आनुवंशिकता (Genetics)।

आनुवंशिकता (Genetics)।

आनुवंशिकता (Genetics)।

  • माता-पिता से उनकी संतानों में विभिन्न लक्षणों के स्थानांतरण का विषय तथा उससे संबंधित कारणों और नियमों का अध्ययन आनुवंशिकी (Genetics) कहलाता है।
  • जोहान्सन (1905 ई.) ने सर्वप्रथम जीन शब्द का प्रयोग किया।
  • सर्वप्रथम जेनेटिक्स नाम का उपयोग डब्ल्यू वाटसन ने 1905 में किया था।
  • ग्रेगर जान मेण्डल को आनुवंशिकी का पिता कहते हैं।
  • मेण्डल ने अपना प्रयोग मटर (Pisum sativum) के पौधे पर किया था।
  • आनुवंशिक लक्षणों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानान्तरित करने वाली रचना जीन या कारक कहलाती है।
  • एक ही जीन के दो या दो से अधिक विकल्प एलील कहलाते हैं जैसे- R एवं r
  • एक जोड़ी लक्षणों को लेकर कराया गया क्रॉस एकसंकर तथा दो जोड़ी लक्षणों को लेकर कराया गया क्रॉस द्विसंकर क्रॉस कहलाता है।
  • वंशागति के नियमों का पालन कर मानव जाति को सुधारना सुजननिकी (eugenics) कहलाता है।
  • चिकित्सा इंजीनियरिंग द्वारा दोषपूर्ण उत्तकों या जीवों का सुधार करना यूफेनिक्स (euphenics) कहलाता है।
  • उत्तम परिस्थितियाँ उत्पन्न कर मानव समाज को सुधारना सौपरिवेशिकी (euthenics) कहलाता है।
  • जीवधारी के जो लक्षण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं उसे फीनोटाइप कहते हैं।
  • जीवधारी के आनुवंशिक संगठन जो कि जीन से बना होता है, उसे जीनोटाइप कहते हैं।
  • मेण्डल के विषम युग्मजी  F1, पौधे का समयुग्मजी अप्रभावी जनक से क्रॉस परीक्षार्थ संकरण कहलाता है। इससे एक संकर क्रॉस में 1:1 एवं द्विसंकर क्रॉस में 1:1:1:1 का अनुपात मिलता है। F2 पीढ़ी में यह अनुपात फीनोटाइप अनुपात 3:1 तथा जीनोटाइप अनुपात 1:2:1 प्राप्त हुए।
  • ह्यूगो डी व्रीज (डच), कार्ल कॉरेन्स (जर्मन) तथा वी शरमाक (ऑस्ट्रियन) नामक वैज्ञानिक ने स्वतन्त्र रूप से मेण्डल के निष्कर्षों का पुनः वर्णन करके तीन नियम-प्रभाविता का नियम, पृथक्करण का नियम तथा स्वतंत्र अपव्यून का नियम दिए।
  • सहलग्नता- जब दो विभिन्न लक्षण एक ही गुण सूत्र पर बंधे होते हैं, तो उनकी वंशागति स्वतंत्र न होकर एक साथ ही होती है।
  • जीन- यह आनुवंशिकता की मूल इकाई है। गुणसूत्र की पूरी लम्बाई में सैकड़ों-हजारों की संख्या में जीन पाये जाते हैं। ये डी. एन. ए. के बने होते हैं।
  • गुणसूत्र- प्रत्येक कोशिका के केन्द्रक में सूत्र की आकृति के अवयव युग्मावस्था में बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं। इन्हें गुणसूत्र या क्रोमोजोम कहा जाता है। क्रोमोजोम में हजारों की संख्या में जीन पाये जाते हैं।
  • लिंग गुणसूत्र- मनुष्य की कायिक कोशिकाओं में 46 गुणसूत्र होते हैं। पुरुष वर्ग में 22 जोड़ी अलिंग सूत्री गुणसूत्र तथा एक जोड़ा लिंगसूत्री गुणसूत्र होते हैं। स्त्रीवर्ग में 22 जोड़े समजातीय गुणसूत्र तथा एक जोड़ा X गुणसूत्र रहते हैं। अर्धसूत्री विभाजन के समय गुणसूत्र के जोड़े विसंयोजित होते हैं।
  • प्रत्येक अंडाणु में 22 जोड़े समजातीय गुणसूत्र और एक जोड़ा X गुणसूत्र रहता है, जबकि शुक्राणु में 22 जोड़ा समजातीय गुणसूत्र और एक जोड़ा XY गुणसूत्र रहता है।
