विज्ञापन के प्रकार | vigyapan ke prakar

विज्ञापन के प्रकार

विज्ञापन विपणन संचार का एक प्रमुख साधन है। यह लोगों को सूचना देने का काम करता है। विज्ञापित वस्तु या सेवा आदि की सकारात्मक छवि बनाता है। साथ ही विज्ञापित वस्तु की ग्राह्यता बढाने हेतू उपभोक्ताओं को मनाता व रिझाता है। जाहिर है कि विज्ञापन एक बहुआयामी विधा है। साथ ही यह एक बहुउद्देशीय विधा है। बहुत सी वस्तु या सेवा के संवर्धन हेतू विज्ञापन का उपयोग किया जाता है। विज्ञापन अनेक प्रकार के माध्यमों का प्रयोग करता है।
इन्हीं कारणोंवश बहुत से प्रकार के विज्ञापन भी प्रचलन में हैं।
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इस लेख में हम विज्ञापन का परिचय प्राप्त करने के लिए उसके विभिन्न प्रकारों का अध्ययन करेंगे। विज्ञापन की कुछ निश्चित प्रकारों को विस्तार से जानेंगे।

उद्देश्य

प्रारम्भिक दौर में विज्ञापन सरल होते थे। विज्ञापक आमतौर पर दुकानदार होते थे या कोई निश्चित सेवा उपलब्ध कराने वाले। उनका व्यवसाय क्षेत्र सीमित होता था तथा उपभोक्ता वर्ग भी सीमित ही होता था। प्रारम्भिक दौर में विज्ञापक अपनी दुकानों के सामने साइन बोर्ड का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते थे। इसके अलावा मण्डी व मेन चौराहों पर मुनादी द्वारा उपलब्ध वस्तु व सेवाओं के बारे में सम्भावित उपभोक्ताओं तक सूचना पहुंचाने का कार्य किया जाता था। उस दौर में विज्ञापन सूचनाप्रधान होते थे।
समय बीतने के साथ विज्ञापनों में बहुत से परिवर्तन आए हैं। वस्तु व वस्तु सेवा आदि की बहुलता, माध्यमों की बहुलता, प्रतिस्पर्धा में वृद्धि, व्यवसाय के क्षेत्र की बढती जटिलता तथा उपभोक्ताओं की बदलती आशाएं व बढती माँगों के चलते विज्ञापन प्रक्रिया में भी जटिलता आई है। आज विज्ञापन सर्वव्यापी होने के साथ-साथ अतिशक्तिशाली संवार साधन के रूप में सीपित हो चुका है। विज्ञापन के क्षेत्र में अनुनयन का पहलू में अतिशय वृद्धि हुई है।
इस लेख में हम विज्ञापन के विभिन्न प्रकारों के बारे में चर्चा करेंगे।
इस लेख के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
  • विज्ञापन के वर्गीकरण से परिचित होना।
  • लक्षित उपभोक्ता के अनुसार विज्ञापन के वर्गीकरण को जानना।
  • अपेक्षित भौगोलिक पहुंच के अनुसार विज्ञापन के वर्गीकरण को जानना।
  • प्रयुक्त माध्यमों के अनुसार विज्ञापन के वर्गीकरण से परिचित होना।
  • उद्देश्य के अनुसार विज्ञापन के वर्गीकरण के बारे में जानना।
  • उपभोक्ता विज्ञापन को जानना।
  • निगमित विज्ञापन के बारे में जानकारी अर्जित करना।
  • औद्योगिक विज्ञापन को पहचानना।
  • सामाजिक विज्ञापन के विषय में जानकारी प्राप्त करना।

