जैव-संचयन (Bioaccumulation)
जैव-संचयन यह दर्शाता है कि किस प्रकार प्रदूषक खाद्य श्रृंखला के भीतर पहुँचते हैं। प्रदूषक विशेषतः
अनिम्नीकृत (Non-degradable) प्रदूषक पारितंत्र के भीतर विभिन्न पोषण स्तर से गुज़रते हैं। अनिम्नीकृत प्रदूषकों से अभिप्राय ऐसे पदार्थों से है जो जीवधारियों के भीतर उपापचयित नहीं हो पाते।
उदाहरण के लिये क्लोरिनेटेड हाइड्रोकार्बन।
जैव-संचयन में पर्यावरण से किसी प्रदूषक का खाद्य श्रृंखला के प्रथम जीव में सांद्रण बढ़ता जाता है। किसी भी पोषण स्तर पर अवस्थित जीव जैव-संचयन के लिये सक्षम हैं। जैव-संचयन रसायनों के अंतर्ग्रहण, संग्रहण और निष्कासन का समग्र परिणाम होता है। इसका अभिप्राय यह है कि इसमें संदूषक (Contaminants) के अंतर्ग्रहण और संग्रहण की दर निष्कासन से अधिक होती है। संदूषकों का जीवों में प्रवेश, श्वसन, भोजन ग्रहण एवं पदार्थों के त्वचीय संपर्क एवं अन्य तरीकों द्वारा होता है।
जैव-संचयन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Bioaccumulation)
जैव-संचयन बहुत से पर्यावरणीय, जैविक तथा भौतिक कारकों पर निर्भर करता है,
जैसे:
सहक्रिया (Synergism):
जीव किसी समय एक प्रदूषक का अवशोषण कर सकता है किन्तु जब दो प्रदूषक मिलकर कोई विषैला प्रदूषक बनाते हैं जिसका प्रभाव अकेले प्रदूषक से ज्यादा होता है तो इस प्रक्रिया को 'सहक्रिया' कहते हैं।
उदाहरण- सीसा, जिंक व पारे की बढी मात्रा जलीय प्रोटोजोआ की वृद्धि को कम कर सकती है परंतु जब ये प्रदूषक एक साथ होते हैं तो इनका प्रभाव अत्यधिक होता है।
डाइक्लोरो डाइफिनाइल ट्राइक्लोरो ईथेन (DDT) :
यह बहुत हानिकारक कार्बनिक प्रदूषक होता है जो मृदा और जल में लंबे समय तक रहता है। यह एक विषैला प्रदूषक है जिसका उपयोग कीटनाशक के रूप में किया जाता है। इससे जैव-संचयन व जैव-आवर्द्धन होता है। यह मानव में कैंसर व टाइप-2 डाइबिटीज़ का मुख्य कारक है।
पॉलीक्लोरिनेटेड बाइफिनाइल (PCB):
इसका प्रयोग मुख्यतः औद्योगिक उत्पादों में होता है। इसे बहुत से देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसका प्रयोग पेन्ट, प्लास्टिक आदि बनाने में होता है। PCB रासायनिक रूप में स्थायी यौगिक है इसलिये तीव्र गति से इसका जैव-संचयन होता है। जलीय जीवों पर इसका प्रभाव अत्यधिक पड़ता है। यूरोपीय देशों में सील मछली पर इस रसायन का अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है तथा इसकी मृत्यु इस हानिकारक रसायन के प्रभाव में आने से हो रही है। मानव स्वास्थ्य के लिये भी यह रसायन हानिकारक है।
भारी धातु (Heavy Metals):
जब भारी धातुओं का जैवमंडल में प्रवेश होता है तो उनका न तो विनाश होता है और न ही वे निम्नीकृत होते हैं। पारा, कैडमियम, सीसा आदि भारी धातु हैं जिनका प्रभाव जलीय पारितंत्र तथा मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ये प्रदूषक मनुष्य में विभिन्न प्रकार के रोग का कारण होते हैं।
जैव-संचयन यह दर्शाता है कि किस प्रकार प्रदूषक खाद्य श्रृंखला के भीतर पहुँचते हैं। प्रदूषक विशेषतः