  • सन्तान का लिंग अंडाणु को निषेचित करने वाले शुक्राणु पर निर्भर करता है।
  • युग्मनज में XX गुणसूत्र रहता है, तो इसका विकास स्त्री संतान के रूप में होता है।
  • अंडाणु Y गुणसूत्र से निषेचित होने पर युग्मनज में XY लिंग गुणसूत्र होता है और इसका विकास पुरुष संतान के रूप में होता है।
  • डी. एन. ए. जीवों में आनुवंशिक लक्षणों का वाहक होता है।
  • डी. एन. ए. और आर. एन. ए. एक कार्बनिक अम्ल है, जिसके अणु सर्पिल लड़ी के रूप में रहते हैं। इसे न्यूक्लिओटाइड कहा जाता है।
  • डी. एन. ए. और आर.एन.ए. दोनों में दो प्रकार की शर्कराएं पाई जाती हैं और शर्करा की यही भिन्नता इन दोनों को एक दूसरे से अलग करती है।
  • डी. एन. ए. ही आनुवंशिक संकेतों को धारण करता है। इन संकेतों के आधार पर प्रोटीन का निर्माण होता है।
  • डी. एन. ए. के कूटित निर्देशों को राइबोसोम तक ले जाने का कार्य संदेशवाहक आर. एन. ए. करती है।
  • प्रोटीन संश्लेषण कोशिका के राइबोसोम पर होता है। कोशिका द्रव्य में उपस्थित 20 अमीनो अम्लों का सही चुनाव जेनेटिक कोड से ही संभव है।
  • डॉ. हरगोविन्द खुराना ने सम्पूर्ण जेनेटिक कोड का पता लगाया। इस कार्य के लिये उन्हें 1968 ई. में नोबेल पुरस्कार मिला था।
  • रुधिर बैंकों में रुधिर को ज्यों का त्यों तीस दिन तक रखा जा सकता है। प्लाज्मा को सुखाकर पाउडर के रूप में अधिक दिनों तक रख सकते हैं। रक्त देते समय इस प्लाज्मा में पानी मिला देते हैं।
लिंग गुणसूत्रों के जीनों द्वारा लक्षणों की वंशागति का नियंत्रण लिंग के साथ बदलता है जिसे लिंग सहलग्नता कहते हैं।
उदाहरण स्वरूप -
X- क्रोमोसोम वंशागति-वर्णान्धता हीमोफीलिया। Y- क्रोमोसोम वंशागति-कर्णप का हाइपरट्राइकोसिस (कानों के बाल की बहुलता) तथा स्केली त्वचा (Xeroderma)
  • वर्णान्धता- इसमें रोगी लाल एवं हरे रंग में भेद नहीं कर पाता। इसमें मुख्य रूप से पुरुष ही प्रभावित होता है। स्त्रियाँ सिर्फ वाहक का काम करती हैं।
प्रतिजैविक पदार्थ (Antibiotics)
शरीर में कृत्रिम रूप से प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने के लिए आजकल 'एण्टीबायोटिक्स' का इस्तेमाल किया जाता है। अब तक अनेक 'एण्टीबायोटिक्स' की खोज की जा चुकी है। लेकिन सबसे पहले एण्टीबायोटिक 'पेनिसिलीन' (Penicillin) की खोज 1928 में एलेक्जेन्डर फ्लेमिंग ने की थी। एण्टीबायोटिक बनाने के मुख्य स्रोत कवक और बैक्टीरिया हैं। कुछ प्रचलित एण्टीबायोटिक इस प्रकार हैं। -एमॉक्सीसिलीन, एम्पीसिलीन, टेट्रासाइक्लिन, टेरामाइसीन इत्यादि।
  • हीमोफीलिया- इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को चोट लगने या कटने पर रक्त का थक्का नहीं जमता। इसमें भी स्त्रियाँ वाहक का ही कार्य करती हैं।
  • कर्णपल्लवों का हाइपरट्राइकोसिस- यह लक्षण पिता के गुणसूत्र से संतान में पहुंचता है। इसमें कर्णपल्लव पर बड़े-बड़े बाल उग आते हैं।
  • अन्य आनुवंशिक रोगों में टर्नर सिन्ड्रोम, क्लीनफेल्टर सिन्ड्रोम, डाउन्स सिन्ड्रोम, पटाउ सिन्ड्रोम तथा माइलोजिनस ल्यूकीमिया है।
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