परिचय

वैसे तो विज्ञापन को परिभाषित करने के अनेक प्रयास किए गए। विज्ञापन को वर्णित करना आसान है किन्तु विज्ञापन को परिभाषित करना प्रायः कठिन प्रतीत होता है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि विज्ञापन अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग कार्य करता है। एक विधा के रूप में विज्ञापन के विकास में बहुत से अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों का योगदान रहा है। इन सब कारणों के चलते विज्ञापन से जुड़े भिन्न-भिन्न व्यक्ति इसे भिन्न-भिन्न तरीके से समझते हैं। उपभोक्ताओं के लिए यह बाजार में उपलब्ध वस्तु, सेवा आदि के बारे में सूचना प्राप्त करने का प्रमुख साधन है। विज्ञापकों के लिए यह अपनी वस्तु, सेवा आदि के संवर्धन का एक प्रभावी साधन है। जनमाध्यमों के लिए यह कमाई का प्रमुख साधन है।
  • जे. वॉल्टर थॉमसन विज्ञापन संस्था के पूर्व प्रमुख जेरेनी बुलमोर ने विज्ञापन की निम्नलिखित परिभाषा दी थी
विज्ञापन लक्षित उपभोक्ताओं को सूचित करने, मनाने व रिझाने हेतू भुगतान के साथ किया गया संचार है।
विज्ञापन गुरू डेविड बर्नस्टेन ने विज्ञापन को कुछ इस तरीके से परिभाषित किया है
विज्ञापन लक्षित उपभोक्ताओं को विज्ञापित वस्तु को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतू किया गया संचार है।
उपरोक्त परिभाषाएं विज्ञापन से संबंधित सभी पहलूओं को उजागर नहीं करती। वर्गीकृत विज्ञापनों में अनुनयन का पहलू नहीं शामिल होता। वित्तिय विज्ञापनों में संस्था की वित्तियों परिणामों के संदर्भ में सूचना मात्र होती है। छवि निर्माण हेतू किए गए विज्ञापनों में सूचनाएं नहीं होती। कुछ विज्ञापन जहाँ तात्कालिक बिक्रि के लक्ष्य से बनाए जाते हैं वहीं ज्यादातर विज्ञापन सॉट सेल प्रकार के होते हैं। ऐसे विज्ञापन विज्ञापित वस्तु को उपभोक्ताओं के दिलो-दिमाग में स्थापित करते हुए धीरे-धीरे ग्राह्यता की स्थिति बनाने का कार्य करते हैं।
विज्ञापन के बारे में आम धारणा यह है कि यह बिक्रि वृद्धि का प्रमुख साधन है। किन्तु हम पहले अध्याय में भी इस विषय में चर्चा कर चुके हैं कि विज्ञापन बिकि वृद्धि की दिशा में एक मात्र कारक नहीं होता। विज्ञापन मूल रूप से संचार है। इस संदर्भ में विज्ञापन के प्रभाव को बिक्रि के मापदंड में मापना सही नहीं है। इस संदर्भ में एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि विज्ञापन के परिणाम तात्कालिक नहीं होते तथा विज्ञापन के प्रभाव को सांख्यिकी या आँकडों के संदर्भ में मापा नहीं जा सकता।
इस संदर्भ में प्रमुख बात यह है कि विज्ञापन बहुआयामी व बहुउद्देश्यीय है। अलग-अलग स्थितियों में विज्ञापन का प्रयोग भिन्न-भिन्न उद्देश्यो की पूर्ति हेतू किया जाता है। इस अध्याय में विज्ञापन के विभिन्न प्रकारों के बारे में चर्चा करेंगे।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि विज्ञापन व्यवसाय का एक अभिन्न अंग बन चुका है। विश्व के सभी देशों में विश्व के सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में विज्ञापन प्रमुख भूमिका निभाता है। अर्थव्यवस्था या समाज के सभी क्षेत्रों में विज्ञापन हावी है। हमारे कई प्रकार के निर्णय विज्ञापन से प्रभावित होकर हम वस्तुएं खरीदते हैं व सेवाएं अपनाते हैं। विज्ञापन के कारण हम टेलिविजन पर निश्चित प्रकार के कार्यक्रम देखते हैं व अलग-अलग स्थानों पर घूमने जाते हैं। विज्ञापन से ही हमें नई नौकरियों के बारे में पता चलता है और विज्ञापन ही कईयों को जीवन साथी से मिलाता है।
भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्तु सेवाओं के संदर्भ में संवर्धनी संदेश लिए अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करने वाले विभिन्न प्रकार के विज्ञापनों के संदर्भ में चर्चा करते हुए इस लेख में विषय वस्तु की प्रस्तुति इस प्रकार से होगी-

विज्ञापन के प्रकार

  • विज्ञापन के वर्गीकरण
  • लक्षित उपभोक्ता के अनुसार विज्ञापन का वर्गीकरण अपेक्षित
  • भौगोलिक पहुंच के अनुसार विज्ञापन का वर्गीकरण
  • प्रयुक्त माध्यमों के अनुसार विज्ञापन का वर्गीकरण
  • उद्देश्य के अनुसार विज्ञापन का वर्गीकरण
  • उपभोक्ता विज्ञापन को जानना।
  • निगमित विज्ञापन
  • औद्योगिक विज्ञापन
  • सामाजिक विज्ञापन

विज्ञापन का वर्गीकरण

आज बाजार में अनेक प्रकार के विज्ञापक हैं। ये विज्ञापक विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में बसे व अनेक वर्गों में बंटे उपभोक्ताओं के पास विज्ञापन के जरिए अपना संदेश पहुंचाते हैं। इन विज्ञापकों के विज्ञापन संबंधित अनेक लक्ष्य होते हैं। वे विज्ञापन हेतू विभिन्न माध्यमों का प्रयोग करते हैं।
वस्तुतः विज्ञापन के कई प्रकार होते हैं। विज्ञापनों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है-
  • लक्षित उपभोक्ता वर्ग के आधार पर
  • भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर
  • प्रयुक्त माध्यम के आधार पर
  • विज्ञापन के उद्देश्य के आधार पर

लक्षित उपभोक्ता वर्ग के आधार पर विज्ञापनों का वर्गीकरण
विज्ञापन प्रायः एक निश्चित वर्ग के लिए किया जाता है। यह वर्ग विज्ञापन की भाषा में लक्षित उपभोक्ता वर्ग के नाम से जाना जाता है। ऐसा बहुत कम होता है कि विज्ञापन कई सारे वर्गों के लिए बनाया जाता है। यही कारण है कि कई विज्ञापनों के संदर्भ में हमें लगता है कि यह हमारे लिए नहीं बनाया गया है।
विज्ञापन के क्षेत्र में उपभोक्ताओं के दो प्रमुख लक्षित वर्ग होते हैं: उपभोक्ता वर्ग व व्यवसायिक वर्ग। इसी आधार पर विज्ञापन के दो प्रमुख प्रकार हैं।

उपभोक्ता विज्ञापन

समाचार पत्र, पत्रिका, रेडियो, टेलिविजन आदि पर दिखाए जाने वाले अधिकतर विज्ञापन आम उपभोक्ताओं के लिए होते हैं। यह उपभोक्ता विज्ञापित वस्तुओं को खुद या किसी और के द्वारा व्यवहार हेतू खरीदते हैं। इस प्रकार के विज्ञापन करने वालों में निर्माता, विपणक, डीलरों या प्राधिकृत व्यवसायी व फुटकर विक्रेता इस प्रकार के विज्ञापनों का सहारा लेते हैं।
उपभोक्ता विज्ञापन का प्रयोग पारिवारिक उपभोग की वस्तुओं के अतिरिक्त आम उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध सेवाओं व विचारों के लिए भी किया जाता है।

