्यक्तियों के बीच इस प्रकार के संबंध को विकसित करना है जिससे लोगों में एक साथ मिलकर कार्य करने की योग्यता का विकास हो सके तथा वे ऐसी सुविधाओं व संस्थाओं का निर्माण एवं सम्पादन कर सकें जिनके द्वारा वे अपने सर्वोच्च मौलिक मूल्यों को सामुदायिक कल्याण के लिये प्राप्त सकें।
इसके अतिरिक्त सैन्डरसन ने इन व्यक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की आवश्यकता पर बल दिया है जो निम्नलिखित है-
- सामुदायिक तादात्म्य की चेतना।
- अपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति।
- लोगों का सामाजिक जीवन में भाग लेना।
- सामुदायिक भावना द्वारा समाज में सामाजिक नियंत्रण।
- आपसी संघर्ष एवं कलह को दूर करने के लिये सदस्यों में सहयोग बढाना।
- अवांछित प्रभावों और दशाओं से समुदाय की रक्षा करना।
- अन्य विभिन्न समुदायों एवं संस्थाओं के साथ सहयोग स्थापित करके आवश्यकताओं की पूर्ति एवं समस्याओं का समाधान करना।
- समुदाय में एकता स्थापित करना।
- सामुदायिक कार्य के लिए समुदाय में नेतृत्व का विकास करना।
इस प्रकार सामुदायिक संगठन का उद्देश्य न केवल एक निश्चित भू-भाग के एक या कुछ व्यक्तियों की समस्याओं एवं साधनों में समता स्थापित करना है। बल्कि समुदाय के सम्पूर्ण सदस्यों की आवश्यकताओं एवं समुदाय परिधि के अंदर या बाहर सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा उपलब्ध विभिन्न साधनों के बीच संबंध स्थापन के लिए सामुदायिक सदस्यों को उनकी आवश्यकताओं एवं समस्याओं के अनुसार व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से शिक्षित-प्रशिक्षित कर उनकी योग्यताओं का विकास करना है। विभिन्न जाति, वर्ग एवं सम्प्रदाय के लोगों में एक दूसरे के अधिकारों एवं कर्तव्यों के महत्व को विकसित करना है, जिससे प्रजातांत्रि कत्रि रूप से सामुदायिक कल्याण का अधिकाधिक विकास किया जा सके।
सामुदायिक संगठन कार्य के सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्य के कुछ प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित है-
1. स्वीकृति का सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्य का यह प्रथम एवं महत्वपूर्ण सिद्धान्त हैं जिसका ज्ञान कार्यकर्ता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। कार्यकर्ता को चाहिए कि (1) वह समुदाय को उसी रूप में स्वीकार करे जिस रूप में समुदाय दिखाई देता है। (2) अपने को समुदाय से स्वीकार कराये अर्थात् कार्यकर्ता को अपने कार्य के प्राथमिक चरण में सामुदायिक सदस्यों द्वारा बतायी गई समस्या को ही नहीं बल्कि समुदाय की रूढ़ियों, परम्पराओं, सभ्यता-संस्कृति एवं सामुदायिक मूल्यों को गहराई से समझना चाहिए और सराहना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक समुदाय की न केवल अपनी अलग संस्कृति होती है वरन् उस समुदाय के लोगों के लिए वह अन्य समुदाय की संस्कृति एवं सभ्यता से उत्तम होती है। इसलिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को समुदाय विशेष के प्रत्येक कार्य व्यवहार को भावनात्मक धरातल पर देखना चाहिए। इसके साथ-साथ कार्यकर्ता को अपने विचार-व्यवहार क्रिया-प्रतिक्रिया को समुदाय के व्यवहार से जोड़ते हुए दोनों में तालमेल स्थापित करना चाहिए और समुदाय के साथ अपने आपको इस प्रकार जोड़ना चाहिए ताकि समुदाय उसे अपना ले।
2. मूलभूत आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के ज्ञान का सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय में सदस्यों के साथ एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। इसलिए समुदाय को स्वीकार करने एवं अपने को समुदाय द्वारा स्वीकृत करने के पश्चात् उसे समुदाय की उन तमाम आवश्यकताओं का पता लगाना चाहिए जो समुदाय के सदस्यों की नजर में महत्वपूर्ण हों।
