रेखा किसे कहते है? परिभाषा, प्रकार और उदाहरण | Rekha Kise Kahate Hain

रेखा की परिभाषा

गणित में, रेखा (Line) को दो बिन्दुओं के मध्य स्थित सीधी रेखा के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह एक आदर्श और आयामिक तत्व है जिसमें कोई माप नहीं होती है। रेखा की लंबाई अनंत होती है और यह किसी भी दिशा में बढ़ाई जा सकती है। यहाँ आपने rekha ki paribhasha पढ़ी अब इसके प्रकार जानते हैं-
rekha-kise-kahate-hain

रेखाओं के प्रकार


सरल रेखा

सरल रेखा (Line Segment) एक सीधी रेखा होती है जो दो बिन्दुओं को जोड़ती है, लेकिन उन्हें परस्पर विस्तारित नहीं करती है। सरल रेखा के दोनों ओर निश्चित आयाम होते हैं और उसकी लंबाई सीमित होती है।
इसे दो बिंदुओं के बीच की दूरी के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। सरल रेखा को दो अंत बिंदुओं के साथ चिह्नित किया जाता है, जैसे AB या CD, जहां A और B, C और D उसके अंत बिंदु होते हैं।
rekha-kise-kahate-hain
सरल रेखा के प्रयोग कार्यों में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। वे आंकड़ों, संख्याओं, आयामों, समीकरणों, और तालिकाओं को प्रदर्शित करने में उपयोगी होते हैं। इनका उपयोग आपको दो बिन्दुओं के बीच की दूरी का मापन करने और संख्यात्मक व्याख्यानों, ज्यामितीय रूपांतरण, त्रिकोणमिति, और अनुपातों की गणना करने में मदद करता है। इसके अलावा, सरल रेखा एक सीधी और सरल आकृति होने के कारण गणितीय विचारधारा में भी महत्वपूर्ण हैं।

सरल रेखा के नियम
सरल रेखा (Line Segment) के नियम निम्नलिखित होते हैं:
  • आदिक बिंदु (Starting Point): सरल रेखा का आदिक बिंदु उस बिंदु को दर्शाता है जहां रेखा शुरू होती है। इसे आंकड़े या चिह्नों के माध्यम से प्रतिष्ठित किया जाता है।
  • अंत बिंदु (Ending Point): सरल रेखा का अंत बिंदु वह बिंदु होता है जहां रेखा समाप्त होती है। यह भी आंकड़े या चिह्नों के माध्यम से प्रतिष्ठित किया जाता है।
  • लंबाई (Length): सरल रेखा की लंबाई वह दूरी होती है जिसे आदिक बिंदु से अंत बिंदु तक मापा जाता है। इसे मानदंडों, इकाइयों, या अन्य मापन प्रणालियों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है।
  • बीच का बिंदु (Midpoint): सरल रेखा में, बीच का बिंदु वह बिंदु होता है जो रेखा के आदिक बिंदु और अंत बिंदु के बीच में बराबर दूरी पर स्थित होता है। यदि रेखा AB है, तो इसका बीच का बिंदु उस बिंदु को कहा जाएगा जो AB की बीच में होता है और AB की लंबाई के बराबर दूरी पर स्थित होता है।
  • विलोम रेखा (Opposite Segment): विलोम रेखा वह रेखा होती है जो सरल रेखा के आदिक बिंदु और अंत बिंदु के बीच की बाहर रहती है। यह रेखा सरल रेखा को विलोम दिशा में जाती है और उसकी लंबाई सरल रेखा की लंबाई से अलग होती है।
ये थे कुछ मुख्य सरल रेखा के नियम जो इसके परिभाषित और विशिष्ट करते हैं। ये नियम सरल रेखाओं को प्रदर्शित, मापन, और गणितीय अभिक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