व्यवसायिक विज्ञापन

जहाँ ज्यादातर विज्ञापन आम उपभोक्ता के लिए किया जाता है वहीं कई वस्तु व सेवाएं व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए होती हैं। इनमें मशीनें या कलपुर्जे तथा कई प्रकार की सेवाएं शामिल हैं। इस प्रकार की वस्तु व सेवाओं के विज्ञापनों के लिए आम जनमाध्यमों का प्रयोग नहीं किया जाता। इस प्रकार की वस्तु आदि के लिए स्वतन्त्र व्यापारिक पत्रिकाएं या जर्नलों का प्रयोग किया जाता है।
कभी-कभी इस प्रकार की वस्तुओं के विज्ञापन हेतू डायरेक्ट मेल प्रणाली का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस श्रेणी की वस्तु सेवाओं को प्रदर्शनी या व्यापारिक मेलों में भी प्रचारित प्रसारित किया जाता है। प्रायः आम जनता इस प्रकार के विज्ञापनों से अपरिचित ही रहती है।
व्यवसायिक विज्ञापन तीन प्रकार के होते हैं-
  1. औद्योगिक विज्ञापन
  2. व्यापार श्रृंखला से संबंधित विज्ञापन
  3. व्यवसायिक या प्रोफेशनल विज्ञापन

औद्योगिक विज्ञापन

इस श्रेणी के विज्ञापन का प्रयोग वस्तुओं के निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली मशीन व कलपुर्जा आदि औद्योगिक वस्तु व सेवाओं के लिए किया जाता है। औद्योगिक वस्तुओं में मशीन व कलपुर्जो के अलावा कच्चा माल, अर्धनिर्मित वस्तुओं के साथ-साथ कम्प्युटर, मेज-कुर्सी, टाइपराइटर आदि वस्तु भी शामिल हैं। औद्योगिक सेवाओं में प्रमुख हैः एकाउन्टेन्सी या लेखा विधि संबंधित, मेन्टेनैन्स या रख-रखाव, व इन्श्योरेन्स या जीवन बीमा आदि शामिल हैं। इस प्रकार की वस्तु व सेवाओं का विज्ञापन हेतू प्रायः विभिन्न व्यवसायिक क्षेत्रों से सम्बन्धित पत्रिकाएं व जर्नल आदि का इस्तेमाल किया जाता है।

व्यापार श्रृंखला से संबंधित विज्ञापन

टेड या व्यापार सम्बंधित श्रृंखला में प्राधिकृत व्यापारी, थोक व्यापारी, थोक विक्रेता, फुटकर विक्रेता शामिल हैं। इस श्रृंखला के जरिए निर्माता व विपणक उपभोक्ताओं तक सामान पहुंचाते हैं। इस पूरी श्रृंखला को अधिक से अधिक माल रखने व बिक्रि करने हेतू प्रोत्साहित करने के लिए इस श्रेणी के विज्ञापनों का इस्तेमाल किया जाता है।

व्यवसायिक व प्रोफेशनल विज्ञापन

विशेषकर डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट व शिक्षक आदि के द्वारा उपयोग में आने वाली वस्तु व सेवाओं के विज्ञापन को व्यवसायिक विज्ञापन कहा जाता है। व्यवसायिक विज्ञापन का प्रमुख लक्ष्य होता हैः निश्चित क्षेत्र के व्यवसायिक व्यक्तियों को विज्ञापित वस्तु या सेवा खरीदकर अपने कार्य में इस्तेमाल हेतू प्रोत्साहित करना। वकीलों के लिए कानून संबंधी पुस्तकें, डॉक्टरों के लिए स्थेतोस्कोप जैसे उपकरण आदि ऐसी वस्तुओं के उदाहरण हैं।
व्यवसायिक विज्ञापन का दूसरा उद्देश्य हैः विज्ञापित वस्तुओं के इस्तेमाल हेतू दूसरों को सलाह देना। डॉक्टरों द्वारा रोगियों को विभिन्न दवा आदि की सलाह तथा वास्तुकार द्वारा निश्चित प्रकार के सीमेंट व अन्य वस्तुओं से संबंधित सलाह या निर्देश देना इसके उदाहरण हैं।
व्यवसायिक विज्ञापन के माध्यम से निश्चित क्षेत्रों से जुड़े व्यवसायियों को विज्ञापित वस्तु इस्तेमाल करने हेतू प्रोत्साहित किया जाता है।

भौगोलिक पहुंच के आधार पर विज्ञापन का वर्गीकरण
भौगोलिक पहुंच या लक्षित भौगोलिक पहुंच के आधार पर विज्ञापन को चार वर्गों में बांटा जा सकता है-
  • स्थानीय विज्ञापन
  • क्षेत्रीय विज्ञापन
  • राष्ट्रीय विज्ञापन
  • अंतराष्ट्रीय विज्ञापन
छोटे व्यापारी या विपणकों का व्यवसाय स्थानीय, क्षेत्रीय या राज्य स्तर तक सीमित होता है। इस प्रकार के विज्ञापक अपने विज्ञापन हेतू स्थानीय या क्षेत्रीय माध्यमों का प्रयोग करते हैं। ऐसे विज्ञापनों में प्रायः स्थानीय भाषा का प्रयोग किया जाता है। फुटकर विक्रेता भी इस प्रकार के विज्ञापनों का प्रयोग करते हैं।