कार्यकर्ता को कभी भी अपने समुदाय की आवश्यकता या जिस समुदाय में वह कार्य कर चुका है कि आवश्यकता को प्रत्येक समुदाय की आवश्यकता नहीं मानना चाहिए। बल्कि जिस समुदाय में वह अब कार्य कर रहा है उसके द्वारा महससू की गयी आवश्यकताओं का पता लगाना चाहिए। हो सकता है कि एक समुदाय के लिए सार्वजनिक टेलीफोन उसकी आवश्यकता हो और दूसरे के लिए उच्च शिक्षण संस्था सामाजिक कार्यकर्ता का मुख्य उद्देश्य सामुदायिक आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों में तालमेल स्थापित करना है। इसलिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को स्वयं समुदाय में एवं समुदाय के आस-पास कार्यरत सरकारी एवं गैर-सरकारी, स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा उपलब्ध विभिन्न साधनों का पता लगाना चाहिए तथा सामुदायिक कल्याण के विकास के लिए उन्हें संचालित करना चाहिए।
3. व्यक्तिकरण का सिद्धान्त
एक बड़े सामुदायिक भू-भाग में विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक स्तर के लोग निवास करते हैं। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं के कारण इनकी समस्यायें भिन्न-भिन्न होती हैं। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ताओं को समस्यागत विशेषताओं की भिन्नता को स्वीकार करते हुए उनमें व्याप्त विभिन्न समस्याओं का अध्ययन करना चाहिए तथा सभी की समस्याओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को चाहिए कि वह सभी समूहों एवं उपसमूहों के सदस्यों से मिलकर उनकी समस्याओं का अध्ययन करे। विभिन्न एकत्रित समस्याओं के अध्ययनोपरान्त सामान्य एवं सार्वजनिक लाभ प्रदान करने वाली समस्याओं को प्राथमिकता द।इसके साथ-साथ किसी वर्ग विशेष की अपनी सामाजिक - आर्थिक स्थिति के कारण अपनी समस्याएं हो सकती हैं जो अन्य वर्गों से भिन्न हो सकती हैं। इसलिए कार्यकर्ता को वर्ग विशेष की विशेष समस्याओं का भी पता लगाना चाहिए।
4. आत्म-संकल्प का सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक सदस्यों के साथ कार्य कर उनकी योग्यता एवं ज्ञान का विकास उन्हें आत्म निर्भर बनाने में करता है। उसे सामुदायिक संगठन कार्य के प्रत्येक चरण में सदस्यों की शक्तियों एवं योग्यताओं का विकास आवश्यक दिशा में करते रहना चाहिए। उसे सदस्यों में अपनी समस्याओं एवं आवश्यकताओं को पहचानने, उपलब्ध विभिन्न साधनों का पता लगाने तथा दोनों के बीच आवश्यक तालमेल स्थापित करने के लिए आवश्यक निर्णय लेने का पूरा-पूरा खुला अवसर प्रदान करना चाहिए। कार्यकर्ता को आवश्यकतानुसार आवश्यक ज्ञान से उनका ज्ञानवर्द्धन तो अवश्य करना चाहिए। लेकिन उन्हें निर्णय लेने की पूर्ण स्वतन्त्रता देनी चाहिए। इससे वे अपने को जिम्मेदार महसूस करेंगे और अपने द्वारा लिये गये निर्णय के कार्यान्वयन एवं उसके उद्देश्य की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील रहेंगे।
5. सीमाओं के बीच स्वतन्त्रता का सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को समुदाय में लिये जा रहे प्रत्येक निर्णय में सदस्यों की इस प्रकार सहायता करनी चाहिए जिससे वे ऐसे निर्णय ले सकें जिसमें समुदाय के अधिकाधिक जरूरतमन्द लोगों का कल्याण हो सके। यदि कार्यकर्ता को लगे कि सामुदायिक सदस्य ऐसा निर्णय लेने जा रहे हैं जिससे समुदाय के किसी विशेष पक्ष या वर्ग के लोगों को ही लाभ होगा तो उस समय कार्यकर्ता को सामुदायिक शक्तियों को हाथ में रखने वाले प्रमुख सदस्यों के सहयोग एवं अपने चातुर्य से इसे रोकना चाहिए। यह समझदार कार्यकर्ता समुदाय में लिये जा रहे निर्णयों को आवश्यक मार्गदर्शन देता है, समुदाय अधिकाधिक लोगों के लिए उसे लाभकर बनाने का प्रयत्न करता है, सदस्यों का यथासम्भव ज्ञानवर्द्धन करता है तथा समुदाय की समस्याओं एवं आवश्यकताओं के संबंध में लिए जा रहे निर्णयों में आवश्यक परिवर्तन एवं नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास करता है।