समांतर रेखा

समांतर रेखा (Parallel Lines) दो सीधी रेखाएं होती हैं जो कभी भी आपस में इंटरसेक्ट नहीं होती हैं, अर्थात् वे कभी भी एक दूसरे को काटती या मिलती नहीं हैं। इन रेखाओं का अंतराल (दूरी) समान होता है और यह अंतराल हमेशा बराबर बना रहता है।
rekha-kise-kahate-hain
समांतर रेखा के नियम
यहाँ कुछ महत्वपूर्ण समांतर रेखा के नियम दिए गए हैं:
  • समांतरता के नियम (अंतराल का समान होना): समांतर रेखाएं के बीच का अंतराल (दूरी) समान होता है और यह समांतर रेखाओं की महत्वपूर्ण विशेषता है। यदि दो रेखाएं समांतर हैं, तो उनके बीच के किसी भी बिंदु के लिए अंतराल स्थायी रहेगा।
  • समान पंक्तियाँ (तार): समांतर रेखाएं अक्सर "||" चिह्न द्वारा प्रतिष्ठित की जाती हैं, जिससे उन्हें पहचाना जा सकता है। यह चिह्न दो समान पंक्तियों को दर्शाता है और यह संकेतिक रूप से उनकी समानता को दिखाता है।
  • समान कोण: समांतर रेखाएं एक दूसरे के साथ समान कोण बनाती हैं। यदि दो समांतर रेखाएं एक तीसरी रेखा द्वारा काटी जाती है, तो काटती रेखा की एक दूसरी समांतर रेखा के साथ बनाए गए कोण समान होता है।
  • उल्टी समांतर रेखाएं: उल्टी समांतर रेखाएं उन रेखाओं को कहती हैं जो एक-दूसरे के समांतर होती हैं, लेकिन विपरीत दिशा में जाती हैं। यदि दो समांतर रेखाएं हैं, तो उनकी विपरीत दिशा में चलती उल्टी समांतर रेखाएं होती हैं।
ये थे कुछ मुख्य समांतर रेखा के नियम जो उन्हें परिभाषित और विशेष करते हैं। समांतर रेखाएं गणित, ज्यामिति, और व्यावसायिक अनुप्रयोगों में उपयोगी होती हैं, जहां दो सीधी रेखाएं परस्पर समान और समानांतर होती हैं।

तिर्यक रेखा

जब एक समानांतर रेखा किसी अन्य रेखा को काटती है, तो वह इसे तिर्यक रेखा कहलाती है। तिर्यक रेखा एक विशेष प्रकार की समानांतर रेखा होती है, जो दो या अधिक रेखाओं के बीच एक निश्चित कोण बनाती है। इसे तिर्यकता के संदर्भ में भी जाना जाता है क्योंकि इसकी दिशा तिर्यक (तिरछी) होती है।
rekha-kise-kahate-hain
उदाहरण के लिए, यदि दो समानांतर रेखाएं एक दूसरे को काटती हैं और उनके बीच का कोण नहीं है, तो वे दोनों तिर्यक रेखाएं होंगीं। यह स्थिति एक समय में समानांतर रेखाएं हो सकती हैं, जबकि दूसरी रेखा इन्हें काटती है।
इस प्रकार, तिर्यक रेखा एक ऐसी समानांतर रेखा है जो किसी अन्य रेखा को काटती है, और इसे तिर्यकता के संदर्भ में जाना जाता है।

तिर्यक रेखा के नियम
तिर्यक रेखा के नियम निम्नलिखित हो सकते हैं:
  • तिर्यकता के संदर्भ में: तिर्यक रेखा किसी अन्य रेखा को काटती है और इसकी दिशा तिर्यक (तिरछी) होती है। यानी, तिर्यक रेखा अपने आप में सीधी नहीं होती है और किसी दूसरी रेखा को क्रॉस करती है।
  • कोण: तिर्यक रेखा और दूसरी रेखा के बीच का कोण निश्चित होता है। यदि दो समानांतर रेखाएं एक दूसरे को पूरी तरह से काटती हैं, तो उनके बीच का कोण 90 डिग्री होगा।
  • प्रतिबिंबित रेखाएं: तिर्यक रेखा कोई वस्तु या रेखा को उलटती है। यदि आप एक रेखा को उलटने के बाद उसे एक तिर्यक रेखा से काटते हैं, तो काटती हुई रेखा उस वस्तु की प्रतिबिंबित रेखा होगी।
  • समानांतरता: तिर्यक रेखा एक समानांतर रेखा होती है और इसलिए दोनों रेखाएं एक-दूसरे के पैरालेल होती हैं। इसका मतलब है कि यदि आप तिर्यक रेखा को स्थान बदलते हैं, तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा क्योंकि दोनों रेखाएं समान दूरी पर बनी रहेंगी।
ये नियम तिर्यक रेखा की मूल विशेषताएं हैं। यह गणितीय और ज्यामितिक अभियांत्रिकी में उपयोगी होती है, जहां रेखांकन और निर्णयों को समझने के लिए तिर्यकता के संदर्भ में काम किया जाता है।