कुछ व्यवसायिक संस्थाएं प्रारम्भ में क्षेत्रीय स्तर पर विज्ञापन शुरू करते हुए धीरे-धीरे अपना क्षेत्र को बढाते हैं। निरमा वाशिंग पाउडर ने इसी शैली को अपनाया था। गुजरात के निश्चित क्षेत्रों में विज्ञापन करने के उपरान्त धीरे-धीरे व्यवसायिक क्षेत्र में विस्तार लाया गया।

पूरे देश में व्यवसाय करने वाले संस्थान राष्ट्रिय विज्ञापन करते हैं। ऐसे विज्ञापक राष्ट्रिय पहुंच वाले माध्यमों का इस्तेमाल करते हैं। भारत में राष्ट्रिय विज्ञापन अंग्रेजी या हिन्दी भाषाओं में किया जाता है तथा इनके लिए राष्ट्रिय स्तर के हिन्दी व अंग्रेजी पत्र, पत्रिकाएं तथा टेलिविजन चैनलों का इस्तेमाल किया जाता है।

हिन्दुस्तार लीवर, टाटा, गोदरेज, एयरटेल जैसी बडी व्यवसायिक संस्थाएं हर वर्ष राष्ट्रिय विज्ञापन हेतू करोडों रुपए खर्च करती हैं। इनमें से कुछ संस्थाएं निश्चित क्षेत्रों में अपनी पहुंच बढाने हेतू क्षेत्रीय विज्ञापन का भी प्रयोग करते हैं।
पिछले कुछ दशकों में विश्व में आए राजनीतिक परिवर्तनों के कारण कई प्रकार के व्यवसायिक बदलाव भी आए हैं। इन्हीं बदलावों के चलते हजारों की संख्या में बहुराष्ट्रिय संस्थाएं उभरी हैं। विश्व के अनेक देशों में पनपते खुले व्यवसायिक माहौल व व्यापारिक अवरोधों में कमी आने के कारण ये बहुराष्ट्रिय संस्थाएं अपना व्यवसाय अनेक देशों में फैलाने में सफल हुई हैं।

कोका कोला व पेप्सी, मैकडॉनाल्ड व पीजा हट से लेकर सोनी व आई. बी. एम. जैसे संस्थाओं का व्यवसाय सैंकडों देशों में फैला हुआ है। ये संस्थाएं अन्तराष्ट्रीय विज्ञापन का सहारा लेती हैं। बी. बी. सी., सी. एन. एन., नेशनल ज्यॉग्रॉफी, डिस्कवरी जैसे टेलिविजन चैनल, टाइम, न्यूज वीक व रीडर्स डाइजेस्ट जैसी पत्रिकाओं का इस्तेमाल राष्ट्रिय विज्ञापन हेतू किया जाता है। कभी-कभी यह विज्ञापक अलग-अलग देशों के लिए अलग-अलग विज्ञापन बनाते हैं।

अन्तराष्ट्रीय विज्ञापन को सहज व सुगम करने के लिए बहुत-सी बहुराष्ट्रिय विज्ञापन संस्थाओं का भी उद्गम हुआ है। यह अन्तराष्ट्रीय विज्ञापन संस्थाएं विभिन्न देशों में राष्ट्रीय  स्तर की विज्ञापन संस्थाओं के साथ-साथ तालमेल के जरिए अपनी पहुंच व क्षमता बढाने का कार्य करते हैं।

प्रयुक्त माध्यमों के अनुसार विज्ञापन का वर्गीकरण
अपने लक्षित उपभोक्ता वर्ग तक पहुंचने के लिए विज्ञापक अनेक प्रकार के माध्यमों का प्रयोग करता है। वस्तुतः प्रयुक्त माध्यम के आधार पर विज्ञापन का वर्गीकरण किया जाता है-
  • मुद्रित विज्ञापन समाचार पत्र व पत्रिकाओं के संदर्भ में
  • प्रसारण माध्यम विज्ञापन
  • विडियो विज्ञापन
  • सिनेमा विज्ञापन
  • बाहरी विज्ञापन पोस्टर, होर्डिंग, साईन बोर्ड, बैलून, दीवारीय लेखन, आकाशीय लेखन
  • परिवहन विज्ञापन
  • इन्टरनेट विज्ञापन
इन सब के अलावा विज्ञापन के क्षेत्र में कई प्रकार के प्रयोग भी किए जाते हैं। इन प्रयोगों के तहत पोस्टल एडवर्टाइजिंग या डायरेक्ट मेल एडवर्टाइजिंग का अधिक प्रयोग किया जाता है। साथ ही बिक्रि बिन्दु या क्रय बिन्दु विज्ञापन के तहत भी पोस्टर, लीफलेट, ब्रुशर, डेंगलर, बंटिग या लडियाँ तथा विभिन्न प्रकार की सजावटों का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है। दीयासलाई का पिछला हिस्सा पोस्टकार्ड, अन्तदेशीय पत्र आदि तथा किताबों का आखिरी पृष्ठ का भी विज्ञापन हेतू इस्तेमाल किया जाता है। सूचना प्रौद्योगिकी के आज के इस समय में इन्टरएक्टिव कियोस्क, आईपॉड, मोबाइल फोन आदि साधनों का विज्ञापन माध्यम के रूप में बहुल प्रयोग किया जाने लगा है।