6. नियन्त्रित संवेगात्मक सम्बन्ध का सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सदस्यों की समस्याओं को सूक्ष्मता से ग्रहण करना चाहिए और अपने व्यावसायिक ज्ञान के आधार पर उनका प्रत्युत्तर देना चाहिए। समुदाय की समस्याओं, परिस्थितियों की सत्यता महसूस करते हुए उसे अपने प्रभावपूर्ण एवं कुशल ज्ञान से प्रभावपूर्ण एवं आवश्यक निर्णय लेना चाहिए। कार्यकर्ता को सामुदायिक सदस्यों की समस्याओं को सुनने में अपने ध्यान, ज्ञान, विचार एवं एकाग्रता को सदस्यों के ध्यान, ज्ञान, विचार एवं एकाग्रता के साथ जोड़ना चाहिये, लेकिन चिंतन एवं निर्णय के समय उसको अपने व्यावसायिक पक्षों को ध्यान में रखकर समस्या उन्मूलक प्रभावपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।
7. लचीले कार्यात्मक संगठन का सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को चाहिए कि वह सभी सदस्यों को इकट्ठा कर एक ऐसे प्रभावपूर्ण संगठन का निर्माण कराये जिसमें समुदाय के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले, विभिन्न जाति, धर्म एवं सामाजिक-आर्थिक वर्ग वाले सदस्य शामिल हों। कार्यकर्ता को इस प्रकार के संगठन के निर्माण में इसके आकार पर भी ध्यान देना चाहिए। आकार ऐसा होना चाहिए जो न ही अधिक बड़ा हो और न ही अधिक छोटा। संगठन के नेता का चुनाव कराने में भी सदस्यों की इस प्रकार सहायता करनी चाहिए जिससे वे ऐसे नेता का चुनाव कर सकें जो संगठन की जिम्मेदारी निभाने, समुदाय की आवश्यकताओं एवं समस्याओं को पहचानने तथा समुदाय की स्वीकृति हासिल करने में निपुण हो साथ ही वह ऐसा भी हो जो विरोधी समूहों एवं उपसूहों के तनावों को प्रभावकारी ढंग से रोक सके।
हर संगठन को एक व्यवस्थित नियम में बांधने की आवश्यकता होती है जिससे संगठन के जिम्मेदार चयनित कार्यकर्ता कुछ समय तक कार्य करने के पश्चात् अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो सकें। संगठन के कर्मचारियों में संगठन के कार्यों का पूरा बंटवारा होना चाहिए। कार्यों के कार्यान्वयन तथा जिम्मेदार कर्मचारियों की जिम्मेदारियों को कम करने के लिए कुछ समितियों एवं उपसमितियों का निर्माण किया जाना चाहिए।
8. उद्देश्यपूर्ण सम्बन्ध का सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय में एक व्यावसायिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करता है। इसलिए उसे अपने व्यावसायिक उद्देश्य के विषय में सचेत रहना चाहिए। उसे सदस्यों में भी अपने उद्देश्य के विषय में पूर्ण चेतना पैदा करनी चाहिए। उद्देश्यपूर्ण सम्बन्धों की मजबूती के लिए आवश्यक है कि वह समुदाय के उन शक्तिशाली संगठनों, समूह एवं उपसमूह के सदस्यों से भी अपना प्रगाढ़ सम्बन्ध बनाये जिनसे किसी न किसी रूप से समुदाय प्रभावित हो सके।
अपने व्यावसायिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि कार्यकर्ता अपने कार्य में नियमितता बरते। इस नियमितता को तब तक बनाये रखना चाहिए जब तक उसे विश्वास न हो जाये कि सामुदायिक सदस्यों में अब अपनी समस्याओं व आवश्यकताओं को पहचानने और आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच तालमेल स्थापित करने की आत्मशक्ति का विकास हो गया।