वक्र रेखा

वक्र रेखा एक ज्यामितिकीय शब्द है जिसे हिंदी में "वक्रीय रेखा" कहा जाता है। यह एक ऐसी रेखा होती है जिसका प्रत्येक बिंदु कुछ विशिष्ट ढंग से मुड़ा होता है और सीधी रेखा के खिलाफ होती है। वक्र रेखा उभरती, घटती या घुमावदार हो सकती है।
rekha-kise-kahate-hain
वक्र रेखा को गणित में भी प्रयोग किया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण वक्र रेखाओं के नाम निम्नलिखित हैं:
  • धारा वक्र (Cubic Curve): धारा वक्र एक तीसरे श्रेणी का वक्र रेखा होता है जिसे गणित में "क्यूबिक कर्व" भी कहा जाता है। यह वक्र रेखा तीन मामूली डिग्री के होती है और उसकी माप वर्णनात्मक संख्याओं के माध्यम से की जाती है।
  • सर्कुलर वक्र (Circular Curve): सर्कुलर वक्र एक वक्र रेखा होती है जिसका प्रत्येक बिंदु एक विशिष्ट त्रिज्या पर स्थित होता है। यह वक्र रेखा एक वृत्ताकार या अर्धवृत्ताकार रूप में हो सकती है।
  • एलिप्स वक्र (Ellipse Curve): एलिप्स वक्र एक वक्र रेखा होती है जिसका आकार एक एलिप्स के समान होता है। इसका प्रत्येक बिंदु द्वारा निर्दिष्ट त्रिज्या पर पाया जाता है।
इन वक्र रेखाओं को गणित, ज्यामिति, रेखांकन, और विज्ञान में उपयोग किया जाता है। ये रेखाएं विभिन्न कठिनाई समस्याओं का समाधान करने, आकृतियों को वर्णन करने, और अनुसंधान के लिए उपयोगी होती हैं।

वक्र रेखा के नियम
वक्र रेखा के कुछ महत्वपूर्ण नियम निम्नलिखित हो सकते हैं:
  • प्रारंभिक बिंदु और अंतिम बिंदु: वक्र रेखा को पूरी तरह से परिभाषित करने के लिए आपको वक्र रेखा की प्रारंभिक और अंतिम बिंदु को निर्धारित करना होगा। इन बिंदुओं के द्वारा, आप वक्र रेखा के शुरुआत और समाप्ति को स्पष्ट कर सकते हैं।
  • मुख्यता (Degree): वक्र रेखा का मुख्यता उसकी मुद्रण गुणधारा होती है। यह मुख्यता उन गुणांकों को निर्दिष्ट करती है जिनका उपयोग वक्र रेखा के विशिष्ट बिंदुओं को मूड़ने के लिए किया जाता है। मुख्यता साधारित रूप से डिग्री (degree) में मापी जाती है और यह वक्र रेखा की तीव्रता और संकेंद्रता को प्रभावित करती है।
  • अभिन्नता (Continuity): वक्र रेखा को निरंतरता (continuity) का पालन करना चाहिए। यानी, रेखा के दो सदस्य बिंदुओं के बीच कोई अवकाश नहीं होना चाहिए। इससे रेखा एक समग्रता और संचालन बनाए रखती है।
  • संशोधन (Modification): वक्र रेखा को आप उचित रूप से संशोधित कर सकते हैं ताकि वह आपकी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। आप उन बिंदुओं को संशोधित कर सकते हैं जिनसे वक्र रेखा का माप, मुख्यता, या अन्य विशेषताएं परिवर्तित हो सकती हैं।
  • आकृति (Shape): वक्र रेखा की आकृति इसके मुख्यता और माप पर निर्भर करेगी। वक्र रेखा एक विशिष्ट आकृति या वृत्ताकार रेखा की तरह हो सकती है, और इसे मुख्यता की मदद से परिभाषित किया जाता है।
इन नियमों के अलावा, वक्र रेखा गणित, ज्यामिति, कंप्यूटर ग्राफिक्स, रसायन विज्ञान, आदि में अनेक प्रयोगों के लिए उपयोगी होती है। यह रेखांकन, मॉडेलिंग, और विज्ञानी अध्ययन को सुगम और सटीक बनाने में मदद करती है।