उद्देश्य के अनुसार विज्ञापन का वर्गीकरण
विभिन्न प्रकार की व्यवसायिक व अन्य संस्थाएं भिन्न-भिन्न उद्देश्यों हेतू विज्ञापन का इस्तेमाल करते हैं। विज्ञापक के उददेश्य के आधार पर विज्ञापनों का वर्गीकरण निम्नलिखित श्रेणियों में किया जाता है।
  1. वस्तु व गैर वस्तु विज्ञापन
  2. व्यवसायिक व गैर व्यवसायिक विज्ञापन
  3. क्रिया या एक्शन व जागरूकता विज्ञापन
  4. प्राथमिक माँग व चुनिन्दा माँग बढाने हेतू विज्ञापन
वस्तु व गैर वस्तु विज्ञापन : ज्यादातर विज्ञापनों के जरिए वस्तुओं का संवर्धन किया जाता है। इनमें उपभोक्ता वस्तु व औद्योगिक वस्तु शामिल हैं।
गैर वस्तु विज्ञापन में सेवा-विचार, संस्थाएं, संस्थान, स्थान व घटना आदि का संवर्धन किया जाता है। सेवा विज्ञापन में शिक्षा, मनोरंजन, आतिथ्य सेवाएं, बैंकिंग व बीमा सेवाएं आदि शामिल हैं।
विभिन्न प्रकार की संस्थाएं भी समय-समय पर अपना विज्ञापन कराती हैं। इनमें व्यवसायिक संस्थाएं, सरकारी संस्थाएं, गैर सरकारी संस्थाएं, शिक्षण संस्थाएं, धार्मिक संस्थाएं तथा राजनीतिक संस्थाएं शामिल हैं। इस प्रकार के विज्ञापन को निगमित विज्ञापन या संस्थागत विज्ञापन भी कहा जाता है।
निगमित विज्ञापन का प्रमुख लक्ष्य सद्भावना व सकारात्मक छवि बनाते हुए उपभोक्ताओं द्वारा बेहतर ग्राह्यता हासिल करने का प्रयास किया जाता है। निगमित विज्ञापन प्रायः जनसम्पर्क के तहत किया जाता है। ऐसे विज्ञापनों के माध्यम से किसी निश्चित वस्तु, सेवा आदि के बदले समूची संस्था की ग्राह्यता बढाने हेतू कार्य किया जाता है। निगमित विज्ञापन के जरिए संस्थान प्रत्यक्ष रूप से अपना व अप्रत्यक्ष रूप से अपनी वस्तु, सेवा आदि की ग्राह्यता वृद्धि कराने का प्रयास करते हैं। सामाजिक व कुछ सरकारी संस्थाएं विचारों व सामाजिक मुद्दों को लेकर विज्ञापन करते हैं। कभी-कभी कुछ नीजि संस्थाएं भी सामाजिक मुद्दों को लेकर विज्ञापन बनाती हैं। वहीं राजनीतिक दल अपनी संस्था या उम्मीदवारों के संवर्धन हेतू निगमित विज्ञापन का सहारा लेते हैं।

व्यवसायिक व गैर व्यवसायिक विज्ञापन
व्यवसायिक विज्ञापन प्रायः ग्राह्यता वृद्धि के माध्यम से मुनाफा कमाने के लिए किया जाता है। वहीं गैर व्यवसायिक विज्ञापन प्रायः अपने लक्षित वर्ग में व्यवहारिक बदलाव की इच्छा रखते हैं। ऐसे विज्ञापनों में लक्षित वर्ग में सूचना वृद्धि, जागरूकता व दृष्टिकोण में बदलाव के जरिए सहायता, समर्थन की इच्छा रखते हैं।
जहाँ वस्तु व सेवाओं का विज्ञापन व्यवसासिक विज्ञापन के वर्ग में आते हैं वहीं विचारों का विज्ञापन इस गैर व्यवसायिक विज्ञापन की श्रेणी में आता है।

क्रिया या एक्शन व जागरूकता विज्ञापन
हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि विज्ञापन बहुउद्देशीय होता है।साथ ही अलग-अलग समय पर विज्ञापनों से अपेक्षित प्रतिक्रियाएं भी अलग-अलग होती हैं। कभी विज्ञापन से तुरन्त प्रतिक्रिया की इच्छा रहती है तो कभी विलम्बित प्रतिक्रिया होती है। पहले वर्ग में विज्ञापक उपभोक्ता वर्ग से तात्कालिक व प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया की आशा रखते हैं। इस वर्ग के विज्ञापन को हार्ड सेल विज्ञापन भी कहा जाता है। विज्ञापक अपने विज्ञापनों में कूपन आदि शामिल करते हुए उपभोक्ताओं से प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया की इच्छा रखते हैं।
दूसरी तरफ जागरूकता विज्ञापनों की दीर्घावधि अपेक्षाएं होती हैं। ऐसे विज्ञापन पहले उपभोक्ताओं के पास ठोस व सकारात्मक सूचना पहुंचाते हैं। इसके उपरान्त वे उपभोक्ताओं में जागरूकता फैलाते हैं और अन्त में उपभोक्ताओं में छवि व ग्राह्यता को लेकर सकारात्मक बदलाव की उम्मीद रखते हैं। ऐसे विज्ञापन धीर-धीरे ग्राह्यता को बढाते हुए उपभोक्ताओं को लम्बे समय तक अपने साथ जोडे रखने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार के विज्ञापनों में उपभोक्ताओं द्वारा सकारात्मक प्रतिक्रिया या ग्राह्यता एक विलम्बित प्रतिक्रिया है। इस वर्ग के विज्ञापन को सॉट सेल विज्ञापन भी कहा जाता है।