अनिम्नीकृत (Non-degradable) प्रदूषक पारितंत्र के भीतर विभिन्न पोषण स्तर से गुज़रते हैं। अनिम्नीकृत प्रदूषकों से अभिप्राय ऐसे पदार्थों से है जो जीवधारियों के भीतर उपापचयित नहीं हो पाते।
उदाहरण के लिये क्लोरिनेटेड हाइड्रोकार्बन।
जैव-संचयन में पर्यावरण से किसी प्रदूषक का खाद्य श्रृंखला के प्रथम जीव में सांद्रण बढ़ता जाता है। किसी भी पोषण स्तर पर अवस्थित जीव जैव-संचयन के लिये सक्षम हैं। जैव-संचयन रसायनों के अंतर्ग्रहण, संग्रहण और निष्कासन का समग्र परिणाम होता है। इसका अभिप्राय यह है कि इसमें संदूषक (Contaminants) के अंतर्ग्रहण और संग्रहण की दर निष्कासन से अधिक होती है। संदूषकों का जीवों में प्रवेश, श्वसन, भोजन ग्रहण एवं पदार्थों के त्वचीय संपर्क एवं अन्य तरीकों द्वारा होता है।
जैव-संचयन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Bioaccumulation)
जैव-संचयन बहुत से पर्यावरणीय, जैविक तथा भौतिक कारकों पर निर्भर करता है,
जैसे:
- पदार्थों का ग्रहण करना
- पदार्थ का भंडारण तथा भंडारण क्षमता
- पदार्थों का निष्कासन
- हाइड्रोफोबिसिटी
- पानी में प्रदूषकों की सान्द्रता
- आयु, लिंग व प्रकार (किसी जीव का)
जैव-संचयन को पार्ट्स प्रति मिलियन (parts per million-ppm) में मापा जाता है।
सहक्रिया (Synergism):
जीव किसी समय एक प्रदूषक का अवशोषण कर सकता है किन्तु जब दो प्रदूषक मिलकर कोई विषैला प्रदूषक बनाते हैं जिसका प्रभाव अकेले प्रदूषक से ज्यादा होता है तो इस प्रक्रिया को 'सहक्रिया' कहते हैं।
उदाहरण- सीसा, जिंक व पारे की बढी मात्रा जलीय प्रोटोजोआ की वृद्धि को कम कर सकती है परंतु जब ये प्रदूषक एक साथ होते हैं तो इनका प्रभाव अत्यधिक होता है।
डाइक्लोरो डाइफिनाइल ट्राइक्लोरो ईथेन (DDT) :
यह बहुत हानिकारक कार्बनिक प्रदूषक होता है जो मृदा और जल में लंबे समय तक रहता है। यह एक विषैला प्रदूषक है जिसका उपयोग कीटनाशक के रूप में किया जाता है। इससे जैव-संचयन व जैव-आवर्द्धन होता है। यह मानव में कैंसर व टाइप-2 डाइबिटीज़ का मुख्य कारक है।
पॉलीक्लोरिनेटेड बाइफिनाइल (PCB):
इसका प्रयोग मुख्यतः औद्योगिक उत्पादों में होता है। इसे बहुत से देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसका प्रयोग पेन्ट, प्लास्टिक आदि बनाने में होता है। PCB रासायनिक रूप में स्थायी यौगिक है इसलिये तीव्र गति से इसका जैव-संचयन होता है। जलीय जीवों पर इसका प्रभाव अत्यधिक पड़ता है। यूरोपीय देशों में सील मछली पर इस रसायन का अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है तथा इसकी मृत्यु इस हानिकारक रसायन के प्रभाव में आने से हो रही है। मानव स्वास्थ्य के लिये भी यह रसायन हानिकारक है।
भारी धातु (Heavy Metals):
जब भारी धातुओं का जैवमंडल में प्रवेश होता है तो उनका न तो विनाश होता है और न ही वे निम्नीकृत होते हैं। पारा, कैडमियम, सीसा आदि भारी धातु हैं जिनका प्रभाव जलीय पारितंत्र तथा मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ये प्रदूषक मनुष्य में विभिन्न प्रकार के रोग का कारण होते हैं।