9. प्रगतिशील कार्यक्रम सम्बन्धी अनुभव का सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता की कार्यक्रम के निर्धारण के समय उसके आधार बिन्दुओं को स्पष्ट करते हुए कार्यक्रम विकास की प्रक्रिया में सदस्यों की अभिरूचियों, आवश्यकताओं ओर योग्यताओं का पता लगाना चाहिए। सामुदायिक कार्यक्रम बाहरी संस्था द्वारा निश्चित नहीं होना चाहिए। कार्यकर्ता को उपलब्ध समुदाय कल्याण के स्तर को देखकर विभिन्न प्रकार के आवश्यक कार्यक्रमों की तरफ संकेत करना चाहिए। आरम्भ में संचालित कार्यक्रम समुदाय की योग्यता एवं क्षमता के अनुसार छोटे, आसान और अल्पकालीन होने चाहिए। इस प्रकार आसान कार्यक्रमों से आरम्भ कर जटिल एवं उपयोगी कार्यक्रमों को बनाने में सदस्यों की मदद करनी चाहिए। कार्यकर्ता को सदस्यों की सामूहिक योजना बनाने, कार्यक्रम तैयार करने, उनका क्रियान्वयन करने, संचालित कार्यक्रमों के मूल्यांकन करने एवं मूल्यांकन के आधार पर कार्यक्रमों में सुधार करने में सदस्यों का मार्गदर्शन करना चाहिए।
10. जन सहभागिता का सिद्धान्त
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सामुदायिक संगठन कार्य सामुदायिक सदस्यों के लिए, सदस्यों के द्वारा और सदस्यों के साथ किया जाना है। किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिए सदस्यों की सहभागिता अत्यन्त आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्यकर्ता को न केवल कार्यक्रम की योजना तैयार करने और उसके कार्यान्वयन में ही सदस्यों की सहभागिता पर बल देना चाहिए बल्कि समुदाय के अन्दर एवं आस-पास उपलब्ध साधनों को पहचानने और प्रत्येक चरण पर लिए जाने वाले निर्णयों में भी उनकी सहभागिता को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसमें ऐसे सभी लोगों को भी शामिल करना चाहिए जो औपचारिक रूप से समुदाय के कल्याण के लिए कार्यरत हों।
सामुदायिक कार्यकर्ताओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सामुदायिक सदस्य सामुदायिक कल्याण योजनाओं एवं कार्यक्रमों को किसी बाहरी संस्था या संगठन का कार्यक्रम न समझ बैठें। यदि सामुदायिक सदस्य प्रत्येक निर्णय में सहभागी होंगे तो वे इसे अपना निर्णय एवं अपना कार्यक्रम मानकर इसे सफल बनाने में अपनी जिम्मेदारी महसूस करेंगे।
11. साधन संचालन का सिद्धान्त
सामुदायिक कार्यकर्ता की सफलता के लिए आवश्यक है कि समुदाय के अन्दर एवं आसपास उपलब्ध विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी साधनों के अध्ययनोपरान्त इस बात का निर्णय लें कि समुदाय की आवश्यकता की प्राथमिकता के अनुसार वर्तमान परिस्थितियों में पहले किस साधन को, किसके द्वारा और किस प्रकार संचालित किया जाये। कार्यकर्ता को विभिन्न उपलब्ध साधनों के संचालित कराते समय, समुदाय के विभिन्न संगठनों में आवश्यक समन्वय स्थापित करते हुए साधन संचालन में उनकी शक्तियों को प्रयोग में लाना चाहिए। ऐसा करने में आने वाली समस्याओं से बचने तथा कार्यक्रम को बाधाहीन बनाने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहना चाहिए।
12. मूल्यांकन का सिद्धान्त
कार्यक्रम आयोजन एवं संचालन के पश्चात् कार्यकर्ता को कार्यक्रम में रही कमियों एवं त्रुटियों का मूल्यांकन करना चाहिए। मूल्यांकन न केवल पिछले कार्यक्रमों में आयी हुई त्रुटियों को जानने के लिए उपयोगी है बल्कि नए कार्यक्रमों के आयोजन एवं कार्यान्वयन के लिए भी। मूल्यांकन से प्राप्त ज्ञान का उचित सदुपयोग नियोजित की जाने वाली कार्यक्रमों में करने से कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं की सम्भावनायें हट जाती है।
सारांश
प्रस्तुत लेख के अन्तर्गत समुदाय के मूल तत्वों, अर्थों, परिभाषाओं तथा अवधारणा को समझाने का प्रयास किया गया है। सामुदायिक संगठन के रूप में समाज कार्य की प्रणाली को स्पष्ट किया गया है जिसमें सामुदायिक संगठन की अवधारणा, और उसकी विशेषताओं का भी वर्णन किया गया है।