प्राथमिक माँग व चुनिन्दा माँग बढाने हेतू विज्ञापन
प्रायः सभी विज्ञापन निश्चित ब्रांडों के लिए चुनिन्दा माँग बढाने का कार्य करते हैं। किन्तु कुछ विज्ञापन ब्रांडों के बदले समूचे वस्तु या सेवा वर्ग के लिए माँग बढाने हेतू ही किया जाता है। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय अण्डा समन्वय समिति नेशनल ऐग को-ऑर्डिनेशन कमेटी द्वारा चलाए जाने वाला विज्ञापन “सण्डे हो या मण्डे, रोज खाओ अण्डे" अण्डों की माँग बढाने हेतू गया है। वैसे ही राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड द्वारा चलाए जाने वाले ऑपरेशन लड दूध-दूध-दूध के तहत दूध माँग बढाने हेतू विज्ञापनों का सहारा लिया गया है। इस प्रकार के विज्ञापन किसी प्राथमिक माँग बढाने हेतू प्रयास करते हैं। प्रायः ऐसे विज्ञापन सहकारी संस्थाओं द्वारा किया जाते हैं। ऐसे विज्ञापन किसी निश्चित क्षेत्र से जुडी सामूहिक संस्थाओं द्वारा भी किये जा सकते हैं।

उपभोक्ता विज्ञापन
विज्ञापन आमतौर पर एक निश्चित उपभोक्ता वर्ग के पास संदेश लेकर पहुंचता है। विज्ञापन की भाषा में इसको लक्षित उपभोक्ता वर्ग कहा जाता है। विज्ञापन के क्षेत्र में सबसे सामान्य लक्षित वर्ग उपभोक्ता होता है। उपभोक्ता वस्तु आदि की खरीददारी खुद के इस्तेमाल के लिए ही करता है। ज्यादातर निर्माता व वस्तु, सेवा आदि के विपणक प्रायः प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं के पास पहुंचते हैं। इस श्रेणी में ब्रांडिड खाद्य सामग्री, कपडे, घर के इस्तेमाल में आने वाली चीजें, प्रसाधन सामग्री, आराम हेतू प्रयुक्त सामग्री से लेकर सॉफ्ट ड्रिंक, मनोरंजन व पर्यटन संबंधित आदि वस्तुएं शामिल हैं। उपभोक्ता वस्तु व सेवाओं मे प्रायः बहुलता व विविधता पाई जाती है। इसी कारण इस प्रकार की वस्तुओं में काफी स्पर्धा होती है। बहुलता व विविधता तथा स्पर्धा से उभरने के लिए उपभोक्ता वस्तु सेवाओं के लिए किया गया विज्ञापनों को प्रायः आकर्षक, रोचक व मोहक बनाया जात है। साथ ही इन विज्ञापनों को जनमाध्यमों में प्रकाशित प्रसारित अन्य विज्ञापनों से भी उपर उभर कर आना होता है।

निगमित विज्ञापन
जहाँ वस्तु व सेवाओं के लिए सबसे ज्यादा विज्ञापन किया जाता है वहीं इन वस्तु, सेवाओं के निर्माता व विपणक संस्थाओं का भी विज्ञापन काफी मात्रा में किया जाता है। इस प्रकार के विज्ञापनों को संस्थागत विज्ञापन कहा जाता है। किन्तु इस श्रेणी के विज्ञापन को प्रायः निगमित विज्ञापन कहा जाता है। जैसे हम पहले बात कर चुके हैं कि संस्थागत या निगमित विज्ञापन प्रायः जनसम्पर्क के तहत किया जाता है। ऐसे विज्ञापन के जरिए उपभोक्ताओं को विज्ञापित संस्था के लक्ष्य व मिशन से परिचित कराया जाता है। इसी परिचय के आधार पर संस्थाओं की सुस्पष्ट, निश्चित व सुदृढ छवि बनती है। ऐसी छवियों के बदौलत विज्ञापित संस्था की ग्राह्यता में वृद्धि होती है। अप्रत्यक्ष रूप से संस्था की वस्तु व सेवाओं को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा होता है।
जहाँ दूसरी श्रेणी के विज्ञापन निश्चित उपभोक्ता वर्ग के पास पहुंचता है वहीं निगमित विज्ञापन कई वर्गों के पास पहुंचता है। ऐसे विज्ञापन उपभोक्ताओं के साथ-साथ संस्था के कर्मचारी, निवेशक के साथ-साथ संबंधित सरकारी संस्थाएं व अन्य संस्थाओं के साथ प्रत्यक्ष व निरन्तर तथा द्विपक्षीय संबंध बनाने का प्रयास करते हैं। ऐसे प्रत्यक्ष संबंध से संस्थाओं के लिए संबंधित विभिन्न वर्गों में सद्भावना, नाम व सर्वोपरि विश्वास के भाव पनपते हैं। इससे विज्ञापक संस्था और संबंधित सभी वर्गों में दीर्घकालीन सकारात्मक सम्बन्ध स्थापित होते हैं। इससे संस्थाओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से फायदे होते हैं।

औद्योगिक विज्ञापन
कच्चा माल, मशीने, कलपुर्जे, अर्धनिर्मित वस्तु जैसे औद्योगिक वस्तु तथा कम्प्युटर, टाइपिंग मशीन, लेखाविधि व बीमा आदि औद्योगिक सेवाओं के विज्ञापन को औद्योगिक विज्ञापन कहा जाता है। इस प्रकार के विज्ञापन को कुछ लोग व्यवसायिक विज्ञापन भी कहते हैं। यह वस्तु व सेवाएं आम उपभोक्ताओं के लिए नहीं होती हैं। वस्तुतः ऐसे विज्ञापनों के उपभोक्ता निश्चित व स्वतन्त्र श्रेणी के होते हैं। ऐसे उपभोक्ता इन वस्तु सेवाओं का नीजि उपयोग नहीं करते।
वैसे औद्योगिक वस्तु सेवाओं के संवर्धन हेतू प्रायः पर्शनल सेविंग व सेल्स प्रमोशन का अधिक प्रयोग किया जाता है। किन्तु इन वस्तु सेवाओं का कभी-कभी स्वतन्त्र व्यवसायिक प्रकाशनों व जर्नलों में विज्ञापन भी किया जाता है।