सांगामी रेखा

संगामी रेखा, जिसे अंग्रेजी में "concurrent lines" भी कहा जाता है, एक ऐसी रेखा होती है जिसमें दो या दो से अधिक रेखाएं एक ही बिंदु से शुरू होती हैं। इसे साधारणतः "संगामी" कहा जाता है क्योंकि इन रेखाओं का समावेश होने वाला बिंदु संगत होता है, जिसका मतलब होता है कि इन रेखाओं का पारस्परिक मिलान होता है।
संगामी रेखाएं ज्यामितीय शब्दावली में महत्वपूर्ण होती हैं और विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग होती हैं, जैसे कि ज्यामिति, ज्योतिष, अंतरिक्ष विज्ञान, निर्माण, रेखांकन, आदि। इन रेखाओं का उपयोग दो या अधिक रेखाओं के आपसी संबंध, क्रमश: इंटरसेक्शन बिंदु, और रेखांश की गणना करने के लिए किया जाता है।
rekha-kise-kahate-hain
इस प्रकार, संगामी रेखाएं एक पृष्ठ पर दो या दो से अधिक रेखाओं के प्रारंभिक बिंदु को संकेत करती हैं और इन रेखाओं की संगतता और संबंधों का प्रदर्शन करती हैं।

सांगामी रेखा के नियम
सांगामी रेखाओं के कुछ महत्वपूर्ण नियम निम्नलिखित हो सकते हैं:
  • संकेत स्थल (Point of Concurrency): सांगामी रेखाओं का मुख्य नियम यह है कि ये एक ही बिंदु पर संकेत करती हैं। इस बिंदु को "संकेत स्थल" कहा जाता है और यह सांगामी रेखाओं के समानांतर या पारस्परिक मिलान का स्थान होता है।
  • रेखांतरण परीक्षण (Collinearity Test): सांगामी रेखाओं के लिए महत्वपूर्ण नियम है कि ये सभी समांतर रेखाओं को परस्पर छेदने वाले एक ही बिंदु पर मिलती हों। यदि संगामी रेखाएं एक ही बिंदु पर मिलती हैं, तो यह इसे संकेतित करता है कि वे समांतर हैं और एक रेखा पर दूसरी रेखा के आंतरिक छेद को प्रमाणित करती हैं।
  • बिंदुगामी गुणधर्म (Point-Based Properties): सांगामी रेखाएं एक ही बिंदु पर मिलती हैं, इसलिए इनके साथ काम करते समय बिंदुगामी गुणधर्म का ध्यान देना आवश्यक होता है। इससे हम संगामी रेखाओं के बीच के दूरी, कोण, और अन्य गणितीय विशेषताओं को निर्धारित कर सकते हैं।
  • रेखांश की गणना (Calculation of Intersections): सांगामी रेखाएं दो या अधिक रेखाओं को प्रारंभिक बिंदु से छेदती हैं, और इन बिंदुओं की गणना या पता लगाने के लिए विभिन्न विधियां उपयोगी होती हैं। इसमें अंतर्गत यांत्रिकी, अंतरिक्ष ज्यामिति, और गणित शामिल हो सकते हैं।
ये नियम संगामी रेखाओं के मूल विशेषताएं हैं। ये ज्यामितिक और गणितीय अभियांत्रिकी में उपयोगी होते हैं, जहां रेखांकन, विश्लेषण, और समस्या हल करने के लिए संगामी रेखाओं का प्रयोग किया जाता है।

Post a Comment

Newer Older