सामाजिक विज्ञापन

वस्तु सेवा व संस्थाओं के साथ-साथ विचारों व सामाजिक मुद्दों का भी अधिक मात्रा में विज्ञापन किया जाने लगा है। इस प्रकार के विज्ञापनों को सामाजिक विज्ञापन कहा जाता है। जाहिर सी बात है कि ऐसे विज्ञापनों के उद्देश्य आर्थिक या मुनाफा कमाना नहीं होता अपितु इन विज्ञापनों का उद्देश्य सामाजिक बदलाव लाना होता है। इस श्रेणी के विज्ञापनों को निर्लाभ या नॉन प्रोफिट विज्ञापन भी कहा जाता है।
ऐसे विज्ञापन प्रायः सरकारी व सामाजिक संस्थानों द्वारा ही किए जाते हैं। कुछ व्यवसायिक संस्थाएं भी अपना सामाजिक उत्तरदायित्व निभाते हुए समय-समय पर चुनिन्दा सामाजिक मुद्दों के साथ जुडते हुए सामाजिक विज्ञापन करती हैं।

सारांश

विज्ञापन उपभोक्ताओं के लिए बाजार में उपलब्ध वस्तु, सेवा आदि के बारे में सूचना प्राप्त करने का प्रमुख साधन है। विज्ञापकों के लिए यह अपनी वस्तु, सेवा आदि के संवर्धन का एक प्रभावी साधन है। जनमाध्यमों के लिए यह कमाई का प्रमुख साधन है।
विज्ञापन लक्षित उपभोक्ताओं को विज्ञापित वस्तु को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतू किया गया संचार है। विज्ञापन लक्षित उपभोक्ताओं को सूचित करने, मनाने व रिझाने हेतू भुगतान के साथ किया गया संचार है।
विश्व के सभी देशों में विश्व के सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में विज्ञापन प्रमुख भूमिका निभाता है। अर्थव्यवस्था या समाज के सभी क्षेत्रों में विज्ञापन हावी है। हमारे कई प्रकार के निर्णय विज्ञापन से प्रभावित होकर हम वस्तुएं खरीदते हैं व सेवाएं अपनाते हैं।
वस्तुतः विज्ञापन के कई प्रकार होते हैं। विज्ञापनों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जाता हैः लक्षित उपभोक्ता वर्ग के आधार पर, भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर, प्रयुक्त माध्यम के आधार पर, विज्ञापन के उद्देश्य के आधार पर विज्ञापन।
उपभोक्ता विज्ञापित वस्तुओं को खुद या किसी और के द्वारा व्यवहार हेतू खरीदते हैं। विज्ञापन करने वालों में निर्माता, विपणक, डीलरों या प्राधिकृत व्यवसायी व फुटकर विक्रेता विज्ञापनों का अपने सामर्थ्य व इच्छानुसार सहारा लेते हैं।
जहाँ वस्तु व सेवाओं के लिए सबसे ज्यादा विज्ञापन किया जाता है वहीं इन वस्तु, सेवाओं के निर्माता व विपणक संस्थाओं का भी विज्ञापन काफी मात्रा में किया जाता है। इस प्रकार के विज्ञापनों को संस्थागत विज्ञापन कहा जाता है। किन्तु इस श्रेणी के विज्ञापन को प्रायः निगमित विज्ञापन कहा जाता है। ऐसे विज्ञापन के जरिए उपभोक्ताओं को विज्ञापित संस्था के लक्ष्य व मिशन से परिचित कराया जाता है। इसी परिचय के आधार पर संस्थाओं की सुस्पष्ट, निश्चित व सुदृढ छवि बनती है। ऐसी छवियों के बदौलत विज्ञापित संस्था की ग्राह्यता में वृद्धि होती है। अप्रत्यक्ष रूप से संस्था की वस्तु व सेवाओं को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा होता है।
ज्यादातर विज्ञापनों के जरिए वस्तुओं का संवर्धन किया जाता है। इनमें उपभोक्ता वस्तु व औद्योगिक वस्तु शामिल हैं। गैर वस्तु विज्ञापन में सेवा-विचार, संस्थाएं, संस्थान, स्थान व घटना आदि का संवर्धन किया जाता है। सेवा विज्ञापन में शिक्षा, मनोरंजन, आतिथ्य सेवाएं, बैंकिंग व बीमा सेवाएं आदि शामिल हैं।
विज्ञापन के क्षेत्र में सबसे सामान्य लक्षित वर्ग उपभोक्ता होता है। उपभोक्ता वस्तु आदि की खरीददारी खुद के इस्तेमाल के लिए ही करता है। ज्यादातर निर्माता व वस्तु, सेवा आदि के विपणक प्रायः प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं के पास पहुंचते हैं।
उपभोक्ता वस्तु व सेवाओं मे प्रायः बहुलता व विविधता पाई जाती है। इसी कारण इस प्रकार की वस्तुओं में काफी स्पर्धा होती है। बहुलता व विविधता तथा स्पर्धा से उभरने के लिए उपभोक्ता वस्तु सेवाओं के लिए किया गया विज्ञापनों को प्रायः आकर्षक, रोचक व मोहक बनाया जाात है।
विज्ञापन उपभोक्ताओं के साथ-साथ संस्था के कर्मचारी, निवेशक के साथ-साथ संबंधित सरकारी संस्थाएं व अन्य संस्थाओं के साथ प्रत्यक्ष व निरन्तर तथा द्विपक्षीय संबंध बनाने का प्रयास करते हैं। ऐसे प्रत्यक्ष संबंध से संस्थाओं के लिए संबंधित विभिन्न वर्गों में सद्भावना, नाम व सर्वोपरि विश्वास के भाव पनपते हैं। इससे विज्ञापक संस्था और संबंधित सभी वर्गों में दीर्घकालीन सकारात्मक सम्बन्ध स्थापित होते हैं। इससे संस्थाओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से फायदे होते हैं।

सूचक शब्द

विज्ञापनः विज्ञापन अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग कार्य करता है। एक विधा के रूप में विज्ञापन के विकास में बहुत से अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों का योगदान रहा है। उपभोक्ताओं के लिए यह बाजार में उपलब्ध वस्तु, सेवा आदि के बारे में सूचना प्राप्त करने का प्रमुख साधन है। विज्ञापकों के लिए यह अपनी वस्तु, सेवा आदि के संवर्धन का एक प्रभावी साधन है। जनमाध्यमों के लिए यह कमाई का प्रमुख साधन है।

उपभोक्ता विज्ञापन
समाचार पत्र, पत्रिका, रेडियो, टेलिविजन आदि पर दिखाए जाने वाले अधिकतर विज्ञापन आम उपभोक्ताओं के लिए होते हैं। यह उपभोक्ता विज्ञापित वस्तुओं को खुद या किसी और के द्वारा व्यवहार हेतू खरीदते हैं। इस प्रकार के विज्ञापन करने वालों में निर्माता, विपणक, डीलरों या प्राधिकृत व्यवसायी व फुटकर विक्रेता इस प्रकार के विज्ञापनों का सहारा लेते हैं।
उपभोक्ता विज्ञापन का प्रयोग पारिवारिक उपभोग की वस्तुओं के अतिरिक्त आम उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध सेवाओं व विचारों के लिए भी किया जाता है।

व्यवसायिक विज्ञापन
जहाँ ज्यादातर विज्ञापन आम उपभोक्ता के लिए किया जाता है वहीं कई वस्तु व सेवाएं व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए होती हैं। इनमें मशीनें या कलपुर्जे तथा कई प्रकार की सेवाएं शामिल हैं। इस प्रकार की वस्तु व सेवाओं के विज्ञापनों के लिए आम जनमाध्यमों का प्रयोग नहीं किया जाता। इस प्रकार की वस्तु आदि के लिए स्वतन्त्र व्यापारिक पत्रिकाएं या जर्नलों का प्रयोग किया जाता है।

औद्योगिक विज्ञापन
इस श्रेणी के विज्ञापन का प्रयोग वस्तुओं के निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली मशीन व कलपुर्जा आदि औद्योगिक वस्तु व सेवाओं के लिए किया जाता है। औद्योगिक सेवाओं में प्रमुख है: एकाउन्टेन्सी या लेखा विधि संबंधित, मेन्टेनन्स या रख-रखाव, व इन्श्योरेन्स या जीवन बीमा आदि शामिल हैं।

प्रोफेशनल विज्ञापन
विशेषकर डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट व शिक्षक आदि के द्वारा उपयोग में आने वाली वस्तु व सेवाओं के विज्ञापन को व्यवसायिक या प्रोफेशनल विज्ञापन कहा जाता है। व्यवसायिक विज्ञापन का प्रमुख लक्ष्य होता है। निश्चित क्षेत्र के व्यवसायिक व्यक्तियों को विज्ञापित वस्तु या सेवा खरीदकर अपने कार्य में इस्तेमाल हेतू प्रोत्साहित करना।

निगमित विज्ञापन
जहाँ वस्तु व सेवाओं के लिए सबसे ज्यादा विज्ञापन किया जाता है वहीं इन वस्तु, सेवाओं के निर्माता व विपणक संस्थाओं का भी विज्ञापन काफी मात्रा में किया जाता है। इस प्रकार के विज्ञापनों को संस्थागत विज्ञापन कहा जाता है। इस श्रेणी के विज्ञापन को प्रायः निगमित विज्ञापन कहा जाता है।

औद्योगिक विज्ञापन
कच्चा माल, मशीने, कलपुर्जे, अर्धनिर्मित वस्तु जैसे औद्योगिक वस्तु तथा कम्प्युटर, टाइपिंग मशीन, लेखाविधि व बीमा आदि औद्योगिक सेवाओं के विज्ञापन को औद्योगिक विज्ञापन कहा जाता है। इस प्रकार के विज्ञापन को कुछ लोग व्यवसायिक विज्ञापन भी कहते हैं।

सामाजिक विज्ञापन
वस्तु सेवा व संस्थाओं के साथ-साथ विचारों व सामाजिक मुद्दों का भी अधिक मात्रा में विज्ञापन किया जाने लगा है। इस प्रकार के विज्ञापनों को सामाजिक विज्ञापन कहा जाता है। ऐसे विज्ञापनों के उद्देश्य आर्थिक या मुनाफा कमाना नहीं होता अपितु इन विज्ञापनों का उद्देश्य सामाजिक बदलाव लाना होता है। इस श्रेणी के विज्ञापनों को निर्लाभ या नॉन प्रोफिट विज्ञापन भी कहा जाता